अत दपप्पदप (कनड०ता 4 देह: संसार के महान उपन्यास इस पुस्तक में संसार के महान उपत्यासकारों के ४५ सर्वोत्तम उपत्यासों का कथासार दिया गया है | टालस्टाय, दास्‍्तोएवस्की, बाल्जाक, तुर्गनेव, गोर्की, प्लाबेयर, ज्ोला, हार्ड, वेल्स, डी० एच० लारेन्म, पल बक, पास्तेरताक आदि जैसे उपन्याक्तफारों की अमर रचनाओं का कथासार अत्यन्त रोचक तो में और इस कुशलता के साथ श्रस्तुत किया गया हैं कि पाठक को ले केवल इन उपन्यात्रों की संक्षिप्त कथा का बल्कि उपन्यासकार की कला और मूल पुस्तक की प्रमुख विशेषताओं का भी परिचय मिल जाता है। हिन्दी मे अपने ढंग की इस पहली पुस्तक के सम्पादक और प्रस्तुतकर्ता हैं स्वर्यीय डा० रागेय राघव, जो स्वयं भी एक श्रेष्ठ उपस्पासकार और विश्व-माहित्य के जाने-माने विद्वान से । । 9०९०० । अआतयंग्रेय साघव प्रकाइक : राजपाल एण्ड सग्ज, दिच्ली मूल्य : दस रुपये संसार के महान उपन्यास क्रम सामाजिक उपन्यास देहात का पादरी [द विक्रार आक वेकफील्ड ] गोल्डस्मिय सुख की खोज [ विल्हेम मीस्टर ] गेढे जय-पराजय [प्राइड ऐण्ड प्रेजूडिस जैन ऑस्टिन खण्डहर [पियरे गोरियो ] बाल्जाक टॉम काका की कुटिया [भंकिल टॉम्स केबिन ] एच० बी० स्टो अनाधिनी [जैन आयर] चालेटि ब्रोटे प्रेम की पिपासा [वु्दारिग हाइद्स एमिली ब्रोदे त्याग और प्रेम [कंमिले] अलेक्जैंडर ड्यूमा फिल्‍्स माना [नाना] एमिल जोला प्रेम के बन्थन [रमोना] हेलेन जैक्सन एक परिवार [ लिंटिल बीमेन ] ऐल्कॉट अभागिन (टिेस आफ द ड्यूबेविले] टॉमस हाडी - रूप की धुटन [गौस्टा बलिय) सेल्मा लागरलोफ भाव [लिटिल मिनिस्टर] जेम्स मैयू बेरी पीड़ा का भाग [इंयैच फ्रोम] एडिय ब्हार्टन मा [द मदर] ध मैजिसम गोर्की चरती माता [द गुड अर्थ पर्ल एस» बेंक मनोवैज्ञानिक उपन्यास प्रेरा पहला प्यार [माई फर्स्टे लव] तुरेनेव परिवार और वन्धु [द ददस करामशोद ] दास्तोएवस्की स्वप्न [मादाम बावेरी ] क्नॉवियर इन्सान या धैतान [डॉक्टर जेकिल एण्ड मिस्टर हाइइ ] एक औरत की जिन्‍्दगी [यूते दी] लक ११ १७ + र५ ३३ ड्रेद डर ४६ ५१ ५६ ६० ६५ ह्६ छ्डे ७६ ३ १०३ ११० १३० श्ड४ १५० (४) अपनी छाया [द पिक्चर ऑफ डोरियन ग्रे] ऑस्कर वाइल्ड जां क्रिस्तोफ रोम्यां रोलां बरसात [द रेव] सॉमरसेट मॉम पुत्र और प्रेमी [सन्ज एण्ड लदसे] डी० एच० लॉसेन्स सागर और मनुष्य [द ओलल्‍्डमंन एण्ड द सी] अनेंहट हेमिग्वे डॉ० जिवागो पास्तेरनाक अजनबी [दि स्ट्रेंजर ) आल्वेषर कापू रंजक उपन्यात्त सीसमारखां [डॉन विववज्ञोट ] सरवांते रॉविन्सन ऋसो के डेतियल डिफो भयंकर कृति [फ्रैकैस्टीन मेरी उब्ल्यू० शेली चन्द्रकान्त मणि [द मूनस्टोन ] विल्‍्की कॉलिन्स रहसस्‍्यमपी [शी] राइडर हैगाई लोकों का युद्ध [द वार ऑफ द वल्ड्स ] एब० जी० वेल्स क्षितिज के पार के कीड़े [द अमेश्चिग प्लेनेट[ क्‍्लाऊ स्मिय ऐतिहासिक उपन्यास खीर सिपाही [आइवन हो) चाल्टर स्काट दीन विलंगे [द थी मस्केटियर्स ] अलेक्जैडर ड्यूमा पेरिस का कुबड़ा [द हचबैक आफ द सोजदाम ] विक्‍्टर हो अन्तिम दिन [द लास्ट डेज ऑफ पोम्पेई ] लिटन दो नगरों को कहानी [ए टेल ऑफ टू सिटीज] डिकेन्स डाकू और सुन्दरी [लोरना डून) ब्लैकमोर जब रोम जल रहा था [व्वो वादिस ? [ सीनकीविक्ड योवन को आंधी [बफोदित्ते] पियरे खुई युद्ध और शांति [वार एण्ड पीस ] ताल्सताय १५५ १६१ १६६ श्ज्र १७६ ह्दर १६६ २०७ र्‌२१ २४५ रश्र २५६ २६६ २७४ ३०१ ३१७ र२१ ३३३ ३२७ डरे ३५१ ३५८ ३७१ सामाजिक उपन्यास दो डब्द प्रस्तुत प्रंथ में संसार के महान उपन्यासों की हुपरेजा सथा परिचय दिया गया है, जो एक संदर्भ प्रंय के रुप में भो रामदायक रचना सिद्ध हो सकती हूँ। अभी हिल्दी में इस सभी प्रसिद्ध पंपों के अनुवाद भी प्राप्त नहीं होते।. आशा हूँ पाठकों को विदेशों साहित्य का यह संभिप्त परिचय एक नया विस्तार देगा --रांगेय राघव भोल्डस्मिय : देहात का पादरी [ द विकार आफ वेकफील्ड+ ] गोल्दस्मिथ, भोलितर : भंग्रे हो उपन्यातकार गोल्टरिमय का जन्म आयरलैण्ड के एक ग्राम में १० नवखर, १७२८ को हुआ | शिह्टा दिनिदी कॉलेज, टब्लिन में प्राप्त की | प्रदिणाशाली दे, लेकिन पैसे के मामले में तर और फ्लोकटी | इिल्दगीशा्ों में उस्ते।ई, लेकिल कप्ना-कर्मी मौके पर जवाब नहीं बना पाते थे । डाकदरी पी; लेकित फिए छात-भर यूऐोप में घूसरे रहे और किसीरे कइने से कुध लिख-लिखाकर कमाते रहे । कमी क्मीको पढा देखे | १७६१ में डॉक्टर जॉन्सन से भेंट हुई और उसने मदद की । तव गोल्डरिमक ने डटकर्‌ कबिताए, नाटक, निवध भौर उपन्यास सृजन किया । ४ भ्रपैल, १७७४ को लन्दन में देहान्त हुआ | “देशाद का पादरी? का मूल अये डी शाम है *द विकार भाफ वेकफोल्ड! | यइ उपस्थास एक मंदान कृति माना हाता हे | योल्शहिसथ ने मानव-ज'दन का गे दी कौराल से चित्रण किया दे | डॉक्टर प्रिमरोश एक सज्जन व्यक्ति था। उसको पत्नी उसके अनुकूल थी। उश्नने अपनी सत्तान को दुढ़ता बी शिक्षा दो थी । पुत्र और पुत्रियां सब स्वस्थ, सुन्दर और शिक्षित थे। आलीविया सुर्दरी दी। वह बेतकल्लुफ और उत्साहीची। सोफिया विनश्न और लजीली थी। चारो ही पुत्र सुडढ़ और जीवत शगते थे। डॉक्टर के पास चोदह हजार पाउण्ड थे। इससे ऊपर की आय वह गरीबों पर भी खं कर दिया करता था। डॉक्टर का बडा बेटा जॉर्ज ऑव्सफोई से पदुकर आ गया। उसकी शादी मिस * हरैदला विल्मौटसे मिश्चित हुई। दिन्तु जिस दिन विवाह होनेवाला था, वर-धघू के पिताओं में तू मैं-मैं हो गई। डॉक्टर प्रिमरोज़ का पन जिस व्यपारी के पास संगा था बह चपतर हो गया विल्मौट ने इसके वाद धादी करना उचित नहीं सपा १ जॉर्ज को कमाते के लिए सन्‍्दन भेज दिया यया । वहां से दूर एक गांव में डॉफ्टर प्रिमरोज भी एक छोटे-से गिरजे के पादरो का स्थान ग्रहण करने चला, जहां उसे प्रतिवर्ष १५ पाउण्ड मिलने की थे । रास्ते में उन्हें एक व्यक्ति मित्र) वह अच्छा आदमी लगता घा। उमत्रा नाम था बर्चेल । उसोने बताया कि नया झमीदार योनेहित युवक था। बह बहुत घनी दा और आनन्द शथा मनोरंजनप्रिय था। सर दिलियम थोतेद्विस जो बहुद विरूप्रात और सज्जन कै. एुत७ ६४४८-०७ ८ ६९.६ »( 0.२ ((३॥:५७+ <१/) (२००२१ ध्थ संप्तार के महात उपस्यास थे, इस नये जमीदार के छाचा लगते ये । । यात्रा के समय सोफिया नाले की तीक्धधारा मे गिर पडी । वर्चल ने तुरन्त कूदकर उसकी रक्षा की । परिवार ने इतज्ञता प्रकट की | कुछ समय बातचीत करके बर्चेल उनसे बिंदा लेकर चला गया । हेमंत ऋतु थी। दुपहर ढल चुकी थी। नया जमीदार थौनंहित उधर से घिकार करने निकला । सार्ग में वह पादरी से बातें करने रुक गया । ओलोविया के नयनों में उसे कुछ अनुराग दिखाई दिया। इसके बाद वह उनके घर अक्सर आने लगा। पादरी उसे हिसन के मांस की स्वादिष्ट दिकिया खिलाता और लड़कियों को सुन्दरता की सुगन्ब तो उसके आसपास फैलती ही रहती। अक्सर बर्चेल भी उतके घर आता, परन्तु उसकी तुलना में अमीदार थौर्नहिल बहुत बड़ा आदमी था | इसलिए बर्चेल की क॒द्र कम होना एक मामूली-सी बात थी । एक दिन तरुण जमीदार थौनंहिल दो युवतियों के साथ आया। वे बहुमूल्य वस्त्र पहने हुई थीं। थौर्न हिल ने उनका परिचय दिया जो कि दाहर से आई थीं और फैशनेबुल स्त्रिया थी। उन स्त्रियों के व्यवहार से प्रिमरोज्-परिवार दो-तीन वार चौंक भी पड़ा । उतमे झहरी आदतों थी। परन्तु उन्होंने एक बात मे सफलता पाई, प्रिमरोअ-्परिवार की लड़ कियों को उन्होने फैशनपरस्ती की तरफ बडाया । पादरी की नप्तीह्तें इस मामले मे कारगर नहीं हुईं । वह इस तरह की चमक-दमक का विरोधी था । घर की औरतों ते तय किया कि घर का लचर धोड़ा वेच दिया जाए और एक अच्छा घोड़ा खरीदा जाए। पादरी का दूसरा बेटा मौजेज़ इस कार्य के लिए पड़ोस के इलाके में लगनेवाले मेले मे भेजा गया ताकि वह सौदा कर आएं। उसने अपने धोडे को अच्छी कीमत पर बेच दिया! नेकित वहां उते एक आदमी ने दुटी तरह 5ग लिया। नतीजा मह हुआ कि परिवार को ब्रहुत हानि पहुची । इस घटना से वे पहले से भी अधिक गरीब हो गए । तदण जभीदार थौनंहिल की सामिनों ने श्रीमती प्रिमरोड से कट्टा कि वे ओली* विया और सोफिया को शहर ले जाता चाहती थी । श्रीमती प्रिमरोश इस विचार से बहुत प्रसन्‍न हुईं । किन्तु वर्चच इस विचार के बहु विरुद्ध रहा और उसने इसके विरुद्ध इतनी « बातें कही कि परिवार से उसका तनाव-सा हो गया | बुछ ही विद बाद उमोदार थौते- हिल ने परिवार को सूचना दी कि दे स्त्रियां अब इन लड़कियों को साथ नही ले जा सकेगी, क्योकि हिसो ईर्ध्यालु व्यक्ति ने इधर की उथर भिड़ारूर घफला कर दिया था। तभों दोनों महिलाओं के नाम वर्चल का लिखा एक पत्र प्राप्त हुआ जिसमें चेतावनी दी गईं थी कि बे इन लड़जियों को अपने साथ नही से जाएं। इस घटना के बाद तो वर्चल के वादे में बात साफ हों हो गई + सदण जमोदार थोनेहिल अब इलके घर पहले ये भी अधिक आवे-जाने लथा। उसरे थ्यदह्ार से कुछ ऐना ब्रदूट होने लगा कि वह विवाह नहीं, प्रेस करता चाहता था । एक दिन सार हो चती थी। पादरी का पुत्र डिक भागा-मागा आमा और उसने बहा हि थोजीविदा को दो आइसी उद्देश्ती एक गाड़ी मे लिए जा रहे थे, बह स्वय देश- देहात का पादरी & कर आया था| वह काफी रोई-धोई थी, परन्तु उसे विवश कर दिया गया था । पघादरी ने उसकी रक्षा करने का दीड़ा उठाया और उपाप प्रारम्भ किया। उसे पहले ज़मीदार थौनेंहिल पर सदेह हुआ किन्तु जमौदार ने कसमें खाई ओर कहा कि उसका इस मामले से कोई ताल्लुक नहीं भा । जद दर्चल के अतिरिक्त और किसपर संदेह हो राकता था ? इस खोज-दूढ मे पादरी बीमार पड़ गया। तीन सप्ताह बाद उसे अपनी पुत्री एक याद की सराय में अकेली मिलो ! उसको यह जानकर अत्यन्त दु.ख हुआ, वल्कि दिल को घबरा रूगा कि भूठी शादी का लालच दिखाकर ओलोविया को चकरा देकर अगा ले जानेवाला और कोई नहीं, स्वय उमीदार थोर्नहिल ही था, बल्कि बर्चल ने तो इसमें बाधा देने की भी चेप्टा की थी। अगली रात जब वे घर लौटकर आए तो पादरी की वेदवा और अधिक बढ गई। उसके घर मे आग लगी हुई थी। परिवार किसी तरह वचकर बाहर भाग तिकला। किन्तु इमारत धरबाद हो गई और इसलिए उन्हें एक बड़े रद्दी कोठे भे शरण लेनी पढी । पादरी की पत्ती ने पुत्री को देखा तो चह घूणा से क॒दु बचन कहने लगी । पादरी ते उमसे कहा, "में एक भटके हुए प्राणी को तुम्हारे पास ले आया हू । वह अपने कर्तेब्यो को सुचारु रूप से कर सके, इसलिए आवश्यक है कि हमारा पूर्ववत्‌ स्नेह उसे प्राप्त हो ।" पादरी के ममता-भरे वचनो को सुनकर उसकी पत्ती चुप हो गई। ओलीविया के दुःख का अन्त नहीं रहा, जब उसने सुना कि तदण जेमीदार यौतें- हिल का कुमारी विल्मोद से विवाह होनेवाला था। विल्मोट धनी थी और एक दिन उसीसे ओोणी विया के माई की शादी ट्ट गई थी। डॉक्टर प्रिम रोज फो करोध-सा हो आया | उसने तश्ण जमीदार के सामने जाकर उसे खूब फ्टकारा | तरुण जमीदार अपने रुपये मांगने लगा। पादरी के पास धन नहीं था नो किशाया चुका देता । अगले ही दिल झुमीदार ने पादरी को काउन्टी वी जेल मे इलवा दिया, क्योकि वह कर्जदार था। पादरी का परिवार अब और भी अधिक सकट में पड़ गया | घनाभाव ते अपनी भगकर दाड़ें खोल दीं । जैल में ही पादरी को यह हृदय-विदशरक सवाद मिला दि ओलोविया दौमार होकर इस ससार से स्िघार गई । इसी घटना के बाद एक दिन उसकी पत्नी ने रोसरोकर उसे यह सभाचार दिया कि गुडे उसकी बेटी सोफिया को पकड़कर ले भागे थे । मुसीवतो के देर ने पादरी को अपमरा-्सा कर दिया | पादरी का पुत्र जॉर्ज इस अत्याबार के विषय में पिता का पत्र पाकर अत्यन्त कद हो उठा और परिवार को धोसा दैनेवाले तरुण जमीदार योनेटिल वो दण्ड देने उसके घर पहुचा। झमीदार के नौररो ने उसपर हमला कर दिया और जद जॉर्ज ने उनमे से एक को घायल कर दिया सो जॉर्ज वो भी गिरफ्तार रुरके पिता के पास ही जैल में भेज दिया गया। पादरी अब बड़ुत बीमार दो यया ॥ उसने अन्तिम प्रदत्त किया $ तरुण डमीदार थोनेडिल के चाचा सर विलियम थौनंदिल गो उसने सारी घटना लिख दी और उनके उत्तर ही प्रतीक्षा पर आधा लगाए रहा। और कोई घाट नही या। मृत्यु निशट आठी लग सही १० संगार के महान उपस्यास थी। वह परमात्मा से अपने अपराधों की क्षमा मांगता, नित्य प्राथंवा करने लगा) जब निराह्षा की पराकाष्ठा हो गई, एक दिन बन्दीगृह में सोडझिया के स्थथ बर्चेल ने भ्रवेश किया । “पापा !” बह चिल्ला उठी ! “यही वे बीर हैं जिन्होंने मेरी रक्षा की है ।/ पादरी ने वर्चेल के भुणो को स्वीकार किया और कहा कि उससे अधिक उसकी पुत्री के लिए और कोई व्यवित योग्य महीं था । तब पता चला कि सर विलियम थोने हिल ओर कोई नहीं, स्वय बर्चेल ही था । जी दो गुंडे तएण ज्षमीदार थौनंहिल ने सोफिया को उडाने के लिए तैनात किए थे उन्हें देखकर अब वह स्वय काप उठा । उसी समय एक व्यक्ति और आया। दह वही ठग था जिसने मौजज को ठया था। दूसरी वार धोड़ा वेचने जब स्वय पादरी गया था, तत्र उसीने पादरी को भी घोखा दिया था । इस समय उसी ठग ने बताया कि तर्ण जमीदार थौर्नहिल और ओलीविमा का सचमुच विवाह हुआ था। जमीदार के ग्ुमास्ते मे एक असली पादरी को बुला लिया था, ताकि वह इस शादी से अपने मालिक पर अपना असर डालता रह सके। तभी पादरी को पठा चला कि ओलोवियां अभी तक जीवित थी। ओलीविया की मोत की खबर भी उमीदार और विल्मोट की झादी का रास्ता साफ करते को उड़ाई गई थी, वर्ता पादरी इसमें व्याघात डालने का प्रयत्व करता । जब तरुण जमीदार सब तरफ से घिर गया तव वह अपने चाचा थौनंहिल के चरणों पर दया की भीख मांगता हुआ गिर पड़ा। सर विलियम ने कहा, “तेरे अपराध, प/प और अकृतज्ञताएं, किसी भी प्रकार की करुणा की अधिकारिणी नहीं हैं। किन्तु मैं फिर भी ठुकपर दया करूगा। तुझे कैवल ज़रूरी खर्चा मिलेया और जो कभी ठेरी जायदाद थी, उसका तिहाई भाग ओलीविया का होगा ।" अगले दिल सर विलिय्म थौ्नहिल से सोफिया का विवाह हो गया । अब जॉन भी बन्दीगृह से मुक्त हो चुका था। मिस विल्मौट से उसका परिणय हो गया। उसी सुबह सवाद आया कि जो सोदायर पादरी का घन ले भागा था, वह एण्टवर्ष में गिरफ्तार हो चुका था और पादरी का धन फिर मिल चुका था । पादरी के जीवन के सव काम अव पूरे हो चुके थे । उसकी वयमना थी कि वह अब अनन्त विश्वाम करे । वह बुरे दिनों मे सहन करने के लिए अपेक्षाइत अधिक शक्ति अजित करना चाहता था। ध्रस्तुत उपस्यास अठारहदीं सदो को एक महान कृति है जिसमें तत्कालीव समाज ओर ब्यक्षितयों का बहुत हो बच्छा चित्रण हुआ है। ग्रोल्डस्मिय में भाधा की आुहल रूपकी है और उपस्यात्त में कदणा और सनोरंजर तत्द दोनों ही समात हप ५ से हमारे सामने आते हैं । अह्तुत उपन्यास पादरी की आत्मकपा के रुप में छिला गया है । वही सारी कया सुताता है । पु ह् सुख की खोज [ विल्हेम मीस्टर' ] गेरे, मोहन बच्कौंग वास + जर्मेन मशाकवि ग्रेटे का जन्म कऋ्रकफोर्टआन-मेन में १७४६ में दुआ | भाप एक राज्य-परामरोदाता के पुत्र थे। भापने लोपडिंग ओर सटरसबर्ग में शिक्षा प्राप्त को | बीस वएऐ के मीतर दी अपनी प्रारंभिक रचनाएं आपने अकारित कराई | १७७४ में आपको सयू के काले आगस्ट मिले, को सेक्स-वाइमार के शाक्षक थे | गेटे को उत्दोंने अपना राज्यसचिव बना लिखा । उनको थुरिन्तियन रियासत कुछ डी दिनों में संस्कृति का केन्द बन गई | #यक के नास्य्शृद्द में गेटे दी सूत्रवार ये और भापने उनके खेती के पार्मो तथा) खानों में नये वेंडानिक पिद्धांतों दादा कार्य प्रारंभ कराया । १८०६ में गेटे ने क्रिस्टयेन वल्पियम नामक महिला से दिवाद किया जो झापके घर की देखरेख गद १८ बचें से करती थी । २२ मार्च, १६३२ को बाइमार में आपका देहात हे गया | भाष कवि) उपस्यासकार, नाटककार, राजनातिष, वैडानिक तथा दारानिक सभी डुछू थे। आपने यूरोप पर गहरी छाप डालो थो । भाषडे समय में नेपोलियन ने जर्मनी को परामित किया था। किस्तु जब पेरे के सब्य व्यक्तित्व को नेपोलियन ने देखा था तो उस गले सम्राट के मुख से भी निकल गया था कि वह एक मशापुरुष के सामने झा गया था । 'बिल्देम मीरटर! ( सुख की खोज ) गेटे का मदान भौर प्रसिद उपन्यास है | इसका दहला भाग “विल्देम मीस्द भपरेड्सिशिप" के नाम से १७४५-६६ में छपा। फिए झांगे चलकर १६२१-२६ में दूसरा भाग “विन्देश मौरटर्ज बनीमेन विभज़े” के नाम से धपा | बमेन साहित्य में गेटे का जो स्थान है, बद भमर दै, किन्तु गेटे झत्र विश- झाहित्य क! भंग गन चुऊे हैं| सुददरी अभिनेत्री मरियाना को धनी दोदंगे की तुलना में विल्देम भोह्टर द्वी अधिक पमन्द आपा। नौवंर्ग के दे उपहार उसका हृदय नहीं जीत सके। सरियाना की नौकरानी बाद॑रा के शब्दों में विल्देम एक अतुभवधून्य सध्यापारी का पुत्र या। विल्देस के पिता को पुत्र का एवः अभिनेत्री से सम्बन्ध रखना पसन्द नही था । लेकित दावजूद इसके विल्हेम नाट्य गृह में अपनी मित्र से मिलने जाया करता था। अपने लड़तपन में उसने बढ़े दिन पर एक कट्पुदली का तमाशा देखा था | तद से हो नाटक के प्रति उमका हृदय सदेव भूता रहता। उसका मित्र और होनेवाला रिश्तेदार सर्दव मरियाना के विश बातें करता $ वह विल्हेम को बार-बार बताता कि मश्यिता उमसे प्रेम नहीं करतो थी । १६ शेणालेक फब्फाव (०0५१० ११०॥आड एठप 0०वफ ) श्र संसार के महान उपन्यातत और यह कि उसका एक भ्रेमी और था । परंतु विल्हेम पर जैसे उन बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था । एक बार उसके पिता ने उसे व्यापार के लिए यात्रा करने को बहां। परतु विल्हेम जब चला तो अपने मिश्र सलों के पास गया, जोकि एक नादूयगृह चलाता था। विल्हेम ने दिचार किया कि वहूं जाकर यह अभिनेता घने और बाद में सुविधानुसार मरियाना से विवाह कर से । कि विल्हेम ने ये सारी बातें एक पत्र में लिख लो और मरियाता से मिलने गया। सेकिन मरियाना का व्यवहार उसने घुप्क-सा पाया। दुपहर का समय था। विह्हेम ने पत्र को जेब से बाहर नहीं निकाला | सरियाना का गले में लपेटने का रूमाल उठाकर बह लौट आपा $ आधी रात हो गई। वह वेचेन-सा सड़कों पर घुमता रहा। तभी उसे लगा जैसे मरियाना के घर से कोई काली छाया-सी निकली। कौन होगा वह व्यवित ? यही उसके मस्तिष्क में चक्कर लगाने लगा | घर आकर उसने इसे भूल जाना आाहा। रूमाल जेब से निकाला तो उसने उसके कोने में एक पत्र बधा देसा । यह मरियाना से नौदंग को लिसा था और बड़े प्रेम से उसे संध्याकाल में बुलाया था। इस पत्र को देख- कर विल्हेम को जंसे काठ मार गया। उसकी मत्रणां असहय-सी हो गई। और वहू इस धगड़े को यर्दाः्त नहीं कर राफा । ज्यर ने उसे पेर लिया। उस तीज ज्वर रे जब वहू मुद़त हुआ, एव तक प्रियाना की नाटफ़मइली उस नगर फो छोड़कर जा चुत्री पी। अब यह फिर घ्यापार में लग गया। पिता ने उसे काम सौंपफर भेज दिया। बह मार्ग में झुक रमभीक पा्येस्य नगर में कुछ रिथ्राम लेने को रुफ गया वहा उसे दो मेकार अभिनेता मिले । एक तो सभर्डीज था और दूसरी थी सुर्ददी फिलीना । विल्हेम मे अपता मनोर॑जत ब्राप्त कर लिया। तभी ररिंगयों पर नाच दिसानेवालों की एक महली आ गई। उसमे बहुत शुरुदर, ५भीर रवमातव की मिनन नामझ एफ यारह वर्षीया बालिका थी। वहूँ विल्देम से बदुत दिल-मिल गई । विल्हेम ने उसे उस देख से छूटकारा हिलाया। महीं झछतके शाप एक इशीवाला विचित्रन्गा ब्यक्ित और का प्रिणा, जो कि हार्प बज में बहा हृशल था। वह तारों को ऐसा भतमतावा कि सुननेवाले विमुस्ष हो जाते। मैचिता मामक एक अभिटेता और आ गया ओर विल्द्रेम ने कपनी बनाते में उसको सद्रायता दो । उनके दल में एक बुजुर्ग भी था, जिसे गत सोग विदा बहते पे, करो हि गट़ वहीं लक्ष्ट्दार माया का प्रयोग करता था । उस विद्वान ने विल्हेंस को बतापा हि बड़े सरियाता के साप रगमच पर काम कर चुका था। उसीते यह भी मताया हि छव मरिप ता किस्टेन के नगर से जा रही थी, सव बहू माँ बतनेवाली थी। सरियाता शुष्ट हाब बो सराद में टूट गई थी। विदवात ने ही उसे प्रसव बा व्यय दिया था परततु बर्‌ ८९ दुरघर रतराचुत्टो र्री थी टिसते धन पाने वे बह उते अपना रमाचार तक नहीं अश दा । सितु दिलटेम मरिदिता को शष्र अपनूसी, दौत, जजर माता के ही इण मे टेल सपा, जो हापइ दस है वूक्ग शो िए, वेवस-सी मटकती किर रही थी । फिट ही! तक कप्एंट का स्थाल था । उसड़े यहाँ राजहुमार अधिवि बतईर ठदेशे हुंजा दर । बाउट ने इस बहती को आपने डिते में दुताया, पड़ राजहुमार का मतों” कडल है रहे मत को इसमें काटी मुनण्य हुआ। शाउटकी वही ने शिप्रेम में ह8 सु की खोज ३ दिलचस्पी ली। लेकिन इन लोगो का एक सेल गलत बैठा और काउट त्या उसकी पत्नी दोनों ने ही फिर दिलचस्पी नहीं ली । विल्हेम को काउंट के कपड़े पहनकर आना था कि कांउटेस भम में पड जाए। लेकिन काउटेस की जगह उसे काउंट ने देखा मौर उसे लगा कि वह एक भूत देख रहा था। किले में ही विल्हेम को जानों मिला | यह राजकुमार का खास मुहलगा था। बड़ा बाबचतुर व्यक्त था। उसले नाटकमइली में काम करने के लिए विल्हेम को खूब हा ) लेकिन उसने इसी दातचीठ से क्षेक्सफियर को कृतियो का परिचय बिल्हेम को देपा। काफी पैसे मिल जाने से अभिनेतागण एक सुदूर नगर की ओर चल पड़े | जहा मैलिनां को आशा थी कि वह अपनी कम्पनी जमा लेगा । 'कितु शस्ते के जंगल में उन लोगों पर डाकुओं ने हमला कर दिया । उनको रोकते समय विल्हेम काफी घायल हो गया। सब लोग इधर-उधर भाग निकले। जब विल्हेंम को होश आया तो उसके पास फिलीना और मिनन के अतिरिवत और कोई नहीं था। तभी एक धघुड़सवारों का दल उघर से तिकला। उस दल का नेतृत्व एक अत्यन्त शुन्दर सप्ती कर रही थी। विल्हेम को लगा जैसे वह परियों को रानी थी। उसके साथ एक बुजुर्ग था, जिसे वह चाचा कहती थी। उन्होने विल्हेम की सुधूपा की । विल्हेम फिर भूश्छित हो यया । और जब उसने आंलें खोलीं, उसके उपकारक वहां से जा चुके थे ) निकट के ही एक प्राम मे फिलोना और मिनन की सेवा से घीरे-धीरे विल्हेम फिर स्वस्थ हो गएां। और तब वह अपने मित्र सर्लो ढे रास गया ! वह दिखरे हुए अभि- नेताओं का फिर से पठा लगाने लगा। परल्तु उसे परियों की रानी के बारे से रुछ भी पता न चल सका १ स्लो की महलो में विल्हेस मे हैमलेट लामक साटक के सामक का पार्ट करना स्वीकार कर लिया । स्लो की बहित बॉरिलिया को ओोफीलिया वा पार्ट दिया। ऑॉरेलियां एक गुदती विधवा थी। उठे लोपारिपो नप्मक एक देरन से प्रेम था। न जाने उस प्रेम में क्यों कुछ मवरोघ आ गया था और मॉरिलिया इसलिए बहुत खिन्‍न रहती थी। सरलों के धर भे एरु खूबसूरत, दीन साल का बच्चा था। फ़िलीना वा कहता था कि वह ऑरिलिया का किसी अन्य बसी से हुआ पुत्र था। बच्चे को फेलिक्स कहते थे। वह दिलकुल अल्हृड़ था। मिनन ने धी मन ही उससे अच्छी दोस्ती कर लो । इसी बोच विल्हेम को अपने पिता के पत्र मिले। उसने जो परिवार को पत्र न जिलकर उपेक्षा दिखाई थी उन्होंने इस अपराध को क्षमा कर दिया था ॥ इसी समय दूसरा पत्र आया, जिसमे उसे श्ञाव हुआ कि उसके पिता हस संसार से उठ गए थे। तव विल्देम ने निदचय डिया कि दद्‌ फिर से रंगस और नाट%-मडली में ही कार्य करेगा और उसने एक सबपी पर परिवार के प्रबन्ध का भार छोड़ दिया। हैमलेट नाटक खेला गया। इसके बाद ही दो धटताए हो गईं। हा बजानेवाले अथ- पागत दाड़ीवाले ने आय सगा दो और उसमे फंलिक्स करोड-+रीब घिर हो यया । क्लीता के पास एक स्यक्ति आता था। फ्िलोना ने विल्हेस को बताया हि दास्तव में धद़ श्यकित श्र संसार के महान उपस्याय एक स्त्री था। उसके केश बहुत युन्दर थे और उसका नाम मरियाता था। परन्तु विल्ैस को उसने उससे बातें न करने दीं और वह उसदे साथ चली गई। अऑरिलिया बहुत बीमार पड़ गई। उसने विल्हेम को बेरद लोयारियो के नाम एक पत्र दिया जो कि)उसके मर जाने के वाद ही वैरत के हाथों पहुचाया जाने को था। उसकी बैदना से व्याकुल होकर विल्हेस ने मिनत को श्रीमती सैलिना की देखरेख में छोड़ा और स्वयं लोथारियो के किले की ओर चल पड़ा ॥ बिल्हेम ने पत्र दे दिया, किन्तु लोयारियों को अंग्रले दिन सुब्रह एक ढंद्वगुद्ध करना था, और वह उस समय उसमें व्यस्त था। विल्देम वद्दी किले में ठहर गया और अगले दिन उसने लोयारियों को काफी घायल अवस्था में लौटते देखा। जिस डॉक्टर से बैरन का इलाज किया उसके पास भी वैसा ही बटुआ था, जैसाकि परियों की रानी के चाचा के पास विल्हेम ने देखा या । किन्तु विल्हेम यह नहीं जात सका कि वह बदुआ इस डावटर के पास कैसे आ गया या। लोयारियो के घर में एक तो जानों था, जिसके राज- कुमार की भृत्यु हो चुकी थी और एक पादरी था । पादरी ऐसे ही राजकुलों में शिक्षा दिया करता था | लोथारियो के घर की देखभाल लिडिया करती थी और अब जानों और पादरी ने विल्हेम को एक काम सौंप दिया कि वह लिडिया को लोयारियो की टैरेसा नामक मित्र के यहां पहुंचा दे, क्योंकि लिडिया के दासनामय प्रेम की अभिव्यक्ति बैस्त की शीघ्र आरोग्प-प्राष्ति में वाघा पहुंचा रही थी ) <ईसा एक असाधारण स्त्री थी। वह पुरुषों की भांति सारे प्रबन्ध करने में ददा थी । विल्हेम को पता चला कि एक बार लोधारियो इस स्त्री से विवाह करने ही वाला या कि उसे पता चला कि पहले वह स्वयं ही टेरँसा की मां से भी प्रेम कर चुका था। तब बैंरत नै लिडिया को वसा लिया। लिडिया सुन्दरी थी और टैरंसा के साथ ही पत्नी थी) बिल्हैम जब लौटा तो उसमे देखा कि लोथारियी का स्वास्थ्य लगभग सुधर चुका था। &रैसा को देखकर ही वह समझ गया या कि ओऑरेलिया की उपेक्षा किंसलिए की गई थी। जानों ने उसे बताया कि फैलिक्स ऑरेलिया का पुत्र नहीं था, वल्कि एक वृद्धा उसे बह बालक सौंप गई थी और उस वृद्धा के कथतानुसार फँलिक्स स्वयं विल्हेम का ही पुत्र था विल्हेम शी४ सलों के घर पहुंचा और उस वृद्धा से मिला । उसने देखा कि वह कोई और मही, वावेरा ही थी। उसको वातचीत में कदुता थी। उसने बताया कि मरियानां मर चुकी थी। यद्यपि नौ ने उसे अनेक प्रलोभत दिए थे, फिर भी कभी मरियाता ने उसके सामने समर्पण नहीं किया था बयोकरि वह विल्हेस से प्रेम करने लयी थी। इस घटना के काफी वाद ही विल्हैम को पता चला कि वास्तव में फिलीना के साय एक पुरुष ही रहता था। उसने गलत कहा था कि वह एक छद्मवेशधारिणो स्त्री थी। तलाश करने पर विल्देम को मालूम हुआ कि वह व्यक्ति लोयारियो का छोटा भाई फैड्िख था। मरियाना ने अपने पीछे एक पत्र छोड्ा या ! जद विल्हेम मे उसे पढ़ा तो वह आत्मग्तानि और घोर दुःस से - कीड़ित हो उठा, किन्तु बद बहुत देर हो चुकी थी और उसके पास दुली होने के अति- «० और वोई चारा भी नहीं था। विल्देस ने फैलिक्स को साथ लिया और लोयारियो के डुर्गे को धल पड़ा) उसने सुख की सोज १५ मिनन की बीमारी देख उसे टैरेसा के पास छोडा। टैरेसा ने उसे एक ऐसे मित्र के पास जज दिया जो कुछ और लड़कियों को भो पढा रहा था। एक दिन सध्या के समय जातनों विल्हेस को दुर्ग के एक युण्त माग में ले गया। कमरा सजा हुआ या। वहां एक व्यक्ति ने उससे कहा, “शिक्षक का कार्य यह नहीं है कि बह गलती करने से रोके | उसका काईई है गलती करनेवाले विद्यार्थी को छुघारे ।/ यह बहुकर पादरी के विल्हेस को एक कायज का पुलिदा दिया। जिसमें लिखा! था, ”जव तक व्यक्ति ठीक कार्य करता है, वह तही जानता कि दह बया कर रहा है । किल्‍्तु गलत दात करते समय हम खूब जानते हैं कि वह ठीक नही है।” दूसरे कागऊ पर विल्हेम के जीवन वी घटनाएं उल्लिखित थीं। इसी प्रकार के अन्य कागज़ भी दुर्ग में अस्यों को दिए गए। विल्हेम को ज्ञात हुआ कि पादरी के सिद्धान्तानुसार युवकों को उपदेश नहीं देना चाहिए, वरन्‌ उनके गुरुओ को उनकी रुफ्ान देखकर उनके अभीष्ट की ओर उतको पहुंचाता चाहिए । विल्हेम ने वियेटर छोड़ देने का दिश्वय किया और सब लोगों ने इस निश्चय का स्वागत किया । फंलिक्स को शिक्षा नहीं मिल रही थी, इसलिए विल्हेम ने मन हो मत तय कर लिया और टैरेशा को पत्र लिखा कि दह उसकी पत्नी वत जाए और उसके पुत्र का माता के साल लालवब-पाकल करे. । उदऊए उत्तर आएईे के पहले दिल्हेण को छोषाएरिये की बहि नदालिया के घर बुलाया ग्या। विल्हेम को पता चल गया था, काउंटेस बैरत की बहिन भी थी। अव उस्रे ज्ञात हुआ कि उसके एक बहिन और थी--वही जिसके पास टैरंसा ने मिनन को भेजा था । परिस्थिति ठीक नही थी और विल्हेम की आवश्यकता पड़ गई थी। बह नदालिया के भव्य भवन में पहुंचा। एक तरुणी ने उसको देखा तो उठकर उसके पास आई। उसको यह देखकर परमाइचये हुआ कि वह तो स्वय परियो की रानी थी। वह अपने घुटनों पर भुक गया और भावाबेश में उसने उसके हाथों की चूम लिया । विल्हेम को पता चला कि उसके चाचा डॉक्टर का देहान्त हो चुका था । और यही उसका चर था। मिनन की हालत खराब थी। दिन-रात किसी बिन्ता मे घुल रही थी। शायद हपबादक की स्मृति उसे सता रही थी । एक-दो दिन मे टरेसा का पत्र आया ! लिखा था, “मैं तुम्हारी हू ।” लेकिन उसने यह भी लिखा था कि लोथारियो को पूरी तरदू भुला देना उसके लिए असभव था। सटालिया और विल्हेम बैरत को सूचना देने ही वाले थे कि जानो थ्रा गया और उसने बताथा कि टैंईसा अपनी प्रसिद्ध मां को पुत्री प्रमाणित नही हुई और अब लोयारियों से उसके विवाह में कोई बाधा शेष नही थी । टेरंसा आ गई और मिनन के निवेत्ष शरीर के लिए अब मिलन का आवेद घातक प्रमाणित हुआ। विल्हेम॑ ने अपने शोक में टेरेसा को दिए बचन का पालन करना छोड़ दिपा । उसे परियों दी रानी भी मिल गई इन्ही दिनो एुक स्चेस मामक इटली-निदासी आए गया जो कि लोयारियों का मित्र था। उसने कुछ निद्यानियों से यह जात लिया कि मिनन उसकी भतीजी थी, जिसे १६ संतार के महान उपन्याक्त न चुरा लाए थे । मंत्रवादक ही मितन का पिता प्रमाणित हुआ । जव उसे यह ज्ञात हुआ कि जिस स्त्री को उसने प्रेम किया या वह बहित भो थी तो उत्तको बुद्धि भ्रमित हो गई और बह निरुद्देश्य कही तिकल यया / अब विल्हेम की अन्तिम समस्या भी सुलभ गई। लोगयारियो ने उसका हाथ थामकर कहा, “यदि मेरी बहिन से तुम्हारा गुप्त संबंध था जिसपर मेरा और टैरेसा का संबय निर्मर था, तो बया हुआ ? उसने प्रतिज्ञा की है कि हम दोनों दम्पति पवित्र वेदों के सम्मुख उपस्थित होगे ।* तब बैरन वित्हेम को नटालिया के परांस साथा जिसने अपना प्रेम उसके प्रतिं सवीकार किया। विल्हेम ने कहां, “सचमुच मुझ्के जो सुस और जानन्द प्राप्त हुए हैं, मैं संसार में दिभी भी वस्तु से उसे बदल सहीं सकता ।" प्रह्तुत उपन्यास में गेटे से कछाकारों के तत्कालोन जीवन पर प्रकाश शला है। उसने प्रेम को माध्यम के रुप में लिया है और ध्यर्ित को धुद् की सोज को प्रधा" सता हे हैँ । उसतर्य वातावरण दमादो है, परन्तु सरफालीन समाज का उसने बटुत मुन्दर चित्रण रिया है) सुत्त ओर आतन्द की तृप्ति स्पत्तित को किन अदस्पाओं में मिलती है, गेटे का उद्देश्य इसे दिखाने में रहा हैं जेन घरॉस्टित : जय-पराजय * [ प्राइड ऐण्ड प्रेजूडिस" ] ओ रिटन, जैन : अंग्रेज़ी उपन्यासकार लेन ऑ रिडन गांव के गिरने के एक पादरी की पुत्री थीं, राहरों से दूर उन्होंने सारी आयु गाव में ही ढिता दी । १६ दिसखर, १७७५ की हेम्पशायर के स्टीवैन्सन नामक स्थान में आपका जन्‍म हुआ | जोवन-भर आप अबविवे/दित रहीं और १८ जुलाई, १८१७ को जब विन्बैस्टर में भाषका देदान्त हो गया, तो झा वहीं मिरजे के पाप्त के कहिस्तान में दफता दी गई | आपके एकाको जीवन की भाकी भाषके उपन्यासों में सूप्ट दो जाही है। आपने सम्पज का बहुत ही सोमित दायरा देखा | शांव के ऊदे खानदान आर उच्चबर्गोय व्यावसायिक का समाज, यही थाएक छेत्र था | लिखना झपने काफ़ी जल्दी झारम्भ कर दिया था | किस्तु तत्काहोन सामाजिक मर्यादा के कारण भाषकों अपने उपन्यासों को झनाम हो प्रकाशित करवाना पढ़ा । “धाइड ऐण्ड प्रेजूडिस! (जय पराबय) सन्‌ १८१३ में छुपा । यद भाषका परश्रे्ठ उपन्यास माना जाता है। शनन्तम्पत्तिशाली व्यक्ति वेः लिए अविवाहित होने पर पत्ती की अप्वश्मक्ता पड़ती ही ” है, ऐसा ध्रायः ही स्वीकार किया जाता है। चार्ल्स बिगले एक धनी व्यवित था। उसने नीदरफीर्ड पाक नामक एक भब्य- स्‍यान किराये पर लिया | वह अविवाहित था | ि इस घटना से लौंगबोर में लोगों में दातें छल पड़ी, क्योकि वहां ऐसे ब्यक्ति का आकर बसना एक महत्त्वपूर्ण घटना थी । पड़ोस में बेनंट-परिदार रहता था। उसे विशेष आकर्षण हुआ क्योकि उसमे विवाह योग्य लड़कियां दी, जो घनी और क्वारे पुदप को प्रतीक्षा कर रही थीं । लौंगबौन॑ में सामाजिक सम्पर्क बढ़ाने के कुछ स्थान थे। जहां सब एकत्र होते थे, यह एसेम्बलोहाल नाम से रुयात था। वहां सामूहिक मृत्य होते थे। उनमें बॉलनुत्य प्रमुख था। धीघ्र ही यह भी सुनने में आया कि चाल्स बियले अपने घर के लोगो के साथ निव्ढ भविष्य में होनेवाले बॉलनत्य में माय लेने को उपस्थित ट्रोगा । लॉयबीर्द में बैनैंट-परिवार विस्यात और महत्वपूर्ण था। श्रो वैनेट को पांच १. शत6 बताते गफलु५३ा०० ( [९ 4५४८७) । श्स उपन्यास का दिन्दी भनुवाद 'मव- पराजयः नाम से शारदा प्रकारान, नई दिल्‍्लो मे छपा है । झनुवाइक दैं रिदापर दिधालंकार । पर संसार के महात उपत्यान अविवाहित पुश्रियां थीं और उनके पाथ उनका विवाह कर देने को अपिक घन भी नहीं था। विरासत में भी उन लड़तियों को अधिक घन मिहनेवाला नहीं या। श्रीमती बैनेट एक युन्दरी महिला थी और उन्होंने अपनी सुन्दरता को अनी तक ता रसा था। न वे बहुत समभदार थीं, न उन्हें सग्ार की ही अधिक जानकारी थी। बल्कि उनका मिज्ञाज भी ठिकाने नहीं रहता पा। यद्यत्रि उन्होंने अपने विवादित जीवन के २३ वर्ष बिता दिए ये, फिर भी वे अपने पति के हृदय को समभने की द्षमवाविदीन- सी केवल अपनी धुन में हो रहती थीं। श्री वैनैट का ब्यंगात्मक हास्य, गांभीय॑, उनता सनकीपन, सभी कुछ ऐसे थे कि अपनी पत्मी के लिए वे एक रहस्य-सा बने हुए थे। पवि और पत्नी के दौच एक दूरी-सी बनी रहती थी। हज 6 आखिर वह दिन आया और बैनेंट-परिवार बॉलनृत्य में पहुंचा जहां चार्त्स बिगले दिखाई दिया। देखने में अच्छा, अकृत्रिम और सज्जन चार्त्स विगले अपनी दो बहनों के सा मौजूद था । बड़ी का पति हस्टे नामक व्यक्ति भी यहां उपस्थित या। वहां एक और युव भी था, जिसका नाम था फिद्ज़ विलियम डार्सी । उसके बारे में कहा जाता था कि व बहुत धनी था । उसकी आय वर्ष-भर में दस हजार पौंड थी जो निस्सदेह एक बड़ी रकर थी। डर्सी की सुन्दरता से सव लोग प्रभावित थे और उसकी प्रशंसा भी किया करते थे किन्तु वह इतना अधिक घमण्डी था कि उसके व्यवहार ने लोगों को उसड़े विरुद्ध कर दिया था और जहां पहले लोग उसके प्रशंसक थे, वहां अब वे उससे धृथा-सी करने लगे थे। दिगने वैसा अभिमानी नहीं लगता था। वह प्रत्येक बार नृत्य में भाग लेता या। * किन्तु डार्सी में यह सहज भाव नही था। वह हर वार नृत्य नहीं करता था । वह पक ह पता था कि कब लोग नाचते हुए घूमते हुए ऐसे आएं कि वह श्रीमती हस्दं और कैरोलीन बिगले के साथ ही नाच सके ) और हुआ यह कि न तो वह किसी अन्य स्त्री के साथ नाच, ने उसने किसीसे परिचय ही किया। बह तो किसीसे भी मिलना मही चाहता था । उसके इस घमंड से अन्य स्त्रियों के मन मे एक विक्षोम-सा भर गया। * है & ऐलिडाबय वैनेट-परिवार में दूसरी बेटी थो। नाचते समय उसे अपना जोड़ीदार पर बार नहीं मिल पाया, तो वह बाहर बैठने को मजबूर हुई। वहां थी डार्सी और थी बिगले परस्पर बातें कर रहे थे। ऐलिजाबथ ने उन बातों को सुना । वे दोनों इस बात से बिलकुल अनभिन्न थे कि कोई लड़की उनकी बातों को बंठी-बंटी सुन रही थी । डार्सी ने बातचीत के दौरान मे विगले से कहा, “जया कहा ? मैं इन स्थानीय स्त्रियों के साथ नाचू ? यह तो मुझे सजा देने के बरावर है !” हु 48 हसिजाबेध यह सुनकर जल उठी, परन्तु तभी उसने फिर शुा, “हां ! बैंनैंट- परिवार की बड़ी बेटी जैन जरूर खूबसूरत है ।” छि तभी डार्सी को दृष्टि एलिजाबद कर प्रद़ गई) एशे बया पता था 900४ हक रही थी। उसने अनजाने ही बहा, “बैगे तो पद भी १एभताऊ है, से| दा ढक ऐसी मुन्दरी नहीं है कि मेरे हृदय में अपने प्रति कौ ईँ सार पेंच परवान कर धरे । जयनपराजद १ यद्यपि ऐलिजादंथ के हृदय में इन बातों से श्री डार्सो के भ्रति सोहाद तो नहीं जन्मा, लेकिद वह थी सज्ञाकिया तविबरत की लड़की। उसने अपनी मिों को यह बात बड़े मज़े ले-्लेकर सुनाई । इस घटना ने उन सवका मनोरंजन किया। किन्तु इतने पर भी विगले और बैवेंट-परिवारों में ज्ञीघ्र हो मित्रता स्थावित्त हो गई। दोनों के सम्दन्घ बढ चले ३ शीक्ष ही लोगो में यह प्रकट होने लगा दि चार्सस और जेन एक-दूसरे के प्रति आकपित थे । चाहे की बहिनों को जेन से भी अधिक भ्रिय हुई ऐलिजावेथ, लेकिन श्रीमती बैनेट उनको एक भुसीवत नज़र आती थी । उनकी पुत्री मेरी उन्हें नीरस लगती थी और बे लिडिया तथा किटी के साथ उसे भी महत्त्व नही देती थी। उनकी राय मे ये लड़कियां अ्यर्थ ही ही-ही करके हंसनेवाली थी, जो अपना सारा समय पुरुषो के पीछे घूमने में व्यतीत किया करती थो | श्री डार्सी के मन में कुछ और बात पैदा हो गई थो ) वे ऐलिजाबैथ के प्रति बड़ी चौकस दिलचस्पी रखते थे | ऐलिजाबैय की काली आंखो मे उन्हें अब भावपूर्णदा दिखाई देने लगी थी और वे उसकी प्रश्सा भी किया करते ये । अब वह उन्हें अच्छी लगने लगी थी। उससे उनकी तबियत बहलने लगी थी। उसके ध्यदहार में उन्हे एक ऐसी सरलता दिखती जो ऋाव धंक थी। ऐलिडाबेय सहज थी, और उन्हे उसमें ढृतिमता नहीं मिलती ची। धीरे-धीरे बातें खुलने लगी । एक दिन विगले की बहिन ने डार्सी से पूछा, “अब आपके लिए मैं किस दिन आनरद मनाऊं ?” उसने स्पष्ट ही बात में एक रहस्य का उद्घाटन करने की चेप्टा की थी । किन्तु डार्सी चौकस थे। थोले, “सचमुच ! स्त्रियों की कल्पना भी कितनी तेजी से उड़ती है।" बात साफ नहीं हुई] इन्हीं दिनों बियले परिवार में कुछ दिनों के लिए दोनो बड़ी बहिनें आई | तव बैनेट-परिदार की बड़ी पुत्री जेन िगले-परिवार मे मिलने के लिए गई , बहा उसे बे छोर का जुकाम और बुलार हो आया। उसकी तजियते खराब हो गई। इस बीमारी मे वह बविगले-परिवार मे आकर रहने लगी। श्रो बैनेंट ने भी ऐसी तरकीबें की कि उनकी बेटी विगले-परिवार में अधिक से अधिक दित बनी रहे। इस निवासकाल में जेन विंगले- परिवार भे अधिक प्रिय हो गई ओर ऐलिजाबंथ उतनी प्रिय नहीं हो सको। दिंगले- परिवार में कैरोलीन अवश्य उसे बहुत आकर्षक मादती थी, किन्तु श्रीमती हस्टे उसे जीभ दी बहुत तीखी माना करती थी । इन सम्दस्षों के: बावजूद ऐलिडादैय के हृदय में श्री डार्सी के भ्रदि पूर्वप्रह बना ही रहा । उनके ये वाक्य उसे अभी तर याद थे ६ तभी वहा थो विकट्टैम आए। वे सुन्दर थे, स्वभाव के मीठे थे । लॉगवौर्न के सदसे पास मेरीटोन नाम का एक कस्‍्दा था। विषद्दैम वहां एक अफसर दतकर सेनिक रैजी- मेट मे आए थे। उस युवक अफसर से जद ऐलिडा्दय गो बादचीत हों गई तो शार्मी केः २० संगार के महान ठान्याग प्रति उसके हृदय में जो पूर्वप्रह था, यद पहले की धुलना में कहीं झधिक परिवधत हो शया। इसका कारण यह था कि विकद्ैम का पिता डार्गी के पिला जी सेवा में था और बहुत विश्दागपात्र था। उसकी सेवाओं से प्रगस्त होकर टार्सी के पिता ने विक्रैस को पुरस्कारस्वरुप बुछ सम्पत्ति देने की इच्छा की घी। हार्मी ने बड़ी निष्टुरता मे पिता की इस इच्छा को टुझरा दियाथा और विश्द्ैस को विलदुस् ही शंबित कर डिया था! ऐलिजाबैथ को डार्सी की यह निष्युरता स्वायंस्वरूप दिखाई दी गौर यहा पूर्वग्रह पहने से भी अधिक सन्चवत हो उठा। बिगले और जेन के पारस्परिक राम्वन्ध बढ़ते जा रहे थे । ऐसा सग रहा था कि धीघ्र ही विगले किसी दिन बैनैट-परिवार में आकर जैन से विद्वाह का प्रस्ताव रखेगा। बॉलनुत्य में सब फिर मिले | यहां बैनेंट-परिवार का व्यवद्वार ऐसा रहा डि स्वयं ऐलिडा- बैय को भी पसन्द नही आया। अचानक ही मीदरफील्ड से सारा विंगले-परिवार शहर घला गया। और तो कोई समझ नहीं सका, किन्तु ऐलिजाबेय मे नृत्य बेला में अपने परि- यार के व्यवहार को ही इसके लिए दोपी ठहराया । < इन्ही दिनों लौंगवौनत में पादरी के उत्तराधिकारी बनकर विलियम कॉलिस्स आए। वे बैनेंट-परिवार से मिलने को उपस्थित हुए । यह आदमो चटक-मटक दिखाते का झौकीद था! न यह व्यवहारकुशल था, न मडाक ही समर पाता था| एक दिन इस युवक पादरी ने ऐलिजार्बय से विवाह का प्रस्ताव किया । ऐलिजा बैय उसकी लम्बी रटी-रटाई-सी वकतृता सुनती रही और अन्त में उसने उससे विवाह करता अस्वीकार कर दिया। कॉलिन्स पर उल्टा प्रभाव पड़ा। वह यही कहता रहा कि ऐल्िज़ाबैय केवल उसे सताने के लिए ऐसा कहती थी, बैसे वह उसके विरुद्ध नहीं थी, मत में बह उसे चाहती थी। परिणामस्वरूप पादरी कॉलिन्स के प्रयत्त बरावर चालू रहे, मे ही वह प्रत्येक बार सफलता से दूर ही होते गए। दो बार कॉलिन्स ने फिर प्रस्ताव रखे, किन्तु जब ऐलिजादेथ ने फिर दोनों बार अस्वीकार कर दिया, तब कहीं जफ्कर पादरी ने इस अस्वी- कृति को सत्य समझा, परन्तु वह भी वड़ी मुश्किल से ही । ऐलिजाबंय की एक झालेंट त्यूकस नाम की सहेली थी। कॉलिन्स मे शालट से ही विवाह कर लिया । उस सीधी* सादी लड़की ने कोई विरोध नही किया । अफवाह तो यह थी कि विगले का हृदय डार्सी को वहिन ज्योजिआना के प्रति आकरपित था, इसीलिए वह जैन को छोड़ गया था। किन्तु कॉलिन्स के विवाह ने थी बैनेट की हास्य-ब्यंग्य-वृत्ति को उभाड़ दिया) उन्होंने बात ही बात में अपनी दूसरी बेटी हलिकाबैय से पूछा, “लड़कियां शादी करने को वहुत उत्सुक हीती हैं । लेकिन कोई उनसे पूछे कि शादी के बाद तुम्हे क्‍या प्रिय है, तो वह क्या चौड़ हो सकती है ? मैं समभता हूं, ब्रेम मे तुनुक जाता | बताओ ! अब तुम्हारी वारी कब आने को है ? क्‍या तुम्हें विकहैम 8 विवहैस से ऐलिडाबैय के सम्पर्क गहरे नहीं हो पाए थ॒। भ्रवाद तो यह था कि बह किसी घनोी महिला के प्रति उत्मुख़ हो गया था। लेकिन जद्ां तक पारस्परिक धम्बन्ध जप-पराजप २१ थे, विकहैस और ऐलिशादथ में मेत्री थी और उनमें कोई मदमुटःव नहीं था । कॉलिन्स और शएलेंट दा विदाह हो जाने पर, वे दोनों ही उनके यहां हत्सफोर्ड पिलने गए पड़ोस पें ही डार्सी भी अतिथि बतकर ठहरे हुए थे । उन्हें देखकर ऐलिजादेय के दृबय में फिर नई विरोधी भावनाएं जागने लगी । उसे यह सन्देह बढ़ने लगा कि जेन और विगले के बढते सम्बन्धों में असल में डार्सी ने ही बाघा डाली थी परन्तु ऐलिज़ादैय से मिलकर डार्सी के मन मे प्रसन्‍नता हुईं। डार्सी ने अचानक ही उसके प्रति अपना प्रेम व्यक्त कर दिया और विवाद का प्रस्ताव कर दिया । « ऐलिजाबय घोंक उठी । डार्सी ने अपना त्याय दिखाता चाहा। उसने कहा, “देखो ऐलिजाबेथ ! मेरा सामाजिक स्थान ऊचा है। यदि मैं तुम्हारे परिवार से अपना सम्बन्ध जोडता हूं तो मेरा सम्मान कुछ घटेगा ही | किन्तु मैं तुमसे प्रेम करता हूं और उसके लिए भी तत्पर हू ।” परिणाम उल्टा हुआ। ऐलिज़ादंथ का पूर्वग्रह फिर भड़का। उसे वह घमडी दीखा। उसने न केवल अस्वीकार किया, वरन्‌ अस्वोकृति के कारण भी बता दिए। डार्सी मे प्रस्थान किया, परन्तु ऐलिशबेथ के लिए एक पत्र छोड़ दिया, जिसमें बैनैट-परिवार पर गहरे थ्यंग्प थे, और उनमे संचाई भी थी। उसने लिखा कि वह यहेँ बितजुल नहीं जानता था कि जेन और वियले में पारस्परिक आकर्षण था। उसने यह भी प्रकट जिया था कि विकहैम काहिल था और उसके -प्रति उसने बहुत अच्छा व्यवहार किया था, जिसका फल उसे नहीं मित्ना । विकहैए ने स्वयं उसकी बहिद ज्योजिआता को भगा ले जोने की चेप्टा की थी। ऐलिडाबैध मे पत्र पढ़ा परन्तु वह सहसा ही कुछ निश्चित नहीं कर सको। दो महीने वीव गए । ऐलिडाबप अपने एक रिइ्ते के चाचा और चघाची--माडिवर- परिवार के यहां पेम्दर्ती यई हुई पी । वहां ढार्सी का भी एक मकान था। बहुत ही अत- भतो-सी ऐलिकाबथ उसका धर देख रहो थी ! उसकी बातदीत उस धर वो देखभाल $रनेबाले सेवक से हुई तो उसने डार्सी रो प्रशंसा वी अति कर दी | ऐलिज़ाबैद सोच ही रही थी कि अचानक डार्सी भी दहां आ गए। अब ऐलिजा- दैथ के हृदय में डार्सी के प्रति कुछ आकर्षण होने लगा था कि तभी एक दुर्घटना हो गई, जिसने सारा बतम डिगाह दिया सूबना आई कि लिडिया ने ठरकौयें करके अपने को ब्राईटन नामक स्थातमे निर्मत्नित करदाया था और वहां जाने के बद्ाने से वह भोका पार र विष हैम के साथ भाग शरई थी, प्पोकि उसका सैन्य-द दही ठहरा हुआ था। ४ जेल और ऐलिकादेप बेः सम्दन्ध पक्के नहीं हुए थे। भेरी और किटी के भी भही | बीच बी लड़वी लिडिया बा यो भाग जाना जच्छा नहीं धा। यह भी दिवह्ैम के साथ जिसने स्वयं अपने उपकारी डर्सी गो बहिन ज्योगिआता को भा ले जाने की बेप्टा दी पी । सव॒र पह भी थी कि वित्दैण और लिब्यि बिता विवाह विए हो सन्दत मे भोजूद ये + डर गंगार के महाते उपत्यास इग संवाद सै-डार्सी सद़गद्य यया। गाहितस्थरिवार तथा सभी लोग सुर थी बनैट से मिलने लॉगबौर्त चल पढ़े । श्री बैनैंद के भाई (ऐसिज़ा्य के चाया) गाडितर श्री बैनेंट केः साय विक्हैस और सिडिया को सोजने सदन बते गए। परल्तु श्रीमती बैंनैंट को दुसरी ही बिस्तर सता रही थी। उन्हें मह सोच हो रहा था हि आखिर सिडिया अपने वियाह के लिए यस्त्र कहां से सरीदेगी ? पादरी कॉलिस्स की पता चला तो उसने बड़े अफसोस से पत्र लिखा, सेकिन बैतैट- परिवार की चिन्ता तभी दूर हो गई। लिडिया और विकद्दैस का पता लग यया था और विकहैम को उससे विवाह करने को तैयार कर लिया गया था। परिवार के सम्मान को बनाएं रसने के लिए प्रयःन करके विकह्ैम को स्थुशगसित रजीमेंट में अच्छा पद दिलाया गया । लिडिया बहुत प्रसन्‍त थी। उसने अपनी माता और अविवाहित बहिनों को निमत्रित किया और कहलवाया कि शीत ऋतु समाप्त होने के पहले ही वह अपनी क्वांदी बहिनो के लिए पति दूढ़ डालेगी। जब लिडिया से भेंट हुई तव उसने बताया क्रि उसके विवाह में डार्सो उपस्थित था | ऐलियाबैथ का मत अब बदलने लगा। श्रीमती ग्राड्विर की बातों से भी डार्मी के विषय मे ज्ञात हुआ । अब ऐलिजाबंय को ज्ञात हुआ कि विकहैम और लिडिया को ददनें- वाला असल में डार्सी ही था। उसोने विकहैम को लिडिया से विवाह करने को तैयार किया था। इसके लिए उसने अपने पास से एक हज़ार पाउण्ड खर्च करके विकद्दैम के सारे कर्णें चुकाए थे और लिडिया के खर्च के लिए भी उसीने एक हार पाउण्ड लौर भी दिए थे। किन्तु इतना करके भी उसने इस सबके बारे में कुछ भी नही कहा था। ऐलिजञाब॑य तया बैनंट-्परिवार लौंगवौर्न आ गया और विगले; भी ह॒धो समय फिर नीदरफील्ड लौट आया और ऐलिजाबैय ने देखा कि उसकी माता श्लौमती च॑नेंट ने बिगले का पुनः बहुत अच्छा स्वायत किया। लेकिन जब डार्सी आया तब उसके व्यवहार में कुछ रुखाई दिखाई दी। ऐलिज़ाबय का हृदय माता के इस व्यवहार से दुःखी हो गया। डार्सी ने पुनः उससे विवाह का प्रस्ताव किया और ऐलिडाबैय ने स्वीकार कर लिया। जिस समय यह संवाद बैनेट-परिवार ने सुना, समी किकतेव्यविमूड़ हो गए। आशलििर जब बात समझ में आई तब सवको विवश होकर इसपर विश्वास करना पड़ा । ऐलिडाबैय के इस परिवर्तन ने सवको ही आइचर्य में डाल दिया । अन्त में बिगले और जेब का भी सम्बन्ध पक्का हो गया । श्री बैनैंट पुत्रियों के विषय में अब कुछ भी निश्चित घारणा नहीं बना सके। उन्होंने अपनी हास्यवृत्ति से यही कहा, “अब अगर कोई नौजवात मेरी बेटियों -मेरी और, किटी के लिए आए तो उन्हें भी भेज दो। मैं अब काफी फुसंत में हूं ।* अस्तुत्त उपस्याप्त अपने मनोदैज्ञानिक विश्लेषण के लिए विल्यात है । इसमें कपा- सूत्र विचारों को लेकर चलता हूँ । व्यंग्य तोला हैँ और सामानिक व्यवस्था पर इससे प्रकाश पड़ता है । जेन ऑस्टिन को सत्कालोन समाज को जानकारों और नारी-द्वदय का विश्लेषण विलक्षण हैं बाल्ताक खण्डहर [ छिपरेयोरियो ] बाह्शाक) भोनोर द : फ्रसोसो लेखक बाल्ताक का जन्म रू मई, १७४६ को फ्रांस में टूसे नामक स्वान पर हुआ | प्रारम्भिक जोबन दरिद्रता में झत्यन्त कष्ट से व्यतीत हुआ। १८२६ में आपकी रचनाशों के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित बुझा और तब से आपकी परिस्थिति कुछ मुषरों | भाप बहुत अधिक लिखते थे | रारा३ भी बहुत पीते थे और बडुत अधिक परिअम को चमता रखते ये। अप्पके ऊपर बहुत अधिक कज़ो हो गयां था और इसलिए आपको इतना अधिक लिएना पड़ा कि आपने ४६ उपन्यास लिखे । आपने कई प्रकार के व्यापार किए, जिसका परिणाम यह हुआ कि आपके ऊपर करे चइठे चले गए। पोलैए्ड की काउंटेस श्वेलित हन्सका से आपका प्रेम- सम्बन्ध बहुत दित त्तक चचता रहा । भपनी मुत्यु के कुछ दिन पहले ही आप उससे ददिवाइ कर पाए। आएका देद्वान्त १८ अगस्त, १८५४० को पेरिस्त में दुआ | आपने इलना अधिक लिखा दे कि विदानों के भतानुप्तार श्तना कार्य साधारणतया पांच प्रतिमाशील व्यक्त मिलकर अपने भरपूर घम से कर पादे 4 “पियरे गोरियो' (१८३४) नामक उपन्यास में बहुत भच्छा सनोविश्लेषण हुआ दे । आपका यह उपन्यात्त भत्यंद प्रसिझ दे । मादाम वेक्र ते चालीस वर्ष तक म्यू सेन्त जेतेदीव में एक मध्यमदर्गीय वोडिय हाउस चलाया । पेरिस मे फेवर्गे सेन्त माशंल और लेटिन क्वार्टेर के वीच में पडनेकाली यह जगह बड़ी इक्डतदार मानी जाती थी, क्योकि मेंतिकता के क्षेत्र में उसपर आज तक किसी प्रकार का लांछन नही लगाया जा सका था। ग्रत ३० वर्षों से उस मकान में कोई युवती दिखाई नहीं दी थी। लेकिन १५१६ मे, जिस समय की यह कया है, एक दरिदर जवान लड़की वहां रहा करती थी ॥ भादाम चेकूर के भवन का नीचे का भाग बहुत बड़ा नहीं भा। उसमे एक बैठक थी जिसमे पुरानेपन की गन्ध जाया करती थो। उसकी बयत में खाने का विशाल कमरा था और निस्सन्‍्देह वह इतना अच्छा नहीं था । इस कमरे में सात बजे प्रात.काल अतिदिन मादाम वेकूर आ बेठती थी। उनके टोप के नीचे से उनके निकले वाल ऊन के गुच्छों के रूप में लटके रहते थे। उनका हाथ छोटा और मोटा था और उनका वक्षस्थल बहुत अधिक प्रशस्त था । वह चलने मे हिलता था। है. मिलान 9070: (त्ृ०्यण्र८ 70८ 223८) । इच्च उपन्यास का हिंदी अनुवाद 'खण्डइराः साम से राजपाल एण्ड सन, दिल्ली में छुपा है। भनुदाइक हैं इसराज रदरर । खण्डहर २५ को नहीं बताया कि बे दोनों लड़कियां उससे पैसा सूतने आया करती थीं और बूढ़ें को दिन पर दिन गरीब करती जा रही थीं। सालो बीत गए। अब उसने और गरीब मजिल में अपना पड़ाव डाल दिया। गोरियों के खर्च और कम हो गए। वह दुबला हो गया, कमझोरी आ गई। और चौथे साल बाद सत्तर से ऊपर का नज़र आने लगा । शवल से दुद्धू, कॉपता हुआ, कपड़े ढीले- ढाले, गन्दे । उसके सोते और जवाहरात के सामान सब गायब हो गए। यूजीन द राध्िकनाक पेरिस के अभिजात-समाज मे प्रवेश करने का इच्छुक था। उसने अपनी चाची की एक रिश्तेदार विकोन्तेस द ल्यूसांग से परिचय प्राप्त कर लिया और उसे एक बॉलनृत्य मे निमन्त्रित किया गया। विकोन्तेस को उसका प्रेमी छोड़ गया था, इसलिए उसे द रास्तिकनाक में वड़ी दिलचस्पी हो गई और उसने उसे समाज में प्रवेध करने में बडी दिलचस्पी ली । यूजीन को डचेज़ द लेंग्ियाप मिली और उसीने बूढ़े सोरियो की कहानी सुनाई । शोरियों आठे का व्यापारी था। उन दिनों श्रान्ति चल रही थी और दसगुनी बीमत पर सामान बेचकर वह खूब पंसा इकट्ठा किया करता था। अपनी बेटियों के लिए बह जान देता था। उसने हर वेटी को आठ लाख फैक दहेश में दिए। बड़ी बेटी का नाम अनास्तेसी था जिसका विवाह उसने काउन्ट द रेस्तोव से कराया । छोटी का नाम डल- फिन था जिसका कि एक जमेन घती व्यापारी बँरन द तुसितगिन से उसने विवाह करवा दिया। उसके दाद बूढे ने यह अनुभव किया कि दोनों बेटियां अपने दाप से शमिन्दा होती थी, क्योकि वह इतने अभिजात धुल का व्यक्ति नहीं था। इसलिए उसने उसे निवास- स्थान को छोड दिया और अलग रहने लगा। यह्‌ त्याग करते हुए उसे तनिक भो खेद नहीं हुआ। डचेड ने यह नहीं दताया कि अनास्देसो का एक प्रेमी और भी था और इसलिए उससे दूदे गोरियों से, जो कुछ उसके पास बाकी था वह (लगभग दो लाख फ्रेक) भी निकलवा जिया था ताकि अपने प्रेमी पर जूए में हो गए कर को चुका सके । बॉलनृत्य मे लौटते समय ग्रूजीन ने देखा कि गोरियों अपती चार की प्लेट को होक-ठोइकर एक पिण्ड के रूप में बना रहा था। उसने भूप खाने की घांदी की कटोरी को भी तोड़ दिया। अगले दिल वे दोनों बिक गई । अनास्तेसी ने अपने कुछ और खर्चे पूरे कर लिए | जब यूजोत को यह मालूम पडा तो उसके मुख से निकता कि बूढ़ा योरियों सबमुच महान है। दूसरी ओर इलफिन का जर्मन पति उच्च समाज में अपना स्थान नहीं पा रहा था । वह घाहती थी कि वह किसी प्रकार यहा प्रवेश पा सके । उसका भी अपना एक प्रेमी था जिसके जरिये बह अपने पति को आये बढ़ाना चाहदी थी। उस प्रेमी की रुपया देने के लिए बढ खुद जूआ सैलने संगी थी और जूए के अट्टों मे जाने लगी थी, बयोकि उसके पिता के पास उसको देने के लिए अब और रुपया नही था ( इस बीच मे यूजीन के परिवार ने समाज मे उसके स्थान को ऊचा करने केः लिए उसको दारह हजार फैक देना प्रारम्भ किया। एक दिन दोतरीत ने उसे विषश्सैत के साथ जाते देखा और बाण में अवेसे में ले जाबर बहा--सुम्त चाहो तो दिक्दरीन तुम्हें पत्नी के रूप भे मिल सकती है और तुम्हें दस सास फ्रेक भी ददेज मे मिल सकते हैं, देते २६ सयार के मदान उपस्याग कि यूजीन दो लास प्रैक दे दे। मेरा शक मित्र है जो सेना में कर्नल है, उसको जरूरत है । विषटरीन का भाई फैड्िक है, यह जायदाद का उत्तरायिकारी है। उससे कगड़ा करके इवद- मुद्ध में उसे मार डासने से यह काम हो शत ता है । यूजीन ने विशुर्प होकर इस प्रस्ताव की अस्वीकार कर दिया । बुछ दिन याद यह बात फँली कि पुलिस को बोतरीत पर सन्‍्देद था। पुलिस का ख्याल यह था कि बोतरीन ट्रोम्पे लेमोते नामक प्रेमी था जिये भयानक माना जाता था। यह किसी तरह से जेल में से भाग निकला था। उसको घालातों ये नशे की दवा परिाई गई और वह खुल गया। उराकों गिरफ्तार कर लिया गया। उधर यह सूचना आई कि इन्द्गुद्ध में फेड्िक की हत्पा हो गई थी और अब अपने पिता की लाखों की सम्पत्ति पर विक्टरीन का एकमात्र अधिकार हो गया था। उससे विवाह करने की बजाय राष्तिकनाक ने अब्र इलफित से प्रणय-सम्बन्ध स्थापित किया। बूढ़ा गोरियो उन्हें मदद करता रहा, ताकि दस हजार फ्रैक खर्च करके उनके लिए रहते के स्थान का प्रवन्ध कर सके । उसकी एकमात्र लालसा यह थी कि वहू अपनी बेटी को रोज देख सके । यूजीन की पहली प्रणय-परात्री विकोन्तेस ने अपने प्रेमी के विवाह के उपलक्ष्य में एक बॉलबृत्य का आयोजन किया। उस समय अनास्तेसी ने निमन्त्रण पाकर अपने पिठा से धन भांगा ताकि रेस्तीव-परिवार के जवाहरातों को छुड़ा सके जो कि उसने गिरवी रख दिए थे। गोरियों अपनी रोग-शय्या से उठा | उसने अपने आखिरी वर्तन-भांडे भी बेच दिए और जो साधारण धन उसे मिला था यह भी कर चुकाने में लगा दिया। डलफिन को भी रास्तिकनाक के द्वारा एक निमन्त्रण-पत्र मिल गया । उधर नृत्य हो रहा था, इधर अपने ठण्डे बिस्तर मे बृद्धा आदमी गोरियों बीमार पड़ा था । एक व्यक्ति को बॉलनुत्य मे भेजा गयां। उसने जाकर लड़कियों को मूचना दी कि उनका पिता मरने से पहले अपनी बेटियों को स्नेह से चूमना चाहता था। बूड़े ने यूजीन से कहा कि अब वह मरकर ऐसी जगह चला जाएगा जहां से वह फिर उन्हें नहीं देख पाएगा। खबर देनेवाला आदमी लौट आया और उसने वताया कि लड़कियों ने जाते से इल्कार कर दिया था | डलफिन उस वक्‍त बहुत ज़्यादा थक्र गई थी और उसे नींद लगी हुई थी, अतः वह जाने भें असमर्थ थी और अनास्तैसी उस समय अपने पति से भगड़ने में व्यस्त थी । बूढ़े गोरियों की हालत खराब हो चली। वह कुछ बरनि लगा और कभी वह अपनी लड़कियों को दोप देता और कभी उन्हें क्षमा करता। वह बड़- बड़ाता, “मेरी लड़कियां वहुत बुरी हैं। मेरी जान की मुसीदत हैं। मैंने ही तो उन्हें बियाड़ा है । ठीक है, मुझे जो सज़ा मिली है वह बिल्कुल ठीक है। आ रही हैं क्या वे ? मवर्भे कुत्ते की तरह महूंगा। वे दोनों बड़ी दुप्टा हैं! उनके हृदय में दया-भमता नहीं है।” और अन्त में उसने कहा, “है भगवान और फरिशतो !” और तब तकिये पर उसका सिर लुड़क गया और वह सदा के लिए चला गया । अतास्तेसी आई ज़रूर, लेकित बहुत देर में । उसने अपने पिता का हाथ चूमकर कहा, “पिता, मुझे क्षमा करो ।” न गोरियो का बन्तिस संस्कार मिखमंगों का सा हुआ। उसके अभिजात दामादों खण्डहर २७ ने उसमें खर्चा देने से इन्कार कर दिया। कानून और डावटरी के विद्यार्थियों ने कुछ रुपया इकट्ठा किया, लेकिन यूजीन और उसके सेवक के अतिरिक्त किसीकों भी दफनाते बक्‍त अफसोस मही हुआ | यूजीद अन्तिम सममर मे केवल एक प्रार्थना कर सका । यूजीन उसके बाद बहुत उच्च स्थान पर चढ़ यया और उसने देखा कि मगर के धनी-मानी और फैशनेदल लीग किस प्रकार रहते थे । ओर फिर उसने कहा, “अब हम लोगों का युद्ध कठोरता और कट्टरता से चलेगा ।” और उसके बाद वह डलफिन के साथ खाना खाने चला गया। प्रस्तुत उपन्यास में बाल्हाक ने तत्कालोन समाज के खोललेपन पर भपानक ध्यंप्य किया है, कुछ-गर्ष को विधमता उसने प्रकट की है मौर पह भी बताया है कि मनुष्य किस प्रकार अपनों महत्ता के कारण अनयों को जन्म देता है और परि- धार को सीमाएं किस प्रकार उसे सदु-असदू-विवेक से दूर कर देती है । धाल्जाक ने कई चरित्र खड किए हूँ १ यद्यपि सद अलग-अलग हे, फिर भी दे एक-दूसरे से शुंये हुए-्से हे ॥ अपत्ी उलप्ननों फे बावजूद प्रस्तुत उपस्यास्त समाज पर गहरा ब्रमाव डालता है। एच० मो० हटो : टॉम काका की कुटिया [ प्रंकिल टॉम्स केविन* ] ररो, दैरियट बीचर्‌ : भंग्रठी ऐसड एच० बी० सटो का जन्म कनैक्ट्रीडट के जिक्सीरद नामक रपान में १४ शग, १८११ को हुघा। ह्ार्दफ्ोए के कैपराइन्स खत में शिवा मिली । बाद में वीं पढ़ाने लगी। यह स्कूल भाप की अइन केडराइन ही चचादी थी। १८३२ में बीचर-्परिवार सिनसिनैदी भा गया और १६३६ में हरियट गोचर ने लेनपियौलीजीकल सैमिनरी के प्रौक़ेसर कॉल्विन घलिस रटो से दिवाइ कर लिया | ओऔमती रो यनक्र्‌ १८४३ में भापने अपनी रचनाएं प्रकारित करवानी प्रारम्म को डध समय भमरीका में दास-प्रधा के विस्द्ध भान्दोलन चल रहा था । अऑमतों स्टों ने भी दासता के विरुद काफी कुछ लिखा | गृहयुद्ध के बाद भी झापञ्ा लेखन चलता रशा | जीवन के भंतिम भाग में आप पब्लिक के बीच पद-पदकर छुनाने लगीं। ? जुलाई, १८६६ को ह्वार्फोर्ट के झरने पर में भाषझा देदान्त हो गया | “अकिल टॉस्‍्स केविन! (टॉम काका की कुटिया) नामक उपन्यास १८५२ में प्रकारित बुभा था। इसने प्रकाशित होते दी लोगों के ददय को हिला दिया था | उपन्यास बहुत ही मार्मिक है। री जॉर्ज पैल्वी कैरटुकी के एक प्रसिद्ध मानववादी थे। उनके बागों में जो दास करते थे, उनके प्रति उनका ध्यवहार बहुत ही अच्छा था। हैलो नामक एक ग्रुलामों , खरीदने-बेचनेवाले सौदागर ने एक बार उनके एक रेहन पर अधिकार प्राप्त कर लिए तब उससे भुगतान करने को ध्षैल्बी तैयार हो गए॥ उन्होंने उसकी शर्तें मजूर कर € हेली ने अधेड़ उम्र के टॉम काका नामक हम्शी गुलाम को तथा उनकी सौकरानी ऐलि के पांच वर्ष के हब्घी बच्चे को मांगा! शेल्वी-परिवार जानता था कि वह गुलाम वे ही पवित्र हृदय था। शैल्बी-परिवार के प्रति उसमें वड़ी वफादारी थी। इसी तरह श्रीम शैल्वी अवोध बच्चे को सौंप देना भी ठीक नहीं समझती थी | इसलिए उसने इस मांग बहुत विरोध किया, किन्तु शैल्बी ने हेली की बात को स्वीकार कर लिया। ऐलिडा का पति जॉर्ज हैरिस नामक व्यक्ति था ) हैरिस का पिता एक गोरा थ हैरिस प्रतिभावान था। उसके स्वामी ने उसके प्रति बहुत ही निर्दयतापूर्ण व्यवहार किय हैरिस ने विद्रोह कर दिया और इस समय वह ओहियो नदी पार करके कनाडा भाग जा ल्न्ल्ल््पनननसभनननननन निया १. एगल< 093 049४ (पसग्यांटघ ८2८८० :७४0७४८) । उच्च उपन्यास का हिं अनुदाद “टॉम काका को कुटिया' नाम से राजेन्द्कुमार रुण्ड ऋदर्स, बलिया में छपा है अनुवादक हैं प॑० बालमुजुर््‌द बाजपेयी | टॉम दाका को छुटिया रष्‌ की थोजना बना रहा था। ऐलिजा ने छिपकर सुन लिया कि श्री शैल्वी ने उसके बच्चे को वेच दिया था। वह तुरन्त भाग जाने की तैयारी करने लगी । अगले दिन सुवह जब हेली को उनके भाग जाने का पता चला, उसने घोड़े कसव्रा दिए । ऐलिज्ञा एक जगह छिपी हुई थी। उसके साय जानेदाले गुलामों में से एक ने ऐलिज़ा को चुपचाप हेली के वारे में सबर दे दीं। ऐलिज्ञा अपने बच्चे को लेकर भागी ।हेली ने पीछा किया। नदी पर वर्फ के बड़े-बड़े टुकड़े वह रहे ये | ऐलिजञा झट से नदी में कूद गई और घर्फ का दुकड़ा उसे बहा ले चला। हाय- भर पीछे ही हेली देखता रह गया १ भाग्य ने ऐलिडा रा साथ दिया । उसने नदी किसी प्रकार पार कर ली और वहां क्वैकर लोगो की बस्ती में पहुच गई, जोकि शान्ति ओर प्रेम के प्रचारक थे। ओहियों में उसे घरण मिल गई। तब, तक उसे खोजने दूसरे लोग पहुंच भी नही पाएं। जब यह सबर टॉम काका की कुटिया मे पहुंची कि उसे बेच दिया गया था, उसकी पत्नी और वच्चो पर जैसे वज्ष टूट पड़ा। टॉम ने अपने स्वामी की आज्ञा का उल्लंघन महीं किया। वह निरन्तर बाइविल पढ़ता था और आज भी उसोसे सांत्वना प्राप्त कर रहा था। उसने ईइवरीय वचन और प्रेम के उस अमर सन्देश को अपनी पत्नी को भी सुनाया । अगले दिन हेली ने टॉम काका को गाड़ी में विठाया, पावों में बेडियां डाल दीं और पमिसीतिपी की ओर यात्रा पर चल पड़ा। शैल्दी का दरण पुत्र जॉर्ज अपने पिता के इस कार्य पर ऋुद्ध हो उठा। उसने रोठे हुए टॉम काका से प्रतिज्ञा की कि दह एक दिल आएगा और उसे फिर खरीद लाते की चेष्टा करेगा। भाग में हेलो ने और भी कई गुलामों को खरीदा। एक स्त्री ओर उसका दस महीने का वज्चा भी इन नई खरीदों में थे! नदी पर, पहली ही रात को वह स्त्री पाती में कूद गई, और हेली ने इस सुकसान की बड़ी ही निर्ममता से सह लिया, क्योकि ऐसी घटनाएं उसके ध्यापार में नई नही थीं। मौका पर न्यु ओरलियस्स के ओऑंगस्टीन सेंटवलेयर नामक एक सज्जन भी थात्रा फर रहे थे। वे अपने घर जा रहे थे । उनके साथ उनकी छ वर्षीय बेटी ईदा तथा उनकी बहिन ओोफीलिया भी थी । ओफीलिया वर्षौट बी निदासिनी थी ईवा का दाल सौन्दये, उसके स्वभाव की पवित्रता टॉम से छिपी भही रही । उसने बालिका को छोटी-मोटी मेंटें देकर अपनी ओर आकधित कर लिया । एक बार ईवा पानी में गिर पड़ी । तब टॉम ने नदी में कूदकर उसकी जान बचाई। इसके बाद तो ईवा उससे इतनी हिल-मिल यई कि उसे अपने सग ही रखने के लिए उसने पिता से अनुनय प्रारम्भ कर दी। आऑगस्टीन ने तव हेली को कीमत चुकाकर टॉम काका को खरीद लिया। ऑगस्टीन सेंटक्लेयर ने न्यू ऑलियन्स के उच्चदगें को एक स्त्री से विवाह किया भा जिसको अपने पति के विचार बिलकुल पसन्द नही आते थे । उसका यह विचार था कि उसका पति उसकी हर वाद में उपेक्षा करता था ) उसका नाम भेरी या । वह सदा बीमार- सी रहती अथवा दंध्मारी का बहाना बताकर वह झपने आसपास के लोगों पर अपनो इच्छाए लादती रहती थी। धह्‌ स्वायिनी और बहंकारिणी थी तथा मौकरों के प्रति उसका ३० संवार के महात उपलाय ड्यवद्वार अत्यन्त निश्टुर होगा । सटयतेयर दांगगा की बुराइयों के प्रति सोइ प्रहट करता। ध्वह दाों के इस ब्यापार के भयातक परिणामों को दुदृराया करता। आपने दायों के प्रति आयश्यवता हो अधिक सासवीय करना द्शिकर बढ अपनी आर्य को दासवता के पाप के बोझ से रादेय मुतत करने की सेप्टा दिया करता था । टॉम कापय को ईया इतना ध्यार करतो थी कि बच्ची के सदस्पवद्वार के कारण वह कमी किगी बार की शिकायर सहीं करता घा। अब वह अस्तवल की देख-रेस करता और पहले की तुलना सें कहीं अधिक आराम ये रट्वा । ईवा अवयर उसे बाइविन पड़फर गुनाती। यह उसे लिसना भी गिसाती, ताकि गुध्ध ही दिलों में वढ़ अपनी पली को पत्र लिखकर अपने हातथात आदि सिस रफे। इसी दौरान में जॉन हैरिस अपनी पत्ती से बे कर बरी मैं जा मिला। मात नामक एक व्यक्षित हुछ्ठ त्िपाहियों का दस सेकर आ गया | उसका इगूदा था कि इग हरह भाग सिकलनेवाले सारे गुल्लामों को वह हास में बने भगोड़े गुल्तामों के कानूत के अन्तर्गत परुड़ से और उन राबको अपना कहकर देघ डाले॥ दो स्वस्थ कवोकरों के साथ ऐसलिडा और जॉर्ज तथा अन्य कई हम्शी कनाश की ओर चल दिए । जय मावर्म और उसके साथियों ने इन लोगों को घेर लिया सो ये लोग दुछ चट्टानों के पीछे जा छिपे और जब गोलियां चलने लगीं तब जॉर्ज ने अपना पीछा करनेवालों में से एक व्यदित को गोली मारकर घायल कर दिया । मास इस वार से घबराकर अपने दल के साथ पीछे हट गया और ठतव गुलामों का यह जत्था सुरक्षित कनाडा पहुंच गया । क कई वर्ष बीत गए। सेंटक्लेयर की वहिन कुमारी औफीलिया ने स्यू ऑलियन्स में जो कुछ देखा, उससे उसके मन में दास प्रथा के विरुद्ध घोर विश्षोम जायरित हो गया था। किन्तु फिर भी हब्शियों के साय, उनको मनुष्य समझकर मनुष्यता का बर्ताव करता उसकी बहुत कठित लगता था । एक दिन सेंटक्लेयर एक टॉप्सी मामक अनायिनी की ले आया, जिसे आज तक घोर इुव्यंबहार और घोर पीड़ाएं दी गई थीं। उसने उसे ओफीलिया की देख-देख में छोड़ा। टॉप्सी के ऊधम और खेलों ने घर-भर में एक उत्साह भर दिया / जब उसे सजा मिलती सो बह बार-बार अपने को बुरा कहती और मिस ओफीलिया को बुलाती कि यह ड्से पीटे, उसे दष्ड दे। किन्तु जब ईवा मे उसे सच्चे प्रेम और करुणा से सहेजा, टॉप्सी का हृदय भीग उठा और तव उसने बताया कि उसे आज तक किसीने भी प्यार नहीं किया था। इस वात ने श्रोफीलिया को विचार-मग्स तो बता दिया, किन्तु फ़िर भी बह बालिका के प्रति स्नेहाडे नहीं बन सकी । पर पर ईवा की बीमारी ने एक काली छाया डाल दी। णव उसकी शक्ति का शय होने लगा, उसके पिता का मन दाजित हो गया, किन्तु नयेन्‍मये डाक्टर भी कुछ फामदा नहीं पहुंचा सके । अति वर्ष की भांति अब की वार भी वे गर्मियों के दित काटने भील के कितारे था शाए। गांव का वातावरण खुला हुआ था। ईवा के मन में कद्णां पहले से भी अधिक मढ़ गई। वह गुलामों के बारे में और अधिक बातें करती रहती | व पिता से बहती कि टॉम टॉप काका वो छुटिपा इ्१ काका को दासता से मुक्त कर दिया जाए! एक दिल उसने ओफीलिया से कहा; “मेरे सिर के पुछ घुघराले कैश काट दो, ताकि मैं इन्हें अपने मित्रों को दे सकू ।/ इसके बाद उसने टॉम काका से कहा, “मुझे फरिदतों को आवाजें सुनाई देती हैं काका !” और बुछ समय के उपरांत ईवा का देहान्त हो गया। इवा की मृत्यु के बाद उसका पिता अपनी पुत्री को इच्छाओं को पूरा करने के बारे में अधिकाधिक सोचने लगा। टॉम काका को स्वतन्त्रता देने की ओर उसने कदम उठाना प्रारम्भ किया। यह टॉम काके को अपनी बातों में अधिक सम्मिलित करता, उससे सलाह लेता, उससे ग्रोपनीय बातें करता। टॉम काका उसका परमात्मा और “उसकी” इच्छा में विश्वास सुदृढ़ न देसकर उसे 'उसीके' रास्ते में ले जाने की कोशिश करता। क्लेयर इसपर विश्वास तो करना चाहता, किन्तु इतने दिनों से चले आए भेद- भावों की दोर्ध दीवार को लांघता उसे कठिन लगता । मानवता के बीच खाइयां खुदी थी। भनुष्य को ममुप्य का विश्वास नहीं रहा था। एक दिन शराब के नशे मे घुत होकर दो व्यकित लड़ रहे थे। उनके बीच जाकर उन्हें भलग-अलग करते समय क्लेयर छूरे की चोटों से बुरी तरह धायल हो गया । मेरी ने अपने दासों को लेकर अपने परिवार की ज़मीदारी मे चला जाता निश्चित किया। उसने अपने पति की इच्छाओं की चिन्ता तन को, और न ओफीलिया की ही बातें सुनी, जोकि टॉम काका और अन्‍य दासों के पक्ष मे बोलती थी। एकदम निर्मंगरता से उसने कह सबको अपने वकील को सौंप दिया । वकील ने उन्हें एकदम गुलामों के बाज़ार में भेज या । न्यू ऑलियन्स में टॉम काका पर बोलो लगी और वेच दिया गया। उसके साथ ही पस्कह साल की एक ऐमीलीन नामक सुन्दर लड़की भी विको | गया मालिक साइमन लंग्री बड़ा केठोर और निर्देय व्यक्ति घा। वह अपने बागात मे बड़ी निष्ठुरता से काम लेता था। रेड रिवर (लाल नदी) के किनारे एकात भूभाग में उसकी जायदाद थो। बहा उसका एक ही कानून था। उसका कानून जूते, कोड़े, घुसो और कुत्तो के बल पर अखड रूप से चलता था। वह स्वयं सारा प्रवन्ध करता था। उसके सहायक दो हव्शी ये, जिन्हें उसने खल्वार बना दिया था ओर बन्यों पर उन्हें वह छोड़ देता घा। वह टॉम को भी अपनी सहायक बनाना चाहता था। टॉम ने देखा कि लंग्री के दास बहुत ही गन्‍्दे थे, और असझ्य दरिद्धता मे रहते थे। वे विल्कुल ही वेसहप्रा और भग्तमानस, निराश लीय थे। चहुत-से तो वाइविल के बारे में दुछ भी नही जानते थे ! लेग्रो टॉम से जो काम चाहता था, उसके लिए टॉम अपनी करुणा और पवित्रता के कारण नितांत अयोग्य था। लैग्री के घर में केसी मामक स्त्री रहती थी । वह गोश-हब्शी दोनों की सकर सन्तान थी। वह लंग्री की घोर झत्रु थी । उसने लग्री से ऐमीलीन की रक्षा की । उसने टॉम को बुरी तरह पिटवाया ओर दाद में उसकी मरहम-पट्टी करके उससे दाततें करने त्तगी। बेर गसार के मात ठात्यास सैग्री बड़ा अधविद्वागी था। गेसी में उसकी इस मनोवूति का फायदा उद्यया और बह ऐमीलीन को सेकर भाग निरली । यह यो सफल हो गईं, किल्मु हैंगी ते इसछा दोष टॉम पर मढ़ दिया। यधवि टॉम वा कैसी के घडय॑त्र में कोई भाग नहीं था, हिल्‍्तु उसने छँग्री के कोष को श्रम सीमा पर पहुचा दिया। टॉम जादए था हि भो मार पर पढ़ चुकी थी, उगये उगया बचना अग्रमव था। हिल्बु जीवन के इन अन्तिम दाणों में उग्र मोद्षा वी आशा हो गई थी | उसने इसी विजय के गय में सै प्री से र्पप्ट य हू शिया हि लैग्री उसकी आत्मा को नहीं मार सयता था। इग घटना के मई दिन पहले तरुण हल्बी टॉस काया को कँस्‍्टरती से जाने के लिए अपनी क्ोज पर घल पट्टा था। आसिरफार जब यह लैँग्री के बागात पर पहुंचा, उसने टॉम काका को मरते हुए पाया। टॉम काका के मन में असंड शान्ति थो। इन पायिव वष्ठों को यह परलोक के घुसद णीवन का मार्ग राममता पा। राइमन संप्री चिद्र गया। वह केसी और ऐमीलीन को महीं दूढ सझा | वे दोनों ही कनाडा! पहुंच गईं। वहां बेसी अपने बहुत पतले विछुड़े हुए भाई मे जा मिली | प्रसल्‍तता का पारावार न रहा। केसी का भाई और कोई नहीं, स्वयं जॉर्ज हैरिस था। टॉम काका अपनी पवित्रता को अन्त तक निमाकर स्वगंवासी हो गया। प्रस्तुत उपन्यास बहुत हो करुण है । इसमें दास-प्रया का बहुत ही गहरा घित्रग है । दातों को भीतरी कमजोरियों को भी उभाइकर ऐेलिका ने सामने रख दिया है। तत्कालीन शासक-वर्गों के भौतर किततो मानसिक प्रक्रियाएं तया चिम्तत- स्तर थे, वे भी हमें यहां स्पष्ट दिखाई देते हैँ । टॉम काका का पुष्यात्मास्यहप आंधों के सामने घूमता रहता हूँ । वह एक अपराजित प्राणी है, जो सत्य और करुणा का कभी भो परित्याण महीं करता । ईवा का चरित्र भी बहुत निर्मल हैं। इस उपन्यास में ऐसी बेदता हैँ कि पाठकों को आंखें भीग जातो हूँ । चालेदि बोंटे : अनाथिनी [ जेत आयर' ] ओटे, चालोडे + अंग्रेडी लेखिका चार्लोटे बोंटे का लन्म थोलंटन, योर्कुशायर में २६ अप्रैल, १८१६ को हुआ | चालोंटे की दो बहने भी लेखिकाएं थीं) चालोंटे का जीवन एकांत में ब्यतीत डुभा | आपको केवल परिवार के लोगों से सम्पर््न प्राप्त हो सका | इसीलिए आप कल्पनालोक में विचरण करतो थीं। १६ वर्ष की भायु से दी आपने कट्दानियाँ लिखना प्रारग्म कर दिया था । पारिदरिक जीवल का भाषपर काफी अमाव था | इसका दवाव आपके लेसन पर भी पड़ा है) बाद में जब भाप गवनस बन कर ज,ैल्स चलो गईं तब भापकी र्ष्ट परिवार को सीमाओों के बाएर भी गई भोर स्यापक्ता को प्राप्त कर सकी | आपने झपना विवाह किया, किंतु कुछ दो समय बाद ३४ मे, १०५५, को भाए+ देडात दो गया | “झेतर आयर? (भनाबिनी) मूल रू में १८४७ में पहली बार प्रकाशित हुआ था। यह शक यराखिनी शते है । जैन आयर बचपन में ही जनाय हो गई ) दिचारी का सुख नष्ट हो यया। उसका लीलत- पालन गेद्सहैड हॉल मे श्रीमती रीड नामक उसको एक बुआ के यहा हुआ। गहां उसे निप्टुरता मिली, स्तेह तो नाममात्र बो भी नहीं दीजा। श्रीमती रोड ने अपने भाई से प्रतिज्ञा को कि वे उसे अपनी ही बच्ची को तरह्‌ पालेंगी, परन्तु जेन को वे अनाथ की आति रखती थीं । वात-बद पर फटकारती थी। बुआ के वच्चे वियडे हुए और वदमिडाज थे। बुआ की ही भांति उसके बच्चे एलिज़ा ज्योजिआना और जॉन थे ओर जैत की तिरस्कृत करते थे ( उसे एक अद्ूत जंसा व्यवहार मिलता । जब वह दस वर्ष की हुई तो उसरझी किसी गलती पर उसे एक अधेरे कमरे में अवेली वन्‍द कर दिया गया । मतीजा यह हुआ कि उसके दिमाय पर बहुत अधिक जोर प्रड्मा और उच्ते एक तरह के दोरे आते सगे) तोन मास बाद उसे लोवुड स्कूल में भेज दिया गया। वह चन्दों पर चलाया जाता था, जिसमे गरीद दच्चे पदाए जाते थे ! आउठ वर्ष तक दु ख-सुर्द से वह वहीं रटी । घर को सुलता भे यहां उसे अधिक आराम था। पहले ६ वर्ष यह छात्र वगरर रहो, और बाद के दो वर्ष का समय उसने वहा अध्यापिका दनकर काटा । जब यह ६८वर्प वी हो गई, तव सिठम्दर मे वह थोनफीहड भवन में जा गई, ६ हगाद 8५0९ (एाप्श०७८ ऐ7०ए९९) ३४ शुंगार के महान उा्यासे जहां यह श्री एड्गई रोरटर के यहां उतरी पालिए एईता बैरस्स वी गवर्नेंस बद गई! चौर्नेफील्ड का बह भवन भव्य और,अत्यरा विशाल चा। यहाँ एटा की अमिमाविता श्रीमती फेयरफंक्स का जेन के प्रति ब्यवद्वार बच्चा घा। धमत्री फेपरफश श्री रोवस्टर यो रिश्ेदार सगदी थीं। भवन बहुत विद्याल था और उसता काफी भाग घोती पड़ा रहता था। एक छि श्रीमत्ती फेपरपं.कय उये भवन दियाने सी 4 एडवर्ड रोमेहटर बहुत बड़े जागीदार थे। उनके अनुरूप ही यह भवन भी था । जय ये तीयरी मजित पर पहुंची तो उन्हें एक मयातक अट्टृहास सुनाई दिया। जेन चौंक उडी । श्रीमती फैयरफैवस ने कहा, “बढ नौकरोंकी आवाड है 7” यह कहकर उन्होंने प्रेसपूल को आवाड दी। द्वार पर एड मजबूत-सी स्त्री था गई। श्रीमती फेंयरफंवस ने कहा, “इतना घोर न किया करो ।” इसके बाद वह आवाज बन्द हो। गई। जनवरी का महीना था। दिन ढल रहा था। जेन घूमते हुए पड़ोस के एक गांव में चली गईं थी। वह घलते-चलते थक गई ती एक जगह बैठ गई। उसने देखा कि एक ऊते घोड़े पर एक सवार चला जा रहा था। तभी वर्फीली सड़क पर घोड़ा फिसल गया मोर सवार किनारे पर लटक गया! सवार का कुत्ता बड़ा-सा चा। वह मदद के लिए जेन को बुलाने लगा, किन्तु सवार ने मदद लेने से इन्कार कर दिया। उसकी भौएं मोटी थीं और चेहरे पर कठोरता थी। किन्तु जेत को फिर भी उससे डर सद़ीं लगा। उसकी कठोखा' देखकर उसे एक तोप-सा हुआ। वह व्यक्ति करीब ३४ वर्ष का लगता था। उसके मुक्त पर करता और विरक्ति-सी थी । लेन ने उसको उस परिस्थिति में छोड़ना स्वीकार नहीं किया। तव सवार ने उसका परिचय पूछा जब उसको मालूम हुआ कि जेन यौर्नफ़ील्ड भवन में गवर्तेत थी, तब उसने उसे घोड़े पर सवार कराने में उसकी मदद स्वोकार कर ली और तुरन्त ओकल हो गया। कुत्ता भी अधेरे में उसके पीछे भाग चला । जब जेन घर पहुंची तब उसे मालूम हुआ कि राह में मिलनेवाला सवार स्वयं उसके मालिक श्री रोचेस्टर थे । अगले दिन जैन को श्री रोचैस्टर और एडैला के साय चाम पीने के लिए बुलाया गया। वहां एक अजीव-सी उदासी छा रही थी। सत्नादटा था) भालिक ने कुछ गम्भीर और कुछ उपहास-भरे स्वर में कल की घटना का उल्लेख किया और कहा कि शायद घोड़े पर जेन ने जादू कर दिया था। लेकिन जेन ने इसका उत्तर दिया कि ऐसा नहीं था । उसका स्वर सुनकर मालिक की कठौरता कुछ कम दिलाई दी। इस तरह आठ सप्ताह व्यतीत हो यए। मालिक उससे मिलने पर अवश्य बाव करते और कभी-कभी मुस्करा भी देते ) कभी-कभी जेन को ऐसा लगने लगता जैसे वह उनकी सौकरानी नहीं, बल्कि कोई रिइतेदार थी) बेन एक रात जेन सो रही थी कि उसके कमरे के बाहर कुछ आवाज हुई! जे की मींद टूट गई । उसे एक पैद्याचिक हास्य सुनाई दिया । किर संगा जैसे बाहर एक प्रयचाप अनायिनी 34 पीछे हस्ते-हुट्ते तीसरी मंजिल की सीढ़ी की ओर घलो गई ! वह भय से कांप उठी और उसने दरवाजा खोलकर देखा। यहाँ कोई नहीं था ) उसने देसा कि श्री रोचेस्टर के कमरे पे धुए के गुवार उठ रहे थे । दह समझ नही पाई। वह उनके कमरे में घूस गई और उसने देखा कि विस्तर भें आय लग गई थी, लेकिन श्री रोचेस्‍्टर उसीपर देहोश-से सोए पढे थे उसने लपटों पर पानी डालकर उन्हें बुछाया और मालिक को भो मिगो दिया। तब वे डागे। दे चौंक उठे और बोले, “वया तुम मुझे डुवाकर मर डालता चाहती थीं ।” जेन ने आग जलने की बात बताई । तब वे जांच करने को उठे । बोले, “मैं तीसरी मजिल देख कर आता हूं।” लौटकर आए तब वे शांत-से ये । उन्होंने जेन से प्रतिज्ञा कराई कि इस घटना के बारे में वह किसी से छुछ नही कहे । चर के लोगों से यही कह दिया गया कि पास रखी सोमदत्ती से ही दिस्तर में आय लग गई थी जिसे स्वय मालिक ने ही दुका दिया था। इसके बाद मिस्टर रोचुस्टर चले । जब वे वाहर थे दव एक अजनबी आया। उसने बताया कि वह बैस्टइण्डीज़ से आया था । उसका माम श्री मेसन था। जब रोघैस्टर सौटकर आए और उन्हें. आयंतुक के बारे में बताया गया, उनका चेहरा सफेद पड़ गया और वे वोल उठे, “उफ जेन ! मुभपर प्रहार हुआ है !” दे हांफ उठे और बोले, “मैं चाहता हूं कि में किसी एकात द्वीप में चला जाता, जहां केदल तुम मेरे साथ होतीं और मैं सारी परेशानियों से दूर हो जाता लेकिन इसके अतिरिक्त उन्होंने कुछ भी नही कहा और वे मेसन से मिलने चले गए। बड़ो देर तक उनमें बातें होती रही । जब वे लौटकर थाएं अब पुनः उनके मुख पर प्रसच्तता थी। उनके स्वर में भ्रफुल्लता थी) जेन ने यह देखा तो उसके मत पर से बोम/सा उतर गया। रात हो गई। भंधेरे में अवानक तीसरी मडिल से एक भयानक चीत्कार सुनाई दिया और साएण घर जाग एया। अपने कमरे के ठीक ऊपर के कमरे में जेन को लगा जैसे कोई भयानक संघर्ष हो रहा है और एक आवाज यूज उठी, “वचाओं !” श्री रोचेस्टर तीसरी मजिल से उतरते दिखाई दिए और उन्होंने सबको सोने भेज दिया। उन्होंने कहा कि एक सेवक दु.स्वप्न देखकर चिल्ला उठा था / सब लौट गए। लगभग एक घटे बाद उन्हींने चुपचाप जेन को बुलाया और उसे ऊपर की मंडिल में एक भीतरी कमरे में ले गए, जिसके भीतरी कोठे से भयानक स्वर आ रहे थे जैसे कोई पशु गुर्श रहा हो और वही विचित्र हास्य भी सुनाई पड़ा । बाहरी कमरे में भेसन लेटा था। वह वेहोश था। उसको एक बगल से खून बह रहा था। जेत ने दो घटे उसकी सुधूषा की, तब उसने अपनी आंखें खोलीं, और तब, सूर्योदय के पहले, उसे वहां से हटा दिया ग्या। मथुर प्रीष्म ऋतु आ गई। दो बेलाएं मिल रही थी। मनोहरता चारों ओर घा सही.पी। कुज में जेन उपयन में सड़ी थी । दही श्री रोचस्टर आ गए। बातें होने लगीं ) जैन ने स्वीकार किया कि उसे थौर्तफ्ील्ड से कुद्ध बात्मीयता हो गई थी । श्री रोचह्टर ने डेट संसार के महान उपन्‍्याद कहा, “बेचारी !” जेन समस्त कि रोचेस्टर सुन्दरी कुमारी इन्ग्रैम से विवाह करना चाहते ये, जो कि बहुघा उनसे मिलने आया करती थी। उसने स्वामी से इस बारे में बात चलाई। रोचे- स्टर ने स्वीकार किया, “हां ! लगभग एक महीने में, मैं आशा करता हूं, मैं दूल्हा दन जाऊंगा ।” जेन के हृदय को कड़ा घवका लगा । वह रोने लगी और कह उठी, “मैं यहां विना तुमसे कुछ सम्बन्ध हुए वया रह सकती हू ? मैं सीदी-साधी और साधारण हूं तो वया तुम समभते हो कि मेरे आत्मा नहीं है ? क्या मैं हृदयहीन हू ?” रोचेस्टर ने उसे मुजाओं में भरकर चूम लिया। वह पीछे हट गई। तब उत्हेंगे बताया कि जिसे वे प्रेम करते थे वह कुमारी इन्प्रे म नही, वल्कि जेन थी । उन्होबे स्नेह से कहा, “तुम मेरी दुल्हन हो, क्योकि तुम मेरी बरावर की ही। मेरी पसन्द के अनुकूल हो ! ” जैन ने कहा, “सच कहते हो ? तुम सचमुच मुझे प्यार करते हो ?” “हां, मैं सोगन्ध साता हू !” हवा घतने लगी थी। पेड कांपने सगे थे, कराहते-से। ये दोनों भवत भी मोर लड़ी से चल पडे । एक महीने याद जब एडवर्ड रोच॑स्टर और जेन शादी येः लिए गिरजे मे शड़े हुए सब कोई मौकर उतहे पास नहीं था । पादरी ज्योंही उनके विवाहे-कर्म को समाप्त करे बाला था कि एक स्वर सुताई दिया, “यह विवाह नहीं हो सकता, क्योकि श्री रोचेस्टर बी एक पत्नी जीवित है।” और श्री मेसन सामते आए। उन्होंने घोषणा की कि वे उस पत्नी के भाई ये। पटनी थौतंपीह्ड भवन में हो थी। रोचैग्टर के मुख पर गठोर मुस्कराहट दिखाई दी जो उतके होंठों पर बिंसर गई) उन्होंते बहा, "बहु-पल्ली प्रया यथपि एड शुरुप और कुत्गित शब्द है तिन्‍्तु मैं बहु पलनीवात हो होना चाहता हूं ।” उपरियत लोगों को वह अपते भवन की ओर से घते | जिस कमरे में मेसन पटयत बड़ा था उसे भीषरी कोड़े में कोई जस्तु चारों पांवों पर चथ रहा चा। यह हुए भीर को दीनता चाहता था, और डियी हिंस पश्मु वी भावि गुर्रा छठता था। उसे कपड़ों रे ढक रा गया था और देर-देर खुले हुए रुखे हुए बातों ने उसका मुझ और गिर ढंक रता था। बह रोचेस्टर की पहली परनी थी । शोच॑रटर ने बताया, “पन्दद सात पदते मुझे धोये में शाता गया था और शग बादल और पष् रुदृश स्त्री शे विवाइ-सम्यन्ध में मुझे बाघ दिया गया था।” कैद में उस क्षण रोवेस्टर को क्षमा कर दिया हिन्तु अत दित खरे बढ़ बहा है छपी दर मोडन में उसे कौर मिचा छुड़ा उससे अपता मास बैल इलिपद रख निया और बट गाए में हुद् स्शुप-मास्टरती बत देई । बड़ा हे गिरदे है पादरी के थी सेंट जीत ग्किि अनाधिनी ३७ दोष ही उन्‍होंने उसे जिवपह्‌ का प्रस्वाद कियए। लेकिन एक शव उसे ऐसा लणए जेंसे श्री रोचैस्टर उसे पुकार रहे थे--जेत !” जेन ने देखा, उस जगद कोई पुकारनेवाला नही था। तव वह शान्ति से नही रह सकी और सवेरे ही पोर्नेफील्ड को ओर चल पड़ी । बहा जाकर उसने देखा कि एक काला जला हुआ खेडहर पड़ा था। वह सराय मे जाकर ठहर गई (वहा उसे पता चला कि एक खत प्रेंसपूल धराव के नशे में घुत हो गई और तब वह पागल औरत छूट निकली और उसने घर में आग लगा दी। श्री रोच॑ह्टर ने नोकरों को बाहर निकाला। तब वे अपनी पायल स्त्री को निकालने लौटे । लेकिन पगली छत पर चढ़ गई थी झोर वह बही से कुदी और गिरबर मर गई। उस समय जद थ्री रोचैस्टर बाहर निकल रहे थे तब सामने की सीढी गिर पड़ी और वे चपेट में था गए।जव उन्हें खड़हर से निकाला गया तब उनकी एक आंख फूट चुकी थी और एक हाथ इतना कुचल गया था कि उसको काद डालता पड़ा। उसके वाद दूसरी मास भी सूज गई और वे अन्धे हो गए। अव दे बेवल दो सेवको के साथ फर्नेडीन मे अपने एकान्‍्त भवन मैं दिन काट रहे ये । जैन यह सुनकर तुरन्त उनसे सिलने चल पड़ी । उसका हृदय आतुर हो रहा था। जैन ने घर में प्रवेश किया, बह सहसा ही उनका हाथ पकड़कर बोल उठी । दे हर्ष से चिल्ला उठे : “कौन जेन ? जेत आपर ?” “हूं, मेरे प्रिय स्वामी !" उसने कहा, “मैं हो हू जेन आयर ! मैंने तुम्हें लोग लिया है, और मैं तुम्दारे पास लौद आई हूं ।" प्रस्तुत उपस्यास में भानव-चरित्र की गहराइपां हमारे सामने भातो है। नारी- जीवन की विवशता और वेदताएं उभर-उभर आतो हे। स्थ्रो में प्रेम को भूष अश्षण्ड रुप से विद्यमान रहतो है । मनोदंज्ञानिक विश्लेषण को लेडिका ने यहुत ही कुशल सेश्तनो से चित्रित किया है । एमिसी थे : प्रेम की पिपासा [बुदरिंग द्वाइट्ग' ] हरे, एमिलों : दमित्ो अप भंपेदां से मि 0 सानोंटे गोन्टे को धोटी बदन मी । भाप ऋम्म ३० सुख, १८१६८ को छौनंटन में हुए या। भाप तीस कर्प को झवस्यां में हेवप॑, बारंशाकए मे १६ दिएवर, १८६४८ को ईंट ह२॥ आए बुत कम घर के गएए निकल | मई भी कही बाइर आल हो घर की पाए भाप डों सवाने लगती भौर शत तरह झापने भपना भवन उत्तरी इंगपैंट के रंगरोन बगर मैशलों में ही स्यदीत किया, जिसशे द्वाया आपडो रचनाओो में रे मिचदों है। भाष भयनी दार्भट भौर एन नामक इहनों के साथ अपनों ढत्यना के वर्ण को प्रव देदी हुईं $हानियं भोर कविताएं लिया करत! थी | “बुद्रिंग दाश्ट्स' (प्रेज को पिपासा) मूल रूप में एश्ली बार शषाइर में प्रकाशित शुभा | यह झायद्या एकमात्र उपन्यास है। इसके प्रकारान के एक वर्ष बाद दी भाए एस संसार को छोड़ गईं । भाव यह नहीं बान सड़ी डि झापके एक हो ठयन्यास ने भाषकों साहित्य में भमर बया दिया । श्री लोकबुढ धाशकौस ग्रेल्ड* के नये किरायेदार चे। जब वे अपने मकान-मालिक से मिलते उसके धर गए तब उनका स्वागत अच्छा नहीं हुआ । नौकर-चाकर, कुत्ते, यहाँ तक स्वयं भवन के स्वामी---सब ही रूसे थे । भवन-स्वामी श्री हीपक्लिफ थे। वे एक केजर जमे लगते थे, यद्यपि उनके वस्त्र और व्यवहार को देखने पर वे एक जागीरदार से जान पड़ते थे। वे दृढ़ धारीर के ऊचे व्यक्ति थे, बाइति में सुन्दर थे, किन्तु अत्यन्त ही रूश, उदास ओर गम्भीर दीखते थे। भूस्वामी के पक्के और सुन्दर भवत का नाम था दुदरिंग हाइट्स। बह देतों के बीच वना एक पुराना, अब जर्जर-सा हो चला, भवन या! उस जगह हवाएं मुक्त चलती थी और तूफानी मौसम के लिए वह जैसे खुला पड़ा था । हक लौकबुड में कोवृहल जाग उठा। वह दूसरे दिन किर इन विचित्र लोगों से मिलते गया। बाहर वर्फानी तूफान चलने लगा। तब वह शत वही बिताने को विवश हो पया। रात को उसे इस घर के वाकी विचित्र प्राणी भी मिले। एक ही यक्लिफ के पुत्र की विबरवा पत्नी थी ! वह सुन्दरी थी और अभी उसने लड़कपन से पांव बाहर रखे ही थे। वह चर रहती थी और घृणा उसके मुख पर खेला करती थी। एक गंदा-सा युवक था--हैअरट ३६ भरणधान्‍्मणछ समड॥ (कगार ॥7076०) ३. प्रेन्‍्न-य्राम-भवन प्रेम की पिएासा इ्द् अनेंशों। यही नाम वुर्दरिग हाइटस के द्वार पर खुदा हुआ था, जिसके नीचे तारीख खुदी हुई थी '१५००ई६० । रात को सोकवुड को एक कमरे मे ठहरा दिया गया। उस शयनागार का अब प्रयोग नहीं होता था। 'लौकवुड ने देखा कि भीतों पर 'छोघराइन अनेशों', 'कैथराइन हीपक्लिफ', और “कंथराइन लिण्टन' इत्यादि नाम खरोंचकर लिखे गए थे। किताबों के खाली पन्‍नों पर उसे एक डायरीनसी लिखी दिखाई दी, जिप्तमें ऐसा लिखा हुआ था, ॥हिफ्डले चुणित है-+उसका हीयबिलफ के प्रति व्यवहार अत्यन्त बर्दर और निष्दुर है--ही और मै विद्वोह करेंगे! बेचारा हीयकिलिफ ? हिण्डले उसे गुडा, आवारा कहता है, उसे हमारे साथ बैठने भी नही देता।" लौकवबुड को दु स्वप्नों ने झा घेरा । उसने श्वप्ल में एकण्डरी हुई पौली पड गई- सी लड़की को देसा जो अपने को कैथराइन लिण्टत कहती थी। वह खिड़की के दाहुर खड़ी आर्तस्वर से विलाप करती-सी कह रही थी, “मैं बीस वरसों से वेघरबार मटक रही हूं।" लोकवुड जाग उठा । जब यह ग्रेन्ज मे लौट काया तो उसने सारी कहानी क्षपने चर की देखभाल करनेवाली श्रीमती नैलीडीन को सुनाई । नैली हाइट्स और ग्रेन्ज दोनों ही जगहों पर बहुत दिनों तक नौकरी कर चुकी थी । उसने लौकवुड को यह कथा सुनाई : हेअरटन के पितामह वृद्ध अनेशों लिवरपूल गए। यात्रा से लौटने पर वे अपने साथ एक गंदा, चिथडे पहने हुए काले बालोवाला लड़का ले आए। जो उन्हें वेषर सड़क चर मिला था । उन्होंने लड़के को नह॒तवाया और उसे केवल हीयक्लिफ नाम दिया, जिससे उस्के परिवार इत्यादि का कुछ भी पता नही चलता था। यह लड़का बडा चुप्पा था और था बैसे मज़बूत दिल का, क्योकि सार खाने पर एक भी आसू उसकी आंखों से नही निकलता था। इसीलिए अर्तशों को यह लड़का बहुत पसन्द था। अर्वशों की लड़की कैथ- 'रइन शीघ्र ही इस हीवक्लिफ के साथ खेलने लगी और दोनो में मितता हो गई। किन्तु अर्नेश्यों का पुत्र हिष्डले अर्नशों को इस होयक्लिफ से बड़ी घृणा थो। वह यह सममला था कि हीघक्लिफ उसके पिता का धारा स्नेह उससे छीने ले रहा था । वृद्ध अरेशों मर गए ! हिण्डले कॉलेज से अपनी पल्दी के साथ ज्ञोट आया। यह स्त्री हीवक्लिफ से बहुत घृणा करती थी। उसने उसे मौकर बना दिया ! कैधराइन को युवक हीथक्लिफ से वही स्नेह बना रहा) वह भाई के स्यवहार को पसन्द नहीं करती थी । हिण्डले के एक बेटा पैदा हुआ और कुछ दिन बाद ही उसकी पत्नी क्षय रोग से मर गई। हिण्डले दु ख से व्यावुल हो गया और खूब शराब पीने ला । इन्ही दिनों घ्रशकोस ग्रेन्‍्ज के एडपर लिण्टन ने कंघराइन फो देखा । वह उसे देख- कर मोहित ही गया। वह शांत और वम्न स्वभाव का दिद्वान व्यक्ति था। कंथराइन के मत में हीयशिलिफ के प्रति प्रेस था, इसलिए जब छिष्टन ने विवाह का भ्स्ताव किया तो कंधराइन बहुत ही मुश्किल से मानी ६ ५ जद हीवविलफ ने इस संबंध के वारे में सुना तो वह अचानक ही गायब हो गया | फंग्रराइन रात-भर उसे बाहर मेंह में दूढ़तो रही ओर अन्त मे उसे बड़े डोर के बुखार ने 5 संसार के महान उपन्यास आ दवाया। इस बीमारी ने उसके शरीर को तोड़ दिया और उसकी मानसिक उत्तेजना उसके स्वास्थ्य के लिए एक भय का कारण बन गई । सीन वर्ष बीत गए। अब कैथराइन श्रीमती लिण्टन थी। वह ग्रेल्ज में रहते चली गई थी । नैलीडीन जो अब तक हिण्डले के छोटे वच्चे हेअर॒टन की घाय थी, अब केयराइन के साथ आ गई थी। हीथविलफ का कुछ पता नहीं चला। यद्यपि नैली को ऐसी आशा नहीं थी, फिर भी विवाह के प्रारभिक छः मास श्ञान्तिपूर्वक व्यतीत हो गए। कैयराइव भी पहले से अधिक धांत दिखाई देती थी । अचानक हीयबिलफ लौट आया । वह कंयराइन से मिलने आया ! वह अब पूरा जवान और खूबसूरत आदमी था और भरद्र पुरुष लगता था। उसे देखकर ही लगता वा' कि उसके पास अपार धन था। वह इतने दिन कहां रहा, कँसे एक गंवार से वह ऐसा मद पुरुष बन गया, कैसे शिक्षा और धन दोनों पर उसने अधिकार कर लिया, यह कोई नही जान सका। अब भी उसके सुन्दर कजर जैसे मुख पर एक हिसक माव दिखाई देता था। बहू कठोर-सा तो लगता ही था। कैथराइन उसे देखकर हर से पायल हो गई । एडगर ने उसे देखा तो वह कुद्ध भी हुआ और उदास भो, क्योंकि हीथक्लिफ ने उसका प्रकट रूप से तिरस्कार किया। हीयक्तिफ बहुघा आता। कुछ ही दिनों में एडगर की अठारह वर्षीय वहिन उसके प्रेम में पड़ गई। कंथराइन को इससे भनोरजन तो हुआ किन्तु उसने लड़की के मविष्य की दृष्टि से उसे होयक्लिफ का असली परिचय दिया कि वह वास्तव में बड़ा कूर था और उसके जीवन का उद्देश्य धा--चह अपने शत्रुओं का नाश करे । और यह कि कंथराइन हीथक्लिफ की वाह्त- विकता जानते हुए भी उससे प्रेम करती थी, ज॑से उसे न चाहना उसके लिए असंभव था। हीयक्लिफ वुदरिंग हाइट्स में जम गया। हिण्डले के अब दो ही शौक थे, शराब पीना और जुआ खेलना। हीयविलफ उसे खूब पैसा देता था और शी प्र ही ही वविलिफ नै उसे बरवाद कर दिया और अपने जूए के कर्ज चुकाने को हिंप्डले ने सारी अर्नंशों री सम्पत्ति को हीयव्लिफ के हाय गिरवी रख दिया। ख्वोंकि अनंशॉ-परिवार के बाद हीथविलफ को लिण्टन-परिवार से घृणा थी, क्योंकि लिण्टन ने ही कैयराइन को उससे छीन लिया था। जब उसे एडगर की बहन ऐसाबेला के प्रेम का पता चला, बह उसे भूछे हो फंसाने लगा) और एक दिन मैत्ी ने इसे देख लिया ओर कंयराइन से कह दिया । पहले तो कैयराइन लिण्टन की ओर बोली, पर जब तिष्टर होयक्लिफ के विदद्ध वोला तो वह हीयविलफ की तरफ से बोलने लगी। मारपीट हो शभई । हीयक्लिफ चला गया और कंथराइन बेहोश हो गई। उसको सदमा बैठ गया । उसी रात ऐसावेला हीथक्लिफ के साथ भाग गई। छः: हफ्ते बाद ऐसावेला का पत्र भायां जिसमें हीयशिलफ के प्रति धृणा थी। वह उससे बहुत ही निष्युर व्यवहार करता पा। मैली को पता घवा कि कंधराइन की बीमारी के दिलों में हीथविलफ उसके बाय में धिएा रहता या। कंघराइन के एक लड़की हुई और कैयराइत मर गई। सहती का सलाम भी ब॑ यरादन रखा गया । विष्टन-परिवार में पुत्र का अम्ाव था । अतः सम्पत्ति देहारेशा एक यू 0 राएर 4 ल्‍्याग ओर प्रेम [कंमिले' ] ड्यूबा, घलेक्जैंडर फिल्स + फ्रेंच लेखक झलेक्ग्रेंटर ब्यूझा प्लस का बन्‍्न पेरिस में २७ जुलाई, १८२४ को हुमा | आपके पिठा प्रसिद्ध उपन्यासकार अलेक्वेडर ब्यूझा थे | माता का साम मेरी ले था । जब झाषका जन्म दुआ तड़ धयपके माता-पिता का डिवाह नहीं हुआ था । दाद में उनका विवाह हो गया। अपने स्टूल-डीवन में झायड़ों अवैय स्तान के, नाम से काझी अपमान उठाना पड़ा । रैसे पिता पु्र में के भच्चे सब ये और दोनों दी बढ़े सदोले ये। भनेले-भकेल रहते यें। राम ही राख १०,००० का कर्ज़ा हो गया । आर्थिक सकट से बचने के लिए ऋार लिखने लगे झोर १८४८ में 'कैमिले” की रचना की | दाद में आपने इसका न्ट्ूुूप्रातर कर दिया | आये चलकर झाप बहुत धनी हो गए भौर आपको साढित्विकों में बड़ा सम्यन नल ४. हमें अपने पिता के प्रति सदभावना बनी रदी। आप १८७४ में फ्रेंच अकाडमी के लिए चुन लिया गया । २७ नवम्बर, १८६४ में आपको मूल्य हुईं। 'क्लैमिले! (त्याग भौर प्रेम) सूचरूर में पहला बार १८४८ में प्रकाशित दुर्मा । यह झापकी एक मर्मेस्पर्शी रचना है । प्रेरिस का वह बदनाम हिस्सा अपने जादमियों को वजह से यह नाम पा सह था ! 54 ॥ अन्तिन के एक मकान मे एक वेदया की बुरी हालत मे मृत्यु हो गई थी, बुयोकि वह के से लदी हुई थी। अव उसका फर्तीचर और सामान विक रहा था। उस भीड़ में लोग हे ही तमाशा देखने के लिए खड़े थे, व्योझि इससे उन्हे एक तरह की सनसनी मिले ४ थी। लेकिन एक व्यक्ति ऐसा भी वहां घा जिसके उद्देश्य इतने निम्नकोि के नहीं मे वह एक साहित्यिक व्यक्ति था जो न केवल कौतूहलप्रिय था डिनन्‍्तु उसमें यौवन और ४ के आकर्षण के कारण एक दूसरी भावना थी। मेमूडील मारस्पूराइट गोषियार *ै कई लोग ऐने जाते थे जो उसमें दिलचस्पी लिया करते थे और उनका स्तर बहुत वि कोटि का होता था। पर यह आदमी ऐसा नही था। वह देखता या कि रूप और गौर से सम्भात एक स्त्रो दुखियारी थी। उसने उसे केवल दूरी से देखा था। उसने गा कोट नामक पुस्तक दी एक प्रति उस नीलास में खरीद ली॥ जब उनते उस विदा, है खोजा तो उसमें लिखा हुआ या, “मारग्युराइट के प्रति मेनन--सितग्रता और के जारमन्य इयूवत के हस्ताक्षर थे । इस लेख ने उसमें एक कौतृदल जया दिया बुध १- एम्भा८ (व्प्प्परेदा एपपाप5 हि) नाना [बाना*] जोला, एमिल : फ्रोंच उपन्यामकार एमिल छोला का जन्म पेरिस में २भमैल, (८४० डो एक इ्टैलियन गीक इंजीनियर के पर में दुआ । माता फ्र च थी । एक्स में झ्रापडा लालन-पालन दुआ १८४ में भाप पेरिस भें एक कल बन गए और १८६४ में झापने अपनी पहली किताब प्रकाशित कराईं। १८६६ में उोला एक जबरदस्त भाषोचक बन गए । कला भौर झाद्दित्व पर झापझे लेख पत्र-पत्रि्झों में निकलने लगे भौर यई आलोचना झापने झनेक उपस्यासों भौर पुस्तकों में जारी रखी । २६ रितखबर, १६०२ को जोला छा मृत्य दुईं। झाषके रायनागार में एक खराद स्थोत के कारय यैस भर गई भौर रस स्यापडी झत्यू हो यई । नाना (१८८६०) झोला का विरब-विस्यात उपन्यास दै। झापने ब!ुत भषिड् रचनाएं लिखा दें लेकिन 'नाना! शौर नाना दी मा! का नाम बहुत अधिक लिया गाता है| “जाना! में भापने फ्रस के ३भव-रिलास को दास्तदिक प्रोल करों उद्ाइकर सामने रस दिया है, समाज पर म्दंम्य हिया है । प्मर॑ वैरायटी भिपेदर में दी ब्लांडवीनस नामक नाटक होनेवाला था। बोईनिव येटर का मंनेजर बहुउ स्यस्त था। मुलिएफो वेरी नामक पत्रकार ने देद्वात गे आए हुए रिइते के भाई देवटरइलाफलोय का परिचय मैं नेजर रे कराया । बोईीनिव अपने विये> | बकला क द्वा करता था और उसने यह भी बताया कि उसके यदाँ एड नई अ्ि- गई थी। उसझा नाम नाता था और सारा पेरिस उसझे बारे में चर्चा कर रदा था से बढ़ माता जातती थी जौर न 3गे अभिनय करना आता या लेकिन वह इतनी थी हि उसे रिसो घीज डी उरहूरत दी नहीं थी । क्योकि आज उद्पादव था; भौड़ इडट्ठी दो गई थी। स्टीनर 4 %र बढ़ा उपल्यित था। उसकी प्रिया रोज मितत थी । तो डे ध्ाय अधिनय 6िया करवी थो । उस दिल रोज मिलल ढ़ पर्ि स्टीनर के माप पतन अपनी नी डे द्ेल-सस्बस्धा को प्वन्ध दिया करता था। दास्येत लाघ#$ पेजों पर अपना सझस्त घल नप्ट कर चुद था, उसको साता हा प्रिय पाज बहा प॥ सू्रो सटेबढ लवाढ देशिडसी और याया नाम अखिय वेदथाए भी वीं उप है । दरार का जम्जरवेल डा; पद सख्त दे स्यूजिय जाली वस्‍तो और ससुर कं साथ ननमननननननननननत लत] ग्प क८क | फिजनल 2.५5) ॥ (दक! श्र ६४ घदाएर एड हब के किताब मत, 0३ एर दे उसय टव है । ४4५६६ है कन्‍ल्ड एज+ के एक बडा मकान सरोद दिया। नाना ने कुछ दिनो के लिए छुट्टी ली और वहां ।ई और उसने अपने सब मित्रों को वहा निमश्नित किया । इस बीच में काउणप्ट मफत इसका परिवार मादाम हाय गन के यहा मेहमान बनकर आया । काउप्ट के साथ ग्रेज़ राजकुमार था जो कुछ दिन पहले नादा से मित्र चुका था और अब उत्को ढलती उम्र में भी उसकी जवानी जाग उठी--उतस रात यदि वह एक घष्ठे उसका प्राप्त कर लेता ! और यही उसकी कामना थी और उसके लिए वह झुछ भी देदे रर था। अपने नये घर की सुपमा और सुन्दरता से नाना बहुत प्रभावित हुई । यहां ले जॉज मिला। इस लड़के से यह प्रभावित हुई किन्तु काउण्ट मफत से मिलने को इन्द्ा नहीं ची। मफत की क्ातुरता और आवेग उसऊो डराते ये। स्टीनर के लिए मार बन गई और एक सप्ताह तक वह जॉर्ज के साथ ऐसे रही जैसे पस्रह बर्ष की ।डकी प्षपत्े प्रथम प्रेम मे निमज्जित रहती है। नाना के प्रेमी पेरिस से आने लगे जे उनके साथ रविवार को घूमने निकल गया। उसे उस्तकी मा ने नाना की गाही लिया जॉर्ज को उसके भाई फिलिप ने डाटा । उस रात नाना ने मफत के सामने किया पर वहु फिर से सौट आई जदां दूसरी अभिनेती उसकी जग काम कर रही 'न मद्दीने बाद काउप्ट मफत की लड़ाई हो यई । उसे यह अभी तक नहीं मावूम ताता पर साथ-साथ स्टीनर का भी अधिकार घल रहा था। जब उसने उसे वियेदर । अभिनेता फोनतन के साथ देखा तो उसे क्रोध आ गया । नाना को इधर फोजेरी के क्रय आया क्योकि उसने पत्र में मुछ सख लिप दिया था 'मुनहरी मपसी जिप्में हू सम्दी सूबगूरत सड़को के बारे में वर्णन दिया था जो वेरिय की सर्दी गतियोँ वर थाई थी और अभिजाततुल को थिगाई रही थी, वर्बाई कर रदी थी। वाता हे के $टह्ा हि फोचेरी मफ़त की पी को बढुका रद्दा था | यद्यपि यद सत्य थी पररष्ट इसझो ध्रमाधित नदी कर सड्रा मेज बाता छोनवन डे प्रेम में पह गई। फोनतन उसे मारता, उसके घन को खरे चाना जब सड़कों पर घूझने लगी + ताकि फोनतत को सद्धायता दे सके । अज ए5 बेदस्वाजी वेश्या ठेटित दी वाता डी दोस्त थी । इस बी ढ में पुलिम साता ऊै पीधे ॥ बह उसे घदुल से बाल-दाल बची और इसलिए उसे काफ़ी तर मय बाई मा ए कर लेडो पह़ो । डी लिय डे व वाट ड़ में छुड़ इतस का उते अधितय छा वे सादे का खर्चा झइाउ पड उद्ा रद्वा था । पाई मोतकयू के विकद एड विशाल 4 डे रूप ने सदर दिया सदा ताता ए#साक छाउठट को बनकर रहें, इतक दिए दुछ्ध इन हो उदार था । इस लाट & में नाना चुरो दाद सवाल रदी लत अब वे झार की रानो इन मई। उसके पर में सबसे अच्छी चोद बा यई। 6:46 प्यार में कलुरप सम्बा दियाई देन बंगी। फर्स पर रीवा हो धरावे कई ॥ उ $ सा जब कई देश वे और दा दाहिय दी और वीत था ज ६ नाता डह उसपर सच किए जाते थे ( जब नाना मफत के प्रति अपना पठिद्रत दिखाने लगी । यहां तक कि कभी-कभी उसे घरेनू मामले में भी सलाह देने खगी । किन्तु युछ ही दिन वाद वह काउष्ट द बेंदुर््स की सम्पत्ति को भी उड़ाने में लय गई। इसके वाद जॉन के भाई किलिप आने लगा । नाना ने उसके सिर पर जादू कर दिया था जिसको हि नाना के चगुल से जॉर्ज कोवबाने के लिए भेजा गया था . किन्तु निरन्तर पुरुषों मे घिरी रहने के कारण नाना ऊबने लगी और वयोहि उसके प्रास धन निरन्तर चारो ओर से दरसता था, इसलिए उसपर कर्जे बने लगे । लुई खुद अस्वस्थ रहता था। वह उसके पास भी जाती और बुद्ध बण्टो के लिए माता बा सा व्यवह्वार करती । इसके बाद नाना को सेटिन मिली और उसे अपने भवन में ले आई। पुरुषों ने सेटिन में नाना की प्रतिद्वद्विनी पाई। जूने का महीना था। रविवार के दिन लागचेम्पस में पेरिंस के बड़े पुरस्कार की घुड़दोई होनेवाली थी। वेंदुबर्स की सम्पत्ति विनप्ट हो चुकी थी। लूसीगनन नाम के फिय घोड़े पर उसने अपना दांव लगाया और एक घोडी का नाम उसने नाना रख दिया था। दाता ने भी वहां उपस्थित रहकर उस समुद्दाय को जैसे जीवन्त कर दिया। उसके चारो बोर जो लोग घिरे हुए थे उनसे वह अपनी गाड़ी मे बैठी हुई, दैम्पेन जेसी कीमती शराब ऐिलाती हुई मानो अपना दरवार कर रही थी । घुड़दौड थुरू हुई और नाना नामक घोडी पीछे से निकलकर आगे आ गई । विद्याल भीड़ मे नाना-साना' गूजने लगा । वेंदुव्स ने नाता नामक धोड़ी पर लोगो को दाव लगदा दिए थे, लेकिन अपना धन उसने लुसीगनन नामक धोड़े पर ही लगाया था । यह बात खुल गई और वह वदनाम हो गया और इस चदनामी ने उसे दर्बाद कर दिया । भुछ दिन बाद नाना बहुत बीमार पड गई, उसके गर्भपात हो गया था। अपनी 'रोपशय्या.पर पड़े हुए उससे प्रयत्न किया कि मफत का उसकी पत्नी से मेल हो जाए। अन्त में उन दोनों का मिलान हो गया। मफत ने देखा कि नाना अब जॉर्ज की भुजाओ में थी। अब वह अपने जीवन के बारे में बेपरवाह हो गई थी । नौकर उसे बेवकूफ बनाते थे, घोजा देते थे । बहुत साधारण चीज़ों पर वह हजारों फ्रैक खर्च कर देती थी। पर फिर ये चीज़ें बेफित्री से तोड़ दी जाती थीं। बड़े-बड़े विल बिना चुकाए पड़े थे। कर्ज़ा बढ़ता जा रहा था। इसके बाद जॉर्ज को गिरफ्तार कर लिया गया | दाना को देने के लिए उसने अपने रेजीमेन्ट से बारह हज़ार फ्रंक चुराए थे । जॉर्ज को पता चल गया था कि नाना का उसके भाई से सम्बन्ध भी था, तो उसने नाना के शमनागार मे अपना छूरा भोक लिया, चेकिन बह मर नही सका । भादाम द्य,गन इस घटना से किकतंब्यविमूढ़ हो गई और सैबा-सुभूपा कर ठीक करने के लिए जॉर्ज को अपने साथ ले गई। अब नाना ने मफत के प्रति ऐकान्तिक तन्‍्मयता दिखाने का बहाना करना छोड़ दिया । हर समय लोग उसके पास खुले तौर पर आने लगे । बह एक के बाद एक से घन निकाल लेती | काउण्ड इस बात को सुत-सुनकर क्द्ध होने लगा। स्टीनर, मुलिए फोबेरी से जंसे दह निकल गई। सफत उसपर अधिकार करने में असमर्थ हो गया । वह मानो नाना के मनोरजन के लिए एक कुत्ता था किन्तु मफ़त का भी अन्त आ यया | उसका बूढ़ा ससुर सा स्विस नाना के पास आने लगा । मफ़त भाग गया और उसने गिरजे में हैलेन जेक्सन : प्रेम के वन्धन [ रमोना' ] जैक्सन, देलेन ढंट : भंगेठी लेखिका देलेन भेरिया फिरके का जन्म १८ अक्टूबर, १5७३ को अमरीका! में एम्हस्ट लामक रघाल में हुआ। २१ बे की अदरथा में आपने देटेन एटदड इट से विदाइ किया | १८६३ में झापऊ पति का देड्वांत हुआ | ठब तक भाष भपने पति के छाथ जगइई-जगइ तगादला होने पर आाती-जाती रहीं । उसके बाद ही आपने लेसन प्रारम्म किया। १६७ से रुत्यु-पर्यत आपने काफी लिखा | पहले “एच० एच०? द्ले उपनाम से लिखा | बाद में भापने कोलोरेडो स्प्रिग्स के दस्ल्यू० एस० जैक्सन नामक एक बैंकर से विव१३ कर लिया । उसके बार अमरोकी इर्डियनों के प्रदि भापकी सहानुभूति बढ़ती गई | उनकी जमीन-जायदाद को यूरोप से आाए हुए लोगों ने छोन लिया था | भीमतो जेक्सन का मत था कि यइ इसिडियनों के प्रति एक प्रकार का झत्याचार था। १८5४ में भाएने भपना आक्रोश स्यक्त करते हुए 'रमोना! नामक उपन्यास लिया डो बहुत बिख्यात दुध्य। इसके एक वर्ष बाद १२ अगस्त, १८८५ को भाषका सैन फ्रासिसको में देहांत हो गया । इरिश्यन बहु. रैड इंर्डियन कद्दे जावे दें। यूरोपीय लोगों के पहुंचने क पूर्व अमरीका महादेशों में अनेछों ज्यतियां रहती थीं। क्‍योंक कोलम्दत भारत अर्थात इण्डिया दूंइने निकला था, यलती: से उसने अमरीका को इण्डिया बहा और उछके निवा्तियों दो शण्डियन कह दिया | बाद में जब भारत का यूरोपीय बोगों ने पता चला लिया, तब भ्रमरोक्षा के मूल निशसियों को भ्रमरीकन इटिव्यन कद जाने लगा । यूरोप की विभिन्न जातियां अमरीका में जा बसी थी। उन्होंने वहां की मूल जातियों से प्रत्रि घोर भत्याचार किया था | देलेन उन्नोसवीं सदी को लेखिका थीं। उस समय तक ये बटनाएं होती रहती थीं। इसलिए उनडे इस उपन्यास में इत परिस्थितियों का विव- रण भक्यंत विशद रूप में ला गया दे । मेडों पर ऊन उगती ही है और उसे काटा भी जाता है। सिनौरा मोरेनो के फशु-पालन- केर्द में भी वर्ष का सबसे अधिक व्यस्त समय आ पहुंचा था। खूनी मैविसकन युद्धों से पूर्व, जबकि दक्षिण कैलिफोनिया अलग नहीं हुआ था, पथुओं के लिए बहुत अधिक चरागाहे थीं। अब उतनी अच्छी चरागाहें नहीं वी थी, लेकिन विधवा सिनोरा ने अभी तक मोरैनो-परिवार की काफी सम्पत्ति बचा रखी यी। वह बपने परिवार की भूमि को रक्षा के लिए केवल अपने हेतु हो नहीं लड़ती थो। उसके पास एक आया थौ--उसका प्यारा बेटा फेलिपे। वह सुन्दर था । किन्तु माता के कठोर अनुशासन ने उसे कुछ दब्वू 2072:22:2 4४407 74:५-5 22:40 :आी। १. पिक्यगणा4 (प्रद॑ंदा स्रप०६ [2ण:४००) भर ससार के महाव उपस्याक्त बना दिया था । वास्तव में सिनौरा का स्वभाव था ही रोवीता। फ़िलिपे की बीमारी ने सारा काम विगाड़ दिया। सितौरा ध्वस्त हो गईं अपने पुत्र की देख-रेख मे । ऊन काटने का काम फिलिपे के ठीक होने तक के लिए रुक गया। रमोना सिनोरा की प्रालिता वालिका थी। वह भी स्िनौरा के साय किसिपे की निरन्‍्तर सेवा करती रही। धीरे-धीरे फिलिपे का स्वास्थ्य सुघरने लगा। सितौरा के पास रमोना विगत सोतह वर्षों से थी वह बड़ी विनम्र, प्रसन्‍नदितत और कोमल हृदय वालिका थी उसकी जन्मकथा सिनौरा के लिए दुःखद थी। सिनोरा की मर्यादाएं और गर्व दोनों को ही उससे आघात पहुंचता था । रमोना के पिता का नाम था ऐंगस फेइल । वह स्कॉटलैंड का निवासी था) सिनौरा की बड़ो बहित ने पहछे तो उससे प्रेम प्रदर्शित किया, किन्तु बाद में उसे ठुकरा दिया था। क्रोध और अपमान से विश्षुब्ब ऐंग्स मदिरा पीने लगा और उसने पतन का पय पकड़ लिया | झी श्र हो उसका नाम कल कित हो चला। अन्त मे उसने एक अमरीकी इडियन स्त्री से विवाह कर लिया उसके रमोना नामक पुत्री हुईं। एक वार वह उस बालिका को लेकर सिनौरा की बड़ी वहित से मिलने गया। वह अपनी पुरानी प्रेमिका को शायद अपनी वच्ची दिखाता चाहता या। परन्तु तव उस सिनौरिटा का, जो अपने-आप में रहती थी, और जिसने बड़ी विष्दुरता से व्यवहार किया था, दर्प खडित हो चुका था। उसका विवाहित जीवन दु.खों से भरा था। और जब वह थार थी । उसने ऐंगस से यह बच्ची मांय लो जोर गोद ले ली। जब उसका देहान्त हो गया तब उस बच्ची को सिनौरा मोरैनो ने पाल लिया। अब रमोना बडी हो गई थी । वह विलकुल अपनी इंडियन माता जैसी लगती, किन्तु उसके नेत्र अपने पिता जैसे नीले-सीले थे । वह न अपनी सुन्दरता के प्रति जागरित थी, न उसे यद्दी पता पा कि तदुय फिलिये उसके प्रति अग्राघ प्रेम लिए हुए था। उसे केवल इतना ज्ञात था कि सिनौरा को उससे तनिक भी प्रेम नही था। वह उसे पालवी थी, पढ़ाती थी, उतकी देख- रेख करती थी, वह यह सब कुछ कर सकठी थी, करती थी, किन्तु वह उससे प्रेम नही कर सकतो थी, न ही करती थी। आपएिर वहू दिन आया जब ॒सिनौरा ने पुत्र के पूर्ण स्वास्य्यलाम की घोषणा कर दी। भेड़ों की ऊन का कटना प्रास्म्भ हुआ ।* प्रुपालन-फेल्ध के सब कमंचारी सल्द हो गए इंडियनों का एक दल अपने मुतिया के पुत्र ऐलेस्सड्रो के साथ ऊत कटाई में मद करने आ यया। ऐज॑स्डैंड्रो एक सझबत सुन्दर युवद्ध था| काम थुरू होने के कुछ दी मय बाद झिलिपे की तवियत उस गर्मी में विमड़ले लगी । वह थकान से फ़िर बुसार में पढ़ ग्रया और उसकी हालठ वदुत रयादा खराब हो गईं। घर-मर को लगा जैसे दढ मौत के करराव पहुद्र यया था। डहिस्तु भाग्य उसके साथ था। धीरे-धीरे सकद दूर हव लगा और वह फिर अच्छा होने लगा। किन्तु धस्पा छोड़ने में उसे काफ़ी सम लगे गया। उमड़ी अनुपरस्यिति मे, कई सप्ताह 4क, सबको अपनी योग्यता, तग्नता और कौयल से प्रभाविड करता दुआ, ऐलस्लैड्रों ऊन कटाई के काम वी देखरेख करता सहा ॥_ रा इस कार्उ-देला में बढ़ी हुआ जिसकी समायता थी । ऐेलेल्लड्रों मोता पर दा दो गया जौर धौरे-दौरे रमोना नी उसऊे प्रेस को बढ़ावा देते ली । /न्‍्दर में बद्‌ इस्थि ह। 20040 ७४. भ्र्३े भुद्विया का सुन्दर पुत्र अपने भावादेग को अवरोधों में नही रख सका और उसने अपना प्रेम रयोना पर प्रकट कर दिया । रमोना ने उसकी पत्नी बनना स्वीकार कर हिया। क ज्योही उन्होंने विभोर होकर आर्लिगन किया, सिनौरा ने उन्हें उस अवस्था में देस लिया। सिनौरा मैविसकन थी। उसके क्रोध का अन्त नही रहा । उसने सुरन्त ही रोना को ऐलेस्सेड्रो के बाहुपाश से अलय कर दिया। उसने आझा की कि अयले दिन वे लोग उससे अपने इस व्यवहार के लिए क्षमा मांग लेंगे । सिनौरा छी जानीयता का गे छत बात से बहुत आहन हुआ कि रमोना ने एक इंडियन से विवाह करना निश्चित कर लिया था। यह उसकी दृष्टि में एक घोर अपराध था । तब उसने रमोना को उसके जन्म जारी कया सुना दी, ताकि लांधन मैक्सिकनों पर न लग सके । इस कहानी से रमोना और भी बल मिला। उसको यह ज्ञात हो गया कि उसऊ्े रक्त मे इडियन अश भी था, गयोक़ि उसको भाता स्वयं इडियन थी। उिनौरा ने रमोना को उत्तराधिफार के सारे युददो से वचित कर देने की घमकी दो, किन्तु वह रमोना को विचलित नही कर सकी । रमोदा ऐस्सैट्रो से विवाह करने के लिए दृढ़ थी। धीरज से वह अपने प्रेमी के लौटने प्रतीक्षा करने लगी, जो अपने पिता को विवाह के बारे में सूचना देने घर चला गया था। जैकिज़ कई दिन दीत बएं। ऐजेस्सैड्रो नही लौटा । रमोना को धीरे-धीरे यहो रपये हो गया कि वह कहीं मारा जा चुका था, अन्यथा वह अवश्य लौटकर ,अता ! वैज्ना पे रमोना का मन फटने लगा और वह अकेली रहने लगी । वह अपनी स्मृति को बैजग रखने के लिए उन स्थानों पर घूमने लगी, जहा वह अपने प्रेमी से एकांत में मिला कैली थी। एक दिन न जाने बयों शाम की घिरती छायाओं में, उसे यह लगने लगा जैसे अस्नेका प्रेमी लौट आया था, और एक एकान्त मिलन-स्थल में उसकी प्रतीक्षा कर रद्ा धा। प्रेम को यह भाषा बड़ी दु सह होती है, परन्तु अनुभूति के माध्यम से प्रेमी उसे समझ मैते हैं। उसे लगा कि यदि वह वहा जाएगी दो उत्ते अदश्य ही ऐलेस्सड्रो के दर्शन होंगे। नह सचमुच उघर ही चल दी। एक व्यवित उसे वहा दिखाई दिया। दुखों की छाया उसके अपन पर स्पप्ट थी । वह देखकर भी उसे पहचान नहीं सक्री। वह एकंस्सैग्ेही या! '* अन्त में रमोना को उसने अपनी कहानी सुताई । अमरीका में आकर बसनेवावे वृरेपियदों ने उसके गांव को बरदाद कर दिया था। उनके घोड़े, गाय और बैच चुरा विए पे। इण्डियनों को तवाद करके भगा दिया था। उनके घर लूटे जा चुके थे । और यह सब उस कानून के नाम पर हुआ था ! से 5३ ऐजैस्सेड्रो जो पहने मुख्तिया छा पुत्र था, जब न उसके पास घरदी थी, न पैसा था। बहू इतने आरामों से पली, इतसी कोनल और जनुमदशील रमोना वो अपनी पलो इनाकर कैज़े ले जा सकता था ? रमोना युनती रही । ऐलेस्थैड्रो दी एक भी यात उसे विचलित नहीं कर सदी । जब ऐलसैड्रो आनाकाती करने लगा तो रमोना ने भी डृढ़ता से अपना निश्चय सुना दिया प्र्ड संवार के महान उपस्यास कि यदि यह उसकी पलनी नहीं बनेगी तो साथुनी हो जाएगी । अर में ऐलेस्सैों को स्वीकार करना पढ़ा । दे सैनदीगो चसे मए और बढ़ीं उठ दोतों का वियाह हुआ) अब रमोना ने अपना नाम बदल लिया । एंलस्सेड्रो उसे मजेल्ला कद करता था। रमोना को मजेल्ला नाम प्रिय था । पुराने जीवन का कोई भी निशान बाकी नहीं रद्दा। वे रन परास्ववेल नामक करबे मे जा बसे । और दोनों ने नया जीवन प्रारम्भ जिया । ऐसा लगने लगा कि सुस्े लोट आए । ऐल॑स्स ड्रो ने अपना पयुपालन-केस् बना लिया और युछ ही दिन बाद उनके यहां आनन्द को ट्विलोर दौड़ गई । रमोना ने एक नीली क्षाप्षोयाली बच्ची को जन्म दिया । वह मत ही मन बालिका को 'देशकर मुस्घ हो गई। फिन्‍्तु यहू हु भी अल्यतालिक प्रमाणित हुआ । नये अमरीकी बढ़ते चले आए। ओर ऐलेस्सड्रो को अपना घर और जमीन बेचने को मजबूर होना पड़ा | एक बार फ़िर वह इप्डियनन्यरिवार वेघरबार हो गया । ऐलस्सड्रो को नई बिन्ता थी--एक ऐसी जगह दूद़ी जाए, जहां ये निर्देय अमरीकी ने मिलें। रमोना ने फिर किसी कस्बे भे बसने की सलाह दी, किन्तु ऐलस्सड्रो ने उसपर तनिक भी घ्यात नहीं दिया, पयोकि रमोवा उसे मझदूर वनाना चाहती थी, ताकि काम" दती का जरिया पवका बना रहे। ऐलंस्सैड्रो का ध्यान सैन जैकिटो की पर्वतत-श्रेणियों की ओर गया। और वह अपना परिवार लेकर वहीं बसने चल पड़ा । यात्रा बहुत लम्बी थी। भयानक ठंड घी।। मार्ग में ऐसा जबरदस्त तूफान आया कि वाप-बैटी और रमोना, तीनों ही घिर गए । जिन्दगी के लाले पड़ गए और मौत अब करीब थी कि किस्मत ने साथ दिया। यात्रा करते हुए एक अमरीकी परिवार ने दया की भावना से विवश होकर उनके प्राणों की रक्षा की। अन्त में पति-पत्नी सबोबा नामक ग्राम मे वस गए। ऐसा लगा जैसे फिर अच्छे दिन लोट आए थे परन्तु बालिका स्वस्थ नही हुई थी। सारी ग्रीप्म ऋतु बीत गई और इण्डियन एजेंसी के अमरीकी डावटर की लापरवाही से अन्त में वह इस ससार से बिदा हो गईं। ऐशलंस्सैड्रो और रमोना पर मानो वज्मपात हुआ। वे दु.ख से व्याकुल होकर पर्वतों के एकान्त में चले गएं।और वही अपने दिन काटने लगे। घी रे-बीरे दुःख कम होने लगा और उनके यहां एक और बालिका ने जन्म लिया । पति-पत्वी ने उसका नाम रमोना रखा । ऐलेस्सैड्रों के साथ हुए. अत्यायारों ने|उसमें एक कदुता भर दी थी। एक बार अपने आवेश्य में उसने एक अमरीकी का घोड़ा पकड़ लिया और उसे हाक ले चता। गोरे अमरीकी ने देखा और निहायत ठंडे खून से उसने पिस्तोल निकालकर इण्डियद के गौली मार दी। ऐलेस्सैड्री ने अन्तिम अत्याचार सह लिया और सदा के लिए मुक्त हो गया । र्मोना की जीने की इच्छा समाप्त हो गई! अब वह विधवा हो गई थी। उसे बुखार ने पकड़ लिया। किन्तु फिलिपे की प्यास बुझ्ली न थी । उसने सिनौर के मरने पर अपनी प्रिया को दूढ़ना शुरू कर दिया था। उसे रमोता का पता चल गया । वह रमोना ओर उसकी बेटी को अपने पशुपालन-केन्द्र मे ले आया। यहां उसने रमोना की ऐसी सेवा की कि वह इतज्ञता से कुक गई | और अन्त में उसको पत्नी बन गई । तब वह सैक्सिको खोट गएं। उतके कई संतानें हुईं, किन्तु सबसे अधिक प्रिय, सबसे बड़ी रमोदा थी, जो इण्डियन ऐलस्सेड्रो वो बेटी थी । प्रस्तुत उपन्यास में इभ्डियनों पर कानून के ताम पर होनेवाले अत्याचारों का वर्णन बहुत ही विश्द हूं। इसमें हमें बड़े ही हुक्यद्रावक दृश्य मिलते है । अपने समय में इस रचना ने बड़ी हो हलचल सवा दो यो। आज भी इसका महत्व कम नहीं है, क्योकि इसमें एक युय सजोव होकर बोलने लगता है । ऐंल्कॉट : एक परिवार [लिटिल बीमेन" ] ेह्कोंट, लुईंजा में : अंग्रेवों लेखिका लुईजां में ऐेजकॉट का जन्म पैन्सिल्ैनिया (भमरोका) में, जमंनटाइन में २६ नवम्बर, १८३० को हुछ | ध्ापके पिट़ा एमॉस औन्‍्सन ऐल्काट स्वयं बड़े बौद्धिक ब्यजित थे, परन्तु उनमें परितार-पालन को शक्ति समुचित नहीं थी | उनकी सरीमंत पुत्री लुडंडा जब १६ व८ की हुईं तो भागपर सादे परिवार का बोक भा प्रथ | भाप स्कूज में पढ़ालीं, और सिलार-कदाई करतीं) कॉन्कर्ड (मैसेचुईट्स राज्य) में जा वे लोग अत्र रहते, भाष घरेज्‌ कान भी करतीं) आपका लें खन तब प्रारम्भ दुआ जय भाषने पनोपाजन के लिए पत्रिकाशों में लिसना आरम्भ किया | १६३२ में आप युद्ध में नर्स बनकर बाशियटन गई | वहां भय का स्वास्थ्य दिगड़ गया भौर १८६६ में भाप यूरोप चलो यई जड़ भाप १८६७ में लौटी तो आपने 'लिटिल बोनेन' (एक परिवार) नामक उपन्यास लिखा, जिसमें भापने भपना और भपनों बढ़िनों को सात्मकश्य को कशझनीरूप दिया। आप निस्‍लर भप्ने परिवार का प्रोषय करती रहीं। भारने विवाह ही नहीं किया | आपने ऋपना जीउन भपने पिता, अनाथ भवराओ-भांबों का पलन-प्ोपण करने में लगा दिया। ६ माबे, (सम को पिता का झन्तिम बःनारों में सेग्रं कते सन चरे हुए जय के कारय भाषव बोरटन में रद के लिए सो यई। +लिश्लि दीनेन' (९४ परिद्र) एक मदान उपन्यास माना जाता है । मा॑-परिदार बँसे निस्मन्देह सुखी था। पिठा का नाम भाच या, इसलिए परिवार भी इसी नाम से पुकारा जाता था। गरीबी आई, परिश्रम को मार टूटी। पिता मार्च यूति- पन सेनाओ के साथ चला गया, ढिन्तु मार्च-परिवार की लड़कियों का साहस नहीं टूटा । मेंग, जो, देख ओर ऐसी अपने काम में अडिंग बनी रद । दे अपनी माता हो मार्मी बढ" भी थी बड़ा दिन आ गया लोग एक-दूसरे को मेंट देने सगे । तेकित पताभाव के कारण लडकियों ने अपने लिए तो झुछ नहीं जिया, पर उन्होंते मार्मी के लिए भें सरीद दी पड़ोम्र से एड परिवार रदता या । बढ़ बहूत दी अधिक दरिद था। लड़कियों ने वहां अपना स्यैटार का भोजब फटुचा दिय। जच्छाई ने अपना घुनकर फ़ दिखाया । द्ठोस में दी थो लारिन्य नामेऊ एक यनी व्यक्ति भी रहते थे । को दादत का निमस्वण् निदवाया। थी सरिन्य उम्रझर आदमी थे। सौधे उतहा पौज है पिएं: ७०८८१ ([.2353 33| 2४८८४) भल्हे उन्हूँ।ते बड़े दिन एक परिवार ५७ था, जिस्ते जॉन भ्रुक पढ़ाया करता या ॥ जो ने लौरी से दोस्ती करनी चाही, क्योकि वह डालक अकेला रहता था। पर जो की बहिनो ने इसपर बधन लगा दिए ओर दोनों सग- संग नही खेल सके । मार्च-परिवार को ये बहिनें, केवल अच्दी ही हों, ऐसी वात नहीं थी । उनमे अपने दोप भी थे। सुन्दरी मेग स्कूल के बच्चों को पदती थी और कभी-कभी वह असन्तुष्ट हो जाती थी। जो मे लड़कों का सा स्वभाव था और आसानी से दह क्रुद्ध हो जाती थी। जब भी उसे बूढ़ी चाची माच का ध्यान आता, ऐसा विश्लेपतया हो जाता । वह उसके साथ रहती) के बाल सुनहले थे। स्कूल मे पढ़ती थी। किन्तु जैसे उसमें सहजता नही थी। बँंय घर ही देख-भाल करती थी। बह सेव स्तेहपूर्ण व्यवहार करती और विनम्र स्वभाव की थी। भाच॑-परिवार जब पार्टी में निमन्त्रित होता तो यह एक विशेष घटना वन जाती। जब श्रोमती गाडिनर ने दोनों बढ़ी लडकियों को अपने यहा निमन्त्रित किया तो मा्॑- परिवार के दोडे-से धर में काफी सनसनी-सो फल गई। पार्टी मे जो को अपना पड़ोसी सौरी मिला और गहरी मित्रता हो गई। इसके वाद जब लौरी बीमार पडा तो जो बिना क्र्सी तकल्लुफ के उसके घर चली गई। लौरी सकोची स्वभाव का था। लजीला था । उसके विशाल भवन में जो उसका मनोरजन करती। उसके व्यवहार से मार्च-परिवार के प्रति सबको स्नेह हो गया। यहा तक कि वृद्ध थ्री लरिन्स भी प्रभावित हो गए । उन्हे वेथ बहुत प्रिय थी और जब जो से उन्हें ज्ञात हुआ कि उस बालिका को सगीत बहुत प्रिय था, हो उन्होंने बैथ के लिए एक वियानो खरीदकर भिजवा दिया / अध्यापक जॉन बुक को युदरी भंग ही सबसे अधिक भाती थी। लोरी को लगने लगा कि शायद दोनों में कोई अैम-थ्यवहार जाय उठा था । थों ही दिन आनन्द से व्यतीत होते रहे । परन्तु अन्धकार अपना काम करता रहता है और एक दिन उसकी छाया स्पष्ट दिखाई पड़ने लगी। श्रीमती मार्च के नाम एक तार आया, जिसमे लिखा था, “तुम्हारे पति बहुत बोगार हैं, तुरन्त आओ" श्रीमती मार्च ने अपने मन पर काफी काबू किया। लड़कियों ने भी यही दिखाने किया किया कि वे घब्रराई नही थी ! श्रीमती मार्च ने उसी समय जाना निश्चित कर । स्् लड़कियों ने अपनी माता मार्मी की भरपूर मदद करने की कोशिश की । जोने उबसे ओरदार तरीका निकाला। उसने अपने सुन्दर केश--अपनी लम्बी लटें--पच्चीस डातरों में बेच दिए क्योकि घन की बहुत अधिक आवश्यकता थी । श्रीमती मार्च युद्धक्षेत्र की ओर चल पड़ी । जॉन बुक साथ में गया । लड़कियां घर “है गई और भगवान से कुशल-मगल के लिए प्रायता करने लगी। छोटी बैथ पड़ोस भे एक मरीज की सहायता करने जाने लगी । मरीज के जिस्म मैं सर्वत्र ताल चुकत्ते पड गए ये। छूत की दीमारी थी। सेवा-सुथूपा का परिणाम यह्‌ ईैमा कि देय को भी छूत लग गई और उसे भी ज्वर आने लगा वह बहुत ज्यादा बीमार दी गई और उसकी डिन्‍्दगो को खतरा पैदा हो सया । डॉक्टर ने हताग्य द्दोकर कहा कि श्द संगार के मद्रात उपन्यास श्रीमागी मार्च को बुद्ध निया जाए । किम्तु जंस एड समरहार हो गया। खीमी मार्च जब ध़ह़ सोटकर जाई, लड़ी बी धदिया पदुए मे कहीं अधिद सुपर चुडी घी । फिर बड़ा दिल आ गया। अंस पड़से जंगी हदस्‍्ग तो नहीं हो गडी, परन्तु अब दिल्वर पर पढ़ी सहीं मो । मुयप्ेत से विखा मार्च खौद आया । परिपार में आनन्द छा गया जोर बढ़े दिन की दावत में सरिस्ग-परिवरार, थ्रो बुक त्या सद आन से सम्मितित हुए। बाय दिये नहीं रही । जात इक ने संस से गिउाद् डी बाय चताई। चातों मार्च मे सुना, तो ताराज दो गई, मेंग को घमड़ी दो हि बे उसे अवग कर देंगी, यह भारी हो गई तो उगे जुएय भी लहीं घिलेया, सेडिन मेंग थोड़े नहों हृटी और उसी आज पर अही रही । मार्च -नटियार ले इस प्रस्गा रे को स्वीकार यो कर लिया, हिन्‍्नु तोन बर्त के लिए ठात दिया? सीन पर्ष स्यत्ीत हो सए। मार्ब-यरियार को सड॒कियां बड़ो हो गई । मेंग का हुक से दियाह हो गया । पहले तो झुद परेतू स कट आए, ढिस्तु शी प्र द्वी परवियली ने गिरती जमा सी और आनन्द से रहने सगे जो अब सादित्य में रुचि सेने सगी थी। यद् सिसती भी थो । ने केयद यद उत्के आनन्द का एक साधन पा, बरन्‌ इससे उसड़ी आय भी बड़ो । ऐमी की रुचि चित्रकुता से पी। वह बडो सुन्दर स्त्री बन गई थी। बित्र बनाठों और समाज में उसके प्रति लोगों में दिलचस्पी दिसाई देने लगी । बैथ ने अपना पुराना स्वास्य्य फिर कभी नहीं प्राया । सारे परिवार को उसके प्रति सहानुभूति थी।सव जानते थे कि व अधिक दिन नहीं जिएगी। इसलिए सब उसे अपना स्नेह देते थे। मार्च-परिवार की एक परिचित मदिला यूरोप जा रही यथीं। उन्हें एक घारमिक साथित की ऊरूरत थी। जो का वियार था ऊि उछोफो दे इस यात्रा में सबिनी बताकर ले|जाएगी लेकिन उसके चचल स्वभाव के कारण उन महिला ने उसे न चुनकर, सुन्दरी ऐमी को चुना । इससे जो का हृदय टूक-डूक हो गया। जो अपनी मार्मी और वँथ के साथ घर ही रह गई और कुमारो ऐमी यूरोप चली गई। किन्तु अब जो व्याकुल रहती / उस्ते पता था कि लोटी उससे प्रेम करता था। शायद वह उससे विवाह का भी प्रस्ताव करेया--जो इससे परिचित थी। किन्तु उसके द्वदय मे लौरी के भ्रति वही स्नेह था, जो एक बहिन को अपने भाई के प्रति होता है। इसलिए जो ने अपनी समझदार मां से परामझे किया और अपने भाग्य की परीक्षा करने वह उससे आज्ञा लेकर न्यूयार्क चली आई | श्रीमती कके एक बोडिंग हाउस चलांती थी, जहाँ कई लोगों का प्रबन्ध करना पड़ता था। उन्दहीके यहां जो को गवर्नेत का काम मिलगयया। * यद्यपि जो अपनी स्वतन्त्रता चाहती थी, फिर भी पहले उसे परिवार से विछुड़ते एक परिवार भ्र्ध का दुख सताने लगा। किन्तु उसके साहित्यिक जीवन ने उसे सांत्वना दी । उसको मित्रता एक जमेन अध्यापक प्रोफैसर फ्रैडरिख मेयर से हो गई ।,वह व्यक्ति बड़ा अच्छा था। उसके सत्संग वे धीरे-धीरे जो के मन से घर की याद दूर कर दी शीघ्र ही जो को एक प्रकाशक मिल गया जौर उसकी कहानियां छपने लगीं। जो को इससे बड़ा भारी सन्तोष प्राप्त हुआ। किन्तु अब जो के घर लौटने का समय झा रहा था और उसने जत्यन्त भायलस हृदय से प्रोफैसर मेयर से विदा लो । घर पहुचठे ही उसने लौरी को पाया, जो बड़ी उत्सुकता से उसके घर लोटने की प्रदीक्षा कर रहा था लौरी ने उससे विदाह का प्रस्ताव किया। जो ने अस्दीकार कर दिया, बयोकि वह उसे भाई समझती थी। लोरी की पोड़ानुर अवस्या ने जो के हृदय को स्याकुल कर दिया। अपनी वेदवा को भूलने के लिए लौरो अपने पितामह श्री लॉरेन्स के साथ यूरोप की यात्रा पर चला गया और वहीं उसको ऐसी से फ़िर मेंट हुई इधर धर में दु.ख को धटा और गहरी हो गई। बैय को धीरे-धीरे यह पता चल गया कि वह अधिक दिनों जीवित नहीं रह सकेगी। और सचमुच वसनन्‍्त आते-आते वह इस संसार से चलो गई। उसके बाद यूरोप से समाचार आया कि लौरी ने अपनी निराधा से अपने को मुक्त कर लिया था और ऐसी से विदाह का प्रस्ताद किया था और घी भर ही दोनों परिणय के सूत्र मे बंध जाने दाते ये । जो अब एक सफल लेखिका मानी जाने लगी थी | किन्तु जीवन में दह अपने को एकाकिली अनुभव करठी। प्रोफैसर मेयर उससे मिलते थाया । ठद जो ने अनुभव किया कि बह जिस जीवन-सभी की प्रतीक्षा करती थी, वह यही था। शी ही दोनो का विवाह दो भया और उन्होने लड़कों के लिए स्कूल खोल शाला । छोटी-छोटी बच्चियां जब ओरवें हो गई थीं। अब उनके अपने बच्चे थे । वे उन सब बच्चो वी देसभाल करते थे जो उनकी देख-रेख में थे। प्रेम और सज्जनंत्ा के जो बीज उन्हींने जीवन मे दोए थे, अब उन्हीकों फसल उनके हाय आा गईं थीं। वेदनाए जो आई थीं, उन्होंने उन्हे सवेदवा का अक्षय पा5 पढ़ा दिया था । रु अस्तुत उपस्यास में छड्कियों का मानसिक चित्रण किया यया हूँ। दुख से हो ममुष्य में वास्तविरू पंर्प कॉ जन्म होता हूँ, यह प्रकट करना इसका प्येय रदा है छेखिका ने जोवन के उतार-घद्ावों को पारिवारिक परिपारव में रफ़कर देता है, ताकि सापारण में से हो इस सत्य की पुष्टि हो ६ इससिए यह उपस्पास अत्यम्त प्रभोतारक दिद हुआ है । टॉमस हार्डो : अमागिन [टेस झॉफ द ड्यूवंबिले* ] हार्डी, टॉमस: अंग्रेज़ी उपन्यासकार टॉमस हार्डी का जन्म २ जून, १८४० में इंगलेंड में डोरचैस्टर नामक स्थान के निकट हुआ | अधिकतर शिक्षा अपने-प्रप्र पाई | एक स्थापत्यकार के दफ्तर में जवानी में काम किया, भौर फिर छवतंत्र रूप से इमारतें बनवाने का काम किया। १८७१ से १८४७ तक आपने कुद्ध उपन्याप्त प्रकाशित कराए | उनेे अत्यंत ख्याति प्राप्त हुईं | १८६७ के बाद आप कविता लिखने में लग गए । भाष डोरचेरुटर में दी रहते थे भौर ११ चनवरी, १६२८ को वहीं आपक्रा देहांत हुमा। ह्वार्दी के उपन्यासों को भांचलिक कहा जा सकता दे। आपके उपन्यासों में निराशा मिलती है । भाप यह मानते ये कि मनुष्य का जीवन कुछ विरोप धटनाओं कि मोड़ से बदल जाया करता दे । टेस झा द डयूबंर्विने (अमाशिन) पहली बार १८४६ में प्रकाशित हुआ। यह उपन्यास अपनी तीइय मार्मिकता के कारय भत्यंत्र विस्यात दे। मई का सुद्दावना महीना था। शाम हो चुकी थी। जेक दर्वेफील्ड अपने घर णा रहा था। वह एक अधेड़ आदमी था और उसका निवास मार्लेट ग्राम में था। वह एक भोंपड़े में रहता था। उसका परिवार काफी बड़ा था। गुशर-यसर काफी मुश्किल से हो रहो थी। अड्डोस-पड़ोस में वह तरह-तरह के काम करता था और अपनी रोजी कमाता भा। “ आज वह कुछ घराव पी आया था। रास्ते में उते दर्वेफील्ड का पादरी मितरा। जैक को यद्‌ देखकर वहुत आरचये हुआ कि पादरी ने उते प्रधाम किया। जैक जैसे मामूली गरीद आदमी को थांव कया इर्ज़तदार पादरी प्रणाम करे, यद बात क्या कम आश्चर्य डी थी? पादरी ट्विघम को पुरानी गायाओं की खोज करने का शौक था। ब्लैकपूर की उपजाऊ धाटी की कितनी ही कहानियां यह इकट्ठी किया करता था । उसने जैक को “सर जांत' कहकर पूकारा। चौरे-पी रे पादरी ने बठाया हि वह डयूब॑बिले के श्राचीन दाजजुल का वशज था; विनियम के समय के, जो हि विख्यात विजेता था, एक नौमेत सामत के दश्य में उसके मोरवमय पूर्व वों का उल्लेख था। जैक इस वाद से अत्यन्त विचलित और ग्रावित दो उठा । उसमें एक अजीद सर्द बढ़ गया । परिवार ने सुना ठो उसमें भी आश्या का सा धचाद हुआ। ८... #फफ'सफलन्याक (8००9 पब्घ्त)) अभागिन १ अगले दित, जैक की पत्नी को ड्यूवेविले नामक एक परिवार का स्मरण हो अग्या, जोकि निकट ही ट्रैद्रिज नामक स्थान में बसा हुआ था। जक की पत्नी ने तुरन्त यह जान लिया कि वह परिवार उसके पद्ति से सम्बन्धित था । उसने अपनी बड़ी बेटी सुंदरी ठेस को वहा भेजना निश्चित किया। हो सकता था कि वह परिवार अपने सम्बन्धों को याद करे और इन यरीबों की कुछ मदद करे । परन्तु इस परिवार ने तो झयूबविले नाम वैसे ही रख लिया था, ताकि उतको कुछ सहूलियत हो जाए। इन लोगो का जैक से किसी प्रकार का भी रक्तन्‍सस्वन्ध नहीं था। टेस को जाता पड़ा। घर को हालत खराब थी ही । अग्रले दिन वह चेज ज़िले में श्रीमती ड्यूब॑विले के घर पहुद्दो । बहुत विशाल सवन या । बाहर हरे मैंद।न पर ही उसे एक मुवक मिला, जिसने अपना नाम ऐलेक ड्यूबंविले बताया। ऐलेक ने टेस का सौन्दर्य देखा तो वह तुरन्त उससे आकपित हो गया । उसने उससे कई प्रश्न पूछे, किन्तु उस्ते अपनी माता के पास नहीं ले यया । इर्बेफोल्डसरिवार में कुछ ही समय दाद एक पत्र आया, जिसमें टेस को नौकरी पर रखने की यूचदा थी । काम यह था कि यह श्रीमती डूयूबेविले की फाख्ताओं की देख- रेख करे पत्र में लिखा था कि टेस तेगार हो जाए। एक गाड़ी भेजे दी जाएगी, जिसमें बहू अपना सामान रख लाए। देस तैयार हो गई॥ जिस दित जाने का समय आया, स्वय ऐलेक जपनी अच्छी भाड़ी हाक लें आया जिसमें एक उम्दा घोड़ी जुठी थी। अपने घर ले जाते समय उसने टेस को छेड़ा, क्योकि गाड़ी जब पहाड़ी से उतरती थी तो टेस भयभीत हो जाती थो। बह हुसता रहा। बहां पहुचकर टेस को पढ़ा चला कि श्रीमती ड्यूबविले अधी थी । वह उनके सामने बहुत कम ले जाई जाती। टेस का काम बहुत हल्का था। शनिवारों को वह बाकी नोकरों के साथ बाड़ार मे खरीद-फरोख्त करने चलो जातो या नृत्यों मे भाग लेती एक शनिवार को जब वे लोटे तो और दिनो की अपेक्षा अधिक देर हो चुकी भी 3 औरतों में चख-चंख चल पड़ी, एक अपना भुस्सा ठेस पर उतारने लगी। उसी समय ऐलेक घोड़े पर सवार उधर से निकला । उसने टेस को धोड़े पर चलने का निमत्रण दिया । टेस प्रसन्‍्तत्ा से उसके साथ चली आई। पहले की भाति उसने ठेस से प्रेम प्राप्त करने को चेप्टा की॥ टेस कुछ घबरा गई। बहू थक भी गई थी । उत्तर ठीक से नही दे सको । वह चलते-चलते मोड़ से आगे निकल आया था। अब दिश्वाज्ञान के लिए उसे नीचे उतरना पड़ा। टेस भी उतर पढ़ी । बह इतनी थक गई थी कि उसकी आंखें भूपक गईं और वही पथ पर सो भई। ऐलेक को अपनी वासना पूर्ण करते का जवसर मिल गया । ट्रन्ट्रिज में टेस को आए चार महीने हो चुके थे । अक्तूबर छा महीना था। टेस अपनी डलिया एक हाय मे लटकाए, दूखरे मे अपने सामान का बंडल लिए अपने गांव मालंट छोट चली । ऐजेक फिर अपनी बाड़ी लिए उस रोकने बाया, लेकित बह उसे मना नहीं सका । उप्तने उसे कभी प्यार नहीं किया या, न वह उसे कभी प्यार कर सदी थी) हरे संसार के मद्ात उपस्यास जब वह घर पहुंची, उगने गारी दु रा-मरी कहानी अपनी मां को युवा दी । बह ऐसेक से डरती थी, लेकिन यह विवश थी, इसलिए उसने ऐलक के सामते समर्पण कर दिया था, कयोकिः यह उसके दाणिक सद्ब्यवह्वार से अम सें पड़ गई थी। वितु उसे उससे घूगा थी, इसलिए वह अब घर सोट आई थी। एक यर्ष बीत गया। उसी दुर्घटना के फलस्वरूप टेग ने एक शिशु को जन्म दिया। झिप्रु में निबंलता अधिक थी, उसका स्थास्थ्य भी अच्छा महीं घा। परंतु टेस चाहती वो कि उसका बप्तिस्मा हो जाए॥ उसी राठ शिशु की हालत बहुत विगड़ गई और टेस आधंवाओं रे प्ररत होकर उसे सेफ़र उसी समय पादरी के पास अप्तिस्मा कराने ले गई। प्रात: होने से पूर्व ही शिशु का देहांत हो गया । पादरी ने उमड़ी अतिमस दिया ईसाई धर्म के अनुरूप करने से इकार कर दिया । इसके बाद टेस ने मालंट ग्राम छोड़ देने का निश्चय किया, लेडिन मई तक उसे सुयोग प्राप्स नहीं हो सका । अंत में उसे एक पत्र मिला जिसके द्वारा उसे श्ात हुआ कि दक्षिण वी ओर कई मोल आगे एक डेरी थी, जिसमें एक ग्वालिन की जरूरत थी। टैल्वोय्रेज़ डेरी का आकपषंण टेस को वहां खींच ले या । अब टेस के लिए नई जिदगी शुरू हुईं। वह सुश थी। डेरी का मुतिया किक था। उसकी पत्नी टेस से प्रसन्न थी और उसीकी उम्र की और भी लड़कियां वहाँ खातिनें थीं। थे सब॑ भी दोस्ताना व्यवहार से कायम लेती थीं। टेस गायों की सेवा में काफ़ी कुशल हो गई। धीरे-धीरे पुरानी कप्टकर स्मृतियां उसके मस्तिष्क से दूट हो चलीं। निकट ही सम्सिन्स्टर मामक स्थान था। वहां क्लेयर नामक एक बहुत ही शद्धालु और भक्त प्रवृत्ति का पादरी था। उसका पुत्र एन्जिल बलेयर कृषि का विद्यार्थी या। आजकल वह टैल्वोथेज में रहता था। उसके पिता के विचार ऐसे थे कि उसकी कट्टरता ले अन्य पादरियों को भात्ती थी, न उसके पुत्र ही उससे सहमत होते थे । एन्जिल को उच्चवर्ग से कुछ घृणा थी, इसीलिए बह गांव में रहता था । वहकुछ दिन अध्ययन करने के बाद, स्वम खेती करना चाहता था, अपना काये बनाना चाहता था जि बह टेस के प्रति आकर्षित तो हुआ, किंतु उस आकर्षण की प्रेम के रूप में परि- बतित होने में काफी समय लग गया | टेस के साथ की तीन अन्य खवालिनें भी एल्जिल के प्रति आकपषित थीं। किंतु एन्जिल का व्यवहार टेस के प्रति पक्षपात और सहृदयता वा होने लगा और स्वयं टेस ही नहीं, बाकी ग्वालिनें भी इसे जान गईं। किंतु वे लडकिया अच्छी थी, और उनमें से किसीमें भी इस वजह से जलन पैदा नही हुई। एन्जिल ने में टेस के संमुख्त अपना हृदय खोल दिया। वह टेस से विवाह करनी चाहता थः टेस उससे स्वयं बहुत प्रेम करने लगी थी, कितु विदाह के लिए वह 9 हुई। ह * इस बीच एन्जिल अपने मात-पिता को अपने (कण “"ढ यद्यपि माता-पिता उसे किसी अच्छे कुल की कन्या से विवाहित किर भी उन्होंने अस्वीकार नहीं किया और उन्होंने उसे . .- ! अंत में टेस ने उसकी प्रार्यतराओं से भुककर ध रूप की घुटन [गौस्टा बलिय' [ लागएलोक, सेल्मा ; खीडिश लेखिका सेल्मा लागरलोफ का जन्म २० नवखर, 'रभ्८ को स्वीडन में मार्याका में हुआ। वार्मलेंड प्रंत, अपनी जन्मभूमि का मर्णुर आपने अपनी पुस्तकों में बहटत दी अच्छी तरह किया है | लैण्ड्सकोना में आए अध्याए्का हो गई और अपने लेखा से कमाने योग्य होने तक (१८६४ तक) दत्त! रहीं | प्रस्तुत उपन्यास के बुद्ध झंशों पर दी ऋापकों सादित्विक प्रतियोगिता हैँ पुररकार फ़िला। आप अनैक शाषाओं का शान रखती थीं। आने इटली, पैलैं- स्टाइन और दूर की भी यात्रा की, कितु आपने अपने देरा का ही सबसे अच्छा चित्रण किया। १६०६ में आपकी साहित्य के नोबेल पुरस्कार मिला । १६२१४ में स्वीडिश अकादमी को प्रथम मदिला-सदस्य बनों। १६ मार्च, १६४० को आपका देहात चुप । 'मौस्ट बलिंग' (प की धुटन) में मनुष्य बी सुझ की दृष्णाऔर वास्तविक आनंद के संगपे को चिजित किया गया है | जनजीवन भौर बिलासी शोपकों का भी चित्रण है। रद परिण! एक दाप पुण्य के बी/ड भटकता प्रायी है, छिछका विश्वास, श्रद्धा और ममता ही उद्धार करते दें। अपने मानसिक विश्लेषों के कारण यइ उपन्यास बहुड़ गछ मदस्व रखता है | स्वीडन भें वार्मलेंड का नाम अपनी लोहे को खानों के कारण विश्यात था ) वैसे यह धरती ऊमसर थी । पौढ़ो दर पीढी इसका यही वर्णव बहा चलता चला आ रहा है । किसी समय सचमुच यहा लोहा निकाला जाता था और उससे कुछ लोग अपार धत चैदा करते थे । उन धनिको के यहां अतेक आश्रित रहते ये। योद्धा लोग आश्रय खोजने भाते और आनन्द से दहां जीवन बिताते थे । वे अपने आश्रयदाताओं ढंग भतोरजन करते, उन्हें हंसाते, और अडिण मेहमाद बनकर खाते-वीते । योस्टा वलिग भी ऐसा ही एक व्यवित था | सौभाग्य की खोज और बानन्‍द की तृ्णा ही ऐसे लोगो को आश्रित बना देती । पश्चिमी कार्मंर्लप्ड के एक गिरजे मे गौस्टा पादरी बनकर बाया था। वह प्रतिभावात था, भगवान में उसका अटूट विश्वास या, सौन्दर्य में वह अतुलनीय था, किन्तु इस ऊपर प्रान्त में जीवत उसे एक भार लगता और पादरी होने मे उसे कोई मी आएराम नद्ी था ! परिणामस्वरूप बह धराब पीने जया $ यह आदत इतनी वढ़ गई कि १. एप एलमरड ($घ्व5 7.58वण) मु ६६ संसार के महान उपन्यास वह गिरजे में भी उपदेश देते समय विए रहता। अन्त में खबर ऊपर पहुंची और बड़ा पादरी उसे निकालने आा पहुचा। किन्तु अचानक ही गौस्टा की भक्ति उमड़ पड़ी और उसने उस दिन इतना अच्छा उपदेश दिया कि उपस्थित समुदाय ने उसे क्षमा कर दिया। गौस्टा को लगा कि उसके पाप अब नष्ट हो गए थे । किन्तु दुर्भाग्य से उसरे एक नरेवाज साथी ने बड़े पादरी की हत्या कर डालने की घमकी दी। गौस्टा अपने-आप को इसके फलस्वरूप बड़े पादरी के त्रोघ से बचा नहीं सका ) गोस्टा के सामने कोई पय नहीं बचा। उसने आत्महत्या कर लेने का निर्णय किया। ढिन्‍्तु यहां भी उसको इच्छा पूरी नहीं हुईं। ऐकेवाई में एक दृढ़ हृदय और अत्यन्त घनवाली स्त्री थी। वह एक मेजर की पत्नी थी। उसने गौस्टा को आतलदृत्या करने से बचा लिया । उससे गौस्टा को अपनी दुःखद कया सुनाई कि जब यह लड़की ही थी, उसके माता-पिता मे जवर्दस्ती उसकी थादी ऐसे आदमी से कर दी थी, गिससे वह प्रेम नहीं करती थी । कुछ समय के उपरांत उसका पुराना प्रेमी लौट आया। वह घनी हो सया था।। उसने उसकी मदद की और उसके पति को भी सहारा दिया। परस्तु जब महिला की माता को ज्ञात हुआ कि वह अपने प्रेमी के प्रति दुराचार में रत थी, तो उसने इस अपमान के लिए उसको शाप दिया) धनी प्रेमी मर गया और अपनी वसीप्त मे ऐकंबाई की सारी जायदाद मेजर और उसकी पत्नी के लिए छोड़ गया। गौस्टा इसी महिला के यहां आशित हो गया। यहाँ लगभग एक दजत ब्यति और भी इसी प्रदार पल रहे थे । डिन्‍्तु गौस्‍्टा को वहीं भी प्रसन्नता नहीं मिली । काउंटैरा ऐवा शोना एक पवित्र और सुम्दरी युवती थी। गौस्टा उसे पढ़ाने लगा। दुछ दिलों में ही दोतों में प्रेम हो गया । हिन्‍्तु जब उस श्रद्धालु युवती को यह पता चला हि गौस्टा तो पदषच्युत पादरी भा, शो उसको भ्रष्ट जानकर उसे बहुत दु ख हुआ। उसने पीछा छुड़ाने के लिए वह बीमारी में रहरुर भी दिता इसाज रिए हो चुप रही, ताकि उसकी मृस्यु हो जाएं और यह प्रेम बाड़ सदा के जिए समाप्त हो जाएं । पौम्टा प्रतिभाशाली ही नहीं था, जद वह विश्यात भी हो दा था। यह सादे आधितों का तेता बत चुका था। उसके जीवत का एक घोप दा--सुख पाना । दस मृत्यु ने भी उसे चैत नहों सेने दिया। बुद्ध मिलराम कुश्प था। वट सोढ़े की सानों का एक मुलिया था। जद्दा जांदी था दि उगरी धेवान में साउ-्याठ थो। अजय सिल्तरास ने आशितों को दताया हि वे मेजर बी पत्नी के द्वारा शैतान है हाथ देश शा बड़े थे। गौस्टा ते धैवात से यद ठय जिया कि आदितों को देरैवाई पर एु बचे धामत करते बा अधिरार मित्र जाएं। यदि उस समय के औरत में आसित अपने नो झच्चरित्र और सफ्यन ब्रमाशित करें तो शैवात का राज्य टेईबआई पर से उठ जाए; अन्यथा बहू दे शो आत्मा्ों का स्वाों दत जाए। | आईधतों ने बड़ छुता सो उन्हें मेजर बी पाली पर बहुत को आया शिव दृरटका बात बन रही थी। उत्दोंते ददपा लेने डे लिए मेजर को उठी पट्ती है पुराने ५ «५ बहाली दिख भेजी! मेजर ने वली को घर रे विकाक दिया धर दिटगाई दी रूप की घुटन ॥] आशितों के हाथ में दे दिया। गौस्टा को देखकर स्त्रियों शीघ आकपित हो जाती थी। सुन्दरी अन्या त्जातौं क उसके प्रेम मे पड़ गई। मरिअन्ना सिकलेयर नामक सुन्दरी पर कई लोग मोहित थे किन्तु इस वहिप्कृत पादरी से प्रेम करने के कारण बह भी अपने पिता के घर से निकाल दी गईं। भरिअन्‍्ना को चेचक ने कुरूप वता दिया ) तव गौस्टा से अलग होकर बह पिता के यहां लौट गई) मेजर की पत्नी ने विक्षोम से ऐकेवाई मे आय लगाने को चेप्टा की, ढिन्‍्तु वह पकड़ी गई। उसे इस अपराध के लिए जेल हो गई। कस्बे के लोगों का मत था कि मेजर की पतली का कोई अपराध नही था । उन्होंने इसका दोप आशितो को दिया | आधशित लोग तछ्णी 'काउटैस ऐलिजशाबैप से बहुत ही ऋुद हो उठे । काउटैस मुन्दरी थी, वह बहुत भली थी और उत्फुल्ल रहती थीं। वह इतनी भोली-माली थी कि बहू यह भी नहीं समभती थी कि उसका पति काउट हैंड्रिक वास्तव मे निप्ठुर मूल या, जिसे अपने ऊपर शरूरत से पयादा घमंड था। काउंटेस को लगा कि मेजर की पली को इस दा में पहुंचाने के लिए गौस्टा ही जिम्मेदार था। उससे नृत्य में उसके साथ नाचने से इन्कार कर दिया। गोस्टा की प्र तहिसा जाग उठी ! वह उसे अपनी स्लेज मे बलातू जे शाया) किन्तु बह इतनी सुन्दर और मघुर थी, कि गौस्टा उसके सापने पराजित हो गया। बह उसे उसके पति के यहां पहुंचा आया। उपस्थित समुदाय को इसपर आइचरय हुआ कि गर्वलि काउट ने अपनी पत्नी से, गौस्टा के प्रति किए गए अपमान के लिए, क्षमा-याचता करवाई। काउंटेस के इस अपमान से गोौस्टा के मन में सवेदना जागी और वह सचमुच उससे प्रेम करने लंगा। अब काउटैस से उसकी मित्रता हो गई। ये सम्बन्ध निरन्तर बढ़ते गए। अस्त में एक बार ऐलिज्ार्बंध को गौस्टा के कलुषित अतीत के बारे में पता चला । उसे गहरा धबका लगा और उसने गौस्‍्ष्टा से सारे सम्बन्ध विच्छेद करना निश्चित कर लिया | दुःख से गौस्टा विचलित हो गया। और एक खानावदोश पागल लड़की के पीछे फिरने लगा । जब काउंटैस को ज्ञात हुआ कि बह दुख से पायल-सा होकर उस पंगली से विवाह करने की कोशिश कर रहा है, तो वह उसे रोडने चली। नदी ठड के कारण जम गई थी। काउंटेस वर्फ पार करके उते रोकने गई। यह खबर मूर्ख काउट के पास भी पहुंची । उसने अपनी तरुण पत्नी पर सारा दोप भढ़ दिया । पवित्र काउटेस इतनी सीधी थी कि गौस्टा के प्रति अपनी ममता में उसे दौप दिखाई देने लगा और उसने इसे स्वीकार कर लिया। काउट और उसकी निर्देश माता ने कई तरीकों से काउटैस का अपमान किया | उसे अनेक कप्ट दिए तरुणी काठ ईस प्रमन्‍्तता से उन्हें केलती रही, बयोंकि वह स्वयं अपने को अपराधिनी समझकर प्रायश्चित करना चाहती थी । अन्त में उसको शक्ति क्षीण होने लगी । वह गर्भवती थी। उसे अपने भीतर पलते वच्चे की चिन्ता सताने लगी । वह घर से भाग गई और छिपकर एक किसान के यहां रहने लगी। लेकिन जब उसे ज्ञात हुआ कि काउट ने उसके चले जाने से शादी रद करवा दी थी, उसने यौस्टा से प्रार्थंता की कि वह उससे विवाह कर ले, ताकि उसके होनेवाले बच्चे को एक पिता मिल जाए। भ्रौस्टा ने इसे स्वीकार कर लिया। धष संसार के महान उपन्यास सेकिन बुद्ध ही दिनों बाद उस शिशु की मृत्यु हो गईं। यौस्टा ऐलिजाजैय को प्यार करता था, पर जानता था कि यह विवाह ऐलिज्ञाबय का जीवन नप्ट कर देगा । उन्हीं दिनों कैप्टेन लेन्नर्ट जेल से छूटकर आया। वह एक भूठा अपराध सगा* फर पकड़वा दिया गया था । आश्रितों ने उसे खूब मदिरा पिलाई ४ कंप्टेन को मदिरापात बी आदत नहीं थी। क्षीघ्र ही वह नशे में मूम गया। आश्ितों ते उसी अवस्था में उसे उसके घर भेज दिया। स्त्री ने उसे घर से निकाल दिया। ऊंप्टेन ने जीवन के शेष दिन गरीबों की मदद करते हुए इधर-उघर धूमते हुए विताएं। अन्त में एक दिन बह जब असहायों की मदद कर रहा था, एक दे मे मारा गया। गांववाले भूस से व्याकुल हो रहे थे। उनकी परेशानियां और गरीबी बढ़ती जा रही थी। आश्रितो की हरकतो से वे चिढ गए थे ! उन्होंने ऐकबाई पर हमला करते की कोशिश की ! किन्तु ऐलिज़ार्बथ की विनम्नता और गौस्टा की ववतृताओं ने उन्होंने उस गलत रास्ते पर चलने से रोक दिया ॥ अपनी पत्नी से मुक्त पाने के लिए गौस्टा मे आत्महत्या करने की कोशिश की, किन्तु इसमे बाधा पड़ गई । अन्त में ऐलिड्रावैथ ने उसे यह समभाने में सफलता प्राप्त की कि आत्महत्या मे उसे शांति नहीं मिल सकती थी। उसे अपनी विलास-मावना को छोड़कर ही संतोप मिल सकता था और उसीसे वह ऐलिजाथ को भी सुक्ती कर सकता था। दुष्ट स्िन्तराम का व्यापार बिगड़ गया और वह वरबाद हो गया। मेजर की पत्नी की अपनी माता से लड़ाई दूर हो गई, जिसने उसे शाप दिया था। बह मरने के लिए ऐकवाई ही लौट आई। गौस्टा और ऐलिजाबथ ने अपने जीवन को फिर से शुरू करने की शक्ति जुटाई और वे लोकसेवा में तन्मय होकर लग गए । उन्हें दूसरों की सेवा में ही मन की शांति प्राप्त हुई । प्रस्तुत उपन्यास में विज्लास और वैभव से ऊपर प्रेम को स्थान दिया गया हैं। नारी की सहनशौलता इसमें भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैँ । छेतिका ने ग्ोस्टा के रूप में यूरोप की समग्र अभिलाबाओं और तृष्णाओं को खमेद छैने की चेष्टा को हूं । उपन्यास जीवन के विविध रंगों को हमारे सामने फंठा देता हैँ। मात सिक गहराइयों को अनुभूति हमें बहुघा इसमें दिलाई देतो है । जेम्स मंप्पू घेरो : गांव [ज्िटिल भिनिस्टर*] बरी, जेम्स मैश्यू : भंग शी उपस्यासकार सेन्‍्स प्ैश्यू बेरी का जन्म रक इलेड के कि मामक रथान में ६ रू, १८६० को हुआ। रकाथिरा रहो में राद्या निवीभौर १८८६२ में एट्िन्टरा शिश्रविदाहय से परै्दुस्ट हुए ६ स्वाभाविक रुमात प्रतकारिता दी झोर धा। कृद् समय तक ऐडिम्वरा को पत्र-पत्रिझाभों में काम भो किए । शी ही रकॉटन हद बे, रंजन भोर (वगरवर देहाती रइन-सहन से परिचय भ्रच्दा हो दया । आपने वेसासित्र लिखे, दरा मिलने शथा भौर 'लिटिल मिनिरटर! (ग:4) के १८६९ में प्रकारान होने पर सफलता स्वापी बन णर । १०६३ में इसे भझाकर माःक लिएना ह्ारंभ किया | सन्‌ १६१३ में गैरत का पद शाप्त हुआ | १६ जून, १६३१ का लंदन में देहात हुभा | फणेटिय निनिग्टएः (गांव) में प्रानश्य डोजन का ददुत भर्दा वितरण हृभा है। गेहिन दिशाद केवल २१ वर्ष का पा। ने यह बहुत लम्बा था, ने दीर्पकाय ही। वल्कि बह अपने-आप को जितना बड़ा समझता चाहता घा, बह उतना भी नही लगता था। लड़कपन जैते उत्तते अभी तक पार नही किया, यही विचार उसे देखकर पहले सवके भत में अपना घर कर सेता था | वह अब स्कॉटलैंड के धाम्स मामक ग्राम के ऑइड लिवट्स नाम के गिरते में छोटा पादरी होकर आया था। उसकी स्नैहमयो माता मार्गरेट बड़ी विनम्र और अच्छे स्वभाव की थी। उसने अपने पुत्र को शिक्षा दिलाने के लिए बड़े-बड़े कप्ट सह्ष स्वीकार किए थे, गरोदी को उसने अपने-आप मेला था। जिस पादरी-धर में दे अब रहते पे, उनके रहने को काफी था। गैवित को सालाना अस्सी पाउण्ड मिलते थे । इतनी आय से बे अपने को समृद्ध सम- भले थे । मा और पृ, दोनों वी ही दृष्टि में गिरजे का पादरी वन जाना, एच बहुत बडी बात थी । उन्नति भी जो चरम सोमा किसी मनुष्य के लिए प्राप्तब्य थी, वढ़ मानो प्राप्त की जा चूकी थी। धम्म ग्राम के लोग गरीव थे । वे मेहनती थे, और वैसे उनमें श्रद्धा का भी अभाव नही भा । अधिकांश लोग बुनकर थे । उतका जीवन घोर परिध्म और सचघर्पों मै ब्यदीत होता था । उनके आमोद-प्रमोर सरल तथर आडम्बरहीन थे । उतके जीवन मे मैतिकता को विशेष महत्त्व दिया जाता था। डिन्‍्तु जब उनकी सुरक्षा और सत्ता सकद में पड़ जाती, तद वे उन्‍नद्ध-से हो उठते । १. चाल वीगछाला [ [बफक 2धागटज कबापंट) ७० संसार के महान उपन्यातत कुछ ही दिन हुए, उन्होंने एक दंगा कर दिया थां। उस दंगे के सरथना नैताओं की पुलिस अभी तक तलाश कर रही थी । छोटा पादरी आया तो गांव में काफी उत्पाह-सा छा गया । गैविन की ईमानदारी और भलमनसाहत का काफी अच्छा प्रभाव पड़ा । ग्रामीण तो उसके सदृव्यवहार पर मुग्ब हो गए। जब वह गिरजे में वेदी पर खड़ा होकर सुन्दर माषण देता, तो उनके मन प्रछु ललित हो जाते। अपने गिरजे के प्रभाव मे रहनेवाली जनता के प्रति उसक्ले मन में जो स्नेह-भाव था, वह किसीसे छिपा नही था, ओर उसके इस मभत्व मे सबके मन में उसके प्रति एक प्रेमणभाव जगा दिया था। गैविन के आगमन से स्कूल-मास्टर श्री ओविलवी पर गहरा प्रमाव पड़ा । उन्होंने कभी उसकी माता मार्मरेट से प्रेम किया था, और आज भी उसकी ऊप्मा जागरित थी। ओगिलवी चुपचाप मां और बेटे को देखकर भ्रसन्‍न हुआ करता । छोटा पादरी इस रहस्य से नितांत अतभिज्ञ था। एक दिन इतवार को सब गिरजे मे आकर एकत्र हुए। उसी समय झटाव के नग्मे में चूर, शञात्ति के दिवस में भी उत्पात और कोलाहल करता हुआ रौव डो नामक मीम- काय व्यक्ति घुस आया। यह गुडा था और सव उसके भय से काँपते थे। कोई भी उठे रोकने का साहस नहीं कर सका। छोटा पादरी तनिक भी विचलित नहीं हुआ। सबने चौंककर देखा कि छोटा पादरी आगे बढ़ा और उसने शरावी को चुप कर दिया। अपनी विनश्नता से उसने दयालु स्वभाव के कारण उस बबबर रौव डो की निष्ुरता पर मं विजय प्राप्त कर ली। रौब डो उसका मित्र बन गया। इस घटना ने गैविन का प्रभाव कह अधिक बढ़ा दिया। कुछ ही दिन शान्ति से व्यतीत हुए थे कि गैंविन के सामने एक समस्या उपस्यिर हो गई। वह अपने काम में लगा रहता, अपने कर्तंव्य-पालन में सुख अनुभव करता औः भाता को तृप्त देखकर संतुष्ट रहता। गरिरजे में आनेवालों का सदृध्यवहार उसे प्रसन्‍तत प्रदान करता। परन्तु समस्या आई रात के अधियारे की घिरती छायाओं के साथ ! राज्यसेना ने भ्रम्स ग्राम को घेर लिया था और वह हाल में हो चुके विद्रोह के नेताओं को गिरफ्तार करना चाहती घी। सैनिकों की यह मोजना ग्रामीणों को पहले ही से ज्ञात हो गई। उन्होंने इचचारे बांध लिए। समय होते ही एक स्यृगी वज उठी और बुनकर चौकन्ने हो गए। वे सन्‍वद्ध हो चले। गैविन दुविधा में फंस गया। कर्तव्य कददा था हि वह विद्वोहियों को गिरफ्तार करा दे, या उन्हें आत्मसमर्पण करने की सम्मति दे। किन्तु अपराधियों के प्रति उपके हृदप पें सहानुश्ूठि यी और वह गैंविन को प्रेरित कर रही थी कि वह उन्हें भाय जाने वी सलाह दे । उसके गिरजे के अनुयायियों ने हथियार जमा कर रखे देने का उपदेश देने लगा। किन्तु अचानक हो एक स्त्री का स्वर गूजकर उनकी 03 अधिकारों के लिए लड़ने को उस्देजित करता हुआ ललकारने लगा उ्तेजना फँलानेत्राप्ती एक अत्यन्त सुन्दर कंजर लड़की थी। है *ः गैविन का प्रमाव खडित हो गया । लोगों ने उसकी आज्ञा का उत्लंघत कर दया ये। वह उन्हें धरत्र डास 5 गांव छ१्‌ ओर उस लड़की के वचनों पर चलते लगे। जब तक सेना के शोग आए, तब तक कई चुरुप सुरक्षित रूप से छिप चुके थे । स्त्रियां सैनिकों पर पत्थर फेकती जौर धूल उड़ाकर अपने को छिपाती हुई भाग रही थी। कंजर लड़की को इस बात का बड़ा छेद हो रहा था कि वह अचूक निशाना लगाना नहीं जानती थी। उसने ग्रैविन के हमथ में जवर्दस्ती ही एक पत्थर रख दिया और सेता के कप्तान की ओर संकेत करके वह फुसफुसाई, “उसे मारो १” न जाने क्यो गैविन कुछ भी नही कह सका | उसपर ऊँसे जादू हो गया था। उसने दिशाता साधा और पत्थर घुमाकर कप्तान के सिर पर मारा । भगदड़ बढ़ चली घेरा सकरा होने लगा ! कजर लड़की चतुराई से सन्तरियों के बौच मे घुस गई। सन्तरी ने टोकां, “तू कौन है ?"” कंजर लड़की ने कहा, “मैं छोटे पादरी की पत्ती हू ।” सन्तरी से उसे निकल जाने दिया। जब गैंविन को यह बात पता चली, उसको विक्षोम और क्रोध ने व्याकुल कर दिया। उसे कंजर लड़की पर ही नही, अपने ऊपर भी अब ग्लानि तथा रोप हो रहे थे। औईबिन अब स्त्री-विशद्ध हो गया कौर उसने नारी के विएद्ध कठोर उपदेश देना प्रारम्भ किया । किन्तु इतदा सब होने पर भी बहू उस कजर लड़की कौ अपरूप सुन्दरता को नहीं भुला सका। कजर लड़की विलुष्त नही हुई । जब वृद्धा और गरीव नैनी वँब्सटर भामक स्त्री को, उसकी इच्छा के विरुद्ध ही, पकड़कर दर्ध्धालिय में ले जाया जाने लगा, तो वह लड़की स्वय प्रकट हो गई और उसने कहा, , “इसे कहा ले जाते हो ? मैं इसका भरण-पोषण करने की प्रतिज्ञा करती हू ।/ एक कजर लड़की के पास धन भो हो सकता है, इसपर सबने ही आश्चर्य किया। किन्तु उसकी ईमानदारी पर अविश्वास करने का कोई कारण भी दिखाई नही देता था । सुननेवालो ने कहा, “कौत ? बंदी ? नैनो को सहायता देगी १” गैविन को देखकर बंबी ने कहा, "मैं नैनी के लिए गात्र पराउण्ड का नोट दूगी । क्या आप मुभसे जगल मे मिलेंगे "४ सैविन “न! नही कर सका । बेबी ने सचमुच अपने वचन का पालन किया। गुँविन ने देखा, वह मरत थी, मनमोजी थी। उद्धत ओर चचल उस कजर लड़की ने छोटे पादरी पर ब्यग्य कसा, “कैसी पराघीन चृत्ति है आपकी, जिसमें आपको झुछ भी नहीं चलती ?” गविन क्रोष से भल्ला उठा। दोलो में भगड़ा हो गया, परन्तु गैंविन ने अनुभव किया कि उसे भन में उस लड़को पर तनिक भी कोष नही था । तो कया वह उसके प्रति आकपित था ? साभ डूब गई। अंधेरा घिर आया $ मनमौजी बंबी हाथ में लालदेत ऋुलाती, गिरजे नी भूमि पर स्थित गेंविन के घर उसे डराने आ पहुंची ( गंवित उसे डसंटने-्फटबररने को बाहर निकला, किन्तु अकस्मातू हो उसे वह चूम उठा । ऊँस क्षण बेदी ने भी अनुभव किया एडिथ बव्हाटंन : पीड़ा का माग [इथेन फ्रोम*] न्दार्टन, ऐडिय : अंग्रेज़ी लेसिका ऐेडिव न्यूपरोल्ड जोन्स का जन्म स्यया३ में पडले से वसे एक परिवार में ?८8२ ई० में दुआ | भापको घर पर ही भच्ची शिक्षा प्रात हुई भौर आपने विदेशान्यावाएं भी की । निएना भापने काफी जल्दी प्राईंम किया था। जब आप केवल १५ वर्ष की थीं, प्रसिद्ध कवि लौगफलो ने अटलाटिक नामक पत्रिका में धापने को आपकी कविताओं के लिए स्िफारिशी पत्र मेजा था, क्योंकि वे कविताएं उन्हें बदुत पसंद भाई थीं। १८६० के आसपास आपका ऐडवर्ड र्हार्टन से कलाई हुआ | देव भाप अप्रनी कझानियां प्रत्रिकाओं में अकारान के लिए मेजने लगीं। १६६६ तक आपकी कहानियों > संग्इ और उपन्यास देपने लगे | १३०० के राई भाप प्रायः विदेश में रहीं | १६०७ से १६३७ तक भाप फ्रांस में ही अधिक रही ! १६३७ में आपका देद्वांत हो गया । 'दयैन फ्रोम' (पी का भाष) आपकी अत्िद रचना दें | नाम से दी हा होता है कि यह एक पा्-विशेष को लेकर लिखा यया उपन्यास है | मेचेचुसेद्र में स्टा्कंफील्ड नामक ग्राम में बर्फ पड़ चुकी थी। धरती पर बर्फ की तह दं दो फुट जमी हुई थी। युवक इयैन फ्रोम निर्जन पर्यों पर जल्दी-जल्दी पांव उठाता चर जा रहा था। गिरजे के बाहर वह झुक गया। छाया के आंचल मे भड़े होकर उसने सुन कि भीतर से संगीत को भधुर ध्वति आ रही थी। कभी-कभी कवभनाता हुआ हास्य गूर उठता था। फ्रोम के हृदय की यति तीतब्र हो गई। एक वर्ष पूर्व इधन फ्रोम और उसकी पत्नी डीना के यहां मैटी सिलवर आई थी। वह जीना की बहिन लगती थी। उसके पिता की मृत्यु हो चुकी थी। उसके लिए दुनिया में कोई जगह नहीं थी । जीना चाहती थी कि घर के काम-काज में मदद करने को उसे मिल जाए। इसोलिए उसने निश्चय कर लिया। तनस्वाह देकर किसी 2270 रखने को बजाय उसने मंदी को बुला लिया। उसके रहने का प्रवन्ध कर दिया और मैटी उसकी राहायिका बन गई। कभी-कभी ही मैंठी घर से निकलती, जब कोई विशेष अवसर होता और स्टाई- हड के बिरजे में आकर डुवक-युवतियों के साथ अपना मनोरंजन करदी ॥ इथेन उसे ७ से यहां दो मील के फासले पर गिजजे में लेने आता और वे दोनों साथ-साथ ब-पव0 77०८ (एकता 3फ्ल्आा०घ) गैड़ा का भाग जप लौटा करते । दि इथैन देखता रहा। मैरी एक आइरिश्व युवक के साथ उस समय नृत्य में मग्त थी! न जाने बयों इथेन के मत में एक कसक-सी उटी । तरुण बड़ा छानदार या। इर्थन देखता रहा। दुछ देर मे ही नृत्य-यीत समाप्त ही गए। इयेत वहीं अंधकार से खडा रहा। मैठी उस तरुण के साथ बाहर आई । उसने मैटी से कहा कि वह उसे अपनी दर्फ पर फिसलने- वाली क्तेज गाडी में घर पहुंचा देगा। किन्तु मैंठी ने उसके प्रस्ताव को अस्वीक्ृत कर दिया। बह इथैन के पास आ गईं। दे बर्फ पर घलने लगे। इन ने उसकी वाहु थाम ली। उस स्पर्श ने उसे रोमां- चित कर दिया! उन दोनों में एक मोत आदान-प्रदाव हो रहा था और वे बिना बोले ही एक-दूसरे के भावों को समभले लगे थे । किंतु फिर भी वे बोलते न थे, न किसी प्रकार का कोई विज्षेप इंगित ही करते थे । भीतर की भीतर ही पलती चली जा रही थी । ऐसे अव- सरों पर इथैन की जीवा की याद हो आती और वह घुट-सा जाता। मैंटी भी इस भाव के प्रति सचेत और जायरूक थी । खलते-चलते हयैत ने मावावेद में भरकर कहा, “मंटी ! एक दिन ऐसा भी आएगा, जब तुम हमें छोड़कर चली जाओगी !” पैठी समभी नही । उसने पूछा,'ययों | क्या छीता झव मुझे नहीं रखना चाहती ?” किन्तु इथैत का ताप दूसरा ही था। वह सोच रहा था कि इतनो सुल्दर युवती बिसो न किसी दिन दो विवाद कर ही लेगी । तव तो बह चली ही जाएगी ! ये फॉर्म पहुच गए ! झ्लीना अमूमन चटाई के नीचे चाबी रख जाया करती थी । परन्तु उस दिन उन्हें चाबी बहां नही मिली । ज्षोदा ऊपर से उतरकर आई ! त्व उन दोनों में भीतर प्रवेश किया ! जीना ने आज और दिलों वी अपेक्षा अपने अस्बस्थ रहने की बहीं अधिक शिकायत की । उसने अपने दर्द बढ़ जाने का भी उल्लेख किया । जद इधैन सोने गया, तव उसे सा जँसे जीना इधर बुद्ध दिनों से अधिक गरभीर रहवी थी। दह अधिक असंतुष्ट-ती दीखती थी, और बाठ-वात पर चिढ़ भी जातो धी। उसे ध्यान आया। पहले तो उसतवरा स्वभाव ऐसा नहीं या ? अगले दिन जब वहू भोजन करने आया तो उसने देखा कि जीना अपने सबसे अच्छे कपड़े पहने थी + थ्रीना ने रुदय॑ कद्दा कि वह बेट्साद्विज जा रही थो । आज दुपहर को उसे अपने दर्शे के बारे में एक सगे डॉस्टर से सलाह लेनी थी । लेकिन बयोकि सौरभ बड़ा खरात था, रैल बा सफर था, वह अगले दित हो लौट राड़ेयी, वर्ना उसपर रुयादा फोर पड़ेयां, जो बह अपनी कमजोरी में वर्दाइत नहीं कर सकेगी । इन के; सत मे था कि वह जर्रीसे घर पहुंच जाए ॥ इसलिए बह स्वय उसे जंक्शन तक पहुचाने भी नही गया । किराये का आदमी लगाकर, बहाना बताइर, वह लोद आया । छंद से फोम-परिवार में सेटी आई दी, सब से आए तर कमी मेटी और इपेलद इस तरह का एकांत नहीं पा सरे थे । ७६ संसार के महान २ कप्मरे में ऊप्मा थी, बौर सत्र छुछ वद्ा स्फूर्तिश्द-सा लग रहाथा)ज भथाया तो उसे मेद्ध पर साना सगा-लगाया मिला । चमकदार लाल कांच की तर उसका मनपसन्‍्द अचार भी रसा था। इरा क्षण की प्रतीक्षा बह दोपहर से कर रहा था। परन्तु इस स्तमय वह विचारों वो पाना खाते-खाते व्ययत ही नहीं कर सका । वह चुपचाप खाता रहा ध्यान में मस्त देखकर बिल्ली कूदी और मेज पर चढ़ गई | इस धमा-चौकड़ी में भच तश्तरी फर्श पर गिरकर टूट गई। मैटी का मन आतक से भर गया। उसने तब्तरी के टुकड़ों को इतट्टा किया असल मे यह तश्तरी जीना को बहुत ही प्रिय थी । वह इसको बड़ी हिफा रखती थी। उसकी चाची ने उसे यह तश्तरी उसकी शादी के वतत मेंट दी थी। ची बर्तेनो की अलमारी में वह इसे ऊपर के भाग में सिर्फ सजाकर रखती थी, इसका! नहीं करती थी और इत्तना त्क कि वाहर भी न निकालती थी। आज उस तद्वाः उम्की अनुपस्थिति मे टूट जाना, एक पूरा सकट ही था ! इन ने इसे समझा । मैंठी को सांत्वना देने को बेप्टा को । उसने कांच के टुकड़ों को जमाया। तश्तरी साबुत लगने लगी। तब इथंन ने कहा कि कल वह थोड़ान्सा कांच चिपकाते का भा ले आएगा और उसे चिपका देगा। इसके बाद बे सन्ध्या को प्रसन्‍तित बैठे रहे। मेंटी सिलाई करदी रही। अंगीटी के पास बैठा-बैठा उसे देसता रहा। किन्तु वार-बार उसे जीना की याद आ। गौर वह मैंटी से कुछ भी नहीं कह पाता, मानों जीना की स्मृत्रि उसे रोक लेती थी ही समय व्यतीत हो गया । दूसरे दिन जव इथैन दोपहर वाद काम पर से घर लोटकर आया, मैंठी ते बताया कि जीना घौट आई थी और सीधी अपने कमरे में चली गई थी । जेब बह रात खाना खाने भी नीचे नही आई तो इथैन अपनी पत्नी जीना के प्रात ऊपर या । जीना उस समय खिडकी के पास कठोर मुद्रा बनाए बैठी थी ! अभी तक ६ अपने कपड़े भी नही उतारे थे। इथन को देखकर जीना बहने लगी, “डॉक्टर ने वहा है कि शायद मेरी बीर में उलभने पैदा हो जाए । इसीलिए मैं चिन्ता में पड़ गई हैं ।" जव वह अपने विषय में सव कह चुकी तो उसने अन्त में कहा, “मैं एक ला का इन्तेज़ाम कर आई हूं । तनख्वाह लेगी पर काम सब संभालेगी। कल आ जाएगी। तब इयँन की समझ में आया हि जीना के कहने का मतलव वया था! वह धार थी कि मैटी को तुरन्त निकल जाना होगा और उसकी जगह एक लड़की आ रही धी। सात वर्ष के विवाहित जीवन में इतना विसाक्त वातावरण उन दोनो के छ कर्मी नहीं हुआ था। खाने के चाद झव जीता ते अचानक अलमारी देखी और उसे म_ धादी वी भेंटवाली तस्तरी टूटी मिली तो ऐसा तनाव खिच गया, जैसा कि इर्थत सोष ' नहीं सवता था। इथैन इस सबके दारे में मैंटी वी सूचना देना चाढ़ता था) वह जीना रो सकने में असमर्थ हो गया था। निचली मडझिल में उसने अपने अध्ययन के लिए एक छोटा- सा कमरा चुन रखा था। वह उसीमे चला गया और कोई तरकीब निकालने के लिए विवारों मे डूब गदा। उसने जोना को एक पत्र लिखना प्रारम्म छिया: “मैं मेंटी के साब पश्चिम की ओर जा रहा हूँ “अपना जीवन फिर से प्रारम्भ करने के लिए '* डिन्तु फिर वह झुक गया क्योकि नये सिरे से झिन्दगी शुरू करने के लिए उसके पास घन कहां था ? अगले दिन इथेन मे सुबह का वर्त कस्दे में गुझ्ञार दिया | आज मेंटी का फॉर्म में अग्तिम दिन था इथैन चाहता था कि किसी प्रकार वह धन एकत्र कर से और मैटी को लेकर चला जाए'“दूर"*“बहुत दूर"**, पर जब दोपहर ढले वह लोटा ठव उसे मत ही मन यह स्वीकार करना पडा कि उसके पास कोई रास्ता नही था** क्षीना ने मैठी की स्टेशन तक पहुचाने का प्रबन्ध कर लिया था । परन्तु जब समय निकट आ गया, इन स्वय ही गाडी चलाने जा बेठा और उसने किराये पर बुलाए हुए. साईस को हटा दिया । डीना उसे सही रोक सकी चार बजे के लगभग मैटी और इन स्तैज में चल दिए। इयेव ने लम्बा राष्ता पकड़ा । वह उन जगहों पर स्लेज को हॉंक चला, जहा वे दोनों पहले कभी-कभी मिला करते थे। वह सोच रहां था कि आखिर मैंटी अब जाएगी भी कहां ? बह करेगी भी तो क्‍या? इथैद ने कहां, “कहाँ जाओगी जव ? करोगी दया तुम २” मंदी मे कहा, "मैं स्वय नही जानती ।" फिर मैटी कहने लगी, “मैं तुम्हे प्यार करती हू। मैं तुम्हें बहुत दिनों से चाहती हू।” छह बजने को आ यए। अब एक-दूसरे से विछुड़्ता उन दोनो के लिए और भो कठिन होता जा रहा था। स्थानीय पहाड़ी की आड़ मे आते-आले जहाड रुका करते थे । उस पहाड़ी के ऊपर इयैत ने गाड़ी रोक दी | द्वर एँल्‍म नामक जग्ली वृक्ष अपने विशाल शरीर को लिए दीख रहा या ! पहाड़ी के नीले आते-जाते जद्याज़ों को उसके कारण घूमना पड़ता था। अचानक मंटी ने कही, “मुझे पहाओो के नीचे पहुचा दो !” इथ॑न को वही पेड़ो के बीच एक स्लेज गाडी पड़ी दिखाई दी । दोनों उसपर जा चैठे। गाडी बर्फ पर फिसलने लपी ) मेटी ने कहा, “अवकी वार फिर गाड़ी को फिसलाओ और एऐंल्म वृक्ष तक चल गाड़ी तेजो से फिसल चली। पहाड़ी के नीचे पहुचकर मेटी ने क्रिर गाडी ते करने को कहा । सामने ऐल्म का विशाल वृक्ष था, इयेन ने गाडी मोड़ दी'*और फिर एक भयानक टवकर हुई'** दौश दर्प दौत्त गएं। एक ब्यकित इयेन फ्रोप से मिलने आाया। फोम के फार्म पर भहुचते-पहुचते उसे वर्फ के भयातक तूफान ने घेर लिया। तब मजबूर होकर उसे वहा पनाह मांगनी पड़ो । रसोई में उसने एक लम्बी, पतलो-ढुदली औरत देखी जो इथन की सेवा कर रही ण्द संयार के महाव उप थी। एक कुर्मी पर एक स्त्री बैठी थी जो उस स्त्री की छुलना में उम्र में कम थी। ते इस औरत के युरी तरह से अंग भंग हो चुऐ थे और उसकी थांखें बहुत ही कबिक च दार थी। बह केवल अपना सिर हिला पाती थी और कुछ भी करना उसके लिए अर था। इथन भी कुर्सी पर पंगु बना बैठा था । आयस्नुक को तब ही पता चला कि इन! गत बीस यर्प से जीना और मैठी के साथ इसी प्रकार जीवित था। स्टा्कड्ील्ड के इस दुषंटना के बारे में दात लक नहीं करते थे। परल्तु कुद लोगों का कहना या कि सबमें राबसे अभिक पीड़ा का भागी धायद इथेन फ्रोम ही था । अस्तुत उपन्यास एक प्रेम-कया है। श्रेम को घुटन तौनों पात्रों में हमें उत्कद से मिलती है, कोई भी रप्प्ट महीं कह पाता । बीस वर्ष तक दुःधध-्भोग राई रहकर लेजिका ने एक विचित्र वेदना का सृजन कर दिया है। इयेन के रचा चचिद्नण में हमें एक अजीव दसक-सो मिल्तती है। इथेत फ्रोम संतार में इर्सा एक प्रसिद्ध उपन्यास माना गया है । मवित्तम गोर्को : र्भां [द मदर ] गोकी, मै क्सिम : रूसी उपस्यासकार मैक्सिम गोकों का बन्म १४ मार्च, १८६८ को हुआ भौर भाप की मृत्यु १४ जून, १६३६ में हुई | आप रूसी ये | नाटक, उपन्‍्यातत, कबिता, कझानियां, लेख सभी कुछ भापने लिखे दें । श्रप बहुत ही दरिद्र परिवार में जन्मे ये भौर झापने मिखारियों की सी द्वालत में वहुत याता की थी । आपको जीवन का अयाध अनुभव थां। बिना कद्दी रिद्या पार आप खमार के महान साहित्यकार बने | झाएको प्रतिमः भइदमुत थी । आपने रूसो ऋति में सम्धिय सदयोग दिया था । आपने जनता को जयाया था | अ्मप लेनिन के पनिष्ट मित्रये ॥ ९ (द मदर) झापका सर्वश्रेष्ठ उपन्याप्त है। इस उपन्यास के कारण भाप विखविस्यात गए) ऊ पेल्ागेवा निलोवना कर पदि मिलाइल व्लासोद फेवटरी में छाम्र करनेवाला मिस्त्री था। बस्ती-भर मे वह सदसे अधिक दलवान और भऋषणड़ालू घा। सभी उससे भघ खाते थे। बहू बोलता बहुत कम था, परन्तु हर छुट्टी के दिद किसी से किसीको पीट देता । प्रति- दिन भोजन करने के पश्चात्‌ वह बोदका (शराब) पीता और बेसुरे कण्ठ से गीत गाता । अपने लड़के पादेल से भी दह बहुत कम वात करता था । उसकी पत्नी पेलागेया तो पिटने के भष से हर समय कांपती रहती । रकत-स्राव से मिखाइल ब्लासोव की मृत्यु हो गई। पेलागेया लम्बे कद, भुको हुई कमर, शुरियों-भरे चेहरे कोकाली आखों वाली स्त्री थी। उसकी दाहिनी भौंह पर चोट का एक गहरा निधान था। उसकी आखो से भय और व्यथा भलकती थी। मिखाइल ब्लासोब की मृत्यु ढेः दो रुप्ताह बाद ही एक इतवार को पोवेल बनासोव वोदका पीकर लड़खड़ाता हुआ घर आया। पेलागेया ने कहा, “अगर तुमने पीना प्रारम्भ कर दिया तो मेरा पेट कैसे पराणोये ?” **“इसपर पावेल ने उत्तर दिया था, "सभी तो पीते हैं।” वास्तव भें बस्ती के सभी नवयुवक वोदका पीते थौर रगड्य करते पे। अभी पवेल्न को आयु लगभग सोलह साल की थी। वह वोदका पचा नही सका ओर उसे उल्टी हो गई। उसे मां की आंखों मे यथा देखकर दु स हो रहा था। कुछ ही दिन वाद पावेल ने अपने लिए एक अकाडियत (बाजा], एक कलफ़दार कमीड, एक घमकदार नेकटाई, जूते और एक घड़ी खरीद ली। जब इस्ठी के दूसरे शुवकों वी त्तरह वह फँक्टरी में काम १. प्रढ 20०फ्ल (जकवाए 909) ० संसार के महान उपयाव करता औौर झाम को उनके साथ हर इतवार को बोदका पीता ! न जाने क्यों जय भी वहू बोदका पीता, उसकी तवियत खरात्र हो जाती, दूगरे रिठ उसके चेहरे का रंग उड़ जाता, सिर में दर रहता और द्वदय में जलन होती । पहले तो वहू इसे अपनी अल्पायु का प्रभाव मानता रहा परन्तु एक दिन उसने अपनी मां से कहा, “मैं विलकुल जानवर हो गया हूं। अबकी वार मैं मछली के शिकार को निकल जाऊगा या फिर मैं एक बल्दूक खरीद लूगा और शिकार सेलते चला जाय करूंगा ।/** “इसके बाद पावेल कमी वोदका पीकर नहीं आया । उसके मित्रों ने भी उसके घर आता छोड़ दिया था। अब बह पुस्तक लाता और चोरी-छिपे उन्हें पडढकर छिपा देता । प्रतिदिन श्याम को वह पढ़ता और इतवार की सुबह घर से निकलता तो रात को लौटता। मां से वह बहुत कम बात करता। पेलागेया ने देखा कि पावेल अब पहले की तरह अश्विप्ट भाषा का प्रयोग नहीं करता या। और भी छोटी-छोटी वादे थीं जिनमे उसके स्वमाव-परिवर्तन का पता चलता था। उसने मड़कीने कपड़े पहनना छोड़ दिया था और शरीर तया कपड़ों की सफाई की ओर अधिक ध्यात देते लगा था । उसकी मां उसके परिवर्तत का कारण नहीं समझ पाई थी। एक रित॑ पविल अपने एक बढ़ई मित्र से अलमारियां बतवा लाया था और उन अल्मारियों में अब पुस्तकों को संख्या बढ़ती जा रही थी । बेटे की गम्मी रता देखकर पेलागेया चिन्दित एंदी थी। अब वह कारखाने के दूसरे नवयुवकों की तरह नहीं रहता था। कमी-कर्मी वह सोचती : पावेल किसी लड़की के प्रेम के कारण इतना वदल सकता है। परन्तु प्रेम के अबकर भें तो पैसों की आवश्यकता होती है और वह अपना पूरा वेतन मां को दे देता थ[। भामला उसकी समझ के बाहर था । इसी तरह दो वर्ष बीत गए ॥ अब ब्लासोव-परिवार का जीवन शान्ति से व्यतीत हो रहा था ! एक दिन वेलागेया ने पावेल से पुछा कि वह हर समय वया पढ़ता रहता है। उसने भां को वताया कि वह गैरकानूनी पुस्तकें पढ़ता है जिनमें मजदूरों के सम्बन्ध मैं सच्ची वार्ते लिखी रहती हैं) सुनकर पेलागेया रोने लगी, किन्तु जब पावेल ने उसे सम- 'काया कि इनसे मजदूरों के दुःख दूर होंगे और स्वय पढ़कर वह दूसरों को भी पढ़ाएपा तब वह शाम्त हुईं। पावेल ने उसे साफ-साफ बता दिया कि यदि वै पुस्तक उसके पास पकड़ी जाएगी तो उसको जेल जाता पड़ेग।, परन्तु इस डर से वह उन्हें पढ़ना बन्द नहीं कर सकता । पेलागेया को पावेल की आखों में दृढ़ता, गस्मीरता और कोमलता दिखाई दी। बह अपने बेटे पर गवे करने लगी। पहली वार जद पावेल ने कहा कि उसके मित्र शनिवार की शाम को शहर से आएंगे तो पेलागेया मन ही मन भयमीत हो उठी थी, डिन्तु उनके आने पर उसकी धारणा विलकुल बदल गईं । नताया और आदेई नखोदका से बात करके तो बह भयमुक्त हो गई थी ॥ उनका व्यवहार मां को बहुत अच्छा क्षगा । जब आउन्देई ने पेलागेया के माथे की चोट के निशान को देखकर कहा कि उसे जिस स्त्री ने माँ की तरह प्रात था उसके भी इ्मी तरह वा निशान था और उसके पति के मारने से वह निश्ञान पड़ा या तो वह उसकी तरफ २७८ ३ लगी थी। नताशा के सम्वन्ध में जब पेलागैया को मालूम हुआ कि उसका ४» में लोहे का व्यापार करता है बौर बहुत धनी है परन्तु नताद्ा को उसने मां दर इसीलिए घर से निकाल दिया कि वह मझदूरों से सहानुभूति रखती है और उनके दु ख दूर करना चाहती है, तो बढ बहुत ढु.वी हुई। पावेल के मित्र काफ़ो राव तक पुस्तक पढ़ते और बातें करते रहे। उन्होंने कारखाने के नवगुवकों की तरह न तो शराब पी और न गन्दी भाषा का ही प्रयोग किया उनके चले दाने पर पेलागेया ने पावेल से पूछा, 'पावेल, भरी समझ में नही आता कि इसमे ऐसी खतरनाक और गैरकानूनी क्या बात है ? तुम कोई गलत काम तो नहीं कर रहे हो न ?” पावेल के समझाते पर वह उप्त दिन समझ शई थी ; फिर भी पावेल ने कह दिपा था कि किसी दिन उन्हें जेल मे दूसा जा सकता है $ येलागेया अपने बेटे की सुरक्षा के लिए चिल्तित हो उठी थी। इसके पश्चात्‌ हर दनिदार की शाम को पावेल के घर बँठक होने लगी । शहर से दूसरे लोग भी आकर इसमे सम्मिलित होने लगे थे । वेसोदाश्चिकोव, समीइलोव ठो बस्ती के ही थे। याकोव सोमोव, निकोलाइ इवानोविच पहले से आते ही थे । अब एक दुबली-पतली लड़की साशा भी धाहर से आने लगी थी। साथ ने बैठक मे पहली बार अपने-आपको समाजवादी कहा था। पेलागेया तो सभाजबादी शब्द सुनकर ही डर गई थी। उसने प्रावेल से प्रू्धा भी था कि कया वह भी समाजवादी है, और उसके 'हा' करने पर दह डर गई थी। धीरे-धीरे समाजवादी शब्द सुनने की उसे आदत पड गई । जब भी बैठक मे विदेशों के मजदूर-आन्दोलत का समाचार दढ़ा जाता तब सभी चिल्लाते और खुश होते। वे बहुधा गीत गाते। आ्द्रेई नखोदका को पेलागेया आरत्यूसा कहने लगी थी। वह कारखाने से वहीं काम करने लगा था और हर रोज्ञ शाम को पावेल के साथ पढने उनके घर आता था । धीरे-धीरे पेलागेया उससे इतना स्नेह करने लगी कि उसे अपने ही घर मे रहने के लिए बुला लिया । आस्दूयसा भी मां पे प्रेभ कए्ता था। वह उसके काम भे भी हाय बटाते लगा । कुछ दिन याद ही पावेल मे फैक्टरी के व्यवस्यापकों के विरुद्ध मजदूरों की आंख प्रोलने के लिए पर्दे छपबादा प्रारम्म कर दिया। नवयुवक मजदूर उन्हें बड़े ध्यान से पढ़ते थे और सचाई की महसूस करते थे। हर सप्ताह इस तरह के पर्च निकलते और मज- दूरों में हलचल मच जाती । पर्चे शहर में छपते थे, इसलिए किसोको यह नेही पता चलता था कि वह किस तरह छपते हैं । पावेल चुपके-चुपकै उन्हें बाट देता था। इन पर्चों का पता लगाने के लिए जायूस लगा दिए गए थे और बस्ती के सभी मजदूर माशकित हो उठे थे । एक दिन मारियां कोरसुनोवा ने पेलाग्रेया के घर जाकर कहा, “पेलागेया, सावधान रहता। भद्ठा फूट गया। आज तुम्हारे घर की तलाशी ली जाएगी, और माडिन और वेसोवार्चिकोव के घर को भो।” उस दिन तो वलाशी नहीं हुई, परन्तु एक महीने बाद एक राठ को सास्त्र पुलिस उनके धर आई और घर-मर का सामान उलट-पुलट दिया । अजमारियों में से निकालकर पुस्तको को इधर-उधर फेंक दिया और पावित, जासद्रेई और पेलागेया से ऊट-पटाग सदा पूछे। भूरी वद्ियोदाले सिपाही निकोलाई और आानदेई कौ पकडबरर झपने साथ ले गए। निकोलाई और आसद्ेई को जद भा ने रुम्मनो पर हस्दाक्षकर करदे देखा दो वह दु खी होकर रो पड़ी । पेलागेया को रोते देखकर पुलिस का अफसर बोला, “बुड़िया, इतने आयू न वहा, नही तो आगे चलकर कहा से लाएगी“? ” इसपर उसने कोधित होकर उत्तर दिया, “मा की आखो में सदेद हर बाद के लिए पर्याप्त सर संगार के महान उपन्यात्त आंसू रहते हैं, हर बात के लिए। अगर तुम्हारी मां है, तो वह इस बात को जानती होगी। यह घुनकर उस अफसर मे कोई उत्तर नहीं दिया था। यह तुरन्त वहाँ से चल दिया था। दूसरे दिन ही वुकित, समोइलोव और योमोव आदि पांच दुसरे लोग भी पकड़ लिए गए। रीबिन को पुलिसवाले गवाह बनाकर अपने साय पावेल के घर लाए थे । दूसरे दिन वह उसके पास आया और आउदेई तथा दूसरे सभी मजदूरों की प्रशमा करने लगा। रीतिन ने कहा कि बह चालीस वर्ष का हो चुका था, परन्तु फिर भी उनके साथ कुछ करना चाहता था। वह बहुत देर तक पावेल से बात करता रहा। पेलागेया इन्हीं दिनों एक बार आज्ेई से जेल मे मिल आई थी । धीरे-धीरे बस्ती के सभी लोग पावेल की इज्जत करने लगे थे और आवश्यकता पड़ने पर उससे परामर्श लेते थे। फैवटरी में इन्हीं दिनों एक मद्ृत््पपूर्ण घटना हो गई जिसने पादेल को सामने ला दिया । फँक्टरी के पास दलदल थी, जिसमें गन्दगी होने से मच्छर पैदा होते और बस्ती से बुखार फैलाते थे। फैक्टरी के डायरेवटर ने दलदल को सुखाने के लिए मथदूरों के वेतन में से रूबल पीछे एक कोपेक काटने का तिर्णय किया या। नाम तो मझदूरों की भलाई का लिया जा रहा था परन्तु दलदलाकी भूमि का लाभ फैक्टरी को होनेवाला था। फैक्टरी के सारे मजदूर डायरेवटर के निर्णय के विशद्धं थे मौर उन्होंने प्रवेल से सलाह लेने को सिजोव और माखोतिन को भेजा। उस दिन पाविल फैक्टरी नहीं गया था इसलिए घर पर ही था। पावेल ने दलदलवाली घटना का समावार लेकर भां को शहर भेजा जिससे अखबार में छप सके। यह पेलागेया को अपने चेदे द्वारा बताया हुआ पहला काम था। वह अ्सन्‍नतापूर्वक शहर गई और येगोर ईवानोविंच को पावेल का पत्र दे आई | यह शनिवार की दांत थी। इतवार तो निकल गया, परल्तु सोम वार को ही फंव्टरी के मजदूर एकत्र हो गए । पावेल ने उन्हें कोपेक काटने की अनुचिद्रता समभाई और डायरेक्टर को बुलवाया। डायरेक्टर ने पावेल तथा उसके साथियों की बातों पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया और मजदूरों को काम पर लौटने का आदेश दिया और कहा कि जो काम पर नहीं आएये उन्हें नौकरी से विकाल दिया जाएगा | यह कहकर बह चला गया। इसपर मजदूरों ने पावेल से पूछा कि अब वे क्या करें॥ पवेल ने हपप्ट रूप से हड़ताल की सलाह दी। हड़ताल के नाम से मजदूर डर गए और काम पर त्तीड गए । पावेल को इससे बहुत दु ख हुआ। उसी शाम को पावेल के घर पुलिस आई। उत्होंने घर की तलाशी लो और पावेल को पकड़कर ले गए। पेलागेया अब व्यसित हो उठी! बुछ दिन वाद समोइलोव और येगोर इवानोविच रात के समय उसके घर आए। ग्रैगोर इवासोविच ने दहा कि खुबह ही निकोलाई इवानोविच जेल से छूटक़र आया है और उसके हाथों खोखोल और पावेल ने नमस्ते कहलवाया है। येगोर ने ही पेलागेया को यह बताया कि पादेल के अतिरिक्त और भी बहुत-से लोग जेल भेजे गए हैं, पावेज दो उतबा- सर्वा आदमी है। इस बात से वेलागेया को ढाढ़स दंघा | येगोर ने पैजायेया से कहा हि अगर उन्होंने फैबटरी में पर बांटवा वन्द कर दिया तो पुलिसवाले सममेंगे फ्मि परावेल और उसके साथी ही यह काम करते थे। पावेल वर्यरद् के बचाव के लिए अब फैक्टरी में पे बटना आवश्यक है। उसने कहा कि देलायेया को खोनचेवाली कोरथुतोवा से इस यस्वस्ध मो फरे मेबात करनी चाहिए। वह पर्नों ले जा सकती है, और लोगों को दो तलाशी होती है। पेलागेया से येगोर से स्वयं पर्च ले जाने की बात कही तो बह भ्रसन्‍तता से उछल पडा। पेलागेया की समझ से यह बात आ गई थी कि पर्दे बटने से फैबटरी केः मलिक पावेल पर यह आरोप नहीं लगा सकेंगे। दूसरे दिन पेलागेमा खोमचेवाली भारिया कोर- सुनोवा से मिलने गईं। वह पेलागेया को यरीवी समभकर उसे खाने की टोकरी लेकर फैवटरी ले चलने को राजी हो गई। अगले दिन कोरसुवोवा तो बाज़ार से सामान खरीदने गई और टोकरियां लेकर पेलागेया फैक्टरी गई! दो-ठीन दिन बाद ही साशा और येगोर नें पर्चे लाकर पेलागेया को दे दिए जिन्हें वह कपड़ों में छिपांकर फैटरी में ले गई। देसे तो सन्तरी मोर खुफिया पुलिसवाले प्रत्येक की तलाशी ले रहे थे परन्तु पेलागेया ने टोक- रियों के बोक का बहाना बना दिया, जिससे उसको तलाशी नही ली गईं। भीतर पहुचते ही वासिली गुसेव और इवान गुस्ेव नामक दो भाई, जोकि वहां मिस्त्री थे, उसके पास आएं । पेलाग्रेपा ने निश्चित संकेतवाबष वठाने पर उन्हे प्चों के बंडल दे दिए। दूसरे भजदूर पेलागेया फो सौमचा लगाते देखकर सहानुभूति जताने लगे और उसीसे घोरवा तथा सेवइमा खरीदने लगे। परे पहुंचारुर वेलागेया का हृदय उल्लास से भर गया। उसी दिन शाम को आज्देई जेल से छूटकर भा गया। जब पेलागेया ने उससे फैबटरी में दर्जे पहुचाने बरी दात कही तो वह भी बहुत खुश हुआ । उसी दिन आउनद्रेई वे पेलागेया को भह बतापा कि साशा और पावेल एक-दूसरे से प्रेम करते हैं। यह जानकर पेलागेया साशा से और अधिक स्नेह करने लगी। दूसरे दिन पेलाग्रेया फैक्टरों पहुची तो सल्तरियों ने उसकी तलाझी ली परन्तु उन्हें उसके पास कुछ नही मिला। अब हर तरफ पर्चों के वटने की चर्चा होने लगी । कुछ दिन वाद जव वेलायेया पावेल से जेल में मिलने बई तो उसने सकेत से बता दिया कि पटरी में उसने पर्चे पहुचाएं ये, डिनके कारण काफी हलचल मची | पावेल मां के पर्चे पहुचाने की वात पर इतना प्रसन्‍त हुआ कि उसमे उसे चूम लियां। अब आन्देई फिर से फैक्टरी मे काम करने लगा भा और सारा वेतन वैलागेया को देता था। इन दिनो पेलागेया चूपके-चुपके पढ़ते लगी यी। कठिनाई होने १र बह आदेई से पूछ लेती । वह भी उन सब थातों को जानना चाहती थी जिल्हे पावेल मे उत पुस्तकों से सीला था | झाशिर पाबेल भी एक दिन जेल से छूट पया | उसे देखकर पेलागेमा बहुत हपित हुई) पावेल के आने के कुछ दिन पश्चात्‌ ही रीविन एक द्विन पेलागेया के यहां भाया। उसने बताया कि इन दिनो मैं मेग्रिलदेयेबी नामक कस्बे मे तारकोल बनाने का काम करता था तथा किसानों में समाजवादी भावना का प्रचार किया क रता था । बह कुछ पुस्तकें लेने आया था, उसके साथ यैफीम सलाम का एक लड़का भी भा। पुस्तकें लेकर तया किसानों के लिए अखबार और पर्चे निकालने की वाठ कहकर वह फिर कस्बे को लोट गया । एक दिन आनद्रेई पर मां के स्नेह को देखकर पादेल ने उससे कहा, “मां, तुम्हारा दूृदय बहुत उदार है।” पेलागरेया बोली, “मैं तो चाहती हूं कि मैं तुम्हारेग और तुम्हप्रे दोस्तों के किसी काम बाय सक्‌ । काश, मैं इन दातो को समभती होती ६” ग ह्डः संसार के मदन उपन्याम “तुम सीरा जाओगी (” “मुझे तो बस एक वात सौघनी है कि कियी तरह मैं चिन्ता करना छोड़ द्‌ “और वास्तव में पेलागेया की बात ठीक ही थी, वह पावेल के लिए हर समय विवित रहती थी। अब पावेल और आखदेई तो फैक्टरी चले जाते और पेलागेया मई दिवस को तैयारी में उनका योग देती । वह उनके पोस्टरों के लिए लेई दनादी, लाल रोशनाई तैयार करती ! इसके अतिरिवत अपरिचित लोग जोकि रहस्यमय ढंग से आकर पावैल के लिए सदेश दे जाते, उन्हें स्मरण रसती। मजदूरों से मई-दिवस के समारोह में माग लेने का आग्रह करनेवाले पोस्टर हर रात दोवारों पर विपकाए जाते। रात-रात-भर जंगतों में आउद्रेई और पावेल मीटिंग करते । मई दिवरा के दिन जजूस में सवसे आगे कटा लेकर चलने का काम पावेल को करना था। इससे मां मन ही मन चिन्तित थी, परन्तु पावेल के भय से कुछ नहीं कह सकती थी | मई-दिवस के दिल जुलूस में पावेल के साथ आद्ेई और पेलागेया भी गए। जुलूस के आगे-आये पावेल ने लाल भंडा ऊपर उठाया और दर्जनों हाथों ने भडे का चांस घाम लिया। मड़े का बांस भामनेवालों में पावेल की भां का भी हाथ था। पावैल ने 'मजदू रवर्ग जिन्दावाद' और 'समाजवादी-जनवादी मजदूरदल जित्दा- बाद' के नारे लगाए। जनसमुदाय ने उन्हे ऊचे स्वर से दुह्दराया । इसके पश्चात्‌ क्रांति के गीत गाए गए तथा आन्देई बोला । जब कतार बांघकर जुलूस चलते लगा तो पेलाग्रेया माजिन के पीछे चलने लगी । लोगों का जुलूस में सम्मिलित होने का उत्साह देखकर पेलागेया का द्वदय गव॑ से भर उठता था। पावेल के सम्मान को देखकर वह उत्लस्तित हो रही थी। परन्तु रह-रहकर उसे उसके लिए चिन्ता भी हो उठती थी। फिर भी पैलागेया ने अपने मन की समझा लिया था। जुलूस सड़क पर आगे बढ रहा था तभी सहत्त्न सिपाही सड़क को 'ेरकर खड़े हो गए और उनकी संगीनों की चमक दिखाई देने लगी। एक अफसर ने तलवार चमकाकर भीड़ को तितर-वितर हो जाने का आदेश दिया और धीरे-घीरे लोग पीछे हटने लगे ! भंडे के साथ केवल कुछ दर्जन लोग रह गए। इसी समय पीछे से पेलागेया ने लोगों के भागने की आवाज्ञ सुनी । संगौनें मंडे के सामने चमक रही थीं। निकोलाई ने पावेल के हाथ से भडा लेना चाहा, परन्तु उसते दिया नहीं । एक अफर सर के आदेश पर प्रिपाहियों ने वन्दुक के कुन्दों के बल पर झंडा छीन लिया और आदेई, प्रावेल तथा उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया। इस छीना-मपटी में भंडे का बार्स डूढ गया, और लोगो पर सिपाहियों का क्रोध उमडने लगा। पेलायेया को एक शिपाहीं ने धबका दिया और उसके सोने मे घूसा मारा वह जैसे-तैसे उठकर एक गली मैं घुर गई । दूटा हुआ भांडा उसके हाथ में था । गली में लोगों की भीड़ थी, वहीं खड़ी होकर वह कहने लगी, “हमारे बच्चे सुख की खोज के लिए लड़ाई के मैदान में उतरे हैं और उन्होंने यह हम सबकी खातिर किया है---उस सद्य के लिए किया है जितके लिए ईवाय अपने भ्राण दिए थे। वे उन तमाम चीज़ों के खिलाफ लड़ते को मैदान में उतरे हैं जिद्दं पापी लोगों ने, झूठे और लालची लोगों ने, हमे वांवने के लिए, हमारी आवाज़ बर्द करने के लिए, हमे कुचल देने के लिए इस्तेमाल किया है-**”बोलते-बोलते वह मूच्चित होने लगी थी कि विसीने उसे घ्राम छिपा जौर मिजोव उसे धर पहुंचाने गया । सब उसे आदरगी ना हर दृष्टि से देखने सो । उस दिन ही रात को सद्मस्त्र सिपाही पेछागेया के यहां तलाशी लेने को आ अमझे । यह तीसरा अवसर था जबकि सशस्त्र पुलिस उसके महा तलाशी लेने थाई थी। जद तलाशी हो चुरी तो अफसर ने कुछ कागर्जों पर वेलागेया से हस्ताक्षर करवाए । देद्दी-मेढी जिप्लावट में पेलाग्ेया ने हस्ठाक्षर विए : पेल्ागेया ब्लासोवा, एक मजदूर की वियवा । यह धब्द उसके मजदूरों के प्रदि लगाद को प्रकट करते हैं, जिन्हें पढ़ते ही वह अफमर उमसे बोला, “जगली कही की !” दूसरे दिन ही पेलागेया से मिलने इवादोविच आया। उसने उसे बताया कि पावेत और आन्देई से उसका यह ठय हुआ था कि उसके गिरफ्तार होने पर वह उसे शहर पहुचा आए। उसने तलाशी के बारे में भी पूछा । निकोलाई इवानोविच के साथ पेलागेया दांहर जाने को तो तैयार हो गई परम्तु उसने अपने लिए कुछ काम ढढ़ लेने का भी कहा था। निकोलाई ने रीविन के यहां पर्चे और अखदार पहुचाने का वाम चताया। मा ने स्वीकार किया और तिकोलाई के साथ शहर में उसके थर रहने लगी । शहर के सिरे पर एक सुनेसात सड़क के हितारे तिडोलाई दुमझिले मकान से रहता था। निकालोई ने पेलागेया को बता दिया कि उसकी बहन सोफिया भी उत्तका काम करती है और कभी-कर्मी वहां आ णाती है। सोफिया आई तो उसने पेलागेया का उल्लास बेः साथ स्दांगठ किया। पेलागेया को सोफिया के चेहरे पर अपार साहम और चंचलता दिलाई दी । उसने बताया ऊि जैसे ही मुकदमा चलाकर पावेल और उसके सा्िपों को देश-निकाला देकर कही भेजा झाएगा, वे लोग पाव्रेल को भगाने दा प्रवन्ध दर लेंगे । निवोताई और सोफिया का ब्यवहार पेलागेया के भ्रति बहुत बचछा था ) यह उनके भोजत और कॉफी की ध्यवस्था करतो थो और आगे की योजनाओं पर उनसे बातें करनती थी । सोफिया वियातों बहुन अच्छा दहाती थी । मां उसका वियानों सुनकर बहुत प्रभावित हुई। निकोलाई और सोफिया को मां ने अपनी रामशहानी सुनाई और यह भी बताया दि किस तरह उसदा पति उसे पीटा करता था और व से से दप्टो भे वह दिन दिला चुबी है, आदि । माँ बेः गत जीदन की दातें जानवर सोफिया उसका बहुत ही आइर करते लगी। बुद्ध दिन वाद दी दाहर की गरीब स्त्रियों के देश मे सोफिया और वेलायेया धहर शी सइके पार करके सेतो दी ओर चल दी । चतते-चलतरे सोफिया अपने जीवन के धषत्मरण माँ को सुनातो जा रही थी। सोफिया की बातें सुनकर वैलायेया प्रसन्‍न हो रदी थी, परन्‍्धु दभीचभी उसे आशवा होती कि रीजिन सोफिया से मिलकर सुश नही हो सदेशा । सीसरे दिन शोकिश और पेलाग्रेया रोबित के पास तारशोल के दारखाने जा पहुर्ची । रोविन पेलागेया ओर सौफिया से बड़ी आत्मोयता से मिला । पादेल के बारे में पूछने पर माँ में जुपूत से सेकर जेल जाने तर दी सारी घदना बता दो | रीविन वी उन्होंने पुस्तक और अशवारे के अश्ल दिए) पट तो रोविन सोफिया से दीखी-नीखी शातें करने खगा, परम्तु जब उसते उसके जेल जाने तथा दूगरे कामों के: दारे मे सुता तो उसवा विचार ददल घ६ संसार के महात उपस्याय गया। रात को सोफिया और पेजागेया वहीं रहीं । रीवित ने एक तपेदिक के रोगी को डुलाया जिसने अपनी क्षण कहानी सुनाई कि किस तरह उसका झोयण किया गया था। फिर सोफिया मे मजदूरों की एकता और कार्यक्रम की वात कद्ी । चलते समय दूर तक रीयिन और उसके साथी उन्हें पहुचाने आए। मां यह जानकर खुश थी कि वह पावेल के काम को आगे बढाने में सद्ायक ही रही थी | अब उसे काम मिल गया था। उसे अपने अस्तित्व का भान हो गया था । रीविन के यहां से लौटने पर पेलागेया का जीवन बुछ दिन तो निश्चित क्रम ते घलने लगा>-सुवह निकोलाई चाय पीकर उसे अखबार पढ़कर सुनाता, फिर दोपहर को बह खाता बनाती, वहा-घोकर पढ़ती । निकौलाई ने जब से मां को पढ़ते देखा, तभी से वह बहुत सुश हुआ और उसने सचित्र पुस्तकें लाकर उसे दीं । कभी-कभी साशा उसमे मिलते आती और पावेल की कुझल पूछती और उससे नमस्ते कहऊर फ़िर चली जाती । पेलाग्रेया अपने थेटे पावेल के बारे भे जब भी सोचती, उसकी आखो के सानने बाउदेई तथा प्योरोर आदि के चित्र घूम जाते । कभी-कभी ऋुभलाहट अवश्य होती कि पावेल पर शी प्र मुकदमा बयों नही चलाया जाता; क्यों उसे वैसे हो जेल मे वन्‍द कर रखा है [ कपड़ा! बुनने के कारखाने में जब से नताशा ने पढाना प्रारम्भ किया, तभी से पेलासेया ने उत्ते पुस्तकें, अखवार ओर पर्चे आदि पहुंचाने काम करना आरम्म कर दिया था। इव गैरकानूनी चीजों को वह बडी सावधानी मे पहुचा देती । कुछ दित बाद तो पूरे इसाके में पेलागेया ने यह काम करना प्रारम्भ कर विया | वह कभी तो साधुनी का भेप बनाकर जाती और कभी लैंसे वेचनेवाली का । उसके कथे पर कमी तो थैला पड़ा होता और कभी वह हाथ में सूटकेस लिए होती । एक दिन निकोलाई ने उसे समाचार दिया कि उनका कोई एक साथी जेल से भाग आया है परन्तु वह्‌ उसका नाम नहीं जानता। उसने यह भी वताया कि गेगोर के यहां जाने पर उसका प्रता चल सकेता है। पेलागेया के हृदय में हलचल मचने लगी, उसे रह* रहकर यह र्याल आता कि कही पावेल तो नहीं आ गया । वह छुरन्त मेगोर के घर गई। वास्तव में वेसोवाश्चिकोद जेल से भागकर आया था। वेसोवाश्चिकोद ने येगोर और वैलॉ- येया को बताया कि जेल में पावेल ही उनका नेतृत्व करता था, सभी उसका सम्माव करते थे और अफसरों से बात करनी होती तो वही करता भा ॥ वैसोबाश्विकोव बी बाते सुनकर मां चुप रही। कभी-कभी वह येगीर के चेहरे को देख लेती जोकि अब 22% ह्र्वा था। येगोर अब बहुन-वहुत जोर से खांसने लगा था और उसका स्वास्थ्य दिव्अति रे विगड़ता जा रहा था। मा बाजार से वेखोवारिचकोव के लिए कोट खरीद कर लाई। जद निकोचाई मां से मिला तो उसने बताया कि येगोर इवानोविच की दवीमत बहुत सराव हो गई गौर उद्ते अश्पताल ले जाया गया है। पेलागेया जीक्नता से धलूका पहचाए अस्पताल जा पहुची । वहां कुछ देर वाद ही येगोर को मृत्यु हो गई। दूसरे हित वह बोर के कफन आदि क्ये व्यवस्था करती रही । बेगोर की अर्यी निकालते के लिए तीरा-घालीव व्यक्ति अस्पताल के फाटक पर एकत्र हो गए थे और प्रदर्शन रोकने के लिए राग पत्तित भी चक्तर लगाने लगी थी । उँसे ही अर्थी अस्पताल के द्वारपरआाई सबने टोपियां उता रकए कक, ० 7 आज कलिक, "कक पक: “डी ये: के: के जाए... के. सह... औक है. भा ०] सम्मात प्रश॒ट किया । एक पुलिस-अफसर ने आर्थी पर दंधे हुए लाल फीतों को काट देने की आज्ञा दी। पेलागेया को पुलिस को हरकत देखकर बहुत क्रोध आया। उसने पास में खड़े एक नवयुवक से कहा कि वे उन्हे मर्जी के भाकिक अल्त्येप्ि संस्कार भी नही करने देते। कितनी क्षर्म की बात है ! उसी समय अर्यी पर बंधे हुए लाल फीते तलवार से काट दिए गए । अर्थी के साथ जानेवाने लोग शोक में डूबे स्वर से गाने लगे तो उन्हें पुलिसवालों नें रोक दिया। सभी के मत में फ्रोष उमड़ा पड़ रहा था, परन्तु कोई भी कुछ नहीं कह रहा था। जब अर्थी कब्रिस्तान में पहुची तो एक नवशुवकु ऊची आवाज में येगोर की शिक्षा को कभी न भूलने को बात कहते लगा । पुलिस-अफ़सर ने उसे गिरफ्तार करने का आदेश दिया और पुलिसवाले भी ड़ को चीरते हुए ददता की ओर बढ़ चले । लोगो ने उसे चेरा बताकर अपने दीच में कर लिया और नारे लगाने लगे । अन्त मे पुलिस ने उस नव युवक को घेर ही लिया और दूसरे लोगो को मार-मारकर भगाने लगे । पहले दो वे पीछे हढे। फिर चहारदीवारी की टूटी हुई लकड़ियो और बेतो से पुलिसवालों का सामना करने लगे। पुलिस तलवारें खींचकर उनपर टूट परड़ो । उसी समय निकीलाई ने कहा कि साथियों, अपनी शव्ित ब्यर्थ मे नष्ट मत करो, और लोग उसकी बात मानकर वहा से भागने लगे) निकोलाई से उत्तेजित भीड़ को पीछे हटाने के लिए भरसक प्रयास किया । उसी समय सोफिया एक घायल लडके का हाव मा के हाथ में पकड़ा सई ओर उसे घर ले जाने को कहा । पेलागेया लड़के को लेकर घर चली गई] एक बार जब पेलागेयर पादेव से जेल मे मिलने गई तो उसे चुपके से एक पर्चा दे भाई पर्चे मे उससे वहां से भागने को कहा गया था और इसकी व्यवस्था उसके साथी करनेवाले थे। सोफिया ने पेलागरेया को वह पर्चा दिया था । जब भी पेलागेया पावैल से मिलने जेल जाती उसी दिन साथा उससे पावेल के सम्बन्ध में पूछने आती थी । इस बार भी वह जाई और कहने लगी कि उसे आश्या नही है कि पावेल जेल से भागते को राजी ही जाएगा, इसलिए वह समभा-बुभाकर उसे मनाने का यत्न करे। उससे साशा ने यह भो कहते को कहा कि उसे पावेल के स्वास्थ्य को बहुत चिन्ता है ओर बाहर उसके लिए वहुत बाम है। साशा ने बड़ी कठिताई से भां से इतना सब कहा था। पेलागेया इस वात को अच्छी तरह समझती थी कि वह पावेल से बहुत प्रेम करती है। दूसरे दित से ही फिर पेलागेया अपने काम में व्यस्त हो गई । वह घोड़ागाड़ी में बैठकर अखबार ओर पर् देने रीविन के कसदे को ओर चल दी। जंसे हो वह अड्डे पर भौड़ायाह्दी से उतरो, उसते एक भोड़ देखी । उत्सुकता से उसने देखा ती बीच मे रीबिन वरधे-हाथ पुलिसवालों के बीच खड़ा था। पेलागेपा एक वार तो धवराई, परन्तु फिर समल गई। तभी रीविन ने अपने एक किसान साथी स्तेपाने के कान में कुछ कहा और बह माँ को अपने घर लिया ले गया । मा ने देखा कि थानेदार ने बेदर्दी से रोबिन को घूसों से पीटा, जिससे उसके भुह में खून था घया। किसान चोधित तो हुए परन्तु कुछ कर नहीं सके। अभी बे विद्रोड्‌ के लिए तैयार नही थे। पुलिसदाले रीडित को गाड़ी मे विदाकर श्र ले गए। पेलागेया ने उस किसान के घर पहुचकर उसे अखबार व पर्चे दे दिए। उसके लड़के के सम्बन्ध में पूछने पर वेलागेया ने बढाया कि वह जेल मे है। किसान और करत संगार के महात उपयात उसके गाथी पावेल की वहानी बुनकर बुत प्रभावित हुए। रात-भर वेलागेया वहीं रही और स्तेषान को अपना शहर का पता बताकर गुवरह गाड़ी में बैठकर झहर लौट पड़ी। रास्‍्ते-भर उसे रीबिन का चेहरा याद आता रहा। धर पहुंचते हो निकोलाई ने वेवा गेया को बताया कि उसके पीछे वहां पुलिस ने तलाशी ली थी और उसे पेलागेया के पकड़े जाने का डर था। जय पेलागेया ने रीविन की ग्रिरफ्तारी ते लेकर सलेपात किगान के घर झुकने और असार तथा पर्चे पहुंचा आने की बात कही तो निकोताई विन्तामुक्त हो गया। रीबिन की गिरफ्तारी का समाचार सुनकर तिकोलाई को बहुत दु.स हुआ, क्योकि वह इस तथ्य से परिचित था कि जेल में उसे कंप्ट दिया जाएंगा । दूसरे दिन सुबह होने से पहले ही इगनात नामक युवक, जो कि रीबिन के साथ तारकोल के कारखाने मे काम करता था, वहां आया और रौविन की गिरफ्तारी के बारे में कहकर उसने रीविन के हाथ का लिखा एक पर्चा दिया जिसे वह पडड़े जाने से वहले लिख गय था। निकोलाई ने पढ़ा। पर्चे में लिखा था, “मां, हमारे काम से हाय न॑ खीच लेना और उस लम्बे कदवाली नेक औरत गे कह देना कि वह हम लोगों के बारे में पहले से भी स्थादा लिखा करे । अच्छा विदा | ->रीविन।” मां ने इगनात को बताया कि जब वह निकोल्स्कोये के अह्ढे पर पहुची तब रीडिव को पुलिसवालों ने बहुत बुरी तरह पीटा। इसके पश्चात्‌ निकोलाई ने रीडिन की गिर- पारी के सम्बन्ध मे एक पर्चा छपवाने छा प्रवन्ध किया ! इतवार को जब पेलाग्रेया फिर पावेल से जेल मे मिलने गई तो उसने चुपके से उसके हाथ मे एक पर्चा दिया । घर लोटने पर उसने पर्चा निकोलाई को दे दिया। वह आशा कर रही थी कि पावेल जेल से भागने की वात मान गया होगा, परन्तु निशेलाई ने पर्चा पढ़ा: “साथियों, हम भागने की कोशिश नही करेंगे। हम यह नहीं कर सरते। हममें से कोई भी नहीं । अगर हम भागे तो हमारे आत्मसम्मान को घकका लगेगा | लेवित उस किसान की मदद करने की कोशिझ्ष करो जो अभी गिरफ्तार होकर आया है। ते तुम्हारी मदद की आवश्यकता है। यहा उसकी बड़ी बुरी अवस्था है, रोज अधिशारियों से उसका भगड़ा होता है। वह चौबीस घण्टे तो काल कोठरी में भी बिता चुका है। के सब यही चाहते हैं कि तुम लोग उसकी सहायता करो। मेरी मां को समझा देवा, उ सव कुछ बता देना, वह समझ जाएगीज”_* आंवले पेलागेया पावेल की बातें पहले ही समझती थी, परन्तु मां का हृदय यह मा को तैयार नहीं था कि वह जेल से नहीं भागेगा। पावेल के ऊपर पैलागेया को पूरा भरोता था । वह जानती थी कि वह जो करेगा, ठीक ही करेगा । अपने बेटे की इच्चा पूरी व] और उसके काम में सहयोग देना पेलागेया अपता धर्म समभने लगी थी! उसने निकीताई से कहा भी कि पावेल उसका बहुत घ्यान रसता है। उसते उसे समभाते की लिखा हर निकोलाई ने प्देल की प्रशंसा की । बह हृदय से उसका सम्माने करता था । हर तिकोलाई से रीवित को सहायता करने के लिए कोई योजना बनाते को बढ़ा ! बैसे' पते के उत्तर से पेलाग्रेया भारी थकनत अनुभव कर रही थी। साथा के आते पर 22% हे बादें उसे बताई और रीविन के बारे में भी कहा। साशा उसे जेल से भगाने की ये हक पक्के च्च्र जज जे च्ऐ जज खे लेप है नि यह मां लगी । तौसरे दिन ही साशा ने बताया कि रीविन को जेल से भगाने की तैयारी हो पई है। उसने यह भी दताया कि रोविन को छिपाने के स्थान और कपड़ों की इ्यवस्था उसने कर दी है। साया ने कहा कि गोवून और वेसोवाश्विकोव उनकी सहामता करेंगे) पेलगिया उस दिन उनके साथ गई और जेल के पासवाले कब्रिस्तान की चहार- दीदारी के पास छिएकर खड़ी हो गई।॥ पेलागेया ने देखा कि एक आदमी बत्ती जलानें- बालों की तरह कपे पर सीढ़ी रले आयए ओर उसने सीढ़ी जेल की दीवार के सहारे लया दी । सीढ़ी पर चड़कर उस आदमी ने हाथ घुमाकर सकेत किया ओर दीवार पर एक श्यक्ित का सिर दिखाई दिया । वह रीविद था । उसके बाद है एक और आदमी दीदार से सीढ़ी पर आापा और उत्तरकर एक तरफ को माणा । रोबित को देखकर पेलागेया धीरे औरे बोली : भाषो | भाणों * !**"उस्छी समय जेल में सिपाहियों को सीटिया बजने लगी जया उनके भागने की आवाड़ सुनाई देने लगी) पेछायेया जित काम को इतना कठिन सम रही थी घह किददी सरलता से हो गया थ ३ बह सोद रही थी कि रीविन की तरह परवे्न भी जेल से भाग सकता था। धीरे-धीरे मां वहां से चल दी। घर आकर उसने निकोलाई को रीविन के भागने का वृत्तात्व सुनाया। निकोलाई ने कहा कि उसे पेलागेया ही बहुत बिन्‍्ता थी कि कहीं वह पकड़ो न जाए। पेलागेया अब भी प्रादेल के मुकदमे से बहुत डरती थी । निकोलाई ते उसे समझाया कि वह भुकेदमे से डरना छोड़ दे । पेलागेया में बताया कि वह स्वयं महीं जानती कि वह क्यों डरती है। वास्तव मे उसका पूरा जीवन भथ और विन्‍्ता मे ही बीता था। अब एकदम उनसे मुक्त होना उसके हाय की बात नहीं भी) उसने स्पष्ट कह्टू दिया कि उसे रह-रहकर यह विचार आता है कि मुकदमे मे न जाते जया होगा । उसने यह भो कहा कि उसे सजा से डर नहीं लगता कि पावेल को कया सजा मिलेगी । डर तो मुकदमे की कार्यवाही से लगता है। निकोलाई ने पहले ही पेलागेया को बता दिया था कि पावेल और उसके साथियों को साइवेरिया भेजने का दड दिया जाएगा, ऐसा समानार उसे विश्वस्त सूत्र से शात हुआ था । जँसे-जँसे मुकदमे का दित निकट भाता जा रहा था, पेलागेया का भय बढ़ता जाता था। मुकदमे के दिन लदालत जाते समय तो उसके लिए सिर उठाकर चलना भी कठित हो गया था । अदालत के बाहर और वरामदे मे उसे उन लोगों के सम्बन्धी मिले, नितपर कि मुकदमा चलाया जा रहा था। वह सिजोव के पास जाकर बेंच पर बैठ गई और मुकदमे भी कार्यवाही देखने लगी। एक सिपाही के पीछे-पीछे पावेल, आन्देई, एयोदोर मरजिन, पुगेव नामक दोनों भाई, समोइलोव, बूकित तथा सोमोद आदि आए और कठघरे में रखी ईच पर बैठ गए । सबके चेहरों पर मुर्कराहट थी) कोई भी सृकदमे ले डरा! नहीं था । शो ने उनसे प्रस्‍न पूछे, जिनहा वे निर्भीकता से उत्तर देते रहे । बीच-बीच में वब्तैत भी इुछ दोलते जाते थे। इसके वाद पु समय के लिए अदालत उठ गई और सब लोग आपस में बातें करने सगे दा दाहर चाय पीने चले गए। कंदियों के सम्बन्धी उनसे बातें जरने समे। थौड़े समय में हो फिर जज लोग कुसियों पर आा बैठे और कार्यवाही आरम्भ हो पई। सरकार बल सभी कंदियों पर आरोप लगावा पहा। फेंदोसेयेद, साश्कोद और जपारोद थी ओर छै सफाई का वरील बोला । पेलायेयः समझी थी कि उसके बेदे दद ; संसार के महा ढा 22224 2६082 35 सुनकर 24400 हुए। रात-भर पेलायेदा वहीं लेजर धहर का पता बताकर सुबह गाड़ी में बैठकर श्र तौर ए गेया को बताया कि उसके 2 8320940 2 40374 00002 34224 उसके पीछे वहां पुलिस ने तलाशी लो थी और उत्ते वेवपेर का का डर था। जब पेलाग्रेया ने रीविन की गरिरफारी से बेऊर सेः का के घर झुकने मर बलबार तथा पर्चे पहुंचा आने की बात कही तो कि 'तामुक्त हो गया। रीबिन की गिरफ्तारी का समाचार सुनकर विकोसाई ढो इस हुआ, क्योकि वह इस तथ्य से परिचित था कि जेल में उसे कप्ट दिया जाएग।[ दिन सुब्रह होने से पहले ही इगनात नामक युवक, जो कि रीबिन के साथ हासोर अरखाने में काम करता था, वहां आया और रीबिन की गिरपतादी के बारे मे रह उसने रीबिन के हाथ का लिखा एक पर्चा दिया जिसे यह पकड़े जाने से पहले वि पे या। निकोलाई ने पढा। पर्चे में लिखा था, “मां, हमारे काम से हाथ न खौच तेता ४ उस लम्बे कदवालो नेक औरत से कह देना कि बह हम लोगों के बारे में पहने है भी एई जिया करे । अच्छा विदा !--रीबिन।” मां ने इगनात को बताया कि जब वह निकोल्स्कोये के अड्डे पर पहुची तव +9४ फो पुचिगवालों ने बहुत बुरी तरह पीटा । इसके पश्चात्‌ विकोलाई ने रोशिही हि पतारी के सम्बन्ध में एक पर्चा छपवाने का प्रचन्ध किया । १5 इतयरर को जब पेलागेया फिर पावेल से जेल में मिलने गई तो उसने पृ उसके हाथ में एक पर्चा दिया। घर लौटने पर उतने पर्चा निकोताईों दे शित। आशा बर रटी थी कि पावेल घेस से भागने की बात मान गया होगा, पएलु तिरी' में पर्चा पड़ा: "मायियों, हम भागने की कोशिश सही करेगे। हम यह नहीं एए मरे हैममे में कोई भी नदी । अगर हम भागे तो हमारे आत्मगाममात को घकता ऐगेया। रा उग पिसान की मदई करने की कोशिश करो जो अभी गिरफ्तार होहर आया है हुम्दाये मदद की आवश्यरता है। यहां उराकी बड़ी बुरी अवस्था है, रोड मे पाई 00000. हे. कि तुम लोग उसकी सहायता करो। गेट मां शो राममा रद बुर बता देवा, वढ़ समझ जाएगी” व” ._ पतायेया पावेण की बाय पहले ही रमझती थी, पर्लु माँ जा हैश गा. हे हो तेवर नहीं था कि बड़ जे से गरेगा । गाव्रिच के 4 द्वींचा दे जैज से नहीं भागेगा। बावेख के ऊबर पैलागेया डी 4 त्तीं था । बढ़ जानती थी हि बढ़ जो करेगा, टीक ही गटेगा। अपने बेटे की इसी परी डी + औरर उसे झाम में सहयोग देता वेखायेया अपना घर्म समझते लगी पी। उसने । है इटा भी हि पवेक उसवा बहुत ध्यान रखता है। उतने उसे राममाते वी हि डिकोवाई जे बदेस की ब्रधया बी । बट देदय गे उसका सम्मान करता पा विकरेदाई से रोहित की रुद्रावता करते के विए कोई योजना यगाते को हट ३४ पैबःयेया भारी यकत अतुमद कर रहीं थी। सादा के थाने की बताई और रीदित वे बारे में भी कह्ा। सादा मत बैल के « ववलाई भा ष्६्‌ “ बताने लगी। तीसरे दिन ही साज्ञा ने बतामा कि रीबित को जेल से भगाने की तैपारी । पूरी हो गई है। उसने यह भी बताया कि रोविन को छिपाने के स्थान और कपड़ों की “ ध्यवस्था उसने कर दी है ! साझा ने कहा कि गोवून और वेखेवाश्दिकोव उनकी सहायता ६ करेंगे। पेलागेया उस दिन उनके साथ गई और जेल के पासवाले कब्रिस्तान की चहार- # दीवारी के पास छिपकर खड़ी हो गईं। पेलाग्रेमा ने देखा कि एक आदमी वत्तों जलाने- ! बालों की तरह कछे पर सीढी रखे आया और उसने सीढी जेल को दीवार के सहारे लगा “ दी। सोड़ी पर चढ़कर उस आदमी ने हाथ घुमाकर सकेत क्रिया और दीवार पर एक # व्यक्ति का सिर दिखाई दिया । वह रीविन था ! उसके बाद ही एक और आदमी दीवार ४ से सीढ़ी पर जाया और उतरकर एक तरफ को भागा । रीबिन को देखकर पेलागेया घीरे- ४ धीरे बोली : भागो ! भागो ! | *““उसी समय जेल में सिपराहियो की सीडियां वजने लगीं ने तथा उनके भागने की आवाज़ सुनाई देने लगी । पेलायेया जिस काम को इतना कठिन _ समझ रही थी वह कितनी सरलवा से हो गया था। वह सोच रही थी कि रीबिन की ० तरह पावेल भी जेल से भाग सकता था । धीरे-धीरे भां वहां से चल दी ) घर आकर उसने निकोलाई को रोविन के भागने का वृत्तान्त सुताया । निकोलाई ने कहा कि उसे पेल्ागेया ५९ की बहुत जिन्‍्ता थी कि कहीं वह पकड़ी न जाए। पेलागेया अब भी पावेल के मुकदमे से ५/ बेहुत डरती थी। निकोलाई ने उसे समभाया कि बह मुकदमे से डरना छोड़ दे । पेलाग्रेया ने बताया कि वह स्वयं नहीं जावती कि वह क्‍यों डरती है। वास्तव में उसका पूरा जीवन भय और चिन्ता में ही बीता था। अब एकदम उनसे मुक्त होना उसके हाथ की बात नही थी। उसने स्पष्ट कह दिया कि उसे रह-रहकर यह विचार आता है कि धुकदमे मे न जाने बया होगा । उसने यह भी बहा कि उसे सड़ा से डर नहीं लगता कि पावेल को क्‍या सजा मिलेगी । डर तो मुकदमे की कार्यवाही से लयता है । निकोलाई ने पहले ही पेलागेया को बता दिया था कि पावेल और उसके साथियो को साइदेरिया भेजने कर दड दिया जाएगा, ऐसा समाचार उसे विश्वस्त सूत्र से शात हुआ था। जैसे-जैसे मुकदमे का दिन निकट आता जा रहा था, पेलागेया का भय बढ़ता जाता था । मुकदमे के दिन बदालत जाते समय तो उसके लिए. सिर उठाकर घलता भी कठिस हो गया था। अदालत के बाहर और बरापदे मे उसे उन लोगों के सम्बन्धी भिले, जिनपर कि मुकदमा लाया जा रहा था मह सिजोद के पास जाकर बेंच पर बैठ गई ओर मुकदमे की कायंवाही देखते लगी। एक सिपाही के पीछे-पीछे पावेल, आन्दे ई, पयोदोर माजिन, गुसेव नामक दोनों भाई, समोइलोव, बूकिन तथा सोमोब आदि आए और कठपरे में रखी बैच पर बेठ गए। सवके चेहरो पर भुस्कराहट थी। कोई भी सुक्दमे से डरा नहीं था। जजों ने उनसे प्रदन पूछे, जिनका वे निर्भीकता से उत्तर देते रहे । वीच-वीद में वकील भी कुछ बोलते जाते थे । इसके दाद कुछ समय के लिए अदालत उठ गई और सब लोग आपस मे बातें करने लगे या दाहर चाय पीने चले गए। कंदियों के सम्बन्धी उनसे बातें करने लगे । थोड़ें समय मे ही फिर जज लोग कुसियो पर जा बैठे और कार्यवाही आरस्म ही गई। सरकारी वकील समी केदियों पर आरोप लगाता रहा। फंदोसेय्रेव, मारकोव ओर जपगारोव की ओर से सफाई का वश्वैत बोला । पेलागेपर समझी थी कि उसके बेढे जे #% जे. >अ 8... क. न जि 8 2 55 हू ध्य संसार के महान उपलाद और दूसरे सोगों का फैसला ईमानदारी से किया जाएगा, परन्तु जजों की भावद्वीन यू और धकीलों की ऊल-जखूल बातों ने उगे निराश कर दिया। अब मुकदमे की कार्यवाही में उसे रुचि नहीं रही । अन्त में पावेल और उयके साथी एक-एक करके बोलने खड़े हुए। पावेल ने अपनी सफाई में कुछ भी कहने से इन्कार कर दिया और समाजवादी दल हे सम्बन्ध में तथा जारश्ाही के दोपों के सम्बन्ध में विस्तार से वोलने लगा। जजों ने पहो तो उसे टोका परन्तु वे फिर चुपचाप सुनने लगे। पावेल ने कहा : हर “हम फ्रान्तिकारी हैं और उस वक्‍त तक क्रान्तिकारी रहेंगे जब तक इस दुनिया में यह हालत रहेगी कि कुछ लोग केवल आदेश देते हैं और कुछ लोग कैवल काम करे हैं। हम उस समाज के विरुद्ध हैं जिसके हितों की रक्षा करने की आप जज लोगों को बाझ दी गई है। हम उसके कट्टर भ्रश्नु हैं, और आपके भी; और जव तक इस लड़ाई में हम जीत न हो जाए, तव तक हमारा कोई समझौता सम्भव नही है।''*7 जज, कंदी और दर्शक तथा वकील सभी पवेल का उत्तेजक माषण मुन रहे हे उसने जारशाही को खूब खरी-सरी सुनाई। वेलागेया इस बात से खुश थी कि पाई इतनी निर्भीकता से थोला, फिर भी वह फैसले से डर रही थी। पेलागेया पवेल की वा से अपरिचित नहीं थी । वह बहुत बार उन्हें उसके मुंह पे सुन चुकी यी। पावेल केव आन्ेई, समोइलोव, भाजिन आदि से सफाई के सम्बन्ध में पूछा गया; और वे मी? तरह कुछ कहकर बैठ गए । अन्त में बड़े जज ने देश-निकाले का दंड सुना दिया । जे पेलागेया अदालत से बाहर निकली, वहुत-से नवयुवक और नवयुवत्तियों ने उते पे लिया। सभी मुकदमे की कार्यवाही और सज्ञा के सम्बन्ध में पूछने लगे। पेलागेया के पावेल ब्लासोव की मां जानकर तो सभी पावेल के साहस को प्रशंसा करने लगे। कोई कोई उससे हाथ भी मिलाने लगे। लोगों ने 'रूसी भझदूर डिन्दावाद! के नारे लगाते में प्रारम्भ कर दिए। पुलिस की सीटियां वजती रहीं, परन्तु नारे वन्द नहीं हुएं। पेषागेण अपने वेटे का इतना सम्मान देखकर अपनी व्यूथा भूल गई ओर हर के आंसू उसकी वालों में छलछला आए । उसी समय एक व्यवित ज़ारशाही के विरुद्ध भाषण देने लगा। तभी साशा बहां आई और पेलागेया को हाथ पकड़कर दूर ले गई। उसने कहा कि शुरू होने से पहले ही उसे वहां से चला जाना चाहिए। साझा ने पेलागेया से पावेत ढ़ भाषण के थारे में पूछा कि वह कैसा बोला और यह भी बताया कि उसका वाम संभाततें- वाला आदमी मिलने पर वह भी शायद साइवेरिया चली जाए। उसने मा को साफलर्क बताया कि उसे भी सड्या सुनाई जानेवाली है और उसे भी साइवेरिया भेजा जा 27 है। मां चुपचाप साझा की बात सुनती रही और पावेल के प्रति उसके प्रेम के बारे सोचती रही । उसे साशा पर बहुत तरस आने लगा । वहां से साशा और येलागेया 20 लाई के धर आईं; और पेलाग्रेया कुछ देर तक उससे बातें करती रही, फिर घुदूमीला क ग “४४ «<। वह इस बात का पूरा-यूरा ध्याव रख रही थी कि कोई उसका पीछा दो बरी ५ ५८५॥ खुदमीला को उसने पावेल के भाषण का पर्चा देकर छाप देते को कहा । 7' «» पर्चों वो छाप्रा करती थी। पेलागेया तो थबन के मारे सो गई और सुदूमीता 5 - छापने का प्रवन्ध करने .लगी । दूसरे दिव, उसने मां को माफी पर्चे छापरर दे हि मो ह््‌ इती बीच निकोलाई ग्रिरफ्तार कर लिया गया था, यह समाचार भी लुदमीला ने हो पेल्ागेया को सुताया | लुद्मीलः ने भां से कहा,“तुम भी कितनी भाग्यवात हो ! मां और बेटे का कब्घे से कन्चा मिलाकर साथ च्षता कितनी शानवार बात है और ऐसा बहुत कम ही होता है ।” पेलागेया ने धीमे स्वर मे कहा, “हमारे बच्चे दुनिया में आगे बढ़ रह हैं ! मैं तो इसे इसो तरह देखती हूं, वे सारी दुनिया में फैल गए हैं और दुनिया के कोने-कोने से आकर एक ही लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं !**"हमारे बच्चे सचाई और न्याय के पथ पर चल रहे हैं।'***पऐलायेया अब पावेल के लक्ष्य को समझने लगी थी । वह उसके साथियों की सदुभावता से परिचित हो गई थी । वह अधिक तो नहीं जानती थी, परन्तु सुन्दर भविष्य का चित्र उसको आंखों मे भी घूम जाता था। लृद्मीला ने उससे कहा कि उसके साथ रहकर उसे बहुत खुशी होती है। अब पावेल् के भाषण को बांटने का काम पेलागेया को करना था । गाड़ी से दूर- दूर उसे अपने बेटे का भाषण पहुचाना था। नह गाड़ी कै समय से पहले ही स्टेशन जा पहुची। मुसताफिरखाते की एक बेंच पर जाकर पेलायैया बैठ गई, और कुछ देर बाद ही एक नवयुवक सकेतवाक्य सुनने के बाद उसे ५र्चों का बकसा दे गया । अब पेलागेया को भय लगने लगा धां कि कोई उसपर तिगाह तो मही रख रहा है। एक बार तो उसके मन में प्रददद उठा कि बया वह पावेल केः भाषण के पर्चों से भर बबसा छोडकर चलो जाए ? परन्तु फिर वह साहस वटोरकर वही बैठी रहो । उसने वक्सा मजबूती से हाथ में पकड़ें रफ़ा | कुछ देर बाद ही एक जामूस उसको देखकर लौट गया। उसने शातति की सांस ली, परन्तु थोड़ी देर में ही वह गई के श्ाथ फिर लोटा। गार्ड उसे घूरने लगा। मां को डर लग रहा था कि कही वे उसे पीटे नहीं। गाई ने उससे कहा, “अच्छा यह बात है। चोर कहीं की ! इस उम्र मे यह सूव करते शर्म नहीं आती ?”'*“तो पेजागेया क्रोध से काप उठी और भटका लगते से बक्सा खुल गयां। वह और कोई चाय न देखकर चिल्लाने लगी, “कल्न राजनीतिक कंदियों पर एक मुकदमा चलाया गया था और उनमे मेरा बेटा पावैल्ञ ब्लासोव भी था। उसने अदालत में एक भाषण दिया था, यही बह भाषण है। मैं इसे जनता के पास ले जा रहीं हू ताकि वे इसे पढ़कर सचाई का पता सगा सकें ।/ और पर्चों की गड्डियाँ उछाल-उदछ्धालकर लोगों की ओर फेंकने लगी । उसके चारों और भीड़ लग गई ओर वह पर्चे दांटदी रही । तभी सशस्त्र सिपाही आए और पीट-पीटकर भीड को तितर-वित्र करने लगे। लोग पेलागेया से भाग जाने को कहने लगे, परन्तु वह गई मही। वह शासन के अत्याचारों और अपने बेटे तथा उसके सा्ियों के उद्देश्य बादि के सम्बन्ध मे उन्हें बताने लगो। जितना वह जानती थी वही बठाती रही। भर्साए हुए गले से वह धोली,“मेरे बेटे के शब्द एक ऐसे ईमानदार मजदूर के शब्द हैं जिसने अपनी आत्मा को बेचा नही है। ईमानदारी के शब्दों को आए उसकी निर्भीकठा से पहचान सकते हैं” इसी समय किसी सिपाही ने उसकी छातो पर जोर से घूसा मारा और वह बैंच पर गिर पही। अब सिपाही भीड़ वो पीछे धदेलने लगे थे! अपनी बची हुई शकित से पेला- गेया फिर बोलने लगी तो सिपाहियों ने उसे धप्पड़ और धूसों से मारना प्रारम्भ कर ६० ः संसार के महदे र दूसरे लोगों पैः जे कम का फैसला ईमानदारी से किया जाएगा, परन्तु जजों की शाशे अप सम ऊल-जलूल बातों ने उसे निराश कर दिया। अब मुक्दने की रर दा अल: में पावेल और उसके सायी एक-एक करके बोररे वो 280) 520 ध्ई में कह कहने से इन्कार कर दिया और समावाे ६ तो हे टीका क्त्च 840%%5/ ही जा के सम्बन्ध में विस्तार से बोलने लगा । बर्ें 2४ स्न्चु फिर चुपचाप सुनने लगे। पावेल ने कहा : दल मिड हैं और उस वक्‍त तक क्रान्तिकारी रहेंगे जब तक छा हुरि दें हालत रहेगी कि कुछ लोग केवल आदेश देते हैं और कुध लोग बेवतारर हैं है। उस समाज के विरुद्ध हैं जिसके हितों को रक्षा करने को आप जब हों रे र. दी गई है। हम उसके कट्टर धत्रु हैं, ओर आपके भी; और जद तक इस बहाएं जीत न हो जाए, तब तक हमारा कोई सममौता सम्भव नहीं है।* का 0424 और दक्नंक तथा वकील सभी पावेल का उत्तेजर भाषश मत ऐरे! जारणशादी को सूब सरी-सरी सुनाई। वेलागेया इस बात से सु पोती ५8424 से बोला, फिर भी वह फैसले से डर रही थी। पेलायेपा पतोष है आई, कल री / कह बहुत बार के 3४ पुंहे कर 3 ४ इ्लोय, माजिन आदि से सफाई के सम्बस्ध में पृधा गया; ओररे! हर हें बुध क्टफर बैठ गए । अन्त में बड़े जज ने देश-निकासे का दंड युता छि।' है गया बदालत से बाहर निरुली, बहुत-से नवयुवक् और नायुवरियों नै विश । सभी मुकदमे की कार्यवाही और सजा के सम्बन्ध मे पूछते लगे। वैध हानि ब्वासोय भी मां जानकर तो सभी पावेस के साहस डी प्रशंसा केले सो! 34 उगये हाथ भी मिलाने सगे । लोगों मे 'रुसी मजदूर जिल्दावाई के तरेत पारप्म कर दिए । पुलिस की सीटियां यजती रही, परन्तु गारे बदतहीं हुए! सपने बेटे बा इतना रग्मान देसकर अपनी ध्यूपा भूस गई और हुए के मो रप मे धवदता बाद । उसी समय एक व्यक्त जारशाहो के विदृद्ध भाषण है ही! गाया बटा आई और वेलागेया को हाथ पकड़कर दूर से गई। उसे हह्मा हि से शुरद नि मे पद्ते ही उसे वहां से चला जाता चाहिए। साधा ने पेशे मे हो आपने $ बारे मे पृददा कि वह कैसा बोला और यह भी बताया हि उगह शक वा डा आदमी मिलते पर बढ भी घावद खाइवेरिया चती जाएं। उसने गा * के अर हि उसे भी सझ सुनाई जातेबाली है और उसे भी साइवेरियां गैंग? | है। मा धूपचाए गादा की बात सुतती रही और पावेल डे शरति इतर का मोर रही । उसे गाणा पर बदुत तरस आते सगा । वहाँ मे सागा और दर कर साई के घर आई; और देखयेया बुछ देर मक उससे बारें ढरती रदी, दि? है! हे धर गई। बह इस बाक का पूराययूरा ध्यात रख रहीयी दिया हर पट । सुदुझेता को उसने बादेत के झाषण का वर्षा देइर दाग वि की 7 का इल्फे पं हा छापा इस्ती थी। बेशदेवा तो घकत डे मारे सी रई गौर ही“ डो छोपते दो प्दत्द करने लटी। दुसरे दित, डसते माँ हो बाही फट मां ब्र्‌ इसी बीच निकोलाई गिरफ्तार कर लिया गया था, यह समाचार भी लुद्मीला ने हो पेलागेया को सुनाया । लुदुमीला ने मा से कहा,“तुम भी कितनी भाग्यवात हो ! मां और बेटे का कन्धे से वन्‍्छा मिलाकर साथ चलना कितनी शजनवार बात है और ऐमा वहुंत कम ही होता है ।” पेलागेपा ने घीमे स्वर में कहा, “हमारे वच्चे दुनिया में आगे बढ़ रह हैं। में तो इसे इसी तरह देखती हूं, वे सारी दुद्िया में फैल यए हैं और दुनिया के कोते-कोने से आकर एक ही लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं ।** “हमारे वच्चे सचाई और न्याय के पथ पर अल रहे हैं।”***“पेलागेया अब पादेल के लक्ष्य को समभने लगी थी। वह उसके साथियों की सद्भावता से परिचित हो गई थी। वह अधिक ठो नहीं जानती थी, परस्तु सुन्दर भदिष्प का चित्र उसकी काछों मे भी घूम ऊाता था। लुदूपीला ने उससे कहा कि उसके साथ रहकर उसे बहुत खुशी होती है । अव पवेल के भाषण को बांटने का काम पेलागेया को करना था। गाड़ी से दूर- दूर उसे अपने बेटे का भगषण पहुदाना था । वह गाड़ी के समय से पहले ही स्टेशन जा पहुची। मुसाफिर्ताने की एक बेंच पर जाकर पेलागेया बैठ गई; और कुछ देर बाद ही एक सवयुवक सकेतवावय सुनले के बाद उसे पर्चों का बवसा दे गया ; अब पेलागेया को भय लगने लगा थां कि कोई उसपर तियाह तो नही रख रहा है ! एक बार तो उसके मन मे प्रब्न उठा कि कया वह पावेल के भाषण के पर्चो से भरा बक्सा छोड़कर चली जाए ? परन्तु फिर दह साहस बटोरकर वही बैठी रही । उसने बक्सा मजबूती से हाथ में पकड़े रखा। कुछ देर बाद ही एक जासूस उसको देखकर लौट गया। उसने झांति की सास ली, , रन्तु थोड़ी देर में हो वह गार्ड के साय फिर लोदा। गाई उसे घूरने लगा । मा को डर लग रहा था कि कही दे उसे पीटें नही । गाई ते उससे कहा, “अच्छा यह बात है। चोर कहीं की ! इस उम्र मे यह सब करते शर्म मही आती ?”**'ठो पेलागेया क्रीथ से काप जी और झटका खगने से वक्सा खुल गया। वह और कोई चारा न देखकर चिल्लाने लगी, “कल राजनीतिक कंदियों पर एक मुकदमा चलाया गया था और उनमे मेरा बेटा प्रावेल ब्लासोद भी या। उसने अदालत मे एक भाषण दिया था, यही वह भाषण है। मैं इसे जनता के पास ले जा रहीं हू ताकि वे इसे पदढकर घचाई का पता सगा सकें ।/ और पर्चों की गद्डियां उछाल-उदालकर लोगों बी ओर फेंकने लगी । उसके चारो ओर भीड़ लग गई और वह पर्व बाठदी रही । तभी संघस्त्र सिपाही आए ओर पीट-पीटकर भीड़ की तिवर-बितर करने लगे । लोग पेलागेया से भाग जाने को कहने लगे, परन्तु वह गई नही। बह शासन के अत्याचारों और अपने बैटे तथा उसके सावियो के उद्देश्य आदि के सम्बन्ध मे उन्हे बदाले लगी । जितना वह जानती थी वही बताती रही। भर्राए हुए गले से वह बोली, मेरे बेटे के शब्द एक ऐसे ईमानदार भजदूर के शब्द हैं जिसने अपनी आत्मा को बेचा नहीं है । ईमानदारी बेः शब्दी को छाप उसकी निर्मकिठा से पहचान सकते हैं" इसी समय किसी सिपाही ने उसकी छाती पर छोर से घूसा मारा और बह देंच पर गिर पड़ी । भव सिपाही भीड़ को पीछे घकेलने लगे थे । अपनी बची हुई शात्ित से पेला- गेया फ़िर बोलने लगी ठो सिपाहियों ने उसे षप्पड और थूसों से मारना प्रादम्भ कर हर संसार के महान उपन्यास दिया। उसकी आंखों के आगे अपेरा छा गया और उसके मुंह से रक्त आ गया। बहुतन्से लोग सिपाहियों से कहने लगे : खदरदार जो उसे हाथ लगाया ।'''वे हमारे दिमाग डा तो खून नहीं कर सकते ! परन्तु पेलागेया पर थप्पड़ और घूसे बरसते रहे ) यह बोलती रही, “रक्त की नदियां भी बहा दो, तो सचाई उसमें नहों डूब सकती ! ”**“तभी एक सिपादो उसरी गर्दन पकड़कर गला घोंटने लगा, फिर भी वह बोली, “कमबह्तों | **” मो अपने बेटे के पथ पर चलती हुई, उसके काम को आगे बढ़ाने के लिए प्र म्योछ्लावर कर रही थी । शोर रा यह उपस्यात विश्वविश्यात है। वर्ग-संयर्थ और इलितों की घातता ९ इसमें बड़ी कलछात्मक्ता के साप दिखाया गया है। माँ का चरित्र बहुत ह ममतामप, द्‌इ और उदात्त है। मशपूर वर्ग का ऐसा चित्र गोशों के भति्ि और कोई नहों कर सका। पर्ल एस बेंक : धरती माता / [द गुड अर्थ] बेंक, पर्च एस० : धंयेड्ी उपन्यासकार पर्च एस० बेक का जन्‍म सन्‌ १८४२ में चैस्ट बर्जीनिया में दुआा। चार भास की थीं, तब पिता चोन के बिनकियांय शत में जा बने; भोर बालिका प्ले उसी दातावरथ में पला। थोन में हो भापको रिद्ान्दोढ्ा हुए ।अमरोका पर्च में कोर्नल तश् रेइल्फमेकन से झापने ठच्चशिद्या की डिग्रियां प्राप्त मी फिट झाप एक मिशानर बनकर चोन लौट गई भोर वहीं अपरेज्ो पशने लगीं। सान्टिग बिश्ददिधालय के प्रोफेसर जे० लॉसखिय बेंक छे ऋपने विवाइ कर लिया । सन्‌ १३२७ में नई चीन में दंगे हो गए तो पति-पत्ली बड़ो कठिनाई से वहां से बचकर निकल सप्ते | तब भाप भमराका लोट भाई | <द गई भय! (भरती माता) का प्रकारन सन्‌ १३३ में दुभा | यह उपन्यास बढुत अधिक रिक्रा। इसमें जापानी भाक्रमण-काल तक के ओोवन का चित्रण किया गया है| इसे उपन्यास पर धीमती भेक को शोवल पुरस्‍कार भो मिल चुका ई, भौर पुलिट्ए पुरस्कार भी । 'द गुई भय! (परठी माता) संसार के दिस्‍्याव व्यन्यासों में से एक दे । दाग णुग किसने था। उसके एिता ने उसके लिए वधू दूढ ही दी। वह हवांग के धनी घरते में एक दासी थी। वयू के लिए सौन्दर्य आवश्यक नहीं था, वह घर-गिरस्ती एभाल सके, दच्चो को जम्म दे सके, सेतों मे काम कर सके, तन्दुएस्त हो--यद्दी देखना आवश्यक था। यांग सुंय ने जब अपनी पतली को उत्मुरुता से देखा तो उसे संतोए हुआ कि उगयी पत्नी के चेहरे पर चैचक के दाग नहीं थे और उसको हुंढकटी भी नहीं कहा जा सदत! था । बसे उसे 'चीली' वहा जा सकता था। मधू दा ताम था ओ-लेन। वह लम्दी ओर मजबूत औरत थी; और नीला कोट भर पजामा पहनती थी। मुह ज़रा छोटा थां, जिसपर नाक कुछ चपटी थी; आंखें काली धीं। बह वही ईमानदारी से मेहतत करठी थी । एक बार जद अकाल पड़ा या, त्व दस साल की उप्र से, उसके माता-पिता उसका भरण-पोपण करने में बसमर्थे हो गए थे, और हब उन्होंने हवाँग के घती घराने में उसे एक दासी के रूप में देच दिया था। पति-पल्नो में दिशेष शोई बात नहीं हुई, दयोकि ओ-सैद दाल अधिक नहीं करती थी। दांग लुग उसे सेतों पर ले गया। यद्दी विवासस्थात था; और दधू ने ही धादी की दावत बा छंद शापान हैयार कर दिया। वाय लुग के श्राद्ा वहाँ भेहमान के रूप में १. ॥४6 0००१ घजफ (7 मो $. छण्5 ) हा शमार के महान उतस्याउ उपस्थित हुए। थे यहे मजातिया तबिया के आदमी थे । बड़े घालाक थे और काम-वात के थारे में वितकुल बेशार थे । चाचा का बेटा पद्धह बरस का था--उहृंह और मगझ़ादू पड़ोसी सिंगर के अतिटिका बुछ और भी किसान थे । बहू ने ही रसोई से राना सैयार करके बांग के हायों दिया और वांग ने परोगा। मई बहू का सुहागरात के पढ़ले सबके सामने जाना ठीक भी नहीं था । जब सब चते गए तो बाग से अपने-आपगे कहा * यह औरत मेरी है; और अब मुझे इसे सम्वस्ध स्थापित करना ही होगा। तदुपरात उसने बिना किसो द्िलक्िलाहद के अपने वस्त्त उतारिे। वह भी विरोधहीन ही रही। वांग हगा और उसके बाद वे प्रति-यत्ती वन ही गए। यों उनके जीवन का आरम्भ हुआ। अधिक बातचीत की कोई आवश्यकता नहीं हुई। खुबह हो गई । यह गर्म पानी से आई | उसने बुछ पानी वांय को दिया और कुंध उसके पिता को। वांग रेत पर चला गया । जब वह लौटा तो खाना तैयार मिला ) वह लकड़ियाँ-ईंपन इकट्ठा कर लाती । दोपहर में वह बाहर चली जाती और खाद के निए बड़ी सड़क पर जाते पोड़ों और सच्चरों की लीद कपनी डलियों पें मर लाती । एक दिन वह फावड़ा लिए खेत में आ गई। बोली: आज रात तक घर में कोई काम बाकी नही है; और वहीं कुडों से उसके साथ काम करने में जुट गई। धीरे-धीरे यूर् अस्त हो गया; और जब वांग ने काम वद करके देह को सीधा किया, [उसने अपती पली की ओर देखा जो पसीने से तर थी ओर उसपर जगह-जगह भूरी मिट्टी लग गई थी। क्षण- भर उसे लगा जैसे उस मिट्टी और उसकी पत्नी की देह कै रंग में कोई भेद नहीं था। बहुत ही बेतकल्लुफी से स्त्री ने कहा, “मैं गर्भवती हूं ।”******इस तरह कई मास बीत गए। * एक दिन खेत में उसने वांग से कहा, “बच्चा पैदा होनेवाला है। तुम एक ताड़ा छिला हुआ नरकुल ले आओ, ताकि मैं बच्चे की नाल काट दूगी ।” जव वांग घर लौटकर आया तब उसकी स्त्री खाता बना चुकी यी। दरवाजा जरा खुला हुआ था ! उसने उसीसते नरकुल बढ़ा दिया । स्त्री ने उसे थाम लिया | उत्तकें बाद चांग ने सुना वह भीतर कराह रही थी। फिर गर्म लू की सी गंध आाई। फिर एक कोमल झूदन सुनाई दिया । बांग लुंग से आवेश से पूछा, “बया लड़का हुआ है ?” ओ-खैन की धीमी-सी आवाज सुनाई दी, “हां, लड़का है !” ह अगले दिन ही ओन्‍-लैत उठ खड़ी हुई और उसने खाना पकाया। उुछि दित बाद बहू फिर छेतो में काम करने आ गई ! हा रे नया साल आया। दोनों ही गे से हवांय के घनी घराने में जा पहुचे। घने अपर बड़ी शाहसर्ची थी, जो दिन-व-दिन बढ़ती जा रही थी और अब बरबादी के सक्षण अरे होने लगे थे । उमीत बिक रही थी । एक टकड़ा वांग लुंग ने भी खरीद लिया। धसन्त की हवा चलने लगी । ओन्‍लेन फिर से गर्भवती हो गई । झरद कर्ड शा पर वह फिर घर चलो गई उसने फावड़ा सेत में ही छोड़ दिया | रात अभी भुकी नहीँ थी, जचर यह सेत में लौट आई और उसने सहज ही कहा, “एक लड़का और हो गया। घरती माता हक इस वर्ष वांय लुंग ने हवांग के घनी घराने से कुछ और अधिक भूमि खरीदी। दस महीने बीत गए वॉग लुंग का चाचा बव भी वैसा ही फोकटी था । वह रुपये झबार ले यया और वांग सुंग को देते पड़े ॥ ओन्‍्लैन के अबकी वार एक लड़की पेंदा हुई । आकाश में काले कौएं उड़े डर आए । यह सब अपशकुन थ, जिनका अर्थ था कि आने- वाले दिन ऋच्छे नहीं थे । ; सूखा पड़ने लगा । खेत सूज चले । पर ओ-लैन फिर गर्भवती थी । फिर से चाचा मर माँगने था यया और वांग लूय के पास जब रुपये नहीं थे। छुछ चावल थे तथा कुछ सम औौर वोडा थे। दिन पर दिन यह भी कम होते जा रहे थे ! लेकिन चाचा तव ही हंख जब बुछ्धले यया ॥ वह इतना फोकदी था कि फिर मांगने लोट आया। पर अव बांग लुग के पपस कुछ भी नही बचा था। चाचा ने पड़ोसियो को भड़फा दिया कि वॉय लुंग नें अपने पास नाज छिपा रखा है, और ऐसे समय मे भी मिल-बॉटकर खाने से इनकार कर रहा है| भूखे पड़ोसी उत्तेजित हो गए। चाचा की बातो में पडोसी चिपर भी भा कषा॥ भूल, भूण के सकते स्पादुछ क- दिया यह ३ ओर रद रद भूरडों ने उसके घर पर हमला कर दिया । परन्तु घर में सचमुच कुछ नही था । उन्होंने झाफी सामान नप्ड-अ्रष्ट कर दिया। ओन्‍लैन ने फिर एक शिशु को जन्म दिया । किम्तु जब बाग लुंग उसे देखने भीतर शा, परती पर उसे एक भर्पन्त जर्जर, क्षीण, मृत देह दिखाई पड़ी | अब कुछ भी शेप नहीं था । दव परिवार ने अपने काई-कबाड़ को देचा; और फिर वे रेत को ओर चल पड़े ! अन्हवई से वे कियांगमू पहुंचे । वांग लुग एक रिक्शा खीचने लगा। भो-सैन और बच्चे पथ पर भीख मोगते लगे। ओ-लैन वेच्चों को भीख मांगने की शरकीबें सिाने लगीं ) दे पहले वांघ लुंग के पिता को खिलाते, तव ही बाकी लोगों के पेट में बुछ जाता । वांग हुंग के बड़े बेटे ने मजदूरी में चोरी कौ। ऊव दाग लुग को पता चला तो उसते उसे सूब मारा। गरीबों मे फोज की भर्ती चल पड़ी थी। दूर कही युद्ध दो रहा था। लोग जबरन भी पतड़े जाते थे । वांग छुग डर गया और उसने दिन में रिक्शा चलाना छोड़ दिया । वह रात के अधे रे में दाड़ियां ढोने लगा गरीबों का हाह्मरार दिन पर दिन बढ़ता घला जा रहा था । विश्ञाल प्राचौरों बे भीतर घनी लोग और भी अधिक धनी होते चले जा रहे ये और बाहर भीड़ें भूखी मर रदीपी। अन्त में सहिष्णुता की सीमाए टूट गईं। भूख के जादू ते भीड़ में हलचल भर दी और गरीबों ने धनिको के भदनो पर आक्रमण कर दिया। उस भीड़ में दांग लुग भी टूट पडा । और उसरो मिला एंड मोेटा-सर डरपोक जादपी | प्राण-भय से उसने वांय लुग हो सोना दिया, ताडि वायलुध उसे जान से न मारे । सोना पर बांग लुद सौट कापा । ._ धन आते ही वे सब फिर घर सौट आए। एक रात याय लुग को दगा जैसे ओ- सैन के यह के पास बुध छिपा बःए रखा गया था। उसने देखा । एक थैसी थी, जिससे राज मरे हुए ये । जद कियांगायू मे औड़ ने हमला विया चा, के पः हद एक भवन में कुछ इंटे हीली-सी नडर आई थी । उन्हे सरकाने पर उसमे से गह थेली मिल यई थी | + 7 ६६ संगार के महात उपयाद यशग लुंग ते वे रतन से लिए । ओ-सैत मै उगगे दो मोती अपने मूक अनुतय द्वारा मांगे थांग लुंग ने मोती उसके लिए छोड़ दिए। शहुवहू हवांग के धनी घराने भी घालाक दासी धी। और याकी सर नौकर दिना तनघ्याह के भाग चुके थे, क्योंदि बड़ा धराता दिन पर दिन बरवादी की तरफ तैड्ी से बढ रहा था। बांग से कुकए्‌ की मदद से हवांग घराने की जमीन खरीद डालीं। एक थार लूटने ओर कुछ ने पाने पर पड़ोसी बिग के मन में एक प्रकार वी सज्जायुतत सलानि भर गई थी। अब यह अडैला रह गया था| उसकी पती मर चुकी पी। यांग में उरी अपने सेतों की देखमभास करने के लिए रस लिया। ओ-जन के शुडवां सन्‍्तान हुई--हएक लड़का, एक सड़की । अब पता चला क़ियांग लुग की बड़ी लड़की गूंगी थी। सारे परिवार को दु ले हुआ, डिल्तु कोई उपाय नहीं या। बांग लूंग उगे विचारी गावदू' कहता, परन्तु लड़की फिर भी मे बोल पाती । पांच वर्ष बीत गए । अब वांग लुंग एक घनी व्यजित था। किन्तु फिर भी वह अशिक्षित था। उसे यह बात असरती थी। उसने अपने बड़े लड़के को पड़ते भेज दिया। दो ब्ष और व्यतीत हो गए । बाढ़ें आई, परन्तु उन्होंने सारे तुझानों और मुमीबतों वा सामना किया । धन का तो जमाव ही नथा । एक दिन जबकि सेतों में पानी भरा या, काम बंद था, वांग को दुवकू मिली। वह “भी चालाक और तर्राट । अब बड़े घराने में उसके लिए कोई काम नहीं रह गया या! वह भेश्याओं की दलाल हो गई थी। यह उसे पुसलाकर ले गई और उसने लोदस (कमल) नामक सुौदरी से उसकी मुलाकात करा दी ) लोटस उतनी युवती नहीं थी, किल्तु दितात ही तो था बांग। वह उसकी नज्ञाकत्त और नखरों से फस गया। उसने अपने शरीर में सुगन्धि लगाई। अपनी चुटिया काट डाली और आधुनिक बन गया। और तब उस्ते ओजलैन पर निगाह डाली। वह घरेलू औरत ! उसके पांव कितने बड़े और कुरूप ये उसका पेट कैसा निकल आया यथा ! ऐसी औरत को अव प्यार करना बांग के लिए असंगव चा। ओन्‍-लैन ने उसके कटे बाल देखे तो आउंक से थर्रो उठी बांग को स्वयं अपने ऊपर भुँभलाहट थी कि वह उस स्त्री के प्रति अब किसी प्रकार के अनुराग का अनुमद नहीं करता था। उसने वह दोनों मोती भी ओ-सैन से ले लिए और लोटस को पट कर दिए । ओ-लैन ने इसे भी चुपवाप सह लिया। बांग लुंग का चाचा लौट आया | वांग कुछ भी नहीं कह सका। समाज कै हक नुसार उसे अपने यहां टिकाने को वह बाध्य हो गया। उसकी मोटी औरत भी आग और उसका वेकार नालायक लड़का भी वहीं आ गया, जोकि वासना से विद्वल ख्ह्वा था। चादी ने जव वांग में लोटस के प्रति ऐसी अनुर्रक्ति देखौ तो उसने बुटती का हा, [ किया और वह लोटस को धर पर ही ले आईं। इस रखेल के साथ धर में आ धुसी डुवदू ! ओ-लैन को एक गहरे वियाइ ने घेर लिया किन्तु बह विरोध नहीं कर सकी। ९ वाँग के वैभव ने भी उसे टोका नहीं । वह निरंतर उसी 38 ४४78 घर में कैम करती रही और वांय उधर सोटस के आंगन मे रंगरेलियों में उलका रहे चरती मादा हे लगा। ट् ओल्‍वैन को लोट्स से इतनी थुणा नहीं थो जितनी छुक्कू से थी. दर्योकि बड़े बरतने में रहे समय कुक्डु ने ओ-लेन को पीटा था । वाँय का वृद्ध पिता जब भी इक त्ीठस की देखता, विल्ला उठता--विश्या ! वेश्या !” बच्चे भी लोट्स की और ० बते ) धीरे-घोरे बाद का पाती उतर थया) वांय सेतों पर लौद गपा और घरती माता को देशकर उसमें फिर से नई स्फूति सौट आई १ ठव उसने लियू नामक व्यापारी यो लदटरी से अपने बड़े बेटे की शादी वा प्रवन्ध कर दिया। खाचा के परिवार की मांगें बढ़ती जा रही थीं । वे बांस को चूमे जा रहे थे ! नशा ऋलग, खाना अलग ठंग आरूर उसने चादर कि चाचा को निकाल बाहर करे, पर तभी उसे पता चला कि इलाके में जगह-जगह डाके डालनेवाले लुडेरे छाया के गिरोह के लोग थे । बल्कि छाचा गो उपस्थिति के करण ही अभी तक यह डादुओं से बचा हुआ था । अय से वाग बाप उद्ा। उसने चाचा से कुछ भी कहना, अपनी मौत को निमंत्रण देना ही शपभा।+ इसके बाद एक नई मूसीदत आ खड़ो हुई । आकाश में टिह्टियों छाते लगीं। वोग अपनी शारी शक्ति कपाकर जुट घघा। जगह-जगह गड्ढे खोदकर उनमे क्षाय लगाई जाने छ्गी है दी भी उठने लगीं और टिट्टियों से युद्ध होते लगा । अंत में मनुष्य ने विजय जअप्त गो । अब बांध के बड़े सइके ने दक्षिण जाना चाहा ताकि यह वहीं पढ़ सके, विन्‍्तु बाग ने अस्वीकार बर दिया। इन्हीं दिनो उसे पता चला कि बड़े लड़के का झुछ अनुवित गमइस्ध लोटस पे होने को था। दंग जोघ से पागल हो उठा। उसने बड़ी निर्देयता से युत्र को पीटा और उसे दक्षिण भेज दिया। टूयरे लड़के को उसने लियू के पास रख दिया (है बट स्यापार शा बाम सील मरे १ और उसने यह भी निश्चित कर दिया कि उसकी ् धन्तान वाली लड़की का किसी दिन सविध्य में लियू के दसवर्षीय पुद्र से विवाह ॥ अब वह ओ-लैन पर ध्यान देने सगा, हिन्तु वह तभी बीमार पह गई ६ दसंत झरने ही झो-लेन ते अपने बड़े बेटे और होने वाली वधू को युववाया। दावतों के साथ धारी हो गई । तब ओन्‍्लैन का देहान्त हो एया।) उस समय बांग ने अनुभव किया कि झओे दे दोनों मोती उससे मरी छोनने चाहिए पे ॥ वौग का बृद्ध पिता इस सप्तार से उठ गया और बहू तपा सगुर बी मदमावती घरदी मे एक पहाड़ी पर बच्रे दना दो गई) समय दी दौड़ में फिर दाड़ और अकाल आ गए। इसने भयातत, जैसे पहले कभी ग्दी भा थे ( दांग मे एक हिन घुपदाए अपने घादा योर चाची को अपने दिरुद्ध पश्यम्त् रे युद लिएा। दांग के बड़े बेटे मे सलाह दो हि दोतों को खत्म करने दे लिए उन्हें दर हो आदेव खरा देता आदपपकः थप | चाचा बा बेटा भी मौजूद था और उसके अर अर रे जाते से इरतो थों। यहां तक हि दांग रो छोटी बेदी भी उसके ईर हवा है कहक स्दापा कद दणह हैई। दल कौननर क | ओपन ३ कार तय हि केक क7 १ कपके डी नरक बनप भरीड भी पयिक इनक लिया आलिया क+) डक बड़ही दे बॉय के) कब के +क 4 हिएू कह का वकजे ४ ऋती देह कान के बन्द हे श्यमी है थन। इदाक- कक के हवन + करें थे हे के हिला पक को शरीक दिया कह दिक बाद हर! को नेक के) २३ हए ब*क कप के! दूकण वुधखिकाहहुटशा वा हे चापड ४ ०क हफन्‍क ू( जी की प्रन की के करन की अप गे हुए ही छा हए्फ्वर मकर टुक इग केभ्क हलिपुतनकती डक आतत के करती, करेह धच बे बड़े ४१६ मे 4४) बनक 4+ ब३७-+ दे । अब भाई अधित7ह कगार कपः था । हहडा हा हि करी कयाश हो) हे दतफे दी कह बरी कीव्गार को करवाए मे कर दे। बह के चाचा के जें> के हयोे हुये औरड कर हुए में हुए रेगे बाहरदा। पाए के जड़े इे* का बुक ३7 हैक ॥ 70 दाग जो और हपजा मेष रत पी। आदि को शो सेज के करती दगर की व! ३20 खाक कि बूढ़ा हो चकट चा। अवादक वन्‍्चर मे फपकी शशि भौतरों गई और मद को अचरत दु ची कक हुडा बट गा के [+९ दंगे गषार को घोहहए बता गंगा । है माता हुक बीज रहता, हितु दशक मच के शाह ही थी। उमा मीरा बैदा भपाग को पा बा। व की इक्दा थी कि 7गे ही सेवी राही देले। हु बट विशेह शरण लगा । बौद मे यए वर टइ मारशर गा दिपा धार बर्ष में चार गोपी, हीत गाय आई और पर मर बगा। बाग के मन को हुए सभीध बियगे सपा । तमी उपरा चाषा बर गया ॥ भाषी बड़े घर में अपनी अफीय सेडर भा पमती, रिए शी मर ही कह भी मर गई । हि इसी हितों सैनिक मा दए और बड़े पर में टटरे। चाया वा बेटा भी श्दीं में धा। आंगन इर मे गूते हो गए मौर औरने सित गरें। पिपर स्तॉसम बड़ों हो गईं थी । भाषा फे बेटे ने उसे सेने की इष्या प्रस्ट की, उपर बाग का तीयरा पुत्र भी उसपर मोहित पा । सोदश भी उसे भाषा के येटे को हो देना चादती थी। वितु वांग ने लोटस की बिता नही की । उसने पियर ब्वॉयम के घाघा कै देरे को दी, न अपने तीसरे बेटे को । तीसरा बेटा क्रास्तिकाएियों में जा मिसा और घर घोड़ गया, क्योकि स्तर वर्ष की अवस्था में याग ने राचह वर्षीय उस परियर झ्वोंगस का स्वीकार कर लिया था, जोकि अपनी इच्छा से उसके पास आं गई थी। अपनी यद्यपि थांग के पुत्र अपने याप का आदर करते थे, परतु वांग रहता था अपनी पियर ब्लॉसम और अपनी गूगी सड़की 'देचारी गाबदू' के साथ ही । वह अपने हा व, को नही चोड़ता था । कुछ दिन बाद वांग अपने पुराने धर में लौट आया। पियर ब्लॉसम ने प्रतिज्ञा की वह थांग के बाद सदा ही मुस्कराने वालो गूगी लड़की वेचारी गावदु की रक्षा तथा सेवा किया करेगो। वांग लुंग वृद्ध हो गया था । एक दिन वह कूडों के बीच ठझोकर खाकर गिर जड़े &»% ७ मरने के बाई जमीन बेड देने वे सलाह बना रहे थे । वांग लुंग हर असह्य था। उसे पुराने दिन याद आए जब हंवांय के घनी घटाने ने घरती घरदी माठा हि संदेद होइ लिए ये और बरदार हो गया था। दांग छुंग क्रोध से कांप उठा । तब उसके बुशे ने उसे आशवासत दिया कि वे घरती को नहीं वेचेंगे। डितु वृद्ध वांग छुण उनके हास में ब्यंग नहीं देख सका । और एक दिल वृद्ध वांग लुंग सदा के लिए चला गया । के पस्तुत उपस्यात में चोत के किसानों के जीवन का चित्रण किया गया है। सेलिका हा घोन से बहुत हो गहरा परिचय है। पर्ल बक से और भी उपस्यासों में घोन का वर्णन किया है। ओ-कुन के रूप में उसने पितृसत्ता का, घोन की संहिष्णु भारी का घटा हो भाभिक घित्रण उपस्थित किया है॥ वांप-लुंग के चरित्र में घन और उसके प्रभाव का लक्षण परिवप मिलता है। इसमें श्रोत को तोन दीढिपों की दिमिनन दिचारदारा का ब्रहुत ही अच्छा वर्णन हैं) इस उपन्यात हो दाप( एक दोष काललंद को अपने में समेट लेती है। इसमे घोन के देवो- देवता कोर झनेक निम्न तथा धनो झोगों के घड़े हो सहज चित्र लेतिका ने उपस्थित किए हें १ इस उपन्यास को गरदि एक महात गाया भो कहा जाए तो रोई अत्यू्त नहीं होगो। तुर्गनेव : मेरा पहला प्यार [माई फर्स्ट लव] तुर्गनेव, ईवान सर्जियेक्चि : रूसी लेखक ईदान सर्मियेविच द॒र्गनेव का जन्म भोरेल में बम, २८३१८ को हुआ था भौर आपको सृत्यु १८८३ में हुईं। झाप रूम के एक महान उपन्यासकार ये। मारको और बर्लिन में आपको शिक्षा हुई थो । आपने कहानियां तथा नाटक भी लिखे दे । झापकी भाषा बहुत अच्छी थी। रस्‍्वचित्रण में आप बहुत ही कुराल थे | झापकी रचनाओं से रूस का जार इतना प्रभावित हो गया था कि उसने २८६? में हस से दास-प्रथा इटा दी थी, क्योंकि आपने खेतिइर दाखों के करुणा-भरे ःखी भीवन का चित्रण किया था | भी पहला प्यार! (“माई फर्रट लवः भयेयों नाम) झापके असिद्ध लदु व्पन्यातों में गिना जाता है । ब्लादीमीर पेश्रोविच द्वारा कही हुई उसीकी कहानी है। उठ दिनों ब्लादीमीर पेज्ोविच जानता वर्ष थी और वह अपने माता-पिता के साथ भास्को नगर से बाहर नैसकुशनी बाग के पास देहात में एक किराये के मकान में रहता था। वह यूनिवर्सिटी की परीक्षा की तैयारी भी कर रहा था। उसकी माता मारिया निकोलाइवना उसके पिता प्योश् वेसलेविच से दस वर्ष बड़ी थी। पिता की आयु चालोस से ऊपर हो चुकी थी। मां ता सदेव परेशान और उदास रहा करदो थी, यह ईर्प्यग्रिस्त भी थी। पिता ध्योत्र वेसी- लैविच मुन्दर और युवक लगते थे भारिया निकोलाइवना से उन्होने धन के लोग में ही विवाह किया था। दोनों ही ब्लादीमीर के प्रति उदामीन रहते थे, वैसे वह उनका इक- लौता लड़फा था । माता-पिता से छूट मिलने के कारण ब्लादीमीर नैसकुदानी के बायों और मैदानों मे घूमा करता और अपने य्द्दू व सवार होकर दूर-ूर तक चक्कर लगाया करता। दुछ दिन पश्चात्‌ ही उसकी इिनिचर्या भे विचित्र परिवर्तन आ गया । उनके पड़ोस के साली मकान में प्रिसेड जैसेकोना नामक महिला रहने लगी । वह बस है _। उसके पास न तो अपनी: गाड़ी थो और न ही अच्दा फर्नीचर। ्् बसे अपने पड़ोसियों के सम्बन्ध में भालूम हुआ तो उस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया। एक दिन वह बन्दूक बीत आप ई॒ हे ही बात का घनुवाई “मेरा पहला प्यार //शिवदान सेंड चौद्यन एव धोमती विजय चौहान 3 तुर्गनेव : मेरा पहला प्यार [माई फर्स्ट लव* ] लुगगंनेव, दान सर्जियेबिच : रूसी लेखक ईवान सर्जियेविच ठुगनेव का जन्‍म भोरेल में २८ भ्रक्‍्यूबर, १८१८ को हुआ था और झापकोी भृत्यु १८८३ में हुई ।भाए रूस के एक महान उपन्यास्तकार थे। सारको और रलिन में झापकी शिक्षा हुईं थी आपने कहानियाँ तथा नाटक भी लिखे दे | भापकी भाषा बहुत अच्छी थी। एसस्‍्व-चित्रण में झाष बहुत ही कुशल ये। भापकी रचनाओ्रों से रूस का छार श्वना प्रभावित हो गया था कि उसने २5४२ में रूस से दास-प्रधा हय दी थी, क्योंकि झआपने खेतिहर दारों के करुणा-भरे दुःखी मीवन का चित्रण किया था । “मेरा पहला प्यार! (“माई फर्रट लवः अंग्रेज़ी नाम) भाषके असिद लु उपन्यासों में गिना जाता है । यह ब्लादीमीर पेत्रोविच द्वारा कही हुई उसीकी कहानी है। उत दिनों ब्लादीमीर पेत्रोविच की आयु सोलह वर्ष थी और वह अपने माता-पिता के साथ मास्‍्को नगर से बाहर नैसबुशनी बाय के पास देहात में एक किराये के मकान में रहता था। वह यूनिवर्सिटी की परीक्षा की तैयारी भी कर रहा था। उसकी माता भारिया निकोलाइवना उसके पिता ्ोत्र वेसलेविच से दस बे बड़ी थी । पिता की आयु चालीस से ऊपर हो चुकी थी। मां ता सेव परेश्षान और उदास रहा करती थी, बह ईध्याग्रस्त भी थी। पिता प्योत्र वेसी- लेविच सुन्दर और युवक लगते थे। मारिया निकोलाइवना से उन्होंने धन के लोभ में ही विवाह किया था। दोनों ही ब्लादीभीर के प्रति उदासीन रहते थे, वैसे वह उनका इक- लौता लड़का था। माता-पिता से छू८ मिलने के कारण ब्लादीमीर नैसकुशनी के बायों ओर मैदानों में घुमा करता और अपने टेटूदू पर सवार होकर दूर-दूर तक चवकर लगाया करता। कुछ दिन' पश्चात्‌ हो उसकी दिनचर्या मे विचित्र परिवर्तन था गया। उनके पड़ोस के खाली भकान में प्रिसेज्ञ जैसेकीना नामक महिला रहने लगी। वह बस नाम-मात्र की प्रिसेज थी। उसके पास न तो अपनी गाड़ी थो बोर न ही अच्छा फर्नीचर। फिर भी जब सारिया निकोलाइवना को अपने पड़ोसियों के सम्बन्ध मे मालूम हुआ तो बह खुश हुई । ब्लादीमोर ने उस ओर विश्येप ध्यान नही दिया! एक दिन वह बन्दूक 77९५)--इस उपन्यास का अनुवाद “मेरा पइला ध्यार! चौदान इवं द्रोमती विज्य चौहान के क्र संगार के महान उपाय सिकर कौ के शिष्र को ददा नो बाग में उसे थ्िनेज जैगे कील की सगदुऱी जिवेश को दैसा। बह दुरसी जग नी, लम्बी लकी गुतावी रग की धागैशर बोगार पहने और विर पर सेद शुथाय अधि घर के छोटे शाम के गीस सही हुई थी । उगके आगयास या युवक रहे थे जिनते सिर पर यड़े बारी-जारी से फुर्तों से प्रडार कर रहा थी। लटई देसने में घोल, स्तेडपूर्ग और आजपक थी । डातरीमीर ने जिनेश वो देखा ही देखता हू रह गया। उस दिल उसे दकती प्रदस्तता हुई हि सह शोते समय शक जिनेश के बारे मे सोसता रहा । दूगरे दिन उससे हो बड़े किगी हरह़ भी पड़ोसियों से परिचय करने का ढंग शोचने लगा। कभी प्रिगेड जंगेरीता का एड पत्र उसकी मोकों मित्रा जिसमें कुत् ब्यक्तिपों गे सिभारिश करने की प्रारयता की गई थी मौर विगेज ने मां से मिलते डी इच्चा भी प्ररृट भी थी। सारिया विशोसाइवता ने ब्लादीमर को विगेय के धर यह इहने भेजा कि यह उनकी सहायता हु रसे को तैयार है और बारह से एक बजे के बीच द्िगेज उनसे प्रिस सें। स्लादीमीर परिचय का इतना अभय मवसर घछो दना नहीं चाहता था और वहू पुर प्रिगेज़ के घर घला गया। पप्रिगेज जै गेरीना को स्तादीमार ने अपनी मे का संदेश कह दिया। तब उत्दोते जिनेश से उसका परियय कराया । जँमेरीना की आयु पचास से ऊपर थी और यह पुरानी हरे रंग की पोशाक पदते थी जिससे उनड़ी विपस्लवा का पता लता था। जिनेदा ब्तादी मोर को अपने कमरे में से गई और बड़ी बेतकस्तुफी से उसते यातें करने लथी। तभी उसने यह भी बताया कि उसतो आयु इफ्ड्रीय वर्ष की है। स्तादीमीर उसके व्यवहार से प्रगन्‍न था। हां, एड बाठ अवश्य थी ढि जिनेदा उसे अब भी बच्चा समभती थी । उसके फई प्रेमी थे जो उसकी कुपादृध्टि प्राप्त करने के लिएकुड भी कर सकते थे। एक घुड़सवार सैनिक बोौलोवजोरोब उस समय ज़िनेदा के लिए एक चितकबरा विल्ली का बच्चा लाया जब कि ब्लादीमौर उसके घर ही था। जिनेदा विल्ती के बच्चे को देस ही रही थी र्रि तभी ब्लादीमीर के घर से उसे बुताने के लिए नौकर आा गया ओर वह घर चला गया। धर से आए उसे एक घंटा हो गया था। हु | प्रिसेज् जंसेकीना ब्लादीमीर की मां से मिलने माई परन्तु वे मारिया निकोलाइवता को पसन्द नहीं आईं । प्रिसेज़ कई तो मुकदमों में फंसी हुई थी। फिर भी उसे प्रिसेज़ ओर उसकी लड़की को डिनर पर आमत्रित किया। ४ दूसरे दिन, प्रिसेज़ जैसेकीना और जिनेदा उनके यहां डिनर पर आईं । प्रिसेज के फूहड़पन से तो सभी परेशान हो गए किन्तु जिनेदा के व्यवहार से शिप्टता भलकती थी। झिप्टता के साथ ही जिनेदा के व्यवहार में अहंकार मिला हुआ था ज़िससे ब्लादीमीर की मां चिढ़ गई किन्तु उसके पिता ने उसका स्वागत किया। ब्लादीमीर 7228 रहू- रहकर जिनेदा की तरफ देख रहे ये । जिनेदा और ब्लादीमीर के पिता फ्रेंच में वात कर रहे थे। जिनेदा का फ्रेंच उच्चारण बहुत शुद्ध था । जाते समय जिनेदा ब्लादीमी र के कान में चुपचाप आठ बजे घर आने को कह गई। कमरे में शाम को आठ बजे ब्लादीमीर सज-धजकर जिनेदा के घर गया। के जिनेदा के साथ उसके पांच श्रेमी भी थे । काउण्ट मेलेवस्की, डाक्टर तू इस, कवि गा रिटायड कैप्टन निमत्सकी और उस दिनवासा चुड़तवार सैनिक बेलोवजोरोव। कई । ने ब्लाशैमीर का परिद्य कराया । वह एक तो पहले ही घवराया हुआ था ऊपर है खेत को देखकर और चौंका । वह 'फोरफीट' सेल रहे थे । विचित्र ऐेत था। एक रि एक मर्शाता हैद लिए जिनेदा सही थी और हैट में पांचों व्यक्तियों के लिए पांच *थों। जिसको पर्ची में चुम्बन' लिया होता यही जिनेदा के हाथ का चुम्बन लेता पने-आपको भाग्पधाली समभता। ब्लादीमीर के नाम की पर्ची उसमे डाल दी यई ये को बात कि ब्लादीमीर के उठाने पर घुम्दनवाल्ली पर्ची निकली। परल्तु ड के भारे उससे तो जिनेदा के हाथ का डोर से चुम्बन भी नहीं लिया यया। इसके ध इसी दरह का दूसरा सेल सेला गया जिसमें ब्लादीमीर और जिनेदा के सिर एक से बाष दिए गए। जिनेद्रा से अब उसे मन की बात कहने को कहा गया। जिनेदा छाों का स्पर् और और उसके सुवासित कैशों की चुमन ब्लादीमौर को उत्तेजित | पी। उसे सारे घरीर में सनसनी-सी फैल गई दी। उसमे कुछ भी कहते नहीं ऊँमेठुमाकर जिनेदा ने कहा, “कहो बया कहते हो ?” हसकर, लज्जा के मारे र मे अपना मुह दूसे ओर फेर लिया ॥ और भी तरह-तरह के छ्लेल सेले गए ( शाम ब्वादीमीर ने बड़े उल्लास मे दिताई, सोते समय भी उसे जितेदा याद ही। हसरे दिन सुबह मारिया निकोलाइवना ने उस्मे प्रिसेज के घर जाने के लिए र एडने-लिखने को कहा। परन्तु पिता प्योत्र वेसीलेविच उसे बांह पकड़कर बाग और बड़े मजे में प्रिसेड के घर का हाल सुनने लगे । ब्लादीमीर ने उमग के साथ धटना उन्हें गुना दी। उसके पिता कभी-कभी ही उससे लाड़ करते थे और उसकी 7 में कभी बाधा नहीं डालते थे। परन्तु किर भी वे उससे दूर-दूर रहते थे। जब ' जिनेदा बी तारीफ कर रहा या तव वे मन्द-सन्द मुस्कराते रहे। पूरी वात सुनने : प्रिसेड जैसेकिना के घर गए और बही से क्षद्र की ओर चले गए। ईैछ दिन में जिनेदा को ब्लादीमीर के प्रेम की दात विदित दो गई, परन्तु उसके प्रेमी थे जिनसे वह अपना मनोरजन करती थी । सभी उसका प्रेम पाने के लिए एे को तैयार रहते । सैनिक बेलोवजोरोव स्वस्थ सुन्दर युवक था। वह जिनेदा [घ भी कर सकता था । डाक्टर लूइस मसखरा था और सामने भी जिनेदा को देया करता था। मै देनोव उसकी प्रशंसा मे कविताएं सुनाया करता । मेलेवस्की बला और चालाक था। बढ़ जिनेदा की चापलूसी किया करता। जिनेदा इनमें वे प्रेम महीं करती थी, फिर भी इन सवके साथ हसती-सेलती थी। एक बार दो पदीमीर से कहा मी कि वह इनमे से किसीसे प्यार नही करती ! ब्लादीमीर नेद् के घर के चक्कर काटने लगा, परन्तु मां के डर से वह अपनी सब गति- है गुप्त रखता था। मां प्रिस्ेड और उसकी बेटी जिनेदा को पसन्द मही करती गे कभी तो ब्लादीमीर के साय लेलती और उसे उकसाती और कभी उसका करती) ऐसी स्थिति मे बह वाग की दीवार पर जाकर चुपचाप बैठ जाता। गसने देखा कि जिनेदा बाय में बैठी है और उसके चेहरे पर अवसाद की छाया गे है। जब उसने कारण पूछा तो बह उलटकर ब्लादीमीर से ही पूछने लगी कि गर करता है न ! जब उसने उत्तर नहों दिया तो वह स्वयं बोली कि वह इस १०६ संसार के महान उपन्‍्यातर बात को जानती है। वह उस दिन बहुत ही दुःसी थी। ब्लादीमीर से उसने 'ज्योजिया की पहाडियों की कविता” सुनी, और फिर उसे पकड़कर अपने घर ले भई। उसी दिन उसे ईस वात का पता चला कि जिनेदा किसी और व्यक्त से प्रेम करती है और वह छुपफर जिनेदा की गतिविधियों को देसने लगा । कुछ ही दिलों में जिनेदा के सब प्रेमियों को उसके प्रेम की बात माबूम हो गई परन्तु वह किस व्यक्ति से प्रेम करती है यह सम्भवतः किसीको विदित नहीं था । तुइस ने वो ब्लादीमीर से कहा भी कि उसे अपनी पढ़ाई में मत लगाना चाहिए और जिनेदा के घर से दूर ही रहना चाहिए, परन्तु ब्लादीमोर पर इस उपदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उसी दिन शाम को जिनेदा के घर उसके पांचों प्रेमी एकत्र हुए और ब्लादीमीर भी वहां था। जिनेदा ने उनसे पूछा कि जब क्सियोपेट्रा बजरे में चढ़कर एण्टोनी से मिलने गई थी तब एण्टोनी की आयु क्‍या थी। तूइस के चालीस से ऊपर बताने पर उसने तूइस को घूरकर देखा था। ब्लादीमीर तभी समर गया था कि जिनेदा किससे प्रेम तो अवश्य करती है परन्तु वह है कौन, यह पता नहीं चलता। घीरे-घीरे दिन बीतते गए और जिनेदा बदलती चली गई। वह दुःखी और उदास रहती । पहले जंसी मुस्कान कभी ही उसके होंठों पर दिखाई देती, तव भी लगता कि बह कुछ छुपा रही है। वह रहस्पमयी होती चली गई। ब्लादीमीर उन दिनों जर्जर हॉट हाउस की चौदह फुट ऊंची दीवार पर एकांत से बैठा रहता । एक दिन जब वह इसी तरह दीवार पर बैठा या तब मीचे सडक पर जिनेदा जा रही थी। उसे दीवार पर खड़ा देखकर वढ़ खड़ी हो गई और वोली, “तुम सचमुच भुमे प्यार करते हो तो सड़क पर कूदकर दिखाओ।” जिनेदा का कहता था कि ब्लादीमीर कूद पड़ा और गिरते ही मूच्छित हो गया। मूर्च्धा क्षण-भर के लिए आई थी परन्तु जिनेदा ने उसके चहरे पर घुम्बनों की भड़ी लगा दी और बिन्तित हो उडी। जद ब्लादीमीर उठ बैठा तो वह वहां से चली गई। इन्हीं छोटी-छोटी घटनाओं ने ब्लादीमीर के हृदय में प्रेम की आग लगा दी थी । जिनेदा का सम्मोहन ठुकराना उसकी शर्तिसे परे था। अगुले ही दिन जिनेदा ने वेलोवजोरोब से रावारी के लिए एक धोहा ताते को महा। उसने दूसरे दिन घोड़ा ला दिया। दुसरे दिन ही णब ब्लादीमीर सतेरे-सवेरे उठतर मगर के बाहर घूमने निकल गया तो उसे घोड़े पर सवार उराके पिता और जिनेदा मिसे। उनसे पीछे बेलोवजोरेव भी था। उसके पिता उसे देसकर अपना धोड़ा जिनेश के पोरे से दूर हटा ले गए। इस दिन के परचात्‌ पाच-छः दिन तक जिनेदा से स्लादीमीर मिल नहीं सका। जिनेदा इन दिनों उससे टूरजूर रहने लगी थी । ५ कुछ हितों बाद जब अचानक बाग में जिनेदा से सामना हुआ तो ब्लारीमीर मुंह फेरकऋर जाने सगा परन्तु जिनेदा ने उसे रोक लिया। बातों ही बातों में जिनेदा ते उससे कह दिया कि वद उससे वड़ी है और उसकी मौसी हो सकती है या बड़ी बढ़ना और वह उगके लिए एक बच्चा ही है।*अब वह पटले से अधिक सप्न और शांत हो गई पी । शालोववा उसती आइति पर ऋतकती यो । जिलेदा ने यह भी कहां हि यैंगे यह सवारी भौर को बटूत चाही है। नह पहने शी तरह एक दित दिखेद् के चर जब रामी एकत्र थे हो जिनेश एच गया मैया पहला प्यार (९७ सेल खेलने लगी। उसने सभी से कहा कि हर कोई अपना देखा हुआ कोई सपना सुनाएं। यह सुनकर पहले को तरह घोर मचना बंद हो गया और उछल-दूद भी थम गई। मैदेवोव ने अपना सम्बा सपना सुनाया | इसके बाद रुदयं जितेदा ने अपनी बल्पना सुनाई। एक भद्दारानी द्वारा रात में पार्क के फब्वारे के पास अपने प्रेमी की प्रतीक्षा की कद्धाती सुतकर सभीके मारे टनक ग्रए? काउण्ट सेलेवस्की ने तो ब्लादीमीर से दूसरे दिन कहा भी कि उसे राव-दिन शिनेदा बी गतिविधियों को देखना चाहिए । इन्हीं दिनों काउण्ट घापलूरी करके श्लादीगौर को मां का कृपापात्र दन गया था, परन्तु उसके पिता उसे पसरद नहीं करते थे। जव मेलेवस्री ने ब्लादी मीर से “रात, पार्क और फब्वारा' याद रखने को कहा तो वह जमिनेदा के अ्ञात प्रेपी से बदला सेने को तैयार हो गया। रात को बारह बजे अपना चाक्‌ लेकर ब्लादीमीर बाण में जा पहुचा । चारों ओर सन्नाटा था) एक घटे हक प्रतीक्षा करने के बाद भी उसे कोई दिखाई नही दिया । वह अपने-आप १२ ऋुकलाते लगा था कि उसे दरवाज़ा खुलने की आवाज और किसीके पैरों की आहट सुनाई दी। उसने चाकू खोलकर हाथ में ले तिया। आनेवाला उसके निकट आ रहा था। ब्लॉदीमीर ने देखा कि बह किसी पुरुष को आइृति थो परन्तु पहचानते ही वह ज़मीन पर दुवककर बैठ गया, भय से चाकू धास पर गिर पड़ा। वे उसके पिता थे। उन्होंने गहरे रगो का एक लवादा बढ़ रखा था और हैट चेहरे तक भुका रखा था। जब उसके विता उसके पास से चले गए तो वह भी कुछ देर बाद अपने कमरे में चला आया । पिता के जाने के कुछ देर बाद हो उसने जिनेदा की लिड़को पर परदे,गिरते देखे थे। रह-रहकर उसके हृदय में आशकाएं उठ रही थीं॥ सत्य उसके सामने था, परन्तु स्वीकार करने का साहस उसमें नहीं था। दूसरे दित उठते ही उधने अनुभव किया कि एक दु खदायी व्यावुलता, गहन उदासी उसपर छा रही थी। वह जिनेदा को सव कुछ स्पप्ट रूप से बता देने के लिए गया भी, परन्तु उसके सामने पहुंचकर उसका साहस जाता रहा । उसी दिल बूढ़ी परिसेश का बारह साल का लड़का वोलोद्या पीट्संबर्गें से आया था। बहू वहां सैनिक स्कूल मे पढ़ता था। जिनेदा ने ब्लादीमी र से बोलोद्ा को सैर करा लाने के लिए कहा और'*ब्वादी- मीर उसके साय-साथ पाक में चला यया। उसी धाम ब्लादीमीर बाग के एक एकांत कोने में बैठा था तद जिनेदा वहां आई १ जब जिनेदा ने उससे उदासी का कारण पूछा तो बह उसकी बांहों मे फूट-फूटकर रोने लगा। जिनेदा की सांत्वना पर भी जब उसके आंसू नही रुके तो वह घबरा उठी । कई बार पूछने.उसने कह ही दिया, “मैं सब कुछ जानता हूं। तुमने मेरी भावनाओं से यों खिलवाड़ किया ? तुम्हें मेरे प्यार को आखिर क्या जरूरत थी ?” छिनेदा ने उसे समम्मया और मोहक दृष्टि से देखा। वह सदर कुछ भूल गया । 5 (एक दिन ब्लादीमीर के माता-पिता में झगड़ा हो गया और सबने शहर अलने की तैयारियां शुरू कर दीं । यह भगडा एक पत्र के कारण हुआ जिसे मेलेबस्की ते भेजा था। पत्र में किसीका नाम नही थां, परन्तु उसमें प्योज् वेसीलेविच के जिनेदा के साथ सम्बन्ध की दात लिखी थी ( उसी शाम वेसीलेविच ने मेलेवस्टी को अपने घर से निकाल दिया। ब्वीदीमीर को उनके मोकर फिलिप ने बृतायाथा कि वेसीलेदिच ने दिसेज़ को कोई रैब्ध गंगार के मड़ात उपस्पाम प्रोमिडरी मोड दिया था और मारिया विशेवायना ने वेसीसेविय से गढ़ भी बढ़ा हि वे जिनेद् से मेत-नोस बढ़ा रहे थे और यद उतके प्रति बेवफाई थी। मारिया निशे- लाइवना की इन थागों पर वेगीलेविय हुपित हो गए थे कौर झगड़ा बड़ गया था फितिय मै सो स्तादीमीर को साफन्‍साफ बढ दिया कि उसके विये वा जिनेज्ञ मे टेसा ही सस्वख था। गयादीमीर को इग घटना से बहूए घक्ता लगा था। जिया दिन म्वादीमीर को परि- बार घहर जा रहा या यह प्रिगेड के घर गया। जिनेदा से जब उसने 'असतिददा' कद्ठा तो बह बोली, “गवमुष मैं यैगी सहीं हूं। मैं जानती हूं हि मेरे बारे में तुम्हारी राम अच्छी नहीं है।" झ्लादीमीर ने बहा, “विद्ञाग करो ज़िनेदा, तुमने घड़े जो भी हिया हो, मुझे वितना ही बयो गे साया हो, मैं डिन्दगी के आखिरी दम तड़ तुम्हें प्यार करता रहूगा ओर धुग्हारी पूजा बरता रहूंगा !” यह सुनकर जिनेदा ने ब्वादीमीर की गर्दन में ढांहे डालकर 3गे चूम लिया था। घहर जाते पर एक दित ब्तादीमीर वी मुवाझात शूइस से हुई शिसने बताया कि उसे सांसने री बीमारी है और वेसोवजोरोर काक्ेम्रस चत्रा गया है। तूइस ने यहां भी उसे उपदेश दिया कि उगे साधारण जौवन बिताता चाहिए । वेसीलेविच को प्रतिदिन घुदसवारी करने की आदत थी। एक दिन ब्लादमीर भी उनके साय अपने टट्टू पर बैठकर घूमने चता गया । उसके पिता वेसीवेविय का घोड़ा “इलविटूक' बड़ा विगईल घोड़ा था और बहुत तेड दौड़ता या। ब्लादीमीर बड़ी कठिनाई से उसके साथ अपने टट्दू को ले जा रहा था। दूर-दूर तक सवारी करने के पश्चात्‌ वे धोड़े कुदाते हुए नदी के किसारे-किनारे चलने लगे। एक स्थान पर बल्लियों का ढेर था वहां ब्लादीमीर के पिता धोड़े से उतर गए और लगाम उसके हाथ में देकर नुक्कड़ की एक तंग गली में चले गएं। जब उसे दोनो घोड़ों की लगाम पकड़कर चहलकइमी करते काफी देर हो गई तो वह उसी गली की ओर चल चल पड़ा जिसमें वेसीलेविच गएं थे। एक भोड़ मुड़ने के वाद घालीस कदम की दूरी पर एक छोटे-्से लकड़ी के मकात बी छिड़की खुली हुईं थी जिसपर उसके पिता कुहनियां टिकाए खड़े ये। लिडुकों के परों के उस तरफ जिनेदा खड़ी थी। देखते ही ब्लारोमीर सन्‍न रह यया। पिता के भय से वह चलने ही वाला था कि किसी अज्ञात आकर्षण से वढ़ीं खड़ा रहा । उते लगा कि वेसीलेविच किसी बात बात के लिए बार-बार आग्रह कर रहे थे और जिनेदा के होंठों पर हटीली मुस्कान थी ! जिनेदा ने किर अपनी बांह आगे कर दी और वेसीलेविच ने घुड्सवारी का चाबुक जिनेदा की नंगी वांहों पर सन्‍न से जमा दिया। जिनेद चौंक पडी। उसने वैसी- लेबिच की ओर देखा और बांह पर पड़े लाल दाय को चूमते लगी। घ्लादीमीर के पिता चाबुक एक ओर फेंककर घर के भीतर चले गए। ब्लादीमीर फिर से घोड़ों को लिए नदी- किनारे आ गया । अब तो छुपाने को कुछ रह ही नहीं गया था। जिनेदा उसके पिता की प्रेयसी थी। कुछ देर वाद ही उसके पिता आ गए और वे घोड़े दौड़ाते घर चले 82 इस घटनो के छः महीने बाद ही वेसीलेविच की लकवे से मृत्यु हो गई ॥ उसी दिन उन्हें अपने बेटे ब्लादीमीर को फ्रेंच में पत्र लिखना चुरू किया या, “मेरे बेटे ! औरत के प्यार * से सावधान रहना, उस खुशी से, उस जहर से“ हे मेरा पहला प्यार श्र सोन-घार वर्ष बाद यूनिवर्सिटी से डिग्री सेने के पक्चात्‌ भी ब्लादीमीर ने अभी औोई काम प्रारम्भ नही रिया था। उन्ही दिनों एक धाम थियेटर में उसकी मेंट मेदेनोव से हो गई। उसने विवाद कर लिया था और अब वह किसो सरकारी दफ्तर में नौकर भी था। पैदेनोद ने उसे बताया कि जिनेदा ले दौलस्की लायक किसी धनी व्यक्ति से विवाह कर लिया था और वह “मादास दौलस्काया' कहलाती थी। मंदेनोद ने उसे जिनेदा का 'डेमुथ होटल का पता भी दिया। दो सप्ताह तक सोचकर भो ब्लादीमीर डैमुय होटल नहीं जा सका । जद एक दिन वह जिनेदा से मिलने डैमुथ होटल पहुचा तो उसे मालूम हुआ कि छार टिन पहले ही वह्‌ प्रसव में मर गई | ब्लादीमीर फटी-फटी आखों से होदल के उस चौकीदार को देसने लगा जिसने उसे जिनेदा की मृत्यु का समाचार सुनाया था। फिर बह चुपचाप होटल से सड़क पर आ गया और रास्ते पर चल पड़ा । 'उसे घुछ भी दिसाई नही दे रहा था| केदल अतीत की स्मृतियां उसके मस्तिष्क में भडरा पही थी।'** इन दातों को वर्षों बीत गए, परन्तु ब्चादीमीर पेत्रोदिच जिनेदा के साथ गुझरे हुए दिनों की स्मृति को जीवन की सबसे ज्वतत और अनमोल वस्तु मानता था। प्रेम का अनेक रुप से लेखक मे यहां चित्रण किया है। हुदय की जिन गहराइयों को पहाँ दिखाया गया है, वे हमारे जीवन पर आज भी प्रभाव डाल सकते में सपर्ष हे दुर्नेद ने केवड कपा पर किक थल नहीं विया है, धरन्‌ उसने अन्तरात्मा को प्रतिविदित किया है। दास्तोएवस्की परिवार और बन्धु [द ब्रदर्स करामज़ोव* ] दॉस्प्रोएवरकी, फ़्योदोर : रूसी लेखक फ़्योदोर दॉलोएवसक्री का बन्म मारो में २० अक्तूबर, १८२१ को हुआ था | आपके जोवन मे बड़े उतार-चढ्राव झाए) आपको प्रारंस में सेना तथा इंडीनियरी के स्कूलों में शिक्षा दी गई। १5४४ में आपने साहित्य सेव के लिए सेना की नौकरों दोड़ दी । आप फिर साम्यवादी विचारधारा के संपई में भा गए । आपको १८४६ में गिरफ्तार कर लिया यया भौर चार वर्ष के लिए साई- बेरिया मेज दिया गया । फ़िर कुछ दिन को भाए सेना में भा गए । कद दिन पत्र- कारिदा को और कु दिन भपने कर्ों के बोक से बचने के लिए भाष विरेश भाग गए | बाद में भाष उदार विचारधारा के संगाइक कइलाए। झयापकी सृत्यु २६ मसवरी, रदज१ को ६३॥ आपने विचित्र मानसिक संपक्षों का चित्रथ करनेवाले उपन्यामों का सूजन किया है। द जईर्स करामडोव' ( परिवार भौर बन्धु ) अपनी मूल भाश रूसी में १८८० ६० में प्रकारिय हुमा । श्सने प्रयोप्त स्याति भर्जिव की दे | *दुँवान ! मेरे बेटे, अगर शुम च्मास्तेया जाकर मेरी वह जायदाद बेच आओ, तो तुमको हूस बी सबसे मुन्दर लड़की दे दगा ! मद् सच है हि उसके पांव संग हैं पर उस जैसी अतन्य मुन्दरी तुम्हें अन्यत नहीं मिलेगी। इन गरीब लड़कियों से तुम नफरत 8828 बरो। ये सुख देनेवात्रे मोत्री के रामात होती हैं।” यह कहकर प्योशोर पावतो्विष करामशोद खुशी से हस उठा । उसकी गुरियों-सी बूढ़ी आँ्े हरे से घकमने सर्गीं भौर यह अपने बाँपते हुए हाथों से बांडो का दूसरा गिलास भरते खगा। ईवान ने अपने पिता जी ओर प्रकट घुणा से देखा और कहा, “आप ही वहाँ इ् नहीं घने जाते 2” बृद्ध ने हमे. ए बढ़ा, “बात अगव में यह है हि यहां मुझे एक बहा बहती बास है |” ईदान दे पाण ही उसहा छोटा भाई अन्योगा बैठा हुआ या, उसते उपछी ओर राषटदमप टूगिदि में देसा। आज उसका भाई दिता से मिलने के लिए अपने मह मे गे विद्ेप आजा धाप्त करडे आया या । है दोनों देशो और बाप में यह एृद्ध विविजन्य नाता था। उतमें दृद्ठ अजीदणी १. 35६६ एाजफ-टाक फ्क्द्ा32०४ ( #2०टेग क्‍0087<४9 ) परिवार और वन्धु श्११ आजादी थी। करामज़ोव परिवार के वारे में सव॒ लोगों को यह विचित्रता सहज प्रतीत होती। डत लोगों में परस्पर जैसे कोई भेइ-भाव नहीं था। बुद्ध फ्योदोर एक घनी जमीं- दाद था, जिसने सदिरापात, वासनामय जीवन व्यतीत करना और स्वेच्छा से विचरण करना ही अपने जीवन का आधार बना रखा था। यह गुण उसकी चुभती हुई आंखों में मानो बहुत यहरे तक उतर गया था। उसके ग्रालों पर अभी तक इस वासना का डफान ल्ालिमा पोत दिया करता था और उसके भरे हुए होंठ फफकते-से दिखाई देते थे। ईवान चौत्रीस साल का था। उसका चेहरा शांत या--गम्भोर, जैसे वह एक बडा चतुर सांसारिक व्यक्ति हो । झालौनता उसके व्यवहार से प्रकट होती थी, लेकिन मानो उसमें हर वस्तु के प्रति एक तिरस्कार था। छोटा भाई अल्‍्पोशा दीस वर्ष का था $ वह एक पादरी दनने की तैयारी कर रह था, लेकिन तपस्वी जीवन का कोई गर्व उसमे दिखाई नही देता था। उसके गाल लाल थे। स्वच्छ यौवन उनपर भिलमिलाया करता या। आल्ो मे आनन्द की चमक तैरा करती थी और देखने मे हो प्रकृति से वह सहज और सीधा-सादा लगता था। कल्पोशा और ईदान दोनों ही इस बाठ को खूद जानते थे कि बुद्ध पिता वहां जाने में क्यों हिचकिचा रहा था । उनको यह भी पता था कि वह जरूरी काम, जोकि पिता को यहाँ रोक रहा था, अपने-आपमें कुटिलता का सदेश लिए था। मित्या उनका सबसे,बड़ा भाई या। उसमे और पिता में एक मरणान्तक संघ चल रहा था। मित्या करामजोव सेना मे लेपिटनेष्ट था, उसका जीवन बहुत ही उच्छूृंचल था, इसलिए उसे अपनी नौकरी से त्यागपत्र देदा पड़ा! उसने एक सेना के जनरल को अपमान से बचाया था और इस कृतज्ञता के लिए उस जनरल की पुत्री केतरीता इदानोवदा को उससे सगाई हो गई और ब्याह हो गया । मित्या अपने पिता को तरह ही महाप्रचंड ओर गुस्सैल था। वह अपनी पत्नी का बुरी तरह अपमान किया करठा था) एक दफा स्त्री ने उत्तसे तीन हज्ार रूवल मांगे जो वह मास्क्रो मे अपनी बहन को भेजना चाहती थी। लेकिन वह धन मित्या ने बेश्याओ पर लुटां दिया और उसके बाद बह केतरीना को मायके छोड़ आगा। एक पौलिश अफसर की पहली प्रिया ग्रूशका नाम को स्त्री थो। अब मित्या उसकी सुन्दरता देखकर उसपर पागल हो गया था $ अृद्ध प्योदार ने जब प्रृूशका को देखा तो उसके लावण्य ने उसे वन्‍्दी दना लिया। उसे मालूम था कि उसका पुत्र मित्या इस स्त्री से सम्पर्क रखे हुए या, किन्तु न जाने क्यों इस भावना ने उसकी वासता को और भडका दिया और वह निलेज्ड रूप से यह प्रयत्न करने लगाए कि किस प्रकार अपने पुश्र की प्रिया को अपनी बना सके । उसने यूशवा से कहा कि यदि वह एक रात ही के लिए मी उसके पास आ जाएगी तो वह उसे तीन हजार रूवल देगा। उस धनराशि को उसने अपने तकिये के नीचे एक लिफाफे में बन्द करके रक्त छोड़ा या । मित्या घोर ईप्या से कांपदा हुआ विकराल हो! उठा था । दह अपने पिता के घ प्र दित-रात नजर रखता या। वृद्ध करामज्ोव ने हिचकिया लेते हुए (फर कहा, “मैंने करी जीदन में स्त्री को ११२ संशार के मद्ान उपस्यास बुर्प नहीं गाता । मेरे बेटे, सुम इग बात को नहीं समझ सझनते | तुम अभी बच्चे हो । ' तुम्हारी मगों में अभी तक दूध है--रहत नदीं बहता । घुम तो सदज ही किसी भी स्त्री पर लट्टू हो सकते हो | सुनो, तुम्हारी मां अब मर चुकी है। मैं उगकै साथ विचित्र मनो रजन किया करता था। मैं अपने हाथ पृथ्वी पर रखकर घूटनों के बल चलता था और उसके पांवों को धूमा करता था। यहां तक कि आखिर वह हंसने सगती थी जैसे कि मीठी धटियां अज रही हों और कुछ ही देर में यह ऐसी हो जाती थी जैसे उसे दौरा पढ़ यर्णा हो, तेकित हप॑ के उन्‍्माद में भी उसके कंठ से जैसे चीत्कार फूटता रहता था| उसको एिर होश में लाने के लिए सुर हर वार किसी मठ की ओर ले जाना पड़ता था ताकि वहां के झाल्व और पवित्र थातावरण से उसकी चेतना फिर लौट सडे॥ पवित्र पादरी लोग उसको आशीर्वाद दिया करते थे। लेकिन तुम्हारी माता धर्म के कारण ही ऐसी नहीं हो जाती थी। मैं उसके अन्दर के सारे रहस्यत्राद को नष्ट कर देना चाहता था और एक दिन मैंने इसका निश्चय कर लिया। एक दिन मैंने उससे कहा, 'तुम अपने पवित्र देवता को देखती हो। तुम समभती हो कि यह चमत्कार है तो देखो मैं इसपर थूकता हू और तुम देखना कि मुझे कुछ भी नहीं होगा ।' हे मगवान, मुझे वह क्षण ऐसा गा जैसे वह मेरी हत्या कर देगी । तेकिन उसने कुछ नहीं किया। वह केवल उछली और उसने अपने हाथों को भला और क्षण-भर में ही अपने हायों से अपने मुंह को ढंक लिया और कांपती हुई पृष्वी पर गिर पड़ी, मानो बह एक मास की ढेर थी--संघर्ष करती हुई”अल्योशा, अल्योशा, क्या हुआ, क्या हुआ !” बुद्ध हठात्‌ भयभीत-सा छड़ा हो गया । अल्योशा अपनी हुर्सी से ठीक वैसे ही उछलकर खड़ा हो गया था जैसे कि पिता ने माता के बारे में बताया था । वह अपने हाथ- मलने लगा + उसने अपने हाथ मे अपने मुंह को छिपा लिया। और अपनी कुर्सी पर मिर- कर बुरी तरह से कांपते हुए, जैसे उसपर जूड़ी का बुखार चढ़ आया था, वह चुपचाप रो रहाया। ९ वृद्ध चित्लाया, “ईवान, ईवान, पाती लाओ, पानी ! बिल्कुल अपनी मां जसा है'*'वही मेरा““'वही देवता का चित्र**“और ऐसी ही घामिक दौरा उसपर भी आता था ।' “अपने मुंह में से थोड़ा पानी इसपर डालो । मैं भी तुम्हारी माता के लिए यही करता था । यह लड़का अपनी माता की याद में पागल हो यया है !” वृद्ध ने बड़बड़ाते हुए कहा । है ईवान ने बहुत ठंडे स्वर से कहा, “इसकी मां शामद मेरी भी मां थी । थीना? ओऔर यह कहते हुए उसकी काली उदास आखों में आग-सी जलने लगी | वृद्ध उसको देखकर भयभीत-सा पीछे हटा और पीछे रखी कुर्सी से टकरा गया। उसने अल्योश्या के स्वर में बड़वड़ाते हुए कहा, “तुम्हारी मां; हां बुरा मां सचमुच वह थी, मुझे माफ करो मैं यह सोच रहा था ईवान"“यह कहकर हा हे अभाव में बह हंसने की चैप्टा करने लगा। राव का नशा एक भूठीन्सी स्यर्थ की हँसी बनकर उसके होंठों को कुछ ऊपर की तरफ़ सिकोड़ गया। | -. * उस समय हॉल में बहुत जोर से कोताहल उठने लया। बड़े ज्लीर-जोर की आवार्ज परिवार और वन्धु ११३ शुनाई देने लपी $ भोजन केः कमरे से एकदम द्वार खुल गया और एक आदमी बड़ी तेडी है कमरे में घुस आया । लगभग २८ वर्षीय युवक था वद । हट्टा-कट्टा, बसिप्ठ; सेकित सके गाल पीले थे, कुछ घंसे हुए | उसके ललाई लिए माषे पर काने पने बालों का युच्छा शटक रहा था और उसकी विशाल आंखों में पायतपन की एक चमक-सी दिखाई देती थो। जब उसने प्योदोर को वृद्ध और डरी हुई आंसो को देखा तो बह परागलपन जैसे और भी अधिक सुलग उठा। बद्ध ने चिल्लाकर बढ़ा, “मुझे बचाओ, मुझे बचाओ यह मुझे सार डातेगा ! भह मुझ भार डालेगा !” यह कहकर उसने ईवाल के गले में हाथ डाल लिए और बह दिल्लाया, "इस मित्या के पास भुझे अकेला मत छोड़ों। इस मित्या को मेरे पास मत झाने दो !” मित्या कमरे में आगे बढ़ा और विल्लाया, "वह यहीं है। मैंने उसे घर की ओर मुड़ते हुए देखा था| बह निकल गई““और मैं उसे पकड़ नहीं पाथा। कह है वह इस समय ? मुझे बताओ वह कहीं छिपी है ? भीतरी हिस्से में जानिवाले दोहरे दरवाजों को ओर वह तेडो से बढ़ा । दरवाड़ों में इस समय लाता लगा हुआ था । मितपा ने एक दुर्सी उठा सी और बड़े जोर से उस दरवाजे पर फ़रेककर मारी । दरवाज़ा अर्रोकर टूट गया। भित्पा चेण से भीतर चला गषा । बुद्ध ने काँपते हुए कहा, “ईवान ? अल्योशा | वह यहीं है। अल्योशा ! वह यहीं है। भिष्या ने उसे मेरे घर की ओर आते देखा है |” उसने अपने होंठों को घाटा और दौहरे दरवाजे को ओर बढ़ा । ईबान चिल्लाया, “अरे बुदऊ, सौट आओ ! वह तुम्हारे टुक ट्रे-्टुकड़े कर देगा ! तुम जानते हो कि वह यहां नही आई है।” भित्या फिर से भोजनपृह में आ गया था | उसने दूसरी और के दरवाज़े में ताला लगा हुआ देखा था। दूसरे कमरों के वातायन और लड़कियां भी बन्द थीं। इसलिए यह निश्चय हो गया कि प्रूझंका कही से भी भीतर नही भा पाई थी ) मृद्ध चिल्लाया, “पकड़ लो इसे । इसने मेरे तकिये के तीचे से मेरा घन चुरा लिया है ।” और ईवान के हाथ से छूटकर वृद्ध मित्या की ओर बढ़ा) मित्या ने उसे पकड़ लिया और श्षोर से दे मारा। मित्या बढ़ा और उसने जगलियों की तरह, अपने जूते की एड्डी से बूढ़े को छोकर मारी । ईवात और अल्योश्या भपटकर उस्तको अपने कराहने हुए शिथिल पड़े पिता के पास से दूर धकेजने लगे। ईवान चिल्लाया, “तुमने पिता को मार डाला है !” मित्या ने दलपूर्वक अपने को उन दोनों से छूडा लिया औय पागल की तरह अपने भाद्ययों को देखने लगा। “तुम मुझे देखते कया हो ?” उसने कहा, “लेकिन यह समभ लेना कि आज भले हो भाग्य मेरी ओर न हो, लेकिन शीघ ही मैं अपना यह काम पूर कर दूगा !” यह कहकर उसने जल्पोजा की ओर प्रार्यना-भरी आंखों से देखा और कहा, “अल्योश्ा एक तुम ही हो जिसपर मैं विश्वास कर सकता हूं। सच दताओ, वया वह यहा अभी आई थी; भा यह मेरा अम है ?” हर सवार के मात उपत्याय आ“गेदा ने करा, “मैं काम शायर कटा हैं हि बडे देर नहीं जाई और इसनें में हिमीरों मह बादा भी गरीं थी हि बड़ गदर झरागी ।7 बिता हुक धर्म कहे विदा गुदा और कररे से भाग विधा । शादी में दो नौहरों से उसे गोरने को लेप्टा की ते हित बट उस्हें बरतें देशर विस गरा । शुद्ध सेव शिरी जब उडा तब उसने विर से रक्ा बडे रा था। वह अये गुद रवामी के पास मा गया उगके पीऐेसीऐ एए परलाजुदता मुंहये-्मरे बदौोयाया स्मररुगढोत था जोडि वृद्ध पयोदोर वा सेधार और स्सोडपा था । ईवान और एिगेरी में शुद्ध की उड्नया और मारानहुर्गी पर शिड्रश। वृद़ कै सेहरे मे रहा बह रहा था। उद्धोने खा थो गा) पाए पर पट्टी बोपी | उगे डपह़े बचे और उग धस्या वर लिटा दिया । मचातक सूद्ध ने अपती आंखे शी और बठा, “वह बहाँ है । वह यहीं होगी!” सड़ बह हुए उगझे मुछ् बेर शिचाग और वासना ही एफ घृणित विरतन-गी मांग उड़ी और उसके बाइ यह मूत्दिा हो गया । ईवान अच्योगा जी ओर सुद्ा और बोला, “परि मैं मिय्ा नो दूर नहीं से बावा तो आज उसने बास खत्म कर दिया होता ! ” अत्योघा कप उड्ा। उसने कहा, /मगवात यघाए |!” ईवान मे मुस्ताकर कहा, “बया बचाए भगवान ! इसमें कया बाद है | एक सांप दूसरे रांप को निगल गया ! इससे अधिक इसमे कोई तथ्य तो मा नहीं ।” जब अब्योगा को यह निश्चय हो गया हि उसके पिता को अब डुछ आराम है, बंद फ़िर मठ जाने के लिए तैयार हो गया। ईवान उसके कापी देर बाद गया। जब वह फाटक पर पहुंचा, स्मरदूयाकोय ने उसे रोझ। ईवान ने पूछा, “बयों गया बात है ?” उसे यह चातराई लगनेवाला युवतर बहुत ही पूृणित-गा लगता था। स्मरद॒यात्रीव पर सब लोग दया करते थे, बयोंझि उसे मिरगी के दौरे आया करते थे । वृद्ध पपोदोर उप्रे बदुत पसन्द करता था बयोकि स्मरद्याक्रोव एक बहुत ही अच्छा रसोइया था और यह भी एक अफवाह थी, जिसे न कोई प्रमाणित कर सकता था और न अग्रमाणित ही कर सकता था, कि समर दुपाकोव उस वृद्ध का ही पुत्र था । ५ 44233: बड़वड़ाकर कहा, “भ्रीमान ईवान ! मैं वहुत ही दयनीय अल्प, मे हूँ। आपके भाई श्रीमान भित्या और आपके पूज्य पि्ठा आपकी अनुपस्यिति में दोनों ही पायसों जैसा व्यवहार करते हैं। हर रात वृद्ध महोदय घर-भर में ४43 करते हु रा हर मिनट पूछा करते हैं, या वह आ गई है ? वह अभी तक क्यों नहीं आई ? मे (28 दूसरी ओर से भी मुभसे ऐसे प्रश्त किए जाते हैं, 'बया वह आज यहां आई थी ? क्या वह आज क्षानेवाली है?” अधेरा होते हो आपके बड़े भाई मेरे पास आकर कसम पी लिलाकर इस तरह के प्रश्न पूछते हैं और अंत में कहते हैं, 'ओ वेहूदे रसोइपे, ४ ० हि गई और भीतर पहुंच गई, नो तरह मसल दूंगा !” दोनों ही ऐसा लगता है कि मैं डर लेकिन थ्रौमान मित्या आंखों से देखा कर। अगर वह तेरी नज़र से निकल यः उसके आने पर मुझे नही बठाया, तो मैं तुके एक मक्खी की तरह एक-दूसरे से अधिक क्रुद्ध होते चले जा रहे हैं। कभी-कभी तो मुर्क के मारे ही मर जाऊया। मुझे डर है, ग्रूशंका यहां आए या व आएं, परिवार और वन्धु ११५ मौका पाते ही वृद्ध महोदय की हत्या कर देंगे, ताकि उनके शयनकक्ष से वे उतके सारे घन को चुराकर बे जा सकें । मित्या महोदय के पास अपना तो घन दनिक भी शेप नहीं रहा है, और का ग्रूझको किसी दूर-दरांज देश में ले जाने के लिए उन्हें तीन हजार की इस समय बड़ी आवश्यकता है ९” ईवान ने पूछा, “लेकिन, इस सम्बन्ध में मैं क्या कर्स कता हूं २? रुसोइये ने उत्तर दिया, “जैसा आपके पिता चाहते हैं, चर्माश्देया की ओर आप प्रात.काल चलने जाएं। अल्पोद्या सठ में होंगे। ग्रूशंका के आने के समय वे आप दोनों को यहां रखना नहीं चाहते, यहां से दूर रखना चाहते हैं!” ईवबान ने उत्तर दिया, “तुम समझते हो फ़ि तुम और प्रिगेरी दोनों मिलकर मेरे. भाषाबेश से भरे हुए बड़े भाई के लिए काफी साबित होगे 2” “नहीं ।” उसने उत्तर दिया। “वृद्ध ग्रियेशे सोता रहेगा और मु कल रात को एक भयानक मिरयी का दौरा आएगा जो सवेरे तक चलता रहेगा।" “नुम्हें यह कँसे पता है कि कल रात तुम्हें दौरा आएगा ही ?” “में हमेशा बता सकता हू कि भुझे दौरा कब आनेवाला है।/” ईंवान ने कहा, “अच्छा, तव तो निश्चय ही मेरी यह इच्छा है कि मैं यही रहू और अपने पिता की रक्षा कहूं। मैं चर्माश्नेया नहीं जाऊपा ।/ इसपर रसोइया बोला, “श्रीमान ईवान, इस वात पर और सावधावी से विचार कर लें। आपके पिता ते निकट भविष्य मे ग्रूधंका से विवाह करने का विचार प्रकट किया है। यदि वे ऐसा करेंगे तो उनके पुत्रों को पुत्राधिकार से वचित होना पड़ेगा, लेकिन यदि उनके विवाह के पहले ही उनकी मृत्यु हो गई तो आपमें से हर एक को चालीस हजार पौंड मिल जाएगे ।/ ईवान का मुख कठोर हो गया । “आपने हर बात को सोच लिया है,” रसोइये ने घीरे मे बहा, “सोच लिया हैं भा २” उसने फिर ईवाल से पूछा, “आप चले जाएगे ना २” अंधवार में बढते हुए ईवान ते उत्तर दिया, "ओ चूहे! मैं इस बारे में ओर सोचूगा !” अगले दिल प्रात:छाल ईवान चमस्निया चला गया था। प्रूइंबा) अपनी सेविदा फेतिया के साथ #ैयेडल स्क्वायर के पाम एक छोटे-से पब डी के भगान मे रहा करती थी। साक हो गई थी और अंघेश हुए लगभग एक घटा हो पया था। फेंविया रसोई मे बेठी बुछ सिलाई कर रही थी, उसी समय मित्या ने जोर से श्यवाडा षोजा और उस छोटे-से घर के बमरे को तलाधी लेने लगा और वह किर फेनिया फैपास शोट आया और चिल्ला उठा, “कहां गई है वह 2?" फनिया बुरी तरह डर गई। उसको सास लेने का भी उसने पर ध्यादुल-सा उसके चरणों पर गिर पड़ा। उसने रोते हुए रहा, लए मुझे बता दो कि बह बहा घली गई है 7” एक क्षण नहीं दिया 'फंनिएा, ईश्वर के ११६ संसार के महान उपन्यात “मैं नहीं जानती ! ” लड़की ने कहा, “मैं नहीं जादती मित्या पयोदोरोविच, तुम भत्ते ही चाहे मुझे जान से मार डालो, लेकिन मैं नहीं बता सकती ! क्योंकि मुझे पता ही नहीं है ।” मित्या चिल्लाया, “तू मूठ बोलती है ! तू जो डर रही है, तुझे जो अपने अपराध का आभास हो रहा है उससे मुझे पता चल रहा है कि वह इस समय कहां है।” मेज पर एक मसल रखा था मित्या ने उसे कपटकर उठा लिया और सड़क पर भाग चला। उसने चौराहा पार किया । एक लम्बे रास्ते पर दौड़ चला। फिर पुल पार किया और एक यूनी गली में होता हुआ माखिर वह अपने पिता के बगीचे की ऊंची बाड़ के समीप आ गया। उसने भीमवेग से एक उछाल लगाई और उस बाड़ के ऊपरी भाग को पकड़ लिया और वह उस ऊंचाई पर भूलने लगा। एक क्षण में है, वह ऊपर चढ़ गया। उसने अपने-आपसे कहा, “बढ़े के सोने के कमरे में उजाला हो रहा है, जरूर वह वहीं होगा।” बिना आवाज़ किए वह नीचे की हरी घास पर उत्तर आया और मुलायम दूव पर वह बिल्‍ली की तरह चलता हुआ ज़रा-सी भी आवाज़ पर चौंक-चौंक उठता हुआ आगे बढ़ चला। उसे उजालेदार खिड़की के पास पहुंचने में पाच मिनट लग गएं। उसने उसे धीरे से थपथपाया और फिर घनी भाड़ी की छाया में छिप गया । खिड़की खुल गई और वृद्ध फ्यादोर तेज लैंप को रोशनी से भरे हुए कमरे में दिखाई दिया। लैंप एक हितारे रखा था। उसके आलोक की किरणें उसपर तिरछी होकर गिर रही थीं। वह रेशम का एक तया ड्रैसिंग गाउन पहने था जो गरदन पर खुला था। भीतर से सोने के बटन वाली बहुत ही फैशनेवल लिनिन की कमीज दिखाई दे रही थी। बूढ़े ने बाहुर भांका और हर ओर देखने लगा और बोला, “ग्रूथका, तुम आ गई हो, तुम आ गई हो, तुम मा गई हो, म्रूझका ?” उसकी आवाज़ कांप रही थी और वह फिर बड़वड़ाया, “मेरी विहिया, तुम कहां हो ? देखो, मैं तुम्हें कुछ भेंट देना चाहता हूं।” मित्या ने सोचा, “उस लिफाफे में रसे हुए तीन हशार रूवल बूढ़ा गूगका रो देना चाहता है।” अवानक ही उसके मस्तिष्क में एक विचार कौंप गया, काश यह घन उसको मिल जाए, तो वह उससे क्या नहीं कर सकता !* बूढ़े ने भरमराए स्वर से कहा, “लेकिन सुम हो कहां ? मेरे सामने गए नदी आती ?”और अपने इस उन्माद में वह लिडकी में से आधा बाहर झुका गया, मातो देसने वी चेष्टा कर रहा या कि वह किस ओर धिपी खड़ी थी। अब यह मित्या से हायन्मर 8 दूरी पर था। उसका सिर झुका हुआ था। उसकी नुकीली नाक, कॉपी हुए कि गियर दोद टोड़ी और गले वी कांपती हुई हड्डी दूसरी ओर से आते सैँप के प्रकाश के शामते ट स्पष्ट दिखाई दे रही थी। मित्या का हृदय घृणा की भयानक सदर में भीग गया। 08% अपनी जेव से मूसल को बाहर निकाल तिया। लाव-सालन्मा कोदेरान्सा उसरी आते! के सामने तैर गया। शुछ देर तक उसको यह पता ही नही घता हि उसकी सांग दा क्यों पड़ गई थी और वह हरियाली दुद को इतती कूडिताई से बयों पार कर कलह बह दाड़ के पास पहुंच गया, एक बार किर उछला और णद बढ बता तो का हम बाह पार करने के बाद उसमें दाक्ति बाड़ी नदी रदी थी, मातों मारी वत्यर उधके ४ परिवार और बन्धु ११७ बांध दिया गया था। उसे लगा कि किसी ने उसका पाँव पकड़ लिया था और एक ब्याकुल घुटी हुई सी आवाज़ सुनाई दी, “हत्यारे !” यह वृद्ध प्रियगी की आवाज़ थी। मित्या का हाथ बिजली की तरह नीचे गिरा बूढा नौकर कराह कर गिर गया। मित्या क्षण- भर तक उसे देखता रहा और फिर उसके पास ही गिर पड़ा । अचानक उसने यह अनुमव किया कि उसके हाथ में एक भयानक चीज अभी तक मौजूद थी। उसने उसकी और आश्चर्य से देखा और फिर उसे अपने-आपसे दूर फेंक दिया ! बह प्रिगेरी के पास रुक गया। बूड़े मौकर के सिर से रक्त बह रहा था। मित्या ने अपना रूमाल निकाल लिया और उसके बहते खून को रोकने के लिए उसके घाव पर लगाया । रूमाल लहू से तर-बतर हो गया। मित्या के रग-रग मे आतंक की लहर दौड़ गई और बह दहशत से यर्र उठ । एक कौंघ-सो उसके दिमाग में घूम गई और उसे लगा कि जैसे उसके भौतर से कोई कह रहा था, “मैंने इसको हत्या कर दी है !” एक भपाटे में बहू बाड़ को पार कर गया और पागल कौ तरह भागता हुआ सयर में घुस गया। अब अनन्त संकट और असीस कष्ट में डूबने के पहले उसकी एक ही तृष्णा बाकी रह गई थी कि वह एक बार फिर ग्रृद्धका के दर्शन कर ले ६ फेलिया अपनी दादी के साथ रसोई में बेझो थी । मित्या ने तेड़ी से प्रवेश किया ओर उसकी गरदन पकड़ ली । और वह गरज उठा, “दताती है, या भरती है, वोल ! कहाँ पाई है वह ?” दोनों स्त्रियां भग से चिल्ला उठी । फ्रेनिया कुर्सी में सिकुड़ गई और मित्या की चलिप्ठ उशलियों के दबाव से उसबी गरदन दर्द करने लगी और तिरन्तर फसते वेग के कारण उसकी आंखें वाहर नित्रल आईं) बह घवराकर बोली, “ठहरो, वहरो ! मैं तुम्हें बत्ती हूं, लेकिन मैं मरी जा रही हू । मित्या प्यारे, मुझे छोड़ दो ! वह अपने अफसर के पास भोकरो गई है !” मित्या गुर्रापा, “कौन अफसर ?” फेनिया ने बहा, “हीं पोलिश सज्जन, जिसने उसे पांच दर्प पूर्व निकाल दिया था। आपके मित्र क/लगानोव और मेविसमों उसके साथ हैं। वे लोग त्रिपनी बोरिसोविच की रराय में इकटूठ होंगे। ओह मित्या, तुम इतने पागल-से क्यों देख रहे हो ! तुम बया उसकी हत्था करना चाहते हो !" लेबिन मित्या अब तक सड़क पर आ यया था और प्लोपनौको के बड़े स्टोर की सरफ तेजी से भागा चला जा रहा था। स्टोर के मालिक ने उसे देखा तो उसको आतु- रता को देखकर उसे आाश्चय हुआ ! मित्या ने चिल्लाकर बहा, “मुझे तुरन्त घोड़े दो औौर गाड़ी जुदवामों और मुझे शैम्पेत शराब दो ) कम से कम तीत दजन बोतल ! मैं मोकरों जाना चाहता हूं! अगर तुम्हारा गाडोेदाता आधी रात से पहले मुझे बहा पहुंचा देगा तो मैं उसे इनाम दूगा !” और यह कहकर मित्या ने अपनो जेब से निकालकर बोस रूमबल साईस के लिए फेफे ओर बाकौ नोट जेब मे रत लिए। मालिक ने देखा कि नोदो पर इही-रहीं खून के दम लग रहे थे। उसने रा नोटों वी प्रतोद्ण में हृप फंरा दिए और मित्या करता के से भाव से उसका हिसाय चुकाने लगा । रैरद संमार के मात उपन्याग ज्योंदी मिस्पा ने विपनी दिय होदत के उस नीले कमरे में प्रवेश किया, गरूजता के मुंह से भयानक च्रीकार नितसे गईं। यह लगभग दाईर वर्ष की एक सुरेर युदती थी। लम्बी, कोमल, मसल, वही ग्रौंदर्ष जो हूग की औरतों में बहुत जल्दी भा जाता है भर बहुत ही जल्दी समाप्त भी हो जाता है। उसका मुख अत्यन्त इवेसल था और गालों १९ बहुत ही मनोहर धूली हुई सी सलाई दिसाई देती थी । यह इस समय एफ नीची कुर्सी पर बडी हुई थी। एक सस्त्रे सोफे पर उसके यामने कालगानोव बैठा था, जिसके कि वाल बड़े गुस्दर थे और जो देराने मे भी बड़ा आकर्षक विद्यार्यी या । उयके पाय मैंड्यियों पा। घह एक अप्पेड़ जमीदार था जोकि अपनी सम्पत्ति को हाल ही में विनप्ट कर चुका था। बह सुदृढ़ और छोटे कद का आदमी था जो मित्या के इस प्रकार प्रयेध करने पर अत्यन्त क्ुद्ध हो उठा था। मुगयोलाविच, जिसपर प्रूशंका यत पंच वर्षों से इतती मोहित थी, भी उनके निकट ही बेठा या | यह एक पोलिश अफसर था और उसके प्रीछ्े एक विशालकाय धहब्लेवस्की साम का व्यक्ति सड़ा था। वह ग्रेशका के पीछे मुकता हुआ उसको हुर्सी के समीप था। मित्या ने प्रचड़ स्वर से कहना ध्रारंग्भ किया, “सज्जतो !” लेकिन बह गलेक ध्षब्द पर अटकने लगा, “मैं आपसे प्रारथेना करता हू कि मुझे अपने साथ प्रातकाल तक यहां रहने की आज्ञा दें। मैं भी आपका एक सहयाभी हूं, अनन्त की ओर जाता हुआ मैं”** नहीं, नही, नहीं, वात तो कोई भी नहीं है।” और फिर ग्रूझंका की ओर मुडुकर उसने पहा, "मैं क्या चाहता हूं, मैं सही जानता ।" प्रृशंका कुर्सी में जैसे सिकुड़ गई थी। गठीजे और छोदे कद के पोलिश अफसर ने कहा, "थ्रीमान, यह एक आपसी लोगों का मिलन है, इसको ध्याव रखिए।” और उसने अपने मुह से अपना पाइप हटाते हुए कहा, “यहां और भी कमरे हैं।” मित्या ने बाकी और दो आदमियों की ओर मुड़कर कहा, “सज्जवो, मेरे इस प्रकार आ जाने के लिए आप मुझे क्षमा करिए ।“ उसके स्वर में याचचा की ऋलक थी, रभ्मै अपनी आखिरी रात अपनी रानी के साथ बिताना चाहता या ! मैंने उसको जीवन-भर प्यार किया है। सज्जनो ! मुझे क्षमा कर दीजिए ।” और वह पायत्त की दरह चिल्लाया, म्मैं भागकर आया हूं । आओ हम लोग सब मित्र वन जाए। मैं देर-ढेर ध्वराब अप लाया हू। देखिए, देखिए, नौकर उस शराब को भीतर ला रहे हैं ! आप लोग पोलेंड के निवासी हैं, तव फिर हम लोग पोर्लंड के कल्याण के लिए ही आज मदिरा पीएं !” जिफल, जोकि इस सराय का मालिक था, अपने नौकरों के साथ भीतर धुत आया। मित्या की लाई हुई बोतलों मे से दयराव उंडेली जाने लगी, और गिलास उसे लोगों के हाथों मे उठ गए । उन लोगों ने गिलास एक-दूसरे से टकराए और पोलंड के कल्याण के लिए पीने लगे । मित्या चिल्लाया, “और बोतलें खोलो ! और अब हम रूस के कल्याण के लिए पिएगे ! हम लोग आज से भाई-भाई हैं !” है . लम्बे परोल ने उठकर अपने गिलास को उठाया और कप सै कहा, “रस के ४. ९ ।ैढ४ लिए--जैसाकि रूस १७७२ से पहले था, उसी रूस के लिए ! मित्या का चेहरा छाल हो गया! वह चिक्लाया; “तुमने मेरे देश का अपमान परिदार और दन्धु ११६ किया है !” “चुप रहो" ग्रूशवका उत्तेजित होकर बोली, “यहां मैं किसी प्रकार का लड़ाई-कगड़ा पसन्द नही करूंगी, समझे ! ” यह कहकर उसने पृथ्वी पर अपने पैरो को जोर से पटका। पित्या बड़बड़ाया, “सज्जदी ! मुझे क्षमा कीजिए, यह सब मेरा ही अपराध था। मुझे सेद है। अच्छा, आपके पास वाद्य की गड्डी भी है। आइए, देखें कौन जीतता है ।” एक घटे के वाद इन पोल लोगों से मित्या लगभग २०० रूवल हार चुका था। कालगानोव ने अपना हाथ फ्रलाया और पत्तों को मेज के नीचे गिरा दिया और कहा, “नही मित्या, मैं तुम्हे इस तरह खेलने नहीं दूगा !” उसकी जावाज नशे से भर्स गई और उसने फिर कहा, “तुम बहुत ज्यादा हार चुके हो ।* मित्या ते कहा, “लेकिन तुमको इससे क्या ! ” लेकिन घूशंका ने तभी भित््मा के कंधे पर हाप रखकर वहा, “कालगानोव दौक बहता है ।'उसके स्वर में एक विचित्रता आ गई थी और वह वोली, "बस, अब तुम मत सेलो !” यूशंका की अखों की ओर देखकर उणकी आंखों में एक विचित्र-सी प्रेरणा-भरी खमक आ गई। वह उठ खड़ा हुआ और मुभूयालोविच के कंधे को थपथपाकर कहा, “मेरे दोस्त, आओ जरा बगल के कमरे मे चलें, मुझे तुमसे कुछ कहता है। अपने अंग्रक्षक को भी अपने साथ ले आओ ४” यह कहते हुए उसने उस विशालकाय पोल की तरफ देखा जो कि उस जफमर का रक्षक पा। और वह उन दोनों को लेकर दायी ओरवाले कमरे में चला गया और तब मित्या ने दवी लेकिन तनाव-भरी आवाज़ में कहा, "श्रोमान, मेरी बात ध्यान से सुन लें ! ये तीन हजार रूवल हैं। इन्हें मुझसे ले लीजिए और दोजख का रास्ता मआापिए। मैं आप लोगों का सव इन्तज्ाम कर दूगा, भोड़े धभी तैयार हो जाएंगे भौर भाप बिना अधिक भंकेट किए शीघ्म ही यहा से जा सकते हैं।"' दोनों पोल क्रोध से भरे फिर उसी कमरे में लौट गए। मुमूघोलोविच ने अहंकार से भरे हुए बहा, "पूशका, मेरा घीर अपमान हुआ है । मैं अतीत की बातों को क्षमा करने महा आया पा।! ग्रूथका झपटकर अपनी कुर्सी से खड़ो हो गई और चिल्लाई, “तुम'*“तुम, मुझे क्षमा करने के लिए आ गए थे ! ” ४ “हां,” पोल मे रहा, “मैं सदा से ही कोमल दृदय का ब्यक्ति हूं। सेकिल मुझे परह देपकर आश्चर्य हुआ कि तुमने हम लोगों दो उपस्थिति मे ही अपने एक मित्र को भी यहां निमंत्रित ब्िया; और यही नहीं, उसने मुझे तुरन्त यहा से चले जाने के लिए तीन हजार रुवत लेने को भी देहूदा पेशकश की है !” यह सुनकर दूझंका जैसे पागल हो गई थी) उसने बहा, “बपा बहा! उसने भेरे लिए तुम्हें घन दिया है ? मित्या, बया यह सच है ? में कट्ती हू, सुम्दारा इतना साहुध कैसे हुआ ? यया यैं विकाऊ हूं ?***“और तुमने घन सेने से इन्कार कर दिया ?” फिप्या ने पुकारकर कहा, “वह ले चुका है. वह उस घन को ले चुका है | सेविंत यह चाहता या हि पूरे के पूरे तीज हृडडए उसदो एकसाप मिल जाए और मेरे पास इस १२० संसार के महान उपन्यास समय पूरे नहीं है।” ग्रशंका कुर्सी पर गिर गई और उसने एक विचित्र स्वर से कहा, "मब मुझे पठा चला कि इसको इस बात का ज्ञान हो गया या कि मेरे पास काफी धन है और इसलिए यह मुझे क्षमा करने जाया या और इसलिए इसने मुझसे विवाह की बात चलाई थी।” लाल चेहरेवाले नाटे कद के पोल अफसर ने ग्जन किया, “्रूधंका, मैं अतीत की बातों को भूल जाता चाहता था और तुम्हें अपनी पत्नी बनाना चाहता था, लेकिन तुम तो बिलकुल बदल गई हो ! बिलकुल विचित्र हो गई हो--धृणित और निलंज्ज ! ग्रशंका ने उदास स्वर में कहा, “तुम जहां से आए हो वहीं चले जाओ, मैं ही एक मूजजे हूं। में सचमुच बड़ी मूर्ख हूं कि मैंने तुम जैसे प्राणी के लिए अपने को पांच वर्ष तक असह्य यातना दी । तुम इतने मोटे और बूढ़े हो कि तुम खुद अपने वाप भी हो सकते हो। गह सुमने नकली बाल कहां से लगा लिए हैं । हे मगवान, तुम्हारा यह रूप, और मैं तुम्हें प्यार करती थी ! पांच वर्ष तक मैंने रो-रोकर तुम्हारे लिए आंखें सुजाई थीं, लेकिन पांच वर्ष तक वास्तव में मैंने इस मित्या से प्रेम किया था। फिर भी आज तक मैंने कमी इसक अनुभव नही किया, कंसी पायल हूं मैं ! इस सारे संसार में वही एक व्यक्त है जो मेरा है, जो मेरे लिए सब कुछ करने के लिए तत्पर है ! मित्या, मुझे दमा कर दो ! मैंने हुम्दें असह् पंत्रणा दी है, लेकिन मैं अब तुम्हारे चरणों पर गिरती हूं ॥ अपना बाडी जीवन मैं वुम्हारी सेवा में व्यतीत करूगी । मैं जद तक जिऊंगी तब तक तुम्हें प्यार करूंगी ! अयव हम रादा के लिए सुप्री हो जाएगे, क्योंकि फिर हम दोनों एक-दूसरे से मिल जाएंगे ।” उसी समय दरवाडे पर बड़ी जोर की खटसटाहट सुनाई दी। कालगानोद उठ शह्टा हुआ और उसने द्वार खोत दिया। एफ लम्बा मझ्बूत आदमी पुलिसकष्तान' बी यर्दी पहने हुए कमरे के बीच में आ गया और उसने को रता से कहा, “मित्पा प्योरोे* विच करामडोद, मैं तुम्हें अपने दिता की हत्या करने के अपराध पर ग्रिएलार करा हं। अध्योशा ने कहा, “वह निरपराष है !” ईंवान ने पूछा, “तुम्दारे पास इसका प्रमाण मी है अध्योधा उसी समय मित्या से बन्दीगृह में मिलकर आया भां। उगते रद, उसने मुझगे स्‍्वय कटा है और मैं उसका विश्वास करता हूँ! ईवान | जद उद्होंने उसको दिरफ्तार रिया था सद यह स्वयं नहीं जावता था कि उसते अपने पिता ही हगाड़ी दो । उसे दिचार आया था हि शायद उत सोधों ने धिगेरी को ही उसरा गिता समझ विपा था। उसे केवल टदिगेरी की हत्या की अत्यधिक्ष जिल्ता हो रही वी. सेहित उत लोगों ते बठाए! हि दिवेरी का चाद भयावह नहीं था औौर वह ठीड़ हो बाएगा । *और रपरदुवाकोव है गा है?” ईदात ने पुद्धा । पषइुत “बह डिलहुल टीह है, उसड़ा दौरा तो सुबद तथ्य चपता रदा और वर्ड: लिईक होकर बश् रहा, और ठनी यह मयातच सदर आई 477“ ढ 82 ईकन ने दीच में ही रोड रुर कटा, “मैं चलदा हु और हगे देखता बादता हूं से रिवार और बन्धु श्र! “नेडिन बह तो भेरिया कोंशोतेवना के घर पर है, बयोकि हमारे पिता के घर ई$ उसरी देखभाल करनेवाला कोई नी नही था।” दोनों भाइयों मे अगले दिन स्मरद्याकोव से भेंट करने की योजना बनाई । अगले दिव मेरिया के धर में स्मरद्याकोव से मिलते के लिए ईवान गया। स्मरद॒याक्ोद अपना ड्रेधविग गाउन पहने एक घुराने सोफ़े पर लेटा हुआ था। विकी आंखें मटमेल्ी और बुद्ध विपाइयुक्त थी। आों के नीचे के गड्ढे स्याह दिखाई रहे थे ईंवान ने वहा, “तुम्हें इस धरह वीमार देसकर मुझे अफसोस होता है।” स्मरद्याकोव ने आइचये से उसकी ओर देसकर वहा, “तुम भी तो पहले जैसे के दिखाई नही दे रहे हो, पीले पड़ गए हो, और तुम्हारे हाय काप क्यों रहे हैं ? मात ईबान, आप इतने बेचैन क्यो हैं ? क्या इसलिए कि कल से मुकदमा घुरू होने- हे है ? घर जाइए और आराम से सो जाइए। किसी बात के लिए डरने की वजह दीं! जवान ने आइचय से कहा, “में तुम्हारी वात नहीं समझा, मेरे लिए डरने को व भीजया है 2" स्मरदुपाकोव ने उत्तर दिया, मानो वह अपने-आपमें वड़बड़ा रहा हो, “में तुम्हारे रिम्े कुद्ध भी नहीं कहुगा, कोई भी प्रमाण मौजूद नहीं है। मैं कहता हू हि तुम्हारे इतने कांप क्‍यों रहे हैं ? घर जाओ, और सो जाओ। किसी तरह का भी डर मत से । तुम्हारा कुछ भी नहीं होगा ।” ईवान उठ खड़ा हुआ और उसने उसके कंधों को पकड़कर कहा, “मुझे हर बात पादे कुत्ते, मुझे सच वात बता ! ” स्मरद्याक्रोव वी आशओ में एक पायलपत उभर आया था और उसकी इधर-उधर नटती आंखें मादो घृणा वरमाने लगीं। उसने फुसफुसाकर कहा, “अच्छा, तो तुम्ही- अपने वाप की हत्या की थी ! बोलो, ठौफ कहता हू न ?” ईवान एक नी रस हास्य के स्राथ अपनी कुर्सी पर बंठ गया और वोला, “मैं चर्मा- या चला गया था, और वृद्ध को बिता किसी सहायक के छोड़ गया था, इसलिए तुम से ऐसा कहने हो ?” स्मरदुयाकोव को आखें पूरी तरह खुल गई । उसने कहा, “अरे, अब इस तरह का नें बनाने से फायदा ही वया है ! छुम मेरे ही गृह पर मुझी पर सारी वाद थोप ग चाहदे हो। तुम असली हत्यारे थे ! मैं तो सिर्फ तुम्हारा औजार था। क्योंक्रि मैं द्वारा वफादार नौकर या। मैंने अपनी ओर से कुछ नही किया, मैं तो केवल तुम्हारे जो का पालन कर रहा था ।” ईबान का जैसे लहू ठडा हो यथा। उसने लड़सड़ाते स्वर से पूछा, “तुमने वया या?! “मैंने'**,” स्मरदूयराकोव ने कहा, “उसके सिर पर चोट की ! यह देयो !” यह र उसने अपने ड्रेम्िक गाउन के अन्दर कुछ खोजा और नोटों वा बडल निकालकर १२२ संगार के भद्गात उपत्या मेज पर पड दिया । ईवान मे देखा सीत बदल थे और हर एक में ए-हफझ हजार स्व के नोट ये ईवान ने उगावली से पूछा, “बुमने ऐसा कैसे किया ?” उसझा चेहरा वितु मफेई हो गया पा) “आठ बजे थे । कल रात में मैं दौरे की वजह से तद़साने की सीढ़ियों पर मिः पड़ा । लेकिन यह मेरा अगली दौरा नहीं था। मैंने इस तरह एक नकली सेल सेता पा । प्रिगेशी मुझे उठाकर मेरे विश्तर पर छोड़ आया था । तुम दो जातते हो कि मेरा झयत- गद्ष उसके दायनकद्ा के विचकुल बगत में है। थोड़ी देर में आंखें कपकाए रहा और तमी मुझे मालिक वी आवाज सुनाई दी, पमित्या आया था ! वह भाग गया है ! उसने प्रिगेरी की हत्या कर दी है !! मैने जल्दी से कपडे पहने और बाग में भागहर गया। मैंने देसा थाड़ के पास प्रियेरी बेहोश पढ़ा था। तभी मैंने सोचा बूढ़े करामडोव को मारते का इससे अच्छा अवसर नहीं आ शकता--मित्या यह कर्म (प्रिगेरी की हत्या) कर गया है; अतः हर कोई यही सोचेगा कि दुसरा कम (बूढ़े करामजोब की हत्या) भी उसीते विया होगा। मैं तुरन्त मालिक के कमरे में गया। वे खाली लिड़की के पाम सडे हुए पे ! मैंने थड़बड़ाकर कहा, 'ग्रृशंका यहा आ गई है।” ओह ! मेरा यह कहना था कि बुद्ध के मुख पर एक विचित्र भाव आ गया, मानो आवेश के कारण उत्तकी नर्स फटने-कटने को हो गई थी। कहा है वह, कहां है वह ?' उन्होंने मुझसे कहा। मैंने कहा, “उस भाड़ी में। वह आपको देखकर हस रही है। क्या आप उसे नहीं देख सकते ?” यह सुतकर मालिक जिड़की से विलकुल वाहर की तरफ भुक गए। मैंने उसकी मेज पर से लोहे का पेपरवेट उठा लिया तुम तो जानते हो ना कि उसका वजन तीन पौंड है, और मैंने जोर से उसे उनके प्िर पर दे मारा । वे चिल्ला भी नहीं सके ! उनको मृत्यु को और निरिचत कर लेने के लिए मैंने दो भयानक आघात और किए। तव मैंने अपने-आपको देखा कि मै कितना साफ था। मुझूपर खून की एक बूद भी नहीं थी 8 मैंने पेपरवेट को फेक दिया और उसे ऐसी जगह छुपा दिया--ईवान तुम कुछ चिन्ता मत करो--उत्ते कोई रहीं हूड सेकता और तभी मैंने वह घन ले लिया । मित्या उस घन को कभी ढूढ़ भी नहीं सकता था। हुई और मेरे सिवाय कोई भी नहीं जावता था कि वह किस कोने में छिपाकर रखा गाता था । मैंते लिफ़ाफे को खोल डाला । नोटों को निकाल तिया और लिफाफा फोड़कर फर्श पर फेंक दिया ।” छः ईवान चिल्लाया, “ठहरो, तुमने लिफाफे को नीचे क्यों पटक दिया 7” स्मरद्याकोव ने मुस्कराकर कहा, “ताकि जासुसों को अपने से दूर रख सकू। हुए कोई जानता था कि मुझे उस लिफाफे के बारे में मालूम है, व्योकि मैंने ही उसके बन्‍्दर सारे नोट रखे थे, मोहर सगाई थी और उस नीच बुड्ढे के कहने से मैंने ही उत्तपर लिखा था, मेरी प्लिय ग्रूशंका के लिए ।' अगर मैं लिफाफा चुरा लेता तो जासूस लोग यह सोचते कि मैं जव भी उस लिफाफे को पाऊंगा तुरन्त जेव में रख लूया, उसे खोलूगा नहीं, 5068 सुझे मालूम ही था कि उसके अन्दर क्या या। पित्या को तो लिफ़ाफे के 20% री उड़ती हुई खबर मिली थी, उसने उसे देखा तो नहीं था, और अगर वह डे लेता: परिवार और बन्चु (१३ अपने को यकीन दिलाने के लिए, कि धन उस लिफाफे के अन्दर था, वह ज़रूर उस ज्िफाफे को खोलता और नीचे फेंके देता! क्योंकि मित्या के पास इतना समय न होता कि वह इस बारे मे कुछ सोचता कि यह फटा लिफाफा उसके विदद्ध प्रमाण बन जाएगाए” ईवान खड़ा हो गया और वेचनी से कमरे मे कई मिनट तक टहलता रहा । फिर बहू झुक गया और फिर उसने स्मरद्याकोब की तरफ ऐसे देखा जैसे दह उसकी हत्या करेगा । उसने रककर कहा, “शैतान, मैं इन नोटों को लेकर रीघे पुलिस के पास जा रहा हू और मैं उन्हे सारी बात बता दूया ! स्मरद्याकौव ने जम्हाई ली और कहा, “बेकार कष्ट मत करो । नोटों के नम्बर किसीको नहीं मालूम थे और न मालूम हैं ! ये तो किसोके भी नोट हो सकते हैं, तुम्हारे भी हो सकते हैं और जो कहानी मैंने तुम्हें बताई है उसके लिए एक भी सबूत तुम्हारे पास नही है।” ईवान की मंखें चमक उठी और उसने कहा, “जब तुम मेटे विता के कमरे में से निकल आए तो तुमने क्या किया ?ै” “मैंने कपड़े उतारे और मैं अपनी शथ्या पर चला यया। जबकि बगीचे से लौट- कर ग्रियेरी लडखडाते हुए आया तो उसने मुझे खड़े हुए देखा ।” ईवान ने विजय के स्वर से कहा, “अव मैंने तुम्हें पकड़ लिया । प्रिगरी ने जछर देख लिया होगा कि तुम महज दौरा पड़ने का मकक्‍्कर मार रहे हो--व्योकि इतती देर तक कोई भी आदमी मिरणी के दौरे का बहाना नहीं कर सकता।” स्परदुषाकोद ने सिर हिलाकर कहा, “ठीक कहते हो | लेकिन जद मैं द्ाय्या पर लोटकर गिरा, ठीक उसी समय मुझे असली दोरा आ गया--शायद इतना बड़ा जो आवेश मेरे भोतर भर गया था, उसते मुझे सचमुच पागल कर दिया था।” ईवान के माधे पर की नरें जैसे तर गई । कुछ देर तक बह बोलने के लिए देकार बेप्टा करने लगा और वह स्मरद्पाकोव को देखकर चिल्लाया, “अभी तुम्हारी पूरो जीत नहीं हुई। मैं अभी पुलिस को यहाँ लाता हूं और भगवान साक्षी है कि तुम्हारे अन्दर से सारी सच्चाई किसी न किसी तरह से नतिकलवा ली जाएगी।" स्मरद॒याकोव की हसी सनभला उठी । उसने कहा, “अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो ऐसा कभी नही करठा । यह तो बिलकुल वेकार है, इससे फायदा हो क्या है। और हम दोनों के लिए यह कोई मुखद समाचार भी नहीं है। मुझे निश्वय से मालूम है कि तुम केतरीना इवानोवना को यह बताता नही चाहते थे कि तुम चर्माश्नेया क्यो.गए थे ( मु म्जूम है, तुम उसे प्यार करते हो । जद से भित्या उसे छोड़ घया था तुम उससे मिलते रोड जाया करते थे। सुनो, मैं तुम्हारी हिम्मत बढ़ानेवाली एक वात कहता हूं, वह भी तुम्हें प्यार करती है। आज सुवह वह मुझसे मिलने आईं थी तो उसने मुझसे यह्‌ कहा था । इसलिए, मेरे प्यारे ईबान, घर लोद जाओ और ठुभ आराम से सोओ और मोढे सपने देखो ।” जब स्मरदुमाकोव के घर से ईवान चला तो उसमें दुतरफा भावों को मार चल रही थी। मानो वह एक तूफान मे विर गया था और समझ नही पा रहा था कि कया श्र्४ड संसार के महाव उपतन्याय करे। वह सड़क पर चलने लगा। वह सोचता जा रहा था कि वेतरीना उसे प्यार करती है, मित्या निरपराध है--लेकिग वह एक देकार का आदमी है, उसके फांसी हो जाते में कोई हर्ज नहीं है। लेकिन एक बात ओर भी तो थी कि वह उसका भाई था और हर हालत में उसे उसको जान बचानी थी। पुलिस स्टेशन के सामने ईवान मन में आशंका लिए डावांडोत-सा सड़ा रहा और फिर उसने अपने कधे हिलाए, मानो सारे बोफ को अपने से दूर कर देना चाहता हो और फिर वह अपने घर की ओर चल पड़ा । अनिश्चय की भावना में वह यष्टों अपने कमरे में घूमता रहा । तभी दरवाबे पर यपथपाहट सुनाई दी । उसने द्वार खोला । सामने अल्योशा सड़ा था; उसने पूदा, "तुम अकेले हो ?” अल्योशा के मुस्त पर एक पवित्रता थी--एक अटूट ध्ान्ति विराजमाते थी, ऐसी कि ईवान ने कभी पहले देखी नहीं थी । वह उस पविश्रता को देसकर हतबुद्धिसा रह गया । अचानक ही पागल को तरह वह हस उठा और बोला, “अरेसा नहीं हू, पान मेरे साथ है !” अल्योशा उगवी ओर करुणा“भरे नेत्रो से देखता रहा और उसने बढ़ा, “वा, तुम बीमार हो गए हो । ऐसा लगता है, मुझे तुम्हारी देखभाल करनी होगी । तुप्दें सर भी है। और दूसरे, मैं तुम्हारे लिए एक बड़ा गम्भीर सम्गाद लाया हू ।'स्मरहयाहरोज ने अभी -अभी अपने गले में फदा लगाकर आत्महत्या कर ली है !”” ग्पायालय में जज के आने के पहले ही ठगाठस भीड़ हो रही थी । माँलों भौर से मुद्रर स्पातों से भी दर्शक आए थे। उनमें कितनी ही उच्भकुल्त हो महित्राएँ थी। दूरनूर तक मित्य के माम की धूम मच गई थी कि यह स्त्रिपों का हृदय औतते मे पिडहस्त है। अत स्त्रियों को उसके प्रति बडा कौतूहल घा। धीरे-धीरे प्सएुसाती अताब चुप हो गई; भर जब मृकदसा शुरू हुआ, चारो ओर ऐसी घोर निरतस्ता धा गई क्एक दत्ता भी द्विवता नो वड़ा उसकी सरसराहद सुताई देगी। गरतारी वकीत बड़े बोरधीए से बोचते खगा भौर उसने ने जाने कितनी गवाहियां, हिंवते ध्रमाण मियां के विएय पक वि दर दिए--मि्या अपने पिता से चूगा करता था, दत्या करने के पहल बरतें अर पिता पर आकमश भी डिया था, दशा के पास पहुवते के जिए उते घने की झाझश आवदएहता थी, हत्या हे मनप्र बढ़ बाहर मौजद था, द्िगेरी ते अपनी गवाटहीदी है झुत से भीया हुआ मूगत मिला था, फटा लिफाफा यहाँ पडा था, इसे प्रवाह हे अने! अमाद ये हो सा अपराधी के दिरड बोलते थे। जब मित्या विरतार हुआ तो इस किमोदरोंमे टू मे दा हास कुल मो रवप हो थे। अगर सात विया शाए कि मोहरों में उतने डेटा का हे झइत सर्प टिएा था तद भी कम से दम दो हबार रदत हो उस पाठ बा ४: का बा्टिए थे । दद्यौत ते उससे प्रद्ा, “बाकी घन का सुसते कया दिया जया हु छराप में करी दिए विदा 2४ न्‍ कं कया के दृदता में झचर दिया, “मैं शुरते सौ बार इट्‌ धुड़ा हू हि मैसे कह बुत परिवार और बन्पु १२५ मटी जिया १! इस खबर वह एक रिवुद सया फोतडाट (मर्दता सजा कोट) पड़ेगी घा। उससे हाथ पर बकरी के बच्चे की नरम सर के बाते दस्ताने घड़े हुए थे। यधवि ये उसके जऔरदव के गग्भोर क्षण थे, सेविन तब भी उसे इस घात का ध्यान था कि जो विनिन' बह पहने हुए या, उसे उसके सोरर्य को दिगूयित कर दिया है। उसे पता था कि स्थापायय मे हिविए उसके प्रति दिस प्रशार भा दिए हो रही हैं। उसने फिर कहा, /मैं जब मोझरो की ओर चता था, तर मेरे पास दे वत १५०० रूदल थे । बेतरीता इवानोवना ने जो मुझे हीन हार रूदत दिए थे उसमें से बेवत पद सेरे पास बच रहे थे | ” यह कहे हुए उसके नयने सग्जा से भुक गए। “तुम भपना धते वर रखा करते थे ।” यरी तल ने झगला सवाज किया । »एक छोदे-गे कपड़े के वदुए में, जिसे मैं तनियो से बायकर गठे में लटगाए रणता घा।"” “तुमने उस बटुए का कया किया “मैंने उसे मोकरों के बाडार में फेंक दिया या ।/ विजय की भावना से यक्रोष्त ने घारों ओर गव॑ रो देखा, मानों उसने एक नई दात निप्रलवा सी पी, और अपनी दुर्मी पर बैठ यथा । तव प्रित्मा वी ओर से वकीस सहाय हुआ--फेल्यूपरोविष । वह एक शम्बा, दुबला ब्यक्ति था, उसको दाठी -मछ विलदुल साफ थी और उसमे देसकर ऐसा लगता या हि जैसे पह आदमी कभी भी परिक्षांत्र होना नहीं जानता हो । कचदरी में एक फुपपुसाहूट वी सहर दोह यई। झिसीने कहा, “बहने हैं यह अदभुत वाता है, बड़ा चतुर है ! " फ़िर किसी स्त्री ने धोरे से वहवश्याफर बहा, “लेहित सरकारी वशैल वा केस ऐसा नदी है कि यह उसको हरा सके ।/ मित्यां के ववील ने फिर से एब-एक गवाह को बुलाया और उससे जिरह की। पहुंचे तो जज ने उसके प्रइतों को व्यय समझता किन्तु थोडी ही देर में यह गावित हो दवा कि उमके तक॑-वितऊ यह प्रमाणित कर सकते हैं कि देखते को तो मित्या के शिशद्ध सब शुछ राच प्रतीत होता है, लेडिन अयर सवको मिजाकर देखा जाए तो उन गवाहो दी दावों में कोई तारतम्य नही था। अलग-अलग परीक्षा लेते समय सारा केस जैसे टुकड़े दूशड़े हो गया । उसने अनेक गवाहों की घरिडिया उड्ा दीं। त्रिफत बोटिसोदिच को उसने एक झूठा गवाह प्रभाणित कर दिया ओर ग्रिगेरी के मुदद से एसो विरोधी बातें निकलीं कि न्यायाजय में लोग देख-दैराकर हसने लगे और उसके बाद उसने अवृस्मात्‌ ही अल्योशा को गवादों के कठपरे में बुलाया । पहले सरकारी वकील ने उससे पूछताछ की। उसने पृछठा, “वया तुम यह विश्वाश करते हो कि तुम्हारे भाई ने तुम्हाररे पिचा की हत्या की है ?” अल्योशा ने जोर से स्पष्ट स्वर में कह्ठा, “बिलकुल गलत ! मैं उसे विलजुल निरप- राय मानता हूं । उसने हत्या नही की ! / सनननीं की एक लट्र न्यायालय मे दौड़ गई। ज्रत्येक व्यक्रित अल्योशा से प्रेम १२६ संगार के महात उपयान करता था और उसता सम्मान भी । छोग जातते थे हि बड़ हिसी भी अरस्या में झूठ नहीं बोल सरता था। सरकारी वहील गुस्से गे लाज हो शया। उसने पूछा, “तुम्हारे परम हा माई के निरपराष होने का क्या प्रमाण है जो तुम इतने निश्वय से यह बात कहते “मैं जानता हूं.” अल्योगा ने कहा, “वह मुझगे झूद नहीं कह गकठा। मैंते उसके मु पर देखा था, यहां अपराय की श्लुदित छाया सही थी ।” यवीत ने बढ़ा, “यह बात तुमने केवत उसके चेदरे को ही देखकर कही है ? क्या यही सुम्दारे पाया एकमात्र प्रमाण है ?” वकील के स्वर में ध्यग्य फूट निकला । अल्योशा ने सिर हिलाकर बहा, “हां, मेरे धाम और कोई प्रमाण नहीं है, और त मुझे किसी प्रमाण की आवश्यय्ता ही है।” सरकारी यड्रील हसा और बैठ गया । और किसी भी तस्प से मित्या का तिरप होना साबित नहीं हो रहा या, लेकिन उसका वकौल खड़ा हो गया। यह जानता था कि अल्योग्ा के धांत सत्य ने जूरी पर अपना प्रमाव डाल दिया है। उसने फिर सककारी वकील के ऊपर एक नया प्रहार किया। उसने अल्योशा से पूछा, “क्या मित्या के गेम केतरीना इवानोवना द्वारा दिया घन बदुए में लटका रहता था ?" अस्योशा ने कहा, “मैंने वह बटुआ कमी नही देखा। लेकिन जिस दिन मिला मोकरो जाने बाला था उसके एक दिन पहले मैंने यह जरूर देखा या कि मित्या वास्वाए अपने सीने पर हाथ रखता था, और कहता या, 'यही मेरे पास, इस जगह वह सब कुच है, जिसकी मुझे आवश्यकता है। पहले मैं समझ कि वह अपने दिल को ही ठोक-ठोककर मुझे दिखाने की चेप्टा कर रहा था । पर फिर मैंने गौर किया तो मुके पता चला कि गरदन के नीचे कुछ चीड फूली हुई सी थी। हो सकता है, वह उस चोटे बदुए की तरफ ही $थ इशारा कर रहा हो ।” मित्या अपनी कुर्सी से उठकर चिल्लाया, “ठीक कहते हो अल्योश्ा, मैंने उत्त वदुर को ही अपने हाथ से दवाया था |” ऐसा प्रमाण भी यदि किसी दूसरे गवाह के मुह से आया होता तो वह उप- हासास्पद दिखाई देता, लेकिन अल्योशा के बारे में लोगों का दूसरा ही मत था। स्यावा" लय में अधिकारीगण भी उसकी बात का सम्मान करते थे। चारों ओर फिर फुसइुसाईट होने लगी और किसीने स्पष्ट कहा, “शायद मित्या छूट जाए।” ईवान को स्यायालय में बुलाया गया । उसके चेहरे पर भुर्देती-सी छाई हुई थी। एक बार उसने अपनी आांखें मृद लीं, फिर जैसे वह हिल उठा और सदि ठीक समय पर वह सामने की छड़ को नही पकड़ लेता तो शायद गिर जाता। 3 लरकारी, सरकारी वकील उससे प्रइत करने के लिए उठा, लेकित इससे पहले हि और वकील कुछ बोलता ईवान ने अपने अन्दर की जेव से नोटों की एक यगड्टी चिकाली कटा उसे भेज पर फेंक दिया--जहां पहले से अपराध-प्रमाण के रूप में पेश किया गया फे लिफाफा पड़ा था और दूसरे अनेक प्रकार के मित्या को अपराधी प्रमाणित का डाले साधन एकत्रित किए गए यथे। उस मेज पर सोटों की वह गड्ढी जाइय|श परिवार और वन्धु १२७ हो गईं। फिर ईवान मे चिल्लाकर कहा, “यहो नोट इस लिफाफे में से निकले थे। कल मैंने इतको पाया था।” और यह कहकर उसने फिर सिर उठाकर कह, “कल ये सुझे हत्यारे स्मरद्याकोव से मिल्ले थे । जब उसने अपने गले मे फोसी लगाई थी उससे थोड़ी ही देर पहले मैं उतके साथ था। उसीने मेरे पिता की हत्या ढी थी, द कि भेरे भाई ते ! उसने उतरी हत्या की थी, ओर मैंने उसे इसकी प्रेरणा दी थी। दुभभाग्य से इन नोटों के नम्बरों का कहीं विवरण नहीं है, वे झिसीके भी हो सकते हैं। लेकिन यह कितना विचित्र है, कितने नारकीय रूप से भयातक है !” ओर वह बोराए स्वर में हूस उठा, मानो बह अपने विकराल हास्य को रोक नही पाया या 3 स्पायालग के अध्यक्ष ने कहा, “क्या तुम्हाय दिमाए ठीक है ?” “मैं समभता हू कि मैं विलकुल ठीक हूं। जिस प्रकार आप लोगों का दिमाग डीक है। ये जो घृणित चेहरे यहां पर इकट्छे हैं, जिनके अन्दर कुटिलताएं भरी हुई हैं, जिस प्रकार ये सब जागरूक हैं उसो प्रकार मैं भी सचेत हूं।” और यह कहते हुए उसने ल्यायालय में न्‍्यायकर्ताओं की ओर देखा और फिर वह युर्राया, “मेरे पिता की हत्या कर दीं गई है ! और तुम इस तरह से देख रहे हो जैसे तुम डर गए हो" “परन्तु यह सब झूठ है, तुम सब भ्यूठे हो ! यदि ह॒त्या नही होती तो तुममें से किसीको चिन्ता भी नहीं होती ! तुम छोगों के लिए यह सस्ती सनसनी को चीज़ है ॥ अरे, मुझे कोई पादो दो ! ईसामपीह के नाम पर मुझे कोई पानी पिलाओ (***” कौर उसने सिर को पकड़ लिया। अल्योशा उठ खड़ा हुआ और चिल्लाया, “वह बीमार है ! उसकी बात का विश्वास मत करो ! मालूम होता है उसका दिमाग पागलपन की तरफ खिंच गया है।” एक काले बालोवाली स्त्री, जिसका मुख सुन्दर और आकर्षक था, अपनी जगह से उठ खड़ी हुई और भयभीत दृष्टि से ईवान फी ओर टकटकी लगाकार देखने लगी, वह केतरीता इवानोवना थी। ईवान ने फिर कहना शुरू किया, “तुम सत घबराओ, मैं पागल नहीं हूं, मैं केवल एंक ह॒त्यारा हू ! हत्यारा कोई अच्छा वक्ता नहीं हो सकता [7 सरकारी वकील अध्यक्ष के पास तिराश-सा गया । वाकी दोनों न्यायाषी छों ने जल्दी-जल्दी कुछ परामशश किया। अध्यक्ष ने आगे भुककर सुना और फिर कहा, “तुम बखूबी समझ सकते हो कि तुम्हारा बयान, तुम्हारे शब्द ऐसे नहीं हैं, कि जिनका कोई स्पष्ट अर्थ लगा सके । सदि हो सके तो पहले तुम अपने-आपको शत करो और तब अपनी पूरी कहानी छुनाओ। जो कुछ सुमने कहा है उसके लिए तुम प्रमाण वया दे सकते हो ?४ ईवान ने कहा, “यही तो बात है, मेरे पास प्रमाण के लिए कुछ भी नही है। बह धृणित स्मरद्याकोव मर चुका है और अब उस परलोक से वह आपके पास कोई प्रमाण नही भेज सकता ) अब उसका दूसरा लिफाफा नही आ सकता। मेरे पास कोई गवाह नही है। शायद एक है | ***”” यह कहकर वह गम्भीसतापूर्वक मुस्करा पड़ा जैसे कुछ सोच रहा हो । “अपने गवाह को पेश करो |” अध्यक्ष ने कहा । “श्रीमान, उसके पूछ है और उसको कचहरी में लाना ठीक नही होगा, क्योकि शरद गंसार के मठाने उपर बासूत मे पास धैवान के विए धएह सर्दी है!” इंवान ने ऐसे कड़ा, मानों बड़े कोई बड़ा भारी गुल्ठ रहस्य प्राइकर यप हो, "थरीयाल, बढ यहीं है, यहीं करी है! उसहे सगे गारे प्रसाग हैं और बड़ उसे मेज के पीछे है। ले उसने बड़ा था कि मैं अपनी जोन पर संगाम नहीं शगाऊगा, और इसतिए बह मैरे साय आ गरा है, दि जो बुद् मैं कहूँ उसको यह भुठलावा भते । ओढ़े ! यह सारी मृत वियती विचित्र है | मैं आपडा आदमी हू--अपराषी हूं, मैं मिश्या नहीं हू) मं यटी झ्यू्य बे विए तो नहीं आया) आप लोग प्रतीक्षा किसिविश कर रहे है ? मुझे पकड़ क्यो नहीं विश जाता ? सत्र लोगों को कया विभी मूसंता ने परड लिया है, कोई हिल बारें सी रहा है ?" स्पायालय के अर्ती ने ईवास वी भुजा पड़ सीं। ईवान ने मुइकर उसकी मोर घूरकर देशा और उगष्या कृपा प़डकर उसे डोर रो पृष्थी पर दे मारा। एक ही ध्त्र में थुलिस ने एवान को घेर सिया। ईरान बिच्याता हुआ हाय-वैर चलाने लगा। वे तोग उसे न्यायापालय से याहर सीच से चले । कथचहरी में गय लोग शड़े हो गए थे । सत्र लोग विल्लाने लगे थे। कोई हाय हिला रहा था। कई मिनट बीत गए, तब कहीं जहर फिर से न्यायालय में शांति स्पापति हो सकी | अध्यक्ष सोधों से कुछ कहने ही लगे थे कि इसी समय वेतरीना ईवादोदता की तीसी ओर पैनी चीय गूज उठी, जिसने अध्यक्ष की बात को रोक दिया। उसे दौए पड़े गया था। वह बुरी तरह से रो रही थी, वह चिक्लाती थी और प्रार्यना करती ४ “मुझे यहाँ से न हटाया जाए [” आखिर उसने अध्यक्ष से कहा, “अभी और मी स| हैं, जो मैं पेश करूगी--यहाँ, यहीं पेश करूंगी ! यह एक दस्तावेज है, एक पत्र“ई देखिए, इसे जल्दी से पढ़िए । मैंने इसे इस हत्या के एक दित पहले प्राय्रा या। यह उं दत्य का पत्र है--वह आदमी, जो वहां खड़ा है; वही अपने पिता का हत्यारा है [”य कहकर उसने मित्या की ओर उंगली उठाई। वह फिर चिल्लाई, "ईवान बीमार ई वह बीमारी में पागल हो गया है !” वह बरावर यही चिल्ला-चिल्लाकर कहने ल्गी। पत्र को जोर से पढ़कर सुनाया गया: #/कत्या, कल मुझे रूपया मिल जाएगा और मैं तुम्हारे तीन हजार वापस कर दूया। फ़िः अलविदा ! यदि वहां मुझे कर नहीं मिलेया तो मैं ठुम्हें यह वचन देठा हु कि मैं अप पिता के पास जाऊया, उनका सिर तोड़कर उनके तकिये के नीचे से वह घने 0880 लूगा--लेकिन एक र्ते पर, यदि ईवान यहां नहीं रहा तो। यदि मुझे इसके लिए कई बेरिया भी जाना पड़ा तो भी तुम्दारे तीन हजार वापस कर दूगा। कत्या, ईश्वर के प्रार्थना करो, कोई न कोई मुझे वह घन दे दे, और तब मुझे कल की हत्या के वह किया भीगना नहीं पड़ेगा । ० बल्क॑ ने ज्योंही पत्र पढ़ना समाप्त किया, इससे पहले कि उसे कोई रोक हक गूधका दौड़कर करे आ गई! उसका चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था। उसके ने उसके कंधो पर विखरे हुए थे । वह आते स्वर से चिल्ला उठी, “मित्या | उरा सांप तुम्हें नप्ट कर दिया है !” पु 5 4५ 0 क 450 2७6१ ७४५02 परिवार और बन्धु श्र सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और पीछे सोच ले चले, चूकि बह मित्पा के समोप जाने के लिए जगलोी पशु को भाति सघर्प करने लगी थी। मित्या चितला उठा और उसके निकट पहुंचने का भ्रयतत करने लगा, किन्तु उसको उद्चो समय सिपाहियों ने रोक लिया । सव प्रमाण युन लिए गए थे। अतः जूरी विचार करने के लिए उठ यई। अब निर्णय और दड के विपय में लोगो को अधिक रादेह नहीं था। एक भटे बाद घटी वजी, और जूरी ने फिर से अपने रघात को प्रहण किया ) अध्यक्ष मे मृत्यु जेसी नीखता मे पूछा, “क्या अपरापी ने हूं। वस्तुनः हत्या की है ?” जूरी बढ अगुआ स्पष्ट स्वर मे बोल उठा, “हां, वह नि सदेह अपराधी है !” मित्या खड़ा हो यया और दृदयविदारक स्व॒र से चिल्ला उठा, “मैं ईप्दर को सौगध खाकर बहता हू, मैं कयामत के दिन की कसम खाकर कहता हू, कि मैंने अपने पिता वी हत्पा मद्दी की ! कत्या, मैं तुम्हे क्षमा करता हू । भादयों, मित्रों, परायी हिबियों पर दया करो !” अह्तुत उपन्यास परिवार और बन्धु' (द ब्दर्स करामजोव) में छेप्नक ने पाप और पुण्य को बहुत सुंदर विवेवना की हैं। मनुष्य की बासना और तृष्णा के साथ ही उसके असोम दुःख और पोड़ा को भी स्पप्ट किया गया हैं। लेखक सें उदासीनता है और यह आतं मानव का चित्रण करने में सिद्धहृ्त है । फ्लॉबेयर : अधूरा स्वप्न [मादाम बावेरी* ] फ्लॉबेयर, गस्ताव : फ्रेंच कलाकार गंस्ताव फ्लोंबेयर का जन्म १२ दिपतम्बर, १६२१ को र यून में हुआ था । आपके पिता पशु-विकित्सक ये । गस्ताव एक मुन्दर व्यक्ति थे । भाषने बहुत जल्दी दी निर्यय कर लिया कि आप लेखक बनेंगे | भाप भपनी माता के प्रति इतने भधिक भनुरक्त ये कि आपने जोवन-मर विदाई ही नहीं किया। भाप लेसन में डूबे रहते थे | मां विधवा थीं, हतः धाप हो उसके सद्ारे ये | पेरिस सें रहने के ठुछ दिन बाद भाषका निवास स्थान र्‌यून के पास दी क्ोशैट नामक स्पान हो गया । बडां भाषवी लुश्जे कोलैट नामक स्त्री से घनिष्णता हो गई परन्तु बह भी झापके साधुदद जीवन से भारकों बाइर नहीं ला सकी | झत्यधिक काय॑ ने आपको जजर बना दिया । भाप खाने-ोने के शौकीन ये, भौर बदुत भधिक मात्रा में राराब पीते थे। भाष का सर्गंत्रास १८८० ई० में हुमा । 'माद्ाम बविरी' (अधूरा स्वप्न) भापकी एक बुत प्रतिद्ध रचना है) फ़ार्म-दाउस के सामने की सड़क के पार एक आदमी खड़ा था। रसोई की घि्ओो की ओर देसते हुए उसके हृदय की गति बार-बार बढ़ जाती और रह-रहकर उसका शरीर कांप उठता था। उसी समय एक सड्खड़ाहट-्सी गुनाई दी और छिड़की ज़ोर रे खुल गई। बहुत दिनों के दाद आज उसके स्वप्नों के पूरा होने का दिन आ गया था। घार्ला बाविरी को पता खल गया कि एम्मा रोल्ट अन्त में उसकी पत्नी बने के लिए तैयार धी। उग्होंने आपस में यही इशारा तय किया थाडि जिग दिन यद भटके के साथ सिह्री कै पट खोल देगी उस दिन सातो वह छाहरों के प्रस्ताव को स्वीकार बर लेगी। एग्मा चाहती थी दि उसका विवाद आधी रात के समय हो और चारों ओर दीपों जा प्रकाश फँला रहे। लेडित वृद्ध धाल्स किसात था, वह परम्परा वी साटी रीतियों का तिर्भद करता उचित सममता था। उसने छादी के दिन अपने तेवालोस मित्रों करों तिमवित हिया। अगते हित दम्पतो टास्ट्रीज घने गए, जहा धान्‍्से का घर था। यहां व दिश्मत भी हिंदा करता था। उसने वृद्ध रोच्ड के टूटे हुए यैर को जोइ दिया था, इसलिए उयकों बहा श्रेष्ट डापटर माता जाता था। एग्मा और उसहे विता को यह रहीं मातूम पा हि बह एड मायूपीरी चोट थी, जिसमे हि हुडटी साघारण तौर पर घट गई थी। बान्‍्गे + ३. १[30+6०८ 0४7५ (0फ्रउ५८ ग]ठघ/टर)--बस उपन्यास का झद्रार 324 जार से थप है चुद: है। झनुर २ हैं पहारा १ रे इत, और पद राक राजा पर इ मन्ड/ 447 अधूरा स्वप्न श्र के सुख का प्याला मानी लवालव मर गया चा। पति-प्ती दोनों साथ-साथ खादे, सन्ध्या ज्षमय भ्रमण के लिए साथ-साथ जाते। एम्मा अकसर अपने हाथ ऊपर उठाकर झपने गहरे रंग के बालों को इकट्ठा किया करती; उसका टोप खिड़की के सहारे लटका रहता--और महू सब उसके पति को अनन्त सुख प्रदान करनेवाली वस्तु थी। अब तक उस्ने जीवन में मिल! ही बया था ! जद वह स्कूल जाता था तो उसे यही अनुभूति होती थी कि उसके साथी उससे अधिक घनी और बुद्धिमान थे । वे उसके ग्रामीण उच्चारण पर हंसा करते थ और. उसके कपड़ों का मजाक उड़ाया करते थे। बाद मे वह जब डाक्टरी पढ़ने लगा तो फिर वह अकेला रह गया। किसी भी दिव उसकी हालत ऐसी महीं हुई कि बह किसी दुकान में काम करनेवाली लड़की को अपने साथ शाम को घुमाने ले जा सके। उसकी कोई प्रिया नहीं थी । इसके बाद उसने विवाह किया । उसकी माता ने उसके लिए एक विधवा चुन ली जो जब दाय्या मे लेटी रहती तव भी उसके पांव बफं की तरह ठंडे रहते। विवाह के चौदह महीने के वाद वह उसे विधुर बनाकर चली गई थी। अब उसे अपने जीवन में एक सुन्दर सहारा मिला या--ऐसा, जिसको वह प्यार कर सके । उस स्त्री के बाहर जैसे उसके लिए संसार ही नहीं था और उसे मन ही मत यह खेद होता कि जितना उसे अपनी पत्ती से प्रेम करना चाहिए था उतना सम्मवतः वह नहीं करटा था। और एम्मां की हालत यह थी कि हाथों की अगुलियों को पोरों से लेकर कंधों तक (सभूची बांहो पर) और कंधों से लेकर गालों तक वह धुम्वनों से अटी रहती । इतना ही नहीं, कभी-कभी तो उसे मानपूर्वक अपने प्रेम-विभोर पति को पीछे घकेलना पड़ जाता। वैसे चह पति का प्यार पाकर मन ही मन प्रसन्‍त होती थी, पर ऊपर से नाराजगिया दिखाती, आनो बह उसका पति नही, कोई बच्चा हो, जो उसे परेशान क्या करता हो | विवाह के पहले वह समझती थी कि उसे दाल्स से प्रेम था किन्तु विवाह बेः उपरास्त उसे बह सुख नहीं मिला। वह जिस आनन्द की कल्पना करती थी बह मानो उसको मिला ही नहीं! और उसे लगने लगता कि उसने ऐसा विवाह करके एक भूल कर दी थी। वह सदेव इस बात पर आश्चर्य किया करती थो कि पुस्तकों मे जो शब्द इतने सुन्दर लगते थे---धासना, आवेद्, प्रेम--ये सब उसके जीवन मे वयों नहीं आए ये ! तेरह बर्ष की अवस्था में उसके पिता ने उसे र्‌यून के कॉन्ेंट में भेज दिया था । पहले तो वहा की विनम्र बै रागिनों के बीच जीवन उसे बड़ा अच्छा, सुहावना लगा । शान्त वातावरण था। वह जैसे मत्रमुग्ध हो गई। वेदी पर सुगन्धिया फैलती और लोवान की भादक यध से उसका प्राण तृप्त हो जाता । एक विचित्र रहस्यमथ-सा आलस उसके रोम- रोम भे व्याप्त हो जाता। और म जाने वह कहां से कहा पहुच जादी ) उसके बाद 'अप- रशाधों की स्दीदृति' आई। यह काम उसे इतना अच्छा लगा कि अपराध न करते हुए भी यह भूख्मूठ उनकी स्दीकृति करती । उनकी नई-नई कल्पना कर लेतो । उपदेशक लोग जब रहस्यदादी दग से तुलताएं करते और उनके मुख से “अनन्द विवाह, 'दृल्हा', दुल- हन' आदि धब्द निकलते तो उसबी आत्मा के भीतर तक मानो एक मिठासन्सी भर घाती । एक बृद्धा, जो उनके कपड़ों की मरम्मत करने आती थी, बड़ी लड़कियों के लिए पलॉयेपर : अधूरा स्वप्न [मादाम बावेरी १ ] फ्लोबेयर, गलताव : फ्रोंच कलाकार गस्ताव फ्लोबेयर का बन्म १२ दिसम्बर, १८२१ को रून में हुमा था । भापके पिता प्रशु*विकित्सक ये | ग्ताव एक सुन्दर ब्यक्ति ये । भाषने बुत जल्दी ही निर्यंय कर लिया कि आप लेखज बनेंगे | भाप भपनी माता के प्रति श्तने भधिक भनुरक्त थे कि आपने जोवन-मर विवाद ही नहों किया! आप लेरान में डूबे रहते थे | मां विधवा थीं, भ्रतः झाष दी उसके सद्ारे ये । पेरिस में रहने के ठुद दिन गाद भाषका निवास स्थान र_यून के पास ही कोशसैट नामक स्थान शो गया ! वहां आपकी तइजे कोलैट मामक स्त्री से बनिष्ठता शो माँ; परन्तु बह भी भाषके साधुक्द जीवन से आपको वाइर नहीं ला सकी | अत्यधिक का ने आपको जजेर बना दिया! भ्राप्त खाने-पीने के शौकीन थे, भौर बहुत झधिक मात्रा में शराब पोठे थे। भाष का सगेदास १८८० ई० में हुमा । “मदाम दॉवेरी' (अधूरा स्वप्न) आपकी एक बहुत प्रत्तिद रचना है| फ़ार्म-हाउस के सामने की सडक के पार एक आदमी खड़ा था। रसोई की खिड़कों की ओर देखते हुए उसके हृदय की गति बार-बार बढ जाती और रह-रहकर उसका शरीर कांप उठता था। उसी समय एक खड़खड़ाहट-सी सुनाई दी और खिड़की जोर से खुल गई । बहुत दिनों के वाद आज उसके स्वप्नों के पूरा होने का दिन आ गया था। झार्क्ष्स बॉवेरी को पता चल गया कि एम्मा रोल्ट अन्त में उसकी पत्नी बनने के लिए तैयार थी । उन्होंने आपस में यही 'इशारा' तय किया था कि जिस दिन बह भटके के साथ लिड़की के पट खोल देगी उस दिन मानो वह शा्से के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेगी। एम्मा चाहती थी कि उसका विवाह आधी रात के समय हो और चारों ओर दीपों का प्रकाश फैला रहे। लेकिन वृद्ध द्यार्स किसान था, वह परम्परा फी सारी रीतियों का निर्वाद करना उचित समभता या। उसने दादी के दिन अपने तेतालीस मित्रों को निम्मत्रित किया। अगले दिन दम्पती टास्टीज चले गए, जहां शाल्स का घर था। वहां वह हिंकमत भी किया करता था। उसने वृद्ध रोल्ड के टूटे हुए पैर को जोड़ दिया था, इसलिएं उसको बहां श्रेष्ठ डावटर माना जाता था। एम्मा और उसके विता को यह नहीं मालूम था कि बहू एक सामुली-सी घोट थी, जिसमें कि हड्डी साधारण तौर पर घटक गई थी। शाला __...--- « ॥, क्ेबिपपाधर किकायाज (75998 ॥#797फट74)--वस उपस्‍्यासत का झतुदद 'झषूरा स्कना नाम छैद्धप दी चुका दै। भलुवादक हैं प्रकारा पदिदत, झोर प्रकाराक राजपाल एयट सन्‍्ह, दिल्‍ली | 'रास्वप्न १३१ पुख का प्याला मावो लवालव भर गया था। पति-पत्नी दोनों साथ-साय खाते, सम्ध्या थे अ्रमण के लिए साथ-साथ जाते। एम्मा अकसर अपने हाथ ऊपर उठाकर अपने गहरे के बालों को इकट्ठा किया करती; उसका टोप खिड़को के सहारे लटका रहता--और * सव उसके पति को अनन्त सुख प्रदान करनेवाली वस्तु थी) अब तक उसे जीवन में ला ही क्या था ! जव मह स्कूल जाता था तो उसे यहो अनुभूति होती थी कि उसके थी उससे अधिक घनी और बुद्धिमान थे। वे उसके ग्रामीण उच्चारण पर हसा करते थ र उसके कपड़ों का मजाक उड़ाया करते थे । वाद में वह जब डाक्टरों पढ़ने लगा तो र वह अकेला रह गया। किसो भी दिन उसकी हालत ऐसी नहीं हुई कि बह किसी हन में काम करनेवालों लड़को को अपने साथ ज्ञाम को घुमाने ले जा सके। उसकी ॥ई प्रिया नहीं थी। इसके बाद उसने विवाह किया । उसकी माता मे उसके लिए एक घवा चुन ली जो जब दाय्या में लेटी रहती तब भी उसके पांव बर्फ को तरह ठंडे रहते। वाह के घौदह महीने के बाद यह उसे विंधुर बनाकर चली गई थी। अब उसे अपने वन में एक सुन्दर सहारा मिला था--ऐसा, जिसको वह प्यार कर सके । उस स्त्री के हर जैसे उसके लिए संसार ही नही था और उसे मन ही मत यह खेद होता कि जितना से अपनी पत्ती से प्रेत करना चाहिए था उत्तना सम्भवतः वह नही करता था। और पप्ा की हालत मह थी कि हायों को अग्ुलििषों की पोरो से लेकर कंधों त्तक (सपूची हो पर) और कंधों से लेकर गालों तक वह चुम्वनों से कटी रहती ॥ इतना ही नही, कभी-कभी तो उसे सानपूर्वक अपने प्रेम-विभोर पति को पीछे घबेः्लदा पड जाता । वैसे बह पति का ध्यूर पाकर मन ही मत प्रसन्‍्त होदी थी, पर ऊपर से नाराहगियां दिखाती, मानो वहू उसका पति नहीं, कोई बच्चा हो, जो उसे परेशान किया करता हो। दिवाह के पहले वहू समझती थी कि उद्ले शार्ट्स से प्रेम था किन्तु विवाह के उपराम्त उसे वह सुख सही मिला। वह जिस आनन्द की कल्पना करती थी वह मानो उसको मिला ही नहीं। और उसे लगते लगता कि उसने ऐसा विवाह करके एक भूल कर दी थी । वह सर्देव इस धात पर आश्चर्य किया करती थी कि पुस्तको मे जो शब्द इतने सुन्दर लगते थे--वासतां, आदेश, प्रेम--ये सब उसके जीवन मे क्यों नहीं आए थे ! तैरह वर्ष की अवस्था में उसके पिता ने उसे रयून के कॉनर्वेंट मे भेज दिया था। पहले तो धहां की विनप्न बैराग्रिनों के बीच जीवन उसे बड़ा अच्छा, सुहावना लगा । शान्त अातावरण था। वह जते मत्रमुग्प हो गई। वेदी पर सुगन्धिया फ़ैलतींऔर लोबान की भादक गध से उसका धाण तृप्त हो जाता । एक विचित्र रहस्यमय-सा आलस उसके रोम- रोम मे व्याप्त हो जाता । और ने जाने वह बहां से वहां पहुंच जाती ! उसके वाद “अप रधो को स्वीडृति' आई। यह काम उसे इतना अच्छा लगा कि अपराध न करने हुए भी बह भूठमूठ उनकी स्वीगृति_ करती | उनकी नई-नई कल्पना कर लेतो। उपदेशक लोग जब रहस्यवादी ढंग से तुलबाए करते और उतके मुख से 'अनन्त विवाह', 'दृल्हा', 'दुल- हन' भादि धाब्द निकलते तो उसकी आत्मा के भीतर तक मानों एक मिठास-सी भर जाती। एक दुढ़ा, जो उनके कपड़ो बी मरम्मत करने आती थी, बड़ी लड़कियों के लिए १३२ संसार के महान उपस्यात कॉनर्वेंट में चोरी-छिपे उपन्यास लाया करती । उन उपन्‍्यायों में वासवा से मत नारियों का वर्णन होता । उन उपत्यामों मे पद्म धने-हाले जयलों के अर्दर आहें भरना, ओगू गिराना, कममें खाना, कभी-कभी एम्मा की आंखों के सामने से गुर जाता । और उत पुस्तकों में वह उन राज-दरवारियों के बारे में भी पढ़तो जो एक ओर मेमते से कोमल होठे थे और दुसरी तरफ सिंहो से भी ज्यादा पराक्रमी । उस झमाने में उसने ऐसी पुस्तहें खूब पढ़ी । अमामिनी मेरी स्टूअर्ट, जोन ऑफ आर, हिल्लोय आदि वीर नापिकाएं उसझी कल्पना में सेलने लगी थी । किन्नु, जब उसके पिता उसे लेने आए, उस समय कॉनर्वेंट छोड़ते समय उसे सेई नहीं हुआ । गिरजा उसे इसलिए अच्छा लगता या कि उसमें एक फू्ों से भरा रहस्यवाद था जिसकी कल्पना नी उसे मनोरम प्रतीत होती थी; किन्तु प्रार्थनाए, लोवन को नियमित मर्यादा और कठिन आवरण यह सब उ्ते अच्छा नहों लगता था। जब वह पर आ गई तो पहले घर पर अपनी आजा चलाकर सुप प्राप्त करते का साधन दइने छगी, विन्यु शीघ्र ही दिनो-दिन इस जीवन से वह ऊरने लगी और उसे फिर से कॉनपरेंट री याद सताने सगी । जब दास पहली यार उसहे यहां आया उसे रामप तक उटाही आँखों मा पर्दा फट चुका या, जैसे उसके पाग सीसने के लिए कुछ भी बाकी सही रहा था, जैसे यह अपने जीवन के स्वप्नों को सो छुक्ो थी। शाहरां के आने से एफ बरिवर्सत हुआ। अपने मन बी अनुभूतियों को उसने प्रेम से परिवर्तित करने की बेप्टा की, जैगाहिभाज सर उसने प्रेम के बारे में पदा था । अर्त में यह उसहे णीवन में अवगरित होगेत्राता पा, रिन्तु अब बट देख रही थी कि दार्स्य अपने काते मलमंो फ़फि-कोड (खां मदता बोड) पहने हुए अपने सुक्री ते टोप और तग झूतों मे वद नहीं बत पाया था, जियडी उगने बहवता की थी। उसे रात वा पति कोई और ही था । धाईग की बावधीत गो ऐसी शसगती जैसे राशक का कोई झोरगुल । उपके अस्द र कोई भी वात जाएगी जरीं थी। भाष॑, हास्य दा विषार डु८ भी घापसे जगा नहीं वाता था पुरुष को सब हुछ रमभवा चाहिएं। उसे हर ब्रकार के कारों में डुगत होता चाहिए। जिगमें बासता का गठागाहर हदरा बहा हो, इसमें कम से कम इवना शहमर्य ठा होता काटिए कि औरत को उसमें गे पार कगा सारे । उसे जीदत की एत्दस्‍्ता के प्र जागझह़ होता च्राटिए, जियते व औरर दे सारे शहरों ढा ररघादत कर रहे । ले५ित यह आइमी (शत) गसो हछ गीधतां था ने इेख जालता था और न उसको कोई चाहता ही थी। बद यह हहमला पा दि जो पटीज शाटिवदिर जीवत उसने एम्सा के विए शुडा दिया था, बढ़ उसके लिए जद हाती दा। टिल्डु वास रहफा यही थी है बड़ इसी बाठ से विती भी। गई हो अपने जी रन का घस्ठ गहरी माज सी थी । उरहब यही चाटा ही (बट उससे देय झूर सह । बढ आकाश में बार मीरा और दृरिता आदइनोतनीओ!७ डिटइने खद्ली रूव बड़ एटली और उसे दपरत में से जारी व डर उप बाराओा भरी बट दिताण शुतासी और बतया सी, यो मरीहव्मरी री वी की तभे के (कलर हि लेक शी 3 हिस्दु न ठी कटिजा, के हवीड "कई मो उस डे शोपव बी रद हानानत व! माट नह हर गा, भोर ने उसहे पवि डी बरी विश हो गा अधूरा स्वप्न १३३ सका । उसे यह मन ही मन स्वीकार करमा पड़ा कि शाह्से उसके प्रति एक सीमा में अनु- रक्त था; और वास्तव में, उसमें प्रेम की ऊप्मा और गहराई नहीं थी । इन्ही दिनों वोदोएसार मारक्विस दादरवेलिए ने पति-पत्नी दोनो को अपने यहां ऑॉलननृत्य पर निमन्त्रित किया । वहां जो वैभव एम्मा ने देखा, उससे वह ठगी-सी रह गई ! खूब राग-रंग उसके देखने मे आधा । वह इन सबमे इतनी प्रभावित हुई कि वहा से लौटने के बाद भी उठ बॉल-नृत्य वेः दिपय में हो सोचते रहना अब उसके लिए एक वास हो गया । वह सोते में से जाग उठती ओर अपने-आप याद करने लगती, “बरे, मैं एक ह्ले पहले गई थी, मुझे वहा गए पन्द्रह दिन हो गए ! ओहू, उस वातावरण में गए मुझे हीन हफ्ते हो चुके !” उस वॉल-नृत्य के दौरान मिले लोगो के चेहरे घुल-मिलकर अब उसकी स्मृति मे धूमिल हो चुके थे । बहां सुनी सवीत को ताने भी घीरे-घीरे उसके कानों में अस्पप्टतर होती चली गईं । वहां हुई सारी बातें, सारी घटनाएं अब उसके सामने साफ नही थी। लेकिन उसकी स्मृति बडी मादक थी, जत्येन्द व्याकुल कर देनेवाली । शादी के प्रारम्भ मे एम्मा अपने-आपको पियादों बजाते भे लगाएं रखती और दार्ल्स को वजा-बजाकर सुनाती । कभी वह चित्र बनाती । इस प्रकार बह अपने को व्यस्त रुखने की वेप्टा किया करती थी | उसे सदेव अपने सौन्दर्य का ध्यान रहता | हमेशा सजी - बनी रहती । उसने थह्‌ भी प्रयस्त किया कि दामीण लगवेवाले शार्ल्स के दस्त्रो मे भी कुछ नागरिकता का प्रदुर्भाव हो । वह घर को एक-एक चोज को करोने से रखती। धर ऐसा सजा-सजाया बनाए रखती कि देखते ही वतता। लेकिन धीरे-धीरे उसकी आदतें भी बदलने लगी। अब वे पुराने शौरु उसके मन को बहलाने के लिए काफी नहीं थें। घर के सब काम्र उसने नोकरों पर छोड़ दिए। सारे दिन अपने कमरे मे उदास पड़ी रहती। ने पढ़ती, न सीना-परोता करती। यहा तक कि अब अपना श्टगार करने में भी उसे अधिक रवि न थी। उसकी समझता बव कठिन हो गया था--जेमे उसमे एक स्वेच्डा भर गई थी । उसवा आचरण भी कुछ विचित्र हो गया था । गालो पर एक पीलापन छा शया था और कभी कभी उसे दिल की धड़कत तकलोफ देते लगी ) उसे एक तरह के दौरे आने गे | या तो बह बहुत झयादा बात करती या फिर विलजुल सन्‍नाटे में डूब जाती | हमेशा ही वह दास्टीज को निल्दा करती। यहा तक कि क्षन्त में शाल्स ऊब गया और उसने उस गाव को छोड़ देने का निश्चय किया । ऐसा निश्चय करना महज वात नहीं थी। चार वर्ष बहा रहकर उसने वश अच्छी-खामी प्रेविटस जमा ली थीं। लेकिन अब जीवन को समस्या दूसरी थी और ध्यावद्वारिक मनुष्य होने के नाते बह उनका हल निका- लने लगा। दौड-घप करके और अच्छी जाब करने के उपरान्त उसने न्यूचेटिल के कस्बे मे जगह हृढ़ हैं। णी। घव उन्होने टास्टीज छोड़ा, श्रीमती वॉवेरी उस समय यर्भंदती थी । जब ये लोग अपने नये घर में पहुदे, सांक घिर चुकी थी। आज जीवन में चोथी बार यह एक मई जगह मे सो रही थी--पहली दार पॉनवेंट मे, फिर टास्टीज भे और फिर दोदीएमार में, और अब यहां स्यूचेट्िल मे--रात बे अपने मायके के: घर के अलादा किसी नये स्थान पर । इनमे से हर रात ने उसव्री बिन्दरगी में एक शेया पहलू धुरू किया था। वह यह नहीं मातती थी कि हर नई जगह जीवन एक-सा ही प्रारम्म श्३े४ड संसार के महान उपन्यास होगा और हर जगह वही वात दोहराई जाएगी। उसको यह लगा कि उसके विचार में दोनो खराब थे और एक अत्तीत की तुलना में उसके वाद का अतीत अच्छा हो गया था। इसीसे उसको आश्या हो गई कि अब जो कुछ होगा सम्मवतः वह वीते हुए कल की तुलना में अधिक ही अच्छा होगा। लेकिन नये स्थान ने द्ाार्ल्स के लिए परेशानियां खड़ी कर दीं। यहां मरीज पहले की तरह नहीं आते थे। हाल में उसने एम्मा के कपड़ों में बहुत अधिक ख़र्च कर दिया था और फिर घर दसाने में भी काफी खर्चा हुआ था। लेकिन जब वह एम्मा फो देखता तो हर्ष से भर जाता। वह जानता था कि कुछ दिन बाद वह मां होने वाली थी और इस वात से उसका हृदय यव से भर जाता था। इस विषय में जब भी वह सोचता एक छृतजञता की भावना उसके अन्दर भर जातो । उसके प्रति उसे अत्यन्त स्नेह हो गया था और अन्य सारे विचारों को वह अपने दिमाग से दूर कर देता । एम्मा ने जब अपनी इस नई परिस्यिति को देखा तो वह जँसे पागल-सी हो गई। लेकिन बाद में यह भावना बदल गई ) उसके अन्दर एक कौतूहल-सा जाग उठा। वह जानना चाहती थी कि मां होकर वह कसा अनुभव करेगी । वह एक पुत्र चाहतो थी--सुन्दर और दृढ़; और वह उस बच्चे में अपने जीवन के बीते हुए सारे व्यर्थ दिनों को सहेज लेगी और जो ठुब भी उसमें अभाव था उसे पूरा कर लेगी। पुत्र की यह नई कल्पना उसे एक विचित्र प्रकार से सुख देने लगी । किन्तु भाग्य ने उसका साथ नहीं दिया | उसने एक कन्या को जन्म दिया। लड़की का नाम उसने रखा बर्थ। उसको याद आया कि इस नाम की एक युवती को उसने बॉल-मृत्य में देखा था । वृद्ध रोल्ट की जगह होमे माम का एक केमिस्ट आ गया था। उसके साथ एक तरुण सॉलिसिटर बल्क एनलीयो आया था जो पेरिस में वकालत करने से पहले अपने अध्ययन को पूर्ण कर रहा था। एम्मा जव उससे मिल्री तो मत ही मन एक विचित्र आनन्द उसे हुआ। यह भी पेरिस का दीवाना था। गांव के लोग उसे पसन्द नहीं थे। उसे कविता पसन्द थी और श्रीमती बावेरी से उसकी रुचि इस बात में मिल गई थी कि वेदनात्मक जन गीत उसे भी उतने ही प्रिय थे जितने श्रीमती बॉवेरी को | उसके जीवन में भी ऐक्टर, सगीत, अच्छे वस्त्र और ऐसी ही वस्तुओं की भरमार थी जो श्रीमती बॉविरी के कल्पनाल्ोक में सदेव विद्यमान रहती थीं॥ उसको वह देहाती जीवन पसन्द नहीं था! इतनी सुन्दर स्त्री को वहां देखकर उसे लगा, जैसे सही माषतों में उसका जीवन अब आरम्म हुआ हो । यह स्त्री उस देहात से विलकुल अलग थी। बढ़ बॉवेरी परिवार में अकसर आने लगा, लेकिन जब उसे मालूम पड़ा कि शार्ल्स को उसका आमा-जाना पसन्द नहीं है तव वह यह नदी सोच पाया कि यह दाल्स को कुछ किए विना घहां कैसे पहुचे और यह भी वह जानता था कि एम्मा उसके प्रति अतुरकत थी। सेवित हर संध्या को उसे दवाखाने में उससे मिलते का एक न एक अवसर प्राप्त हो जाता। शाह्से और होमे वहां खेला करते थे और लीयो और एम्मा चिमनी की आग के पाय बडे हुए रिवों की फीयनेशक परिफाओं में में कविदाएं पड़ते रहते / छापे पढ़े हुए उपन्यातों के बारे में विचार-विनिमय करते । इस प्रकार उन दोनों के बीच में एक शम्बत्प स्यापित हो गया। प्रेम-कयानकों के विधय में बार-बार यात करते-करते उनमें एक अजीव-्सा सम्बन्ध पैदा हो गया; इस बढ़ती हुईं मित्रता को देखकर उसके पति को कोई ईर्ष्या रहीं अपुश रदप्न ११४६ हुई बयोकि उसका यह स्वभाव नहीं घा। अधघानक़ एस्मा ने यह अनुभव किया कि बंद उस तएण फे प्रेम मे पड़ गई थी ) यह शोचते लगी हि उगके जीवन में एक नया अध्याय शुज यया पा। डहू सुन्दर था। उसके देशों में भी एक बनेपतता थी। दह सोचने सपी दिए उसके प्रेर बा प्र्युतर मिल रहा था और हृदय बी गदराई में से एक आवाज़ उठी, बाग, यह हो सता !” फिर उगे विधार आया कि ऐसा क्यों नद्ीं हो राकता, उसे रोडनेवाता है ही कौन ? इस विधार-मात्र ने कि वह प्रेम मे थो उसमें एक नया परिवर्तन भर दिया । उतने संगीत का दितुल परित्याग कर दिया ताकि वह घर की देषभाल अच्छी तरह कर शके बचत से ही बर्य बी देरभाल एक घाय शिया रूरती थी ( अब बह रुवयं उसकी देखभाल करते सगी और पति के प्रति उसमे एक नई अनुरशित आ गई । बाहर वह बिल्॒शुत शांत थी, गम्भीर और वितद्घ; सेटिन भीतर ही भीतर पृणा और कोष जैसे उते साए जा रहे थे और बह सारा जोध धीरे-धीरे धार्स्स के विरुद इकट्ठा होने लंगा। धार्ल्स उसके इस आंतरिक शोध की बात विसदुल गहीं जानता था। यदि शार्ल्स उसो मारता और अपने से चुणा करने षग बोई दाएश देवा, खपने ऊार प्रतिहिसा उतारने बा कोई छुयोग देता तो किठना अच्छा होता । कभो-कभी उसे अपने विचार स्वय डराने सगते । वे कितने भयानक ये ! जब वह उनके बारे मे सोचती तो रवय आइचर्य से चक्तित रह जाती और अपनी ही कल्पना से अपने-आप भयभीत हो जाती । ढब घांति के लिए उसने गिरजे की ओर निगाह उठाई। किन्तु बेचारा पादरी अत्यधिक काये-ब्यस्त था। बसे ही लोगों से परेशान रहता चा ) वह जो उततसे दवी-मुदी घातें बहती उन पहेलियों को सुलभाने का उसके पास समय बहाँ या और न उसमें इतनी सामय्यं ही दो कि उसके रहस्यमय वाबपयों राम सके | लीयो को परिस्थिति दूसरी थी। उसको समता था कि बह अत्यन्त पवित्र थी और पीरे-धोरे उसने यह जान लिया कि उसको प्राप्त करना उसके लिए अस्समम्भव ही था। उसने उसका प्ररित्याग कर दिया, हिन्‍्तु ऐसा करते समय भी उसने उसकी स्थिति की कल्पता थी और उसको 'मडेता' का पौरवमय चाम दिया, जिस तक पहुच सकना किन था, शयोंकि उसकी पावनता छा स्पर्श करना भी एक पाप के समान या । इसके बाद उसके लिए वहां रहना कठिन हो गया और उसने पेरिस जाने का निश्चय कर लिया | बेमिस्ट के घर से इस व्यक्ति का घला जाना एक विश्लेप धटना के रूप में आया और तद्णों को अपनी ओर खींच लेनेवाली राजघाती का घ्यात एक बार फिर लोगो के सामते सडरा गया, सेकिन इस विदा को बेला में एम्मा मानो उपेक्षापूर्ण थी ) ल्लीयो को लगा, वह इस तरह से दूर होकर मानो उसदे पास अप गई है। यही एम्मा के जीदन मे हुआ। उसकी कल्पना के लीयो अधिक लम्बा हो यया, अधिक सुन्दर दिखाई देते लगा ओर मानों उसमे पहले से अधिक मंत्रमुग्ध करने को शक्ति आ गई थी । उसे लगता कि वह सर्वत्र उपस्थित था। अब लोयो की छाया भी उसको सताने लगी। उसे लगता कि चर की हर दीवाल में वह मौजूद या अब उसे इस बात का खेद होने लगा कि इतने दिनों तक समीप रहकर भी वयों एक दिन भी वह उसके सामने समर्पण से कर सकी। भयों एक थार भी शरीर का सुख न ले सकी, न दे सकी । उसने उसको एक बार भी इसका १३६ संगार के महाव उपन्यास अवसर नहीं दिया; और उसमें दृष्णा भरने लगी कि वह उसके पीछे पेरिस चली जाए, उसकी भुजाओं में अपने-भआपको समयित कर दे और पुकार उठे, “में आ गई हूं ! मैं तुम्हारी हू ।” दिन्तु वास्तविवता में यह कार्य अत्यन्त कशिन था और उसके हृदय में एक नई विरवित भरने लगी। विरक्ति के मूल में एक उत्कठा, चाइना थी, वागता अपनी सम्पूर्ण उद्विग्नवा के साथ मानो भीतर ही भीतर विजली की तरह कौंवने लगी थी । जो टास्टीज में हुआ था वही अब फिर उसके सामने उपस्वित हो गया। अब वह अपने को पहले से भी अधिक दु खी सममती कोंझि उसको अपने दु खो का कहीं भी अन्त मही दिसाई देता। उसे ऐसा लगता कि वह विवाह की वेदी पर झहीद हो गई यो और इसलिए उसका स्वेच्छाचार सम्पूर्ण रूप से उचित था । अब वह बहुत अधिक खर्च करने लगी। कपड़ों पर खूब पैसा लुटाती, अपने शूंगार के साधन जुटाती और ऐसी ही छोटी- भोटी वस्तुओं को खरीद-सरीदकर रुपया वहाते का उसे सौर हो गया । उसने इटेलियन सीखने का प्रयत्न क्िया। न जाने कितने कोश खरीद लिए, व्याकरण-पुस्तकं ढेर की ढेर इकट्ठी कर ली। लेकिन उनमें से एक को भी न पढ्ा। अब कभी-कभी उसे वेहोश्यी के दौरे आ जाते और वह खून थूकने लगी! थाा्ल्स जब व्याकुल होकर उससे बुछ प्रश्न करता तो वह कह देती, 'क्या है, कोई खास बात तो नहीं !* योनविले में वुघवार को हाट लगा करती थी और एम्मा खिड़की में से भीड़ को देखना बहुत पसन्द करती थी ! एक दिन सवेरे उसने हरे मखमली कोट और पीले दस्ताने पहने हुए एक व्यक्ति को देखा | उसके एक नौकर के शरीर में कुछ कप्द था भौर बहू चाहता था कि उसका कुछ रक्‍त निकाले दिया जाए। इसलिए वह नौकर को लेकर दास के पास आया। एम्मा ने नर्स का कोम किया और उस सज्जन से दो-एक बातें भी की। बातों में उप्ते पत्ता चछ्ा कि वह हाउचेट की छोटी रिप्राख़्त का मालिक प्रड़्ोस का ज्मी- दार रोदोल्फ वोलांजे था । रोदोल्‍्फ जब डावटर के घर से निकला तव गहन चितत में लीन था। उसको श्रीमती बॉवेरी पसन्द आ गई थी। वह सुन्दर स्थ्री उसके मन को भा गई] सकी दांत, उसकी काली आंखें, उसके सुन्दर टवने, उसका दुवला-पतला दादीर, जो विचित्र रूप में मांसल था, उसे ऐसा भा गया जैसे वह खास पेरिस की निवासिती थी, न कि कोई प्रामीण स्त्री । वह अपने पति की तुलना में कितनी अच्छी थी। डाक्टर क्रितना बेवकूफ लगता था। उसके नाखून कितने गन्दे थे और कम से दम तीन दिन की हजासते बदी हुई थी। रोदोल्फ ने मन ही मन कल्पना की और वह समझ गया कि यह स्त्री अवश्य ही अपने पति से ऊदी हुई है और अवश्य ही उससे घृणा भी करती है। इस स्त्री के लिए उचित स्थान पेरिस ही था जहां वह नृत्य मे और भोजों में मस्त रहते का बआनर्द प्राप्त कर सकती थी। वेचारी प्रेम के लिए तरस-तरस जाती होगी पानी के पास हक भी बहू मानो प्यासी थी । यदि वह किसीका मनोरंजन करने के लिए रखेल बनकर 2 वह जीवन का कितना आनन्द दे सकती थी ! ललेक्रित एक बाव और थी। एक आर ने बसा सेने के बाद क्‍या उससे पीछा छुड़ाना भी आसान होगा ? वह इसी बारे में सोच लगा। चौंतीस वर्ष का रोदोल्क प्रति का कठोर था और व्यावद्ारिक बुद्धि उसमे ४ अपूरा स्वप्न हि १२७ अधिक थौ ! उसने पहले ही से सोच लिया कि इस स्त्री से सम्दन्ध बढ़ाने मे क्या-क्या आधाएं उपस्थित हो सकती हैं। लेकिन जब वह उसको आंखों के बारे में सोचता-तव उसे लगता जैसे वह आंखें तीर की तरह उसके हृदय में घुस गई थीं। सबसे बड़ी बात तो यह्‌ थी कि एम्मा का रय सुनहला-सा था और सुनहरे रंग पर रोदोत्फ जान देता था। घर पहुचने के पहले ही रोदोल्फ ने यह निश्चय कर लिया कि किसी न किसो प्रकार वह उस स्त्री को अवश्य प्राप्त करेया । एक कृषि-प्रदशनी में वे लोग दूसरी वार मिले। मेयर और गणमान्य नागरिक भीड़ को अपने भाषण सुनाने लगे ॥ उस समय रोदोल्फ एम्मा को ,टाउनहाल के एक खाली कमरे में ले गया । उसने कहा कि वहां से सारा दृष्प अच्छी तरह दिखाई दे सकेगा चहां से जाकर उसने अपने ब्यपित हृदप को बेदना उसके सामने खोल दो। अपनी कल्पता के कौर तृप्णाओं के संसार का उछुने उसके सामने उद्घाटन कर दिया। उसने एम्मा को कहा कि वह भी जीवन को इन्द्र से ऊद चुका है और अपनी कहपना-लोक बी गारी की प्रतीक्षा कर रहा है ॥ झर यह कहकर उसने श्रीमती बॉदेरी की ओर भाव- भरी आंखों से देखा । फिर कहने लगा कि विश्व के अनन्त छोद और विस्तार के सम्मुख मनुष्य द्वार। निर्मित ये फृजिम व्यदधान कितने तुच्छ हैं--और दीरत्द और सौन्दर्य का उत्तर प्रेम है। प्रेम ही इस पृथ्वी पर सर्वश्रेष्ठ वस्तु है, जिसमे ब्याघात डालने के लिए अनेक प्रकार के व्यवधान समाज ने उपस्यित कर दिए हैं! आवेश, कदिता, संगीत इत्यादि के विषय में वह्‌ बोलता ही घल्मा यया और उसने एक रंगीत स्वप्त-सा एम्मा की आखों के सामने जाप्रद्‌ कर दिया । बह एक छोटे स्टूल पर अपने घुटनों को अपने हाथों में समेटे एम्मा के चरणों के पास बैठा घा। उसका धरीर उसके समीप था ओर सिर ऊपर उठा हुआ था। एम्मा दो बातें देख रहो धी--रोदशेल्फ की काली पुतलियों में से जैसे सुतहली किरणें निकल रही थीं, उसके केशों में से मुगन्य आा रही थी--बढी सुगन्‍्ध, जो वोदीएसार में नृत्य करते समय वाईकाउंट के केधों में उसने सूधी थी। एम्मा को लगा कि वह शिथिल हो गई थी। से खगा मानो वह उसी गाड़ी को देख रही थी जो लीयो को लेकर चली गई थी योग- बिले से टूर। उसे लगा उसके चरणों पर स्वयं लीयो बैठा था और एक बार फिर वह मादकता उसकी रय-रग में थिरक उठी। उसके रोम-रोम में जँसे बासना अतलात हाहा- कार कर उठी । ओर इस वि्वल अनुभूति के साथ हो साथ रो शेल्फ के केशों को गध धोरे- धीरे उसकी साँखों मे समाती रही । कितनी ध्यारी सगे रही थी उसे बह सुगंध रोदोल्फ मे हाथ बढ़ाकर उसको उंगलियों को पकड़ लिया। एम्म्रा ने रोका नहीं। उनके होंठों में एक उत्कट चाहना ते एक अजीव-सी गर्मी पैदा कर दो थी । उगलियां आपस में गुष गईं, भानों उनकी तृष्णाओं के घढ जाने का यह पहला भ्रतीक था। जगभण छः हफ्ते बीत गए। रोदेल्फ एक दिन उनके घर आया और सीघा भीतर चक्र आया। एम्मा जैसे पीली पद गई॥ ठद बह समझ गया कि शी भर ही न आकर उसने डीक ही किया है। उसने दारू से पूछ विः उसकी पत्नी ऐसी रोगिणी ब्ों दिखाई दे रही थी और सुझाव दिया कि यदि थीरती ददेरी घुड़सवारी प्राश्म्म कर दे दो छायद कप संगार के मदन उपसयग उसहा रवारश्य फिर से टी है हो शरे । झार्स अबती वली के स्वास्थ्य कै बारे में अधिक विवि श्या। उसकी सम्रझ मे ही नहीं आ रहा था हि बंद हिंय प्राार उसको ठीड करे । हंग गुमाव ने उगे हद धुपरिय कर दिया। सेडिन एप्मा चुइ्सशारी के लिए नहीं जाना चादती थी। उसने उसका बोर विरोष जिया और अर में उसते जेठा कि उसे आइए तो थी नहीं और बिता आदत के धो पर बढ़े भद्र भीज॑ ये सकती थी। हि शार्ग में उच्तर दिया, “आदत सो डासने से पड़ती है 7 और इस बात ने मामठा एय बर दिया। पढ़लो बार ये सोग जब थोड़े पर घये तो वडू सदर्प चली गई। अवधर पर यह निरन्तर दर्पण में अपने मुरा को देखा करती। उसमें कैसा परिय्ेत आ गया था। उगनी आंखों में गहराई पहले कभी नहीं थी, और ने यह इतनी प्यादा ही थी। कैसी विनारमस्त प्रतीत होदी थी यह, और वह धीरे-धीरे बड़बड़ाया रूरती, मेरा एक प्रेनी है, जो मुभे ध्यार करता है ।” उसको ऐसा लगा, जैसे एफ बार किर से उमर यौवत आ गया हो | बांध टूट गया था, और प्रेम का आनन्द फिर से उमड़ने लगा था। अल में सवतरस्त्रगा की हिसोर पर उसने अपने-आपों छोड़ दिया और बाढ़ उसे बहा ले चती। वे लो। अब गुप्त रुप से पत्र-ब्यवहार करने लगे, डिस्तु उसके पत्रों को उसने सर्देव बहुत छोटा पाया। एक दिन सुब्रह यह जल्दी उठ गई और उसके मन में पह जाया कि वह रोदोल्फ से मिल ले। थार्ल्स उस दिन तड़के ही वहीं चला गया था! वह चुपचाप सेतो की ओर निकल पढ़ी और उसने पीछे मुडकर भी नही देसा । ओस से भीगी हुई जब वह रोशेल्फ के घर पहुची तो जाकर अपने प्रेमी की धम्पा पर लेट गई ।*** सारे जाईडे की ऋतु हर हफ् में दो-तीन वार रोदोल्फ उनके बगीचे में आया करता था ) वह बड़े आतुर हृदय से शार्स के सी जाने की प्रतीक्षा किया करती | बगौवे में सघन कुज में एक पुरानी बैच पड़ी थी। पहली गर्मी को ऋतु में वहां वह लीयो के साथ बैठा करती थी और लीयो उसका मन बहलाया करता था। अब वह सीयो की कोई दिन्‍्ता नहीं करती थी और उसका स्थान रोदोल्फ ने ले लिया था। कभी-कर्मी रोदोत्फ को लगता कि वह आवश्यकता से अधिक अनुभूतिशील थी, वर्योकि वह वार-बार अपने बालों की लद 'उस्ते देकर उससे उसके बालों की लट भागा करती थी ॥ अन्त में उस्तने एक द्ति उम्रसे एक असली विवाह की अंगूठी मांगी । वह अब भी सुन्दर थी, और प्रेम के क्षेत्र मे इतनी 'रसीली स्त्रिया रोदोल्क को कम ही मिली थीं और इस प्रेम में एक विचित्रताथी कि यह व्यभिचार नही था। इसग्ने उसकी वासना भी तृप्त होती थी और गवे भी । जिस रूप में बह अपने-आपको समर्पित करती उससे उसके मध्यवर्गीय नैतिक विचारों को धक्का लगता, किन्तु यह सोचकर उसकी कल्पना-विभोर हो जाती कि वही उसका केन्द्र था। किल्तु जब प्रेम चरमता पर पहुच गया तो उसका रुख बदलने लगा। उसके कोमत घहर चले गए। सव कुछ महज़ उसकी वास़ता के दुलार की चीज्ञ होकर रह गया। अब बह अपनो उपेक्षा को छिपाने में भी असमर्थ हो गई थी ! हा एम्मा को आयश्चित्त की भावना ने ग्रस लिया अब वह सोचने लगी कि आखिर चह शार्त्स से घृणा क्यों करती थी । क्‍यों न वह उसीको प्रेम करना प्रारम्भ कर दे ? कया अधूरा स्वप्न १३६ यह अच्छा नही होगा ? यदि यह न भी हो तो यह अच्छा डाब्टर दो था ही। वया इसी- लिए उसका आदर करना आवश्यक नही था ? उन्ही दिलों देमिस्ट ने होटल मे रहनेवाले एुक लड़के के पाव का नपा आपरेशन करने के खिए दएल्स को तैयार कर लिया। लड़के के पांव में तकतीफ थी और उसका काम या इधर-उधर सदेश पहुचाना | केमिस्ट रोज- रोज श्ञार्ल्स का दिमाग खाता था ओर शार्ल्स की हिम्मत नहीं पड़ती थी। एम्म्ा ने भी क्रेमिस्ट का समर्थन कियां। और अन्त मे शार्ल्स ने यह खतरा मोल लेना स्वौकार कर लिया । आपरेशन विलकुल असफल हुआ और लड़के को टांग काटनी पडी | इस बात से व्यथित होकर एम्मा ने लड़के को एक बहुत महंगी लकड़ी की टाग खरीदी | जब चलते समय बह लकड़ी की टांग धरती पर सटपट करती तो झात्से अपने द्वारा घायल किए गए उस लड़के को देखकर भय से काप उठेता और चाहता कि वह कभी भी उस खटठपट को ने सुने । + ध एम्मा का मानसिक सतुलन धीरे-धीरे खोने लगा। उसके सभी सपने लगभग नष्ट हो चुके थे । जिससे उसमे एक वार फिर नथा आवेश आ गया। अपने व्यभिचारी हृदय को उसने' समग्र शकित के साथ नई वासनाओं की ओर प्रवृत्त कबने की चैप्टा की अपनी जितनी बासताए थी उनको उसने जायरूक किया और स्वेच्छा की लपटो को अपनी ही तृष्णाओ, के पवन से वह सडकाने लगी । अब बह दिन-दहाड़े अपने प्रेमी के घर चली जाती थी। उसे वहां से निकलते हुए डर नही लगता था । वह उस्रे बहुमूल्य उपहार देती और जब उसका मूल्य नहीं चुका पाती तव ढस्वे के बोहरे, मूलिए, लेहूरे आदि महाजनों के पास कुछ न कुछ गिरवी रख अएती १ एक वार ठो पति के एक बिल की घतराशि को उसने बीच में से ही ले लिया। यात्स की माता तक से उसका भा हुआ। वह बुछ ही दिन के लिए रहने के लिए आई थी। श्रीमती दॉवेरी अपने पुत्र बी कल्पाण-कामना में उसे सुखी देशन। चाहती पी। लेकिल एप्पा के व्यवहार ते उतको अधिक से अधिक व्याकुल किया । अब एम्मा ने यह निश्चय कर लिया कि वह अपने प्रति के साथ नहीं रहेगी, क्योंकि बहू उसके लिए अब बहुत कठित काम था। उसने रोदोल्फ से प्रार्थना की कि बह उसे एक सुदूर देश भे ले जाएं जहां उनका प्रेम विना किसी व्याधात के चल सके। रोदोल्फ उसे स्वीकारतों करना चाहता था, लेकिन अन्तत उसने कोई सनन्‍्तोपजनक रख नही दिखाया। उसने एम्मा से कहा कि वह सारी तैयादी कर ले और ठीक जिस दिन कि थे जानेवाले थे, उससे एक दिन पहले उसने बहुत सावधानी से वन्द एक पत्र उसे भेजा, जिसमे उसने लिखा कि उसे उसके साथ नही जाता चाहिए, वयोकि उसके साथ जाने के उपरान्त वह शीघ्न ही पश्चात्ताप करने की अवस्था में आ जाएगी । एम्मा इस उद्देंग को नहीं सह सकी और उसने खिड़की से कूदकर जान देनो चाही ! उसे बडी मुश्क्लि से उसके परिवार-मर ने मिलकर रोका । किन्तु मानसिक आघात ने उसे कुछ पागत-सा कर दिया और उसकी दशा ऐसी हो गई जेंसे अब वह नहीं बेचेगी। धाल्स के लिए जीवन मरक हो गया | उसे ऐसा लगने ज्ञगा कि जिस पत्नी को बह प्राणों से भी अधिक प्यार करता था वह उसे सददेव के लिए छोड़ जाएगी । और उन्ही दिनों उसके पास दुकातवालो के बिल पर विल आने लगे जिनको चुकाना उसके लिए असम्भव था? एम्मा की बीमारी का सर्च और १४० संसार के महान उपत्याध रोदोल्फ को देने के लिए उसके द्वारा खरीदे हुए बहुमूल्य उपहारों का भुगतान घाल्से को महाजत-बोहरे के हाथ में फंसा गया | अपना कर्ज चुकाने के लिए उसे दुमरी जगह ते ऋण लेना पड़ा । वह मन में अच्छी तरह से जावता था कि झायद वह लेहूरे के कर्ज को कमी वापस नहीं चुका सकेगा। लेकित एम्मा नहीं मरी। धीरे-धीरे, घीरे-धीरे वह ठौक होने लगी। जब वह फिर वाहर आने-जाने के योग्य हो गई, ती उसका ध्यान बटाते के लिए शास्स उसे र्‌युन ले गया । वहां एक प्रसिद्ध नाटक होनेवाला करा और कोई संगीत भी आया था। ऑपेरा हाउस में उन लोगों को लीयो मिल गया। पेरिस में अपना अध्ययन समाप्त करने के उपरान्त लीयो एक वकील के गहां वलर् हो गया था। पहले की तुलना में वह अब परिपष दिखाई देता था। पेरिस की दुकानों में काम करतेवाली लड़कियों भर वेश्याओं तथा संग पढ़नेवाली लड़किमों से अनेक प्रकार का ध्यभिचार करने के उपरान्त उसमें एक बाहरी आत्मविश्वास-सा आ गया था। लेकिन वैसे वास्तव में बह अब भी उतना ही लजीला था। इन सारे दिनों उसके द्वदय में एम्मा की छवि जीवित रहती ॥ उसे ऐसा लगता था कि जैसे वह एक घुंघली-सी प्रतिशा थी, जो न जाने उस्ते जीवन में कब पूरी होगी--मानो वह किसी वृक्ष से लटका हुआ स्वर्ण-फल था, जिस तक बह पहुँचता चाहता था, सेकित पहुंच नहीं पाता था) उसने शाल्स को इस धात हे लिए - आसानी से मना लिया कि अगले दिन का नाटक देसने के लिए एम्मा र्‌यून में रह भाए। ओर एम्मा से एकात में मिलने के अवसर की ताक में बह लगा रहा । जिस समय होटल के कमरे में बह उसे अकेली मिली तव उसने अपना प्रेम उसपर प्रकट कर दिया और उसकी अनुपस्थिति में अनुभव की हुई पीड़ा का संकोचपूर्वक अकाश करते हुए उसने कहा, “न जाने मैंने कितने स्वप्न तुम्हारे वियोग में मेले हैं ।” एम्मा मुनती रही भौर उसने धीरे से कहा, “मैं भी सदैव तुम्हारे विषय में सोचा करती थो ।" सीयो का संकोच एम्सा के लिए रोदोल्फ की मुखरता की तुलना में अधिक भया* नक प्रमाणित हुआ | उगी दिन राम्ष्या के रामय एम्मा ने लीपो को पत्र तिएा कि उन दोनों में अब विसी अ्रकार का सम्बन्ध भी वाद्धतोय नहीं है। किस्तु वह उसता पता स्ीं जानती थी। उस पत् को पहुंचाने के लिए उसे गिरने तह जाता पड़ा। विएजे में इसलिए हि यह उत्दोते पदले दिन तय दिया था हि वहां मिलेंगे । सीयो एश गाड़ी सैकर भागे चा। यह उसपर बँटना नहीं चादती थी। सेहित जब सीयो ने उससे गद्दां हिं वह मह गाही पेरिस से ही लाया है, तब वह मान गई। जब गाड़ी खज़ने सगी तब वह मातों उम्रकी प्रिया हो गईं ।**“ओऔर एक बार किर धार ने मपनी पतली के लिए वागना ड्ले अपराध का मार्य खोत दिया।'** सेहरे ने अड दड धास्ये पर पूरा कम्डा कर जिया था। अपते घत को वयूत हे का उसे एक ही तरीका सत्र आया कि वह एम्मा के ऊपर ब्यात बेदितकरे। इसने एम्मा के हट्टा हि आपसे वि के कई को चुदाठे के विए सारा कामन्‍्दाज और दावर्ी अधिरार बढ अपने हवाय में ले के । इतनी डिस्मेदारी सेते की एश्ता की ढोई हा ४4 दो! पर उसने यह भी बनुभव डिया डि यह टन बातूनी मामता है मौर शरमे।ी अधरा स्वप्त. श्र वकील की राय की जहूरत है। उसने धाल्स से वात की । वह किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं जानता था जिससे कि वह सलाह ले सके । बेचारा शार्ल्स फिर जाल में फंस गया--उतने लौयो का नाम लिया, वयोकि वह वकालत के पेशे में था। तव एम्मा रयून गई लीयो से सलाह लैने | तौन दिन उसके पास रुकी । वे उनकी सुहागरात के दिन थे | जब वह लोटी तो मानी उसका रोम-रोम सग्रीतमय हो यया था । अब यह सगोत की ओर भुकनता चाहती थी, किन्तु उसकी उगलिया अभ्यास के विना पहले की तरह लोचदार नहीं रही थी । शास्स ते सलाह दी कि वह र्‌यून मे जाकर सगीत की शिक्षा ले । दुयून के होटल मे उन्होने एक कमरा किराये पर लिया और उसे वे अपना घर कहने लगे। कमरे के अन्दर अच्छी सजावट थी। उसमें खासा फर्नीचर था | उन्हें सचमुच ऐसा लगने लगा जैसे वे किसी घर में रहते थे । उसका पारिवारिक जीवन फिर लौट जाया। रोदोल्फ वाली वेला फिर लौट भाई वह सुन्दर थी और पति के प्रति अनुरक्त भी दिखाई देती थी । शार्त्स सममता था कि बह संसार वा सतसे सुखी व्यवित है। जैसे-जैसे समय व्यतीत होता गया । अपनी दुष्णा को छीवित रखने केः लिए एम्मा को अधिक से अधिक बाह्य उपफरणो की आदश्यकता पड़ने लगी। उसने कई-एक अभि सार यात्राए कीं। यद्यपि स्देव बहू अपनी इस तरह की यात्रा के अन्त के लिए तैयार * रहती थी, किन्तु यात्रा से लौटते वबत रेल में उसके भीतर यह भावना जाग उठती थी कि उसे यात्रा के दोरान कोई असाधारण अनुभूति नहीं हुई। मानो उसके अन्दर एक निराशा बढ़ती जा रही थी। हर निराशा उसे एक नई आशा की भर लालायित करती थी। हर बार वह अपने प्रेमी के पास पहले से भी अधिक उत्युकता से जाती थी और प्रत्येक बार उसकी वासना पहले की तुलना में कही बढ़ी-चढ़ी होती । बह अपने वक्त्रों का अनावरण निर्लज्जता से करती थी, मानो वह उन्हें फाइकर उनमे से बाहर विकल आती थी। नंगे पांव, पंजो पर चलकर वह अपने प्रेमी के दरवाजे तक जाती और देखती कि वह सचमुच बन्द है कि नहीं ओर तब गम्मीरता और सकोच से, बिता एक शज्द भी बोले, बह सीपो के दक्ध पर कापती हुई अपने-आपको समपित कर देती। लीयो उससे कोई प्रश्न सही करता था, लेकित वह काम-कछा में प्रवीण था। इसलिए उप्तकी यह अवघ्पा देख« कर वह समझ जाता था कि बासना और प्रेम की समस्त घुमदत एम्मा के कषन्दर घूष रही है। यहां तक तो सव ठीक था। किन्तु उसे एतराज़ इस बात से था कि वह उसके व्यक्तित्व को जंसे अपने भीतर समेटे ले रही थी, वह उसपर छाए जा रही थी। हर बार मातो एम्सा को ही विजय होती थो और मत ही मन लीयो इस बात से अपने मन में एक कचोट खाता था। अब मानो एम्मा उसकी रखेल नही थी, लीगो स्वय एम्मा की एक रखेल के समान था ! इसके अतिरिक्त जिस वकील के यहां वह काम करता था उसे किसी प्रकार इत सब घटनाओं की सूचता मिल गई थी, और उसने इस विधय में उसे सावधान भी छिया या कि वह एक स्त्री के पीछे अपने भविष्य को विगाड़ रहा है। किन्तु एम्मा फिर भी सतुष्ट नहीं भी। जीवन जैसे उसकी मादकता के लिए अप्रू्ण था। जिसका भी बह सहारा लेती थी वही उसके चरणो के नीचे टूटकर गिर जाता थां। जीवन ने उसे के संगार के महान उपन्यात वितनी आशाएं दियाई थीं, किन्तु वे सय सिथ्या में परिणत होती चत्री जा रही थीं। हर सुम्परराहद के पीछे एक ऊबी हुई जम्हाई थी । हर आनन्द के पीछे मानो बुतरजुतस्कर खाता हुआ कोई अमिज्ञाप मांक रहा था। टूर वासनामय गुस के पीछे एक अनृप्ति उचक- उचक उठती थी। अधरों पर प्रेम के उन मधुर चुम्वनों से पीछे भी उस अग्राप्य सु की फामना प्यासी ही रह जाती थी, जिसके लिए कि यद सादा सेल हो रहाया। एफ रात णव वह र्‌यून से लौटी लो उसे एक पत्र मिल्रा भूरे कायज पर लिखा हुआ। उसने पढा--“कानून के हिसाव से, जैसाकि आपका-हमारा समभौता हुआ या, चौबीस घटे मे, विना किसी वाघा के, निश्चित रूप से हमारे आठ हजार फैक चुका दिए जाएं।” धन की राशि बहुत वढ़ी थी। वह समझी, यह जरूर लेहरे का पत्र है। डिलु वाह्तविकता यह थी कि एक ने एक प्रकार से कर्ज लिए जाते थे, और हुडियां वदली जाती थी। और अब अततः धूम-फिरकर बोहरे को इतनी बड़ी राशि मांगने का अवसर मित्र गया था, क्योकि उसे एक महत्त्वपूर्ण कार्य में उस धन को लगाता था । सत्य जब उसके सामने आया, तव एम्मा के पांवों के नीचे से धरती खिसक गई । झाल्स भी देख रहा पा कि उसका घर नीलाम होगा, वह बर्बाद हो जाएगा, उसका जीवन समाप्त हो जाएगा; और यह सब किसलिए--केवल एम्मा के कारण । एम्मा गई और जाकर लेहरे के चरणों पर लोट गईं। किन्तु अब यह व्ययं था। सेब वह लीयो के पास गई, किन्तु कर्जा इतना बड़ा था कि जब लीयो ने सुना तो उसके छक्के छूट गए। शायद एक हजार फ्रैंक तक होता तो वह प्रयत्न भी करता, किन्तु क्िर उसने उस विषय में चर्चा भी नहीं की ) अब वह योनविले के वकील के पास गई, किन्तु जब उसने कहा कि घन तो वह दे देगा, लेकिन उसका मुगतात उसके झरीर से करेगा । तब वह उसके दफ्तर से भाग गईं। अब वह रोदोल्फ के पास गईं। वह जानती थी कि इस समय बह उस वेश्या के समान थी, जो पैसे के लिए अपना शरीर बेचती है। जिस चीज को उसने वकील के यहां त्याज्य समभा था, वह उसको मन ही मन स्वीकार करके रोदोल्फ के यहां पहुंची । लेकिन रोदोल्फ भी उसकी कोई सहायता नहीं कर सका । भव एम्मा के पास एक ही भार्ग था--आत्मह॒त्या। वह केमिस्ट के घर में गई और उसने संततिया जा लिया। जव शाल्पं घर आया तो उसने उसे पत्र लिखते हुए पाया । वह बिलकुल शान्त दिखाई दे रही थी। फिर वह शय्या पर लेट गई, सो गई, ओर जब उठी तब मुंह कड़वा हो रहा था। अब वह कौतूहल से अपनी अवस्था को स्वय निरखने लगी। उस्ते कोई कष्ट नहीं हो रहा था। आग जल रही थी। उसे आवाज सुनाई दे रही थी। घड़ी वी दिर टिक उसके कानों में स्पप्ठ आ रही थी। शाल्स उसके सिरहाने बैठा था | उसड़ी दान की आवाज़ वह सुन सकती थी । उस्ते ऐसा लगा जैसे वह सिर्फ प्यासी थी, बहुत प्या: उतरे थी। उसने पानी मांगा, और लगा जंसे वह रक्त वमन करेगी। द्यात्सें मे भीरे से न्‍ पेट को थपथपाया मानो वह उसको प्यार कर रहा था, सहला रहा था । एशाएक वह बड़े जोर से चिल्ला उठी! घवदाकर दार्ल्स पीछे हट गया । एम्मा का चेहरा ३६ शस गया। पसीना बहने लगा, उसके दांत वजये सगे और उराने धूत्य दृष्टि से बे की, देखना प्रारम्म किया | एक-दो यार वह मुस्कराई भी और किर उसकी कराहें बड़ने सर्गी, अधूरा स्वप्न श्४३ और ह॒ठातू वह एक बार फिर बड़ी जोर से चिल्‍ना उठी । दो डाक्टर बुलाएं गए। लेकिन अब करने के लिए दुछ भी शेप नहीं था। वह खून उगलने लगी । उसके सारे शरीर पर भूरे चकत्ते पड़ गए। पीड़ा के कारण उसका आदतेनाद गूजने लगा और उसकी नक्ज उंगलियों में ऐसे स्पदित होने लगी, जेसें अब कही सरदकर भाग जाना चाहती हो । पादरी झाप्रा और उसने अंतिम प्रार्थना की + कुछ हो देर बाद एस्मों सदा के लिए दल दी १ शाल्से की इच्छा यह थी कि वह अपने विवाह के वस्त्रों में दकदाई जाए--सफेद जूते और फूलों की माला पहने हुए । उन्होंने उसके केझों को उसके कृधों पर फैला दिया, और बलूत तथा महोगनी की लकड़ी तथा रांग्रे से इने कफन-सन्दूक मे उसको लिटा दिया। एम्मा वी मृत्यु झाल्से का भी अन्त था। वह फिर कमी बाहर नही निकला। किसीसे नहीं मिला और उसने अपने रोगियों को भी देखना बन्द कर दिया | राहगीर उसको बीस मे खड़ा हुआ देखते--रन्दा, विना नहाए-घोए, बुछ जगली-मा जो पौधों के वोच में इधर-उधर घूमते समय जोर-जोर से रो उठता था। एक दिन उसकी बेटी ने उसे कुज में भरा पड़ा पाभा । लम्बे वालो की एक फँली लट उस समय भी उसके हाथ मे दिखाई दे रही थी । नारी की बासना जसीम भी हो सकती है + प्रेम अतृप्त रह जानें पर भयानक रुप घारण कर लेतए है बह एक ऐस! हाहाकार बन जाता है जो अन्तर को सोजला कर देता हूँ। ऐसा ही है एम्मा का चरित्र । बह अपने हृदय को ढूंढती है । उस पर काबू करना चाहती है, किन्तु कर नहीं पातो | और अन्त में घहू विनाश के गत में डूब जाती है। छेखक ने उसकी हन्दर-भरी घुटन का बहुत हो सुन्दरता से अन्त तक निभाव किया है । स्टीवेन्सन : इन्सान या दतान (डॉक्टर जेकिल एण्ड मिस्टर हाइड* ] रीवेन्सन, रॉडर्ट तुई : अंग्रेजों कयाकार रॉडर्ट हुई रटीवेन्सन का जन्‍म एडिनदा में १३ नदखर, १८५० को हुआ | अपने जीवन के प्रारम्मिइ दिनों में दी ऋपमें साहिय के प्रति रुचि आपग्रव्‌ हो गई | भपने पिता को प्रप्तन्न करने के लिए सिविल इन्जीनियरिंग का अध्ययन किया भौर कानून भी पद्रा । लेढिन लेखन के लिए दोनों का दी परि- स्याग कर दिया | बचपन से ही आपका स्वास्थ्य भच्चा नहीं या, प्रायः अर्तत्थ रहते थे । आपने अपना स्वास्थ्य मुशरने के लिए फल, कैलिफोर्निया, एडिरोन ढेक्स और दक्षिणी समुद्र के द्वीपों की यात्राएं की | भाषकी एत्नी निरन्तर आपकी संदायता करती रद्दी और आपके लिए प्रेरणा क! स्रोत बनी! रही । स्टीवेन्सन इस विषय में दुःखी रहे कि उन्हें भपने मित्रों से विदुड़कर दूर रहना पश्ता था। झविशंरा सादित्यिक रचनाओं का जन्म भाषकी रोग-शय्या पर इुप्ता | ३ दिससर, इ्त्श्थ को... आपका देहान्त समोग्रा नामक द्वीप में हुआ । रदीवेन्सन ने कविताएं भी लिखीं। बालकों को अ्रध्यन्त रुचिकर लगनेवाली कृतियों के लिए झाप इदुत प्रसिद दे | “डॉक्टर लेकिल और मिस्टर दाइड' (इन्सान या रौतान) भाषा एक बड़ा सार्मिक उपन्यास दै । यह पहली बार १८८६ में छपा था। अदरनस एक वकील था । रिचर्ड एनफील्ड नामक एक व्यक्तित उतका दूर का सम्बन्धी था। एक दिन वह लन्दन के समीप रविवार को घूम रहा था, कि ज्से एक विचित्र-सा सकान दिखाई दिया। यह मकान एक गली में था। दुममिता था, लेकिन उसमें खिड़की एक भी नही थी; और देखकर ही वह कुछ अजीवनसा, डरावनान्सा लगता था। एनफील्ड को वह मकान देखते ही एक भयानक दृश्य याद भा गया। उसवे उस दृश्य के बारे में अटरसन को बताया, “एक सवेरे पौ फटी ही थी कि एक आदगी बडी तेजी से चलते समय एक छोटी-सी लड़की से टकरा गया, और वह बच्ची गिर पड़ी । लेकिन उस आदमी के ऊपर कोई भी असर नही पड़ा, और वह बड़ी दांठिसेउश बच्ची के दरीर को अपने पैरों से रौंदवा हुआ उसके ऊपर से निकल गया [” यह कहते हुए एनफील्ड को जैसे फुरफुरी आ गई और उसने कहा, “मैं इस दृश्य को नहीं देख सका। मैने तेडी से भागकर उस आदमी को पकड़ लिया और गरदन परुड़कर उस बच्दी के १. 07 उच्तज़ा ब्कत उचा. सलज़रेढ (००० [०७3 50८४2७०७ )छ्स न ब्रा हिन्दी भजुवाद 'न्‍न्सान या रैतान' धप चुका है | बकाराक़ : दिन्द पकिट उक्त आर लिमिटेड रगइदरा, दिल्‍लो-३२: अनुवादक : देवेन्धउमार विघालंकारा इन्सान या शैतान श्ष्प पास खींच लाथा। वहू आदमी बड़ा कुहुप था। उससे वच्दी के परिवार को ह्जाते के तौर पर घन देना स्वीकार कर लिया और वह इसी रहस्यमय मकान में घुस यया और दस सौने के पॉंड ले भ्राथा। और उसने एक चैक भी दिया, जिसके ऊपर कि एक अत्यन्त सम्मानित व्यक्ति के हस्ताक्षर थे।” एनफील्ड ने यह कहकर मि० अटरसन की ओर देसा] वरील अटरसन ने बहा, “मैं उस आदभी व नाम जानना चाहठा हूं जो उस अच्ची बे इस तरह कुचलकर चला गया था (/ एनफीड्ड ने हिचकिचाते हुए उत्तर दिया, “उस आदमी का नाम हाइड था।” अटरमन ने कहा, “यह जो मैं उस दूसरे आदमी का नाम नही पूछ रहा, जिसने अंक दिया था, इसत्री भी एक वजह है” एनपील्ड ने पूछा, “वह श्या ?” बबील ने उत्तर दिया, “वह सीघी-्सी वात है, कि मैं उस नाम को बल्पता कर राकता हूं, और मैं उसे जावता हूं ।” उग्र रात वकील बटरसन ने डा० हेनरी जेकिल कौ वसीयत को फिर बारीक नजरों से देखा। उसमे लिखा हुआ था कि जेकिल को मृत्यु के उपरांत उसकी सारी जायदाइ एश्वर्ड हाइड वो मिल जादी चाहिएं। लेकित उसमे यह भी छ्वर्त थी कि यदि जेकिस गायव हो जाए या तीव महीने तक, डिसी अशात कारण से ही सही, उसका पता न चले तो हाइड को चाटिए कि बह जेक्ल का स्थान तुरन्त ले ले) एटरमन घोचने लगा, “यह तो विलदुल पागलपन की सी बाते है !” और उसने अगीयत गो रणते हुए फिर सोचा, 'वही अपमानजनक-सो बात मालूप देती है ।' जेडिल का एक पुराता पित्र था शा० लेनियन | अटर्सन शा० लेनियन से मिलने गया तो उसको एता घला हि शा० लेनियन के सम्दस्ध जेब्ल से बदुत दिनो से टूट चुके थे। सेनियन ने ब्रा, “जेडिल जाते किस धुत में रहा करता था। मैं ठो उसकी बात गुछ मम नहीं शका। और इस हाइड नाम के व्यक्त जो तो मैं जानता ही नहीं । यह कौत है?” वील शटरसन का बौतूहल होते खथा। उसने उस अजीब सतत पर नजर रानी धुष्ट वो और बाफो देखभात के बाद उसे एक आइमी वहां मिला। उसे अजीव-से मंत्रान के दरवाजे पर उस आदमी ने अपना परिषय हाइड साम्र से दिया। यह साधारण दोटाना आदमी या। सादे कपड़े पहने था। पर के भीतर जाने से पते दोनों ने एक- दूसरे को घूरकर देखा) मुलावात के दौरान हाइड ने दवील शो अपना पत्रा दताया। डा जेटिस दे; भतबान से बाहर निकलने पए निकट ही एक मोह पर अटरशन वो बेविल का रसोएया शिल गया $ वह घर गए बहुत पुराना सेवक था; उसने दताया कि जेगिस पर पर नही थे और हाइड के हो पास घावटर के घोरा-फाशे र रनेवाजे द मरे थेः दरदाडे दी बाभी थी।'** इसके सगमग एक दर्ष शा द्ोलेंड में सतमनी एल गई । सर डेलवर्स कैस्यू बयों- बुद्ध दे औए उरी रिसीने दर्रतारो हहया शए टी थी। हस्वारा अपने छड़ो गो वी ० संसार के महान उप्न्‍याय छोड़ गया था, जहां उसने मार-मारकर केरयू की हत्या को थी। वह एक भयावक ह्च्य थी। जब अटरसन को यह पता चला तो वह तुरन्त घटनास्थल पर पहुंचा बयोडि सर केरयू उसके मुवक्किल थे। उसे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह छड़ी उसके पं चानी हुई थी। किसी समय अटरसन ने ही वह छड़ी अपने हाथों से डा० जेकिल को दी थी। इस बात ने उसके कौतूहल को और भी बड़ा दिया। वह तुरन्त हाइड के पत्र पर पहुचा। हाइड सोहो में रहता था और इस समय वहां से यायव हो चुका था। मकान में केवल चैक-बुक पड़ी मिली। और उसके अतिरिक्त वहां कुछ भी नहीं था। बैफ से जय दरियाफ्त किया गया तो पता चला कि हाइड के एकाउण्ट में संकड़ों-हजारों पड थे। उनको निकाल लिया गया था, पर इसके बारे में वैरुवालों को भी कुछ पता नहीं पा। अटरसन के प्रता करने पर उस्ते वैज्ञानिक जेकिल मिल गयां--वह अपने घर था में ही उसके चेहरे पर एक अजीव मौत की सी खामोशी थी। वह चीर-फाड़ करनेडाते कमरे के भीतर बैठा था। आग उसके सामने जल रही थी, जिसे वह ताप रहा था। उसती बात- चीत से यह भी प्रकट हुआ कि उसे इस भयानक हत्या के बारे में पता था । अटरसन ने कहा, “मालूम देता है तुम अभी इतने पागल नहीं हुए हो हि एग हत्यारे को दिपा दो ।” जैबिल ने जब यह सुना तो वह कसम खाने सगा और उसने कहा, "मैं हारे को नहीं छिप्रा रहा हू और अर उसके बारे में शायद कभी विसोकों सुनाई भी महीं देगा।" यट बटकर जेकिल ने वकौल के सामते एक पत्र रख दिया जिसके नीचे ह॒ाशए पे--एड्यड हाइड । ववीस ने देखा कि डा० जेकिल ने यह पत्र अपनी बात के प्रमाण में प्रस्तुत किया है। यरील पत्र को अपने साथ ले आया । उसने पत्र एक हा को शिसखाया। हस्तविधि-विश्ारदर की बात सुनकर उसे बड़ा आरवर्प हुआ। विशारर दा, “यह पत्र जेकित के द्वाब की विशादद से बहुत स्यादया मिलता जलता है। कि वरीत ने विटृर्कर पूछा, “क्या कटो हो ? हेवरी जेहिफ से एक हत्यारे कै दिए साली पत्र लिसा है ? यह ज॑ से हो सयता है ?” पिया के या शुद शित और बीत गए। एक दिल बतीण अटरगत ने डॉ» से के यह पटुचहर देखा डि बड़ा एड स्यतित बैंड था । उसके चेहरे पर जैगे औव भांक रण थी +.. सेनिदत ने उग ड्यविक ढी और दिखाते हुए जड़ा, “इस द्यति को की ई कह ग्रदमा पट ता था, जिससे बकता दटठ कडिन सा रहा था।” न्को अटरडत ने तेकिस की बात बताई । सेवियतन कार उरा और उसने करा, "उस बारे में मुख्से कोई बात मत करो ! दा जेहित इस शमार में नही है। वहमर बह हैह बात के करीद पच्दट दिल डे और लेतियत का देटाल ही गया |्ञ ॥$ असटरसन को टुइ़ पत्र मित्रा जो मृहरतन्द था । उससे मीडर सो हुकर दशा यो व विय! ! कदरीय क्ेजिस्न के की बड़े बड़ उसको जिया था। उस वेज है अल्दर एड और पट टिल्पर रिपः हुआ शचा-- “जद हड़ हेवरी जे टिक मर ने जाट, या साय मे ही ज १5 इन्सान था शैतान * (388४ सब तक इस पत्र को न खोला जाए।” जेकिल के रसोइये का नाम पूल था) वकील अटरसन को उम्के द्वारा यह ज्ञात हुआ कि डावदर वहुत तिदयश, गम्भीर ओर मौत रहा करता था। ऐसा लगता था जैसे उसके मस्तिष्क पर कोई भयावक भार ,आ गया था और अपनी प्रयोगशाला से बाहर िकलता उसने लगभग बन्द ही कर दिया था । उसका जीवन बिलकुल एकाकी हो गया था। एक दिन रविवार को एतफील्ड के साथ घूमते हुए अटरसन ने जैकिल को अपने अर की सिड़की पर देखा। उसपर जैसे असीम निराशा और उदासी घिर आई थी। ऐसा लगताथा जेंसे वह एक बहुत ही बेचैन बन्दी था ! दोनों घर के भीदर गए! डावटर को सैर पर चकने के लिए कहा) पर उसने इन्कार कर दिए।, औौर कचरूक ही उसके केहरे पर ऐसे भयकर आतक और निराशा का भाव आ गया कि वकील अटरसन और एनफील्ड दोनों का ही भय के कारण जँसे रकत्र जेम गया।** एक रात पूल अचानक ही बहुत घवराया हुआ सा अटरतन के घर जा गया। उसने कहां कि सात दिन से उसके मालिक उस कमरे में बन्द हैं और उनका कुछ पता नहीं बल रहा है। रसोइये की हालत वहुद ज्यादंं खराव थी। वह बहुत ज्यादा डरा हुआ था। उसने बहुत ही याचना-भरे हुए स्वर से कहां, “वकौल साहव, आप मेरे साथ चलिए।” अटरसन डा० जैज़िल के घर पहुंचा । सव नौकर बहुत ही डरी हुईं हालत में थे। चीर-फाड़ के कमरे में पूल के साथ प्रवेश करके अटरसन ने जब दरवाजा खटखटाया तो भीतर से आवाज आई, “मैं किसीसे नही पिल सकता । इस वक्‍त मैं किसीसे मिलता नहीं चाहता ।” द्वार नहीं खुला । तब वे लोग रसोई वी ओर चले गए । पूल ने कहा, “हुजूर, क्या यह मेरे मालिक की आवाज़ थी ?ै” वकील ने कहा, “यह तो बड़ी वदली हुई आवाज मालूम पड़ती थी।” पूल ने कहा, “मुझे ऐसा लगता है कि मेरे. मालिक की हत्या कर दी गई है (” “किसने की है १” वकील ने पूछा । पूल ने कहा, “उसीने की होगी जो वहां मौजूद है।” वकील ने कहा, “यह ऊंसे हो सकता है ? अगर उसने हत्या की है तो अभी तक चह वहां मौजूद क्यों है ?” पूल ने कहा, “जो भी उस कोठरी में बन्द है, वह दिन-रात किसी दवाई के लिए बुरी तरद भिल्लाता है। लेकिन जैसे उसे याद नहीं आता कि वह कौन-सी दवाई है ४ “तुम्हें यह बात कंसे मालूम हुई २” शर्त ने एक कागज निकालकर उसके सामने रखा और कहा, “इस कोठरो के चाहर फेंका गया था ।" वकील ने उसको पढ़ा । वह एक वडी दु खभरी याचना थी--जिसमे कहा गया चा कि वह पहले किसी “विशेष' प्रकार के नमक का प्रयोग करता रहा है, कपैर उसे उख नमक की और जरूरत है। वह पत्र जेकिल के नाम लिखा गया था, लेकिन उसवा लेख 4300 डर संगार के महान उाल्याव जैडिल की विसायद मे बहू कुछ मित्रा-जुतता था। पूल ने बढ़ा, “मैंने उमतो देखा है। वह मेरा मालिफ नहीं है। थे तो बड़े सखे और अच्छी शन्दुरुखी के ब्यीव है, और यह भीठरखारए तोवुछ बौदा-तए मदर आता धा।” सं्र सोग इफट्ठे हो गएं। अटरसन से कठा, “दरवाज़ा नहीं धुतरा, तो कोई पर- बाह नहीं । बुन्दाडा छे आज, और दरवाजा तोड़ दो।” भीतर से आपाज़ आई, “अटरगन, भगवात के लिए दया करो ।” अंदरसन पुकार उठा, “मद जेकित की आवाड नहीं है | यह हाइड की आवाज है ) पूल दरवाज़ा तोड़ दो ।” बुल्हाड़ा दरबाड़े से टकराया । भौरत से ऐैगी आवाड़ आई जैसे किसी जानवर में मयभीत होकर घीलार किया हो। दरवाजों गिर यया | एड आदमी का श्र बहाँ पड़ा हुआ घा। अब भी उसमें फड़क मौजूद थी और वह अत्यन्त विकृत हो चुका था। उमके पास ही जहर की एमी खाली पड़ी थी। उसने शरीर को सीधा किया । यह एंड वर्ड हाइड का धव था जिसने कपड़े डा० जेकित के पहन रखे थे। लेकिन डा" जेकिल का कही पता नहीं था। न उसकी साझ मौजूद थी, न वह वहां डित्दा ही था। तताश करने पर उसको एक काग्रज्ञ मिला । उसमें अटरसन के नाम एक वसीयत थी। तब अटरसल ने डा०लेनियनवाला वह पत्र खोलकर देखा, जिसे जेकिल के मरने या खो जाने के वाद ही खोलने की आज्ञों थी। उस पत्र ने सारी समस्या को मुतमा दिया। *“*एक रात हाइड बहुत दीले-डाले कपड़े पहने हुए लेनियन के दफ्तर में बहुत ही बेचन-सा पहुंचा था)। जेकिल उसके लिए कुछ देर पढले कुछ दवाई की पुड़ियां वहां छोड़ - गया था। हाइड इस समय उन्हीको लेने के लिए आया या। बड़ी उत्मुकता से हाइड ने उस पुड़ियां को ले लिया था और उसने पुड़ियों की दवाई में कोई तरल पदार्थ मिलाया था जिससे दवाई का बेगनी रंग शीघ्र ही हरा हो गया था ! उसने उसे एक ही घूट में पी लिया घा । उसके वाद उसने चीत्कार किया था। वह अपनी जगह लड़खड़ा गया था और उसका द्ारीर कुछ फूलने लगा था। ऐसा लगने लगा या जैसे वह बदल रहा हो, जैसे उसका शरीर फूल रहा हो | उसकी दाक्ल बदलती ज रही थी, जैसे वह्‌ कोई नरम घुलते- वाली चीज हो। लेनियन डर के मारे पीछे हट गया था । और तव उसने देखा भा, उम्के सामने स्वय डा० जेकिल खड़ा था ।*** * डा० जैकिल ने अपने बारे में जो पूरा बयात दिया पा, उसमें साफ लिख दिवाधा कि उसने एक ऐसा नमक ईजाद कर तिया था जो उत्ते अत्यन्त सम्मावित, दबा विज्ञान के प्रवीण प्रमोगकर्ता की जगह मि० हाइड नामक भयानक शैतान बना देने वी सामथ्ये रखता था। ज्यों-ज्यो वह नमक का प्रयोग करवा रहा, हाइड का भयावक कर उसका अपना स्वाभाविक स्वरूप वन गया । लेकिन एक समय ऐसा आवा कि उत् बह नमक नही मिल सका, जो उसे कभी-कभी जेकिल बना दिया करता या। उ्त समय आत्महत्या के अतिरिक्त उसके पास कोई और मार्ग नहीं रहा ) इन्सजगाशेदल श्र इस उपन्दाय में स्टीवेन्चद ने दिशात के विकास पर परोक् रुप से ध्यंग्य किया है। देखने में पह एच रहस्पनभसे कहानी-मात्र हो दिखाई देती है, छेफिन इसके चोछे च्यक्तत्द के दो द॒र्पो का सनोवैज्ञानिक विल्लेषण भी है। एक पहूकि विज्ञात को सामस्य मनृष्य झो सम्वतता का नाश करतो है, ओर दूसरे यह कि आवि- घर के पोछे को महत्त्वाकाक्षा जेते अपने भीतर एक पुनीत अवधारणा दिए हुए न हो ठो बह मदश्य हो मनुष्य को लिकृष्ट पय को ओर ले जाती हूँ इसी> छिए इस उपन्यास ने अपने दुप में इतना अधिक प्रभाव डाला था। इसमें एृष्ट रोमांचक दातादरण प्रारम्भ से अंत तक रखा गया है और व्यक्तित्व के इव दफमें डटुत हो भुर्दरठा से अपना निर्वाह कर सके है । भोपासोी $ एक ओरत की ज़िन्दगी [यूने बी* ] मोपासा, गाय द : फ्रेंच कथाफार मोप्रासों का अन्‍्म शक सस्पान्त डुल में हुआ। भाषका परिवार भमिजात बुलीन या । ध्रास में सेनइक र्‌ यूरे नामक स्थान के निकट आप ४ भगस्त, १८५० को पैदा हुए। भापड़ी माता का टपन्यासकार कलाबेयूर से अच्छा परिचय था । मोपासां पर फ्लॉदेयर का सादिश्यिक प्रमाद बदुत अधिक पढ़ा ! प्रारम्भ से ही मोझ्रसां को रुचि साहित्य की भोर हो गए । बड़े होने पर पेरिस में जन सेवा-विभाग में झापकी निधुक्ित कल्के के रूप में हो गई। कको-प्रशिवन दुद्ध में आपने काम किया | इसके उपरान्त भाप कविताएं और कहानियां प्रकारित कराने लगे, जिनमें निराशा की गइरी माबना थी और लेतिक भावना का एक अमाव भी या। ओपामां का बौद्धिक संतुलन थीरे-घीरे विनप्ट होने लगा भौर १८६२ में आएका दिमाग बिलेकुल खराब हो गया । ६ जुलाई, १४३३ को शापक्रौ एक प्रगचसाने में गृलु दो गई | भाष मुख्यतः कह्ानीकार के रूप में ्रसिद्ध हैं । किन्तु उपन्यात्त के छेत्र में भी आपने विख-सादित्य को अद्दितीय रचनाएं दी हैं । 5 “यूने वी” (एक औरत की जिन्दगी) (८८३६० में प्रकाशित हुआ था | यह झापडा अत्यन्त विश्यात उपन्यास है | जीन ले परष्यू रूयून में अपने घर लौट आई। वह अपने कॉन्वेंट की शिक्षा समाप्त कर चुकी थी। वह बहुत सुन्दर थी--अट्ठारह साल्र की एक सरल वातिका । प्रड्ृति का सौन्दर्य उसपर गहरा प्रभाव डालता और उसको भाबुक बना देता । अपने माता-पिता के निकट आकर एक थार फिर उसमें जीवन के आनन्द की हिलोर लहराते लगी। परिवार का पुराना सकान नॉर्मेन समुद्र तट पर था। उसको पोपलजज कहते ये। उसकी वड़ी इच्दा थी कि वह वहां जाए और आनन्द से अपने दिवस व्यतीत करे । जीन गांव आ गई । यहां एक स्वतन्त और आननन्‍्दमव जीवत आरम्भ हैआ। देहात की हवा में ताज़गी थी ! सदरू के फूलों की सेगत्थ उस एकान्त स्थात में सुमराया करती थी और जीन विभोर होकर वहां घूमा करती थी। जाती समुद्र दूर तक फँला हुआ दिखाई देता, उसकी लहरें बातीं और बिखर जाता। फेन-राशि पीछे लौट जाती । क्षितिज तक आकाश को देखते पर भी उप्की आंखें दत्त नुवार हो चुका है: विवय चौदाना १, एए८ एए८ (5प५ 06 8(६छ9855390)--इस उपन्यास का दिन्दी झः “शक औरत की शिन्दगों४ अनुवादक : श्री शिरदानसिंद चौदान शव ओमती प्रकाशक + राजपाल एण्ड सन्त, दिल्ली | एक ओरठ की डझिस्दगी १५१ हीं होती | घटी तक णुकान्‍्त में वह बैठी समुद्र के गहन गर्जन को सुना करती। उसके पता बैए्न थे जो कुलीत थे। उन्हे मपने काइतर्ारो को सुखी देखने मे घड़ी दिलचस्पी )ै) खेत की उन्नति कंरना उन्हें बहुत रुचिकर था। उनकी पत्नी वैरोनेस अस्वस्थ रहा रती थी। उसके दिल पर बड़ा जल्दी असर हो जाया करता था, इसलिए वह लम्बी यात्रा ँपक्ष में नही थी । घर के आस-पास ही घूम लिया करतो थी। जीन की एकमात्र मित्र ग्े--एक किसान की लड़की रोडाली। दोनों की एक ही उम्र थी। रोजाली उनके घर । काम किया करती थी, लेकिन उसे ऐसे पाला गया था जंसे वह जीन की वहन ही हो। 'क दिन पादरी पिकी देरोनेस से मिलने ाया। यह एक स्थानीय पादरी था । यद्मपि रन और वैरोनेस दोनों ही कैथोलिक मत का प्रतिपालन कठोरता से नही करते थे फिर शी पादरी से उनकी मित्रता थी। पादरी उन्हे गिरजे मे आने को कह गया । इतवार आया । मां-बेटी दोनो गिरजे गईं! गरजे मे सामूहिक प्रार्थना समाप्त [ई। पादरी नै इन लोगों का परिचय वाईकाउष्ट जूलियन द लामार नामक पड़ोस के के तरुण अभिजात कुलीन व्यक्ति से कराया। उसके परिवार की जो कुछ सम्पत्ति शेप पी, वह उसीपर गुजारा करता था और बहुत ही किफायत से अपनी शिन्दगी गुजारता दा। झौन के मात+-पिला को वह व्यक्ति पसन्द आया। उसकी बोल-चाल, रहन-सहन, उसके परिवार का नाभ--सब डुछ उनको अच्या लगा और उसका सुन्दर भुख, सुडौल शरीर उन्ही को नही, जीन के हृदय में भी अपना प्रभाव डाल गया । अब जीत अपने पिता की नाव में जूलियन के साथ इधर-उधर के कस्वो तक धूमने जाने लगी। बडे आनन्द से जन-यात्राए होती । श्ञाम को पोपलज्ज के निकट जब जीन उसके साथ घूमती तो प्रेम की सुर कल्पता जैसे साकार हो उठती और उसके मत में प्रा हुआ बहुत दिनो का एक मधुर सपना जैसे जीवित हो उठता । जूलियन ने एक दिन बैरन से निवेदन किया कि वह जीन से विदाह करना चाहता था । जीन इस बात क्यो सुनकर अत्यन्त प्रसन्‍्त हो गई! माततपिलए को कोई विरोध तहीं था इसलिए रूगाई हो गई और शादी का दिन भी तय हो गया और विवाह के उपलक्ष्य भे कौरसिका नामक स्थान पर जाने की योजना भी बना मी गई विवाह में जोन को तरुण चाची लिसों एकमात्र अतिथि बनकर आई । लेकिन जीन को किसी ने भी यह नही बताया था कि पत्नी के कर्नेब्य बया होते हैं। माता-पिठा ने कभी उसे इसकी शिक्षा नही दी कि एक पति अपनी से क्या आशा कर सकता है ओर उसके सम्बन्ध क्या होने चाहिए, इसलिए सुहागरात को अपने पति के साथ रहने पर उसको विचित्र-सा धक्का लगा ! उसकी कोमल भावुक्तताएं जैसे सडित हो गईं। गह सब कुछ वह जानती ही नहीं थी ओर उसे यह सब बडा कुरूप और अनगढ-सा दिखाई दिय्रा। दिवाह के उपरान्त वे लोग जब यात्रा में चले तो उम्रका पति उसके प्रति जो अनु- रेवित दिखाता, जीन को उस सदसे घृणा हो आती और वह बेचल-सी भवराने लगती । दे लोग कौरसिका के देहाई को ओर चल पड़े और यात्रा के दिनो मे पर्वेतों और कन्दशाओं कै अबिय प्राकृतिक सोन्दर्य को देखकर जीव का हृदय बत्यन्त प्रभावित हुआ। उसको चेदाएं जाग उठो और अपने पौत के आवेग का प्रत्युत्त वह स्नेह से देने लगी । लेकिन जव वे लोग पोपलबज में लोट आए तो जूलियन मे एक विचित्र उपेक्षा छा श्र संसार के महान उपन्यास गई। उसे लगा जैसे जादू उतर गया है और जैसे जीन भी रिक्त हो गई है। दैनिक जीवन की उबा देनेवाली गतिविधि में जीन का मन ऐसा हो गया जैसे कि इद्धजाल उप्के ऊपर से उतर गया, कुछ वाकी न रहा । उसे लगता क्वि उसकी किसी वा में दिलचस्पी नहीं रह गई है, जिसमें मद लगाकर वह अपने-आपको मुला सक्के, अर्थात्‌ जिसमें उसे आतत्द मित्र सके। उसे ऐसा लगता था जैसे कि जो कुछ हो रहा है, उसे होने देना चाहिए--वह तद होने ही के लिए है। जूलियन अब फिर अपने फार्म के पास आ गया था और छोटी-दोगी किफायतें करना उसने प्रारम्भ कर दिया था। बेरन देखते तो उन्हें कुछ मनोरंजनन्सा होता ५र जीन कभी-कभी इससे चिढ़ जाती । वे पड़ोसियों से मेल-जोल बढ़ाते सगे। वर्ष समाप्त होने के समय जीन के माता-पिता मे निश्चय किया कि वे अब रुयून लौद जाएंगे। उनके चले जाने पर जीन को उदासी ने घेर लिया। उसके लिए जैसे जगह वदप्त गई। जब रोजाली भी बहुत पहले जंसी नहीं रही । वह अस्वस्थ थी और उसके जीवन में दस ही दु.ख था। एक रात जीन ने देखा रोज़ाली शयनगृह में फर्श पर पड़ी कराह रहो पी। उसके उसी समय एक बच्चा पैदा हुआ था। जूलियन को जब॑ इस बारे में पता घरतता, वह क्रोध से भर गया और दोनों को उसने वहां से निक्राल देने के लिए तुरन्त जोर शिता। जीन पूछ-पूछकर हार गई, लेकिन रोडाली ने बच्चे के पिता का माम नहीं बताया । कई हफो बीत़ गए। एक रात जीन को यह पता घला कि रोजाली का प्रेमी जूलियन ही था। इस सबर से जीन को ऐसा सगा कि घरती उसके पांव के नोचे से सरक गई है। उसके मस्तिष्क का सतुलन बिलकुल बिगड़ गया। उसने जल्दी से कपड़े पहने भौर समुद्र की ओर माग चसी । बाहर बफ पड़ रही थी । जूलियत उसके पीछे भागा । भन्‍्त में उसने जीत को पकड़ तिया। चट्टान के ऊपर सड़ी वह मीचे कूदने को तैयार पी और मुर्री तरह घक चुकी थी। यफं ने उसे बीमार कर दिया । जरा उसकी बौमारी की खरए छसके माता-पिता को पहुंचीं तब ये सोग मिलने आए। जूलियन ने अपने को निएपराए घोषित हिया। तब जीन ने निश्चय किया कि रोडाली से असली बात का पता का जाय। पादरी को युलाया गया । पादरी के सामने रोडाली ने अपना बयान दिया हि ५ पहनी बार जूलियत पोपलऊ्ड में आया था, तभी उसते उसपर अपने डोरे डाल दिए और बच्चा उसीका था। वैरन ने रोजाली के लिए परच्चीय हजार पैड वी कीमत दी फार्म अल निदिचित करना स्वीकार कर लिया और पादरी ने उगडे लिए पतिदूलिरा उत्तरशकित्व विया। हस्हीं दिनों जीत को ज्ञाव हुआ कि बह गर्भवती है। गे उगे 5 मे बाद पीरे-घीरे जैसे कुछ टीक होते लगे ॥ अपने जीवत वी जिदती भी विवि रा दविरोध थे उत सव॒को उसते दिया बदतऋर अजन्मे शिशु कं ओर 04785 मौरह दापह का जन्म हुआ, उसने अपना सारा प्यार उगी पर बेखित कर हि! इस बीच उनके मित्रों का समुदार बढ़ता सवा था। पहोग में ही गे है डगटघस द छोरवीफ रही थे। जुतियत की उठते बहुत अधिह मित्रता हो हा ! बा ही जैसे टसे बदूठ सुख देते थे और जीन के ब्रति दोनों ही ५ घ्यात बदूत अह लेडित शुजिदत को आपने बुत याद में कोई दिफिकरी सी थी ! दुबर पिदये शितोंसे जूतियत झुछ बदप दवा था। जीत होपश 545 एक अपरित की जिन्दयी र्श्रे जूलियन और काउप्टेस द फोरवील में परस्पर प्रेम-व्यवहार चल रहा है । दोनों ही घोड़ों की पीठ पर वैदकर देहात मे घूमने जाया करते थे। एक दिन जीन मे भी उन लोगों का पीछा किया। दोपहर ढल चुकी थी और थोड़ पर बैठे हुए जोन ने देखा--जूलियन और काउस्टेस के घोड़े एक एकान्त कुज के निकट बचे खड़े थे, किन्तु प्रेमी और प्रेमिका दीस नही रहे थे। उन्ही दिनों जीन की मां पोपलर्ज की ओर लौट गईं ) अकस्मात्‌ उनको दिल का दौरा हुआ और दे मर गईं। जीन के लिए यह एक नया आघात हुआ और अब वह अपनी मां के पुराने पत्रों को पडकर उस दुख को घटाने का प्रयत्न करने लगी। मां के पश्नों को पढ़नेयढ़ते उसे यह्‌ जानकर बहुत ही दु ख़ हुआ कि अपने जमाने में स्वयं उसकी मा का भी बै रन के एक पुराने और बहुत अच्छे मित्र से प्रेम-सम्बन्ध रहा था। एक दिन पोषलर्ज के हरे-भरे लॉन पर ग्रभीरतापूर्वक चहल-कदमी करता हुआ काउपष्ट द फोरदिल जीन के पास आया। उसके मुख पर एक कठोर भयानकता थी। जीन उमझो देखकर ही समझ गई कि शायद उसे जूलियन और अपनी पत्नी काउण्टेस के प्रेम- सम्बन्ध का पता चल गया है। जीन उसे अभी कुछ कह भी नही पाई थी, कि वह उन दोतो--काउप्डेस और जूलियन को फिर दूढ़ने चल पडा ।*** णाड़े के दिसों में गड़रिये और चरवाहे बर्फ से बचने के लिए चरागाहो मे भोपडे से बना लेते थे । ऐसे ही एक भोंपड़े के पास काउप्ट को दो घोडे दिखाई दिए। काउण्ट ने छोषड़े के अन्दर भांका। दोनों प्रेमी केलि-श्रोड़ा मे मस्त थे। काउ्ट के क्रोप का पाराबार ने रहा। प्रचड़ उन्माद से भरकर उसने ओोपडे को सरकाना शुरू किया। पाउष्ड बहुत ह्टा-कट्टा था, अतः भोंपडे को एक चट्टान के ऊपर तक खीच ले जाने में सफल हो गया। चट्टान के ऊपर से उसने ओोपड़े को युगल-प्रेमियों समेत एक गर्त में नीचे इरेल दिया। किसानों ने जब मीचे के चकनाचूर मोंपड़े को देखा तो उन्हे बहुत भोचे खड्ड मे जूलियन और काउप्टेस के शव दिखाई दिए। इस घटना के बादजोन ने अपने सारे जीवन को पॉल की देख-रेख में लगा दिया। उसने उससे इतना इलार किया कि लाड़ ने उस बच्चे को विग्राइना शुरू कर दिया। उस बच्चे के माता अर्थात्‌ बेरन और चाची उस की छोटी से छोटी इच्छा के दास बने गए और स्वमावतः ही इसका परिणाम अच्छा नही हुआ । जव वह पन्दह साल का हुआ तब शिक्षा के लिए उसे बाहर भोजने की बात उठी | जीन ने कमी इस वात की कल्पना भी नही की थी कि शिक्षा के लिए उसको दूर भेज दिया जाएगा। वह सदा उसे अपने गम रखना चाहती थी । उसकी राय यह थी कि उसको दूर क्यों भेजा जाय। यही गाव में पद़ा-लिखाकर सैती-बाड़ी सिछाई जाए और वह एक इक्डतदार जमीदार वनकर अपना जीवन व्यतीत करे। लेकिन वैरन के मत मे ऐसा ठीक नहीं था। बंरन को राय थी कि पॉल को कालेज भेजा जाय और अन्त में जीन को इसे स्वीकार करना पड़ा। कालेज मे कमरा साल खत्म कर लेने पर पॉल का पोपलस मे आना धीरे-धीरे कम हो गया! अब उसके “नये दोस्द हो गए थे। उसके आदठन्द के लिए नये विलास-मरे साधन इक्ट्ट होने लगे शर्ट संसार के महान उपस्यास थे। इससे पहले कि जीन इस परिवर्तन को देखती, तव तक वह बढ़-चढ़कर पूरा आदमी बन गया था और और अब अपने से दुलार करनेवाले परिवार के प्रति उसती अनुरकति बहुत्त ही कम हो गई धी ) चौथे राल उसने जीत को बिना सूचना दिए ही कालेज छोड़ दिया। उसने एक रेत भी रख ली थी। आगामी कुछ सालों में परिवार से उसका पत्र्यवहार केवल इसलिए हुआ बयोंकि उसे बार-बार धन की याचना करनी होती थी। वह अब काफी बड़ा हो गया था। बह अपनी विरासत को देसने के लिए छः महीने में कमी-कमार आता। उसके ऊपर बहूत- से कर्ज हो गए थे। उसका नाना अपनी जायदाद को वार-वार गिरवो रखते लगा, ताकि पॉल को किसी प्रकार बचाया जा सके। पॉँल पर एक बार इतना कर्जा हो गया हि उसको चुकाने के इन्तज़ाम में वैरन की मृत्यु हो गई । जीन तेज़ी से बूढ़ो हो रही थी। उसकी आमदनी करोव-करीब खत्म हो चुकी थी। पॉल की रखैल के प्रति उसे घोद घृणा थी। यह घृणा उसे मन ही मन खाए जा रही थी। अब उसका मस्तिष्क केवल अतीत की ओर दौड़ता ओर वह वर्तमान में रहना भूल गई थी ! पुरानी कल्पनाओं में ही वह अपने-आपको उलभाए रखती और उपर जीवन एकाकी हो गया। एक दिन रोज़ाली पोपलजं में लौट आई। जीन ने उसे देखा तो उसे बहुत बानन्द हुआ। रोजाली ने जीन के हिसाव-किंताब अपने हाय में ले लिए और कहा कि जो कुछ बचाया जा सके उसको कड़ाई से वचाना चाहिए और उसने उससे स्पष्ट क दिया कि पोपलज्ञज को वेच देना चाहिए। जीन इस विचार के पक्ष में नहीं थी, लेति उसने इसे स्वीकार कर लिया, क्योकि मजबूरी थी। वह रोजशाली के साथ कुछ दृर प एक छोटी-सी कोठरी में रहने के लिए चली गई) वह पॉल से मिलते के लिए पेरिस में गई । लेकिन वहां पॉल की जगह अपना कर्ज वसूल करनेवाले लोग उसको मित्र गए अन्त में जीन ने यही निश्चय किया कि वह पॉल से मिलने भी महीं जाएगी। भी उसने यह विचार किया ही था कि उसको यह सूचता मिली कि जिस स्त्री से पॉल ने प्रेम ह्रिया था वह एक बच्चे को जन्म देकर बीमार पड़ गई थी और मरतेवाली थी। रोड़ाती तुरन्त पेरिस गई, ताकि बच्चे को ले आए और उसके माता-पिता का विवाह करा दे। अगले दिन सूचना आई कि पॉल की रखंल मर चुकी है और वह घर आ रहा है। बैक वर्षों के वाद जीन को प्रसन्नता हुई] ० रोजाली ने जीन से कहा, “देखती हो, जीवन न तो उतना बुदा ही है, वे उतना अच्छा ही, जितनी कि हम कल्पना करते हैं ।” हृ प्रस्तुत उपन्यार में मोपासां ने जीन के माध्यम से मनुष्य-जीयन के 2070 को चित्रित किया है । इस संसार में मनुष्य की कल्पना अपने व्यकिंगत डायरों भीतर यतती है, दिल्‍्तु यह आवश्यक नहीं है दि हुए ध्यक्ति उस बल्पता है मद ही घलता रहे। एक-दूसरे के आतन्दों की कह्पता का संघर्ष हमारे दैनंदित वरिरिपतियाँ सें उतरता रहता है और हमारे युस-डुःख की भावना से हमारी पर जन्म छैती है, डिन्तु परिस्थितियां उनका निर्माण भी करती चलती हैं। झोंस्कर घाइल्ड : अपनी छाया [द पिक्चर झॉफ डोरियन ग्रे ] अरकर बाइहइ : आपका पूरा नाम ऑस्कर छिंगाल भो! फ्लाहटी विन्स बारह था । पर भाप भॉस्कर वाइह्ड के नाम से ही प्रसिद ये। आप एक असिद्ध सर्जन के पुत्र ये | आपको माता कंबयित्री थी । आपका बन्‍्म दरलिन में १४ भक्तूवर। १८५४ को हुआ । ट्रनिती कॉलेड और ऑॉक्सफरोई में कलासिक्स हवा कविता में आपको दिग्खिरान मिला । उन्नौसबीं शताब्दी के अन्ठिम दराक में हब्दन में 'सौन्द्रये-बादी' भान्दोलन के नेता के रूप में भापते रदुत भषिक यरा झर्मित किया । झाए अपने समय में भत्यन्त विस्यात ये।_ आपकी वाकु'चतुरहा से लोग बहुत प्रभावित ये । भाष कवि, उपन्यासवार और नाटककार थे | किस्तु भापने १८१५ में समाज क्ले भैतिक नियमों का उल्लंएन कर दिया, इसलिए भाषका सामाजिक सम्मान गइरे पक्के छे कारण लड़खपा गया भौर दो वर्ष के; लिए ऋापको कही सड| मिली । ३० नवम्बर, १६०० को पेरिप्त में घापकी मृध्यु हुईं। भास्कर माइल्‍्ड भपने समय के प्रदुद विचारफों में से भीथे। *द फिर भोफ शोरियन प्रे! (भपनी छापा) भाप का एक अ्रसिद्ध उपन्यास है| यह पहली बार १६६० में प्रकरित हुघा । लादं हेनरी बोटन दीवात पर लेटा हुआ था। स्टूडियो में गुलाबों की मघुर गन्प भरी हुई थी । दीवात के कौने पर हुआ साईं बोटन मथुवर्णी कुसुमो के गुध्यों दो उपबन के पद्धपों पर लिखते हुए देख रहा था। मघुमवियर्या णुजन कर रही थी। चारों ओर एफ तिल्‍्लब्पता छा रहो थी और ऐसा सयता था जैसे कोलाहल हिसी स्वष्न-सोक मे जाकर निद्धित हो गया था। भौने-भीते सुरभित कुसुम यालोड्ति पदन पर भूम बदते थे और रटूडियो में उरी पस्ष दायु पर देकर धीरे-पीरे से भह-रह छाती घी। किन्तु मह निस्तम्पता साई बोटन हो भातो भारागस विए दे रहो थी। कमरे के मध्य मे एक असाधारण सौन्दर्य-युक्त ध्यक्ति गा चित्र था। निरसस्देद वित्र वा स्यक्ति युवक था और उसको देख- हर आस जेगे दृप्त हो जाती थी | बिठ दे रूग्मुख देसी हारदई नामक वचित्रवार बैदा घा। बैगीस गुछ् दिनो पहले अचागक ही गायब हो गया था। उसके बारे में सोगों में दड़ा बोलू- हूत वैद्य हो यश था; और उसके लिए सोय रहस्पात्मक दाब्शे का प्रयोग रिया बरदे थे १. प्रारधपलाएर ज॑ 00तंउत्र 079) (05८0० ४४१9९0)--कप गल्‍न्‍य'म डा हिन्दी घनुरार, ३: (| चुक्‍। है--“घपनी दादा: झतुष्द$--राम-ु मारा प्रराशक>राज्या इश्ट्ट सन, दिह्छी । पु १५६ संसार के महान उपन्याव लाई हैनरी ने कहा, “देसील, कया यह तुम्हारा सर्वश्रेष्ठ चित्र है ? तुम्हें इसको ग्रोस वीकर के पास भेज देना चाहिए।” ह वैसील ने कहा, “इसको मैं कहीं नहीं भेजूगा--मैंने मानो इसमें अपने-आपको ही उडेलकर रख दिया है। इस चित्र में मैं इतवा अधिक उतर आया हूं कि इसे कही भी भेजना नही चाहता ।” और तब चित्रकार वँसील ने बताया कि चित्र के युवक वा नाम डोरियन ग्रे था। जिस समय उसने उसे देखा था, तभी उसपर जैसे एक जादू-सा हो गया था । उसने जैसे उसे पराभूत कर लिया था अपने सौन्दर्य से । उसको देखकर बैंसीत को लगा था कि उसका चित्र बनाने के लिए, कला की एक नई अभिव्यक्ति, उसके अपने व्यक्तित्व को सराबोर करके, अपने-आपको प्रकट करने की देप्टा कर रही थी । वह इसमें सफल भी हुई। और उसके बाद चित्रकार ने कुछ उदासी से कहा, “लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि मैंने अपनी सारी आत्मा उड़ेलकर एक ऐसे व्यक्ति को दे दी है जो उसका मूल्यांक्‍त तदनुरूप नहीं करता। उसके लिए मानों यह एक कोट में लगाने के, मात्र एक फूल के समान है।” चित्रकार ने लार्ड हेतरी की ओर देखा और विनीत स्वर में कहा कि बह उसके मित्र के सादे और मधुर स्वभाव को वियाड़े नहीं। क्योकि बह जातता था कि लाडं हेनरी बोटन प्रत्येक वस्तु के प्रति एक उपेक्षा का भाव रखता था और अविश्वास- भरा व्यग्य उसके होंठों पर थिरका करता था । अभी वे लोग बातें ही कर रहे थे कि डोरियन ग्रे के आने की सूचना मिली । लाई हेनरी बोटर ने देखा कि डोरियन के होंठ गुलावी थे--स्वच्छ | आांजें नीती थीं--निर्मेल। केश कोमल और स्वर्णिम थे। और लाई हेनरी को लगा कि यह एक पवित्र यौवन था; अभी इस पर किसी प्रकार की कलक-कालिमा का प्रभाव नही पहता था। के वित्रकार अपनी तूलिका लेकर पुनः मग्त हो गया / डोरियन लाई हेनदी से बर्त करता रहा। लाई हेनरी ने कहा, “किसी भी प्रकार की लालसा से मुक्त होते के लिए आव- इयक है कि एक बार उसके सम्मुख समर्पण करके उसको प्राप्त कर लिया जाएं | और तृष्ति हो जाने पर मन में अवश्य ही अतुरक्ति का स्थान विरवित ग्रहण कर लेगी पा वि इस वाजय ने जैसे डोरियन ग्रे पर अपना प्रभाव दिखलाया। ऐसा लगा हियई घ्वनि उसके हृदुतत्री के तार को बजा गई। साडे हेनरी ने डोरियन को यह भी कहा कि जब उसे सौन्दर्य मिला है हि हो जो अवश्य ही उसका सम्पूर्ण उपमोग करना चाहिए, क्योकि यौवन सदेव र्थिर नहीं रद वस्तु की सार्थकता उसके नियोजित भोग में है, उसके सापेक्ष सम्ब्षों में है। बयोड़ि स्यवितस्व अपने-आपमें ठव तक पूर्ण नही होता जब तक कि प्राधिव रुप तृत्ति की ब्रतुः मूतियों के माध्यम से अपना सम्पूर्ण उपभोग नही कर लेता | चित्रवार ने पुकारकर बहा, “सो, मेरा चित्र समाप्त हो गया।" बा तीनो ने उमर अत्यन्त सुन्दर कलाइति को देखा । डोरियन दे ने धीरे मे बुरतशः बर बदा, “यह कितने दिया का विषय है, बुढ़ापा आएगा और मेरे इस रुप को डुहयाा अपनी छाया १५७ ग्रस जेगी ! किन्तु यह चित्र कभी वृद्ध नही होगा । अगर मैं सदेव युवक ही बना रहू जो कि असम्भव है, तो सम्भवतः मेरा सौन्दयं नष्ट मही होगा । उस अवस्था में मेरे जगह भैश यह चित्र बृढा होदा चला जाए तो कंसा विचित्र हो। इसके लिए मैं अपती आत्मा तक को बेचने के लिए तैयार हूं ।” डोरियन विशाल सम्पत्ति का स्वामी होनेवाला था। उसकी माता एक अत्यन्त सुन्दर स्त्री थी । कुलीन परिवार की होते हुए भी बह एक बहुत साधारण व्यक्ति के साथ भाग निकली थी | उस व्यक्ति और उसके पिता का द्द-युद्ध हुआ। पिता उसमें मारा गया, और माता भी अधिक जीडित नही रही | उसको उस दूसरे व्यक्ति ने पाला। डोरि- यन उसके साथ-साथ नाटक देखने जाता। भोज में सम्मिलित होता। किन्तु जब उस व्यक्ति को यह ज्ञात हुआ कि डोरियन एक छोटे थियेटर मे काम्र करनेवाली सत्रह वर्षीय अभिनेत्री सिविल बैन के प्रेम में पड़ गया है, तो उसने रोप प्रकट किया। लाई्ड हेवरी बोटन को जब यह सब ज्ञात हुआ तो मन ही मत एक विचित्र भावना ने जन्म लिया । डोरियन ग्रे अपने मित्रो को लेकर थियेटर में जाता। जब उसकी अभिनेत्री से सगाई तय हो गई तो बह अपने मित्रों को लेकर उसका भ्रभिनय देखने गया । अभिनेत्री उसको “जादूगर राजकुमार! कहा करती थी, बधोकि वह उसमे बत्यन्त प्रभावित थी। इस बार वह घुन्दर अभिनय नही कर सकी । डोरियन ने देखा कि पहली थार बह अपने काम में असफल हो गई थी। डोरियत को धक्का लगा | वह उसको सौन्दर्य और कला की देवी मानता था। जब उसने इस विषय में अभिनेत्री से प्रश्न किया तो सिविल वैन ने कहा, “रंगमच मेरे लिए अब वास्तविकता और यथार्थ का प्रतीक नही है।" डोरियन ग्रे आहत-सप कह उठा--सुमने मेरे प्रेम की हत्या कर दी है |” और उसको रोते हुए छोड़कर चला गया । जब वह घर आया और उसने अपना चित्र देखा ता उसके मुख पर एक निष्दु रता की भावना उदित हो आई थी | चित्र देखकर उसे आश्चर्य हुआ ॥ उसने दर्पण में अपना पुल देखा--बढी आकृति थो, वही मुद्रा थी, सब कुछ वैसा ही या। कुछ भी परिवर्तित नही हुआ था । किन्तु चित्र में अकस्मात्‌ हो एक ऐसा परिवतंद आए गया था। और तभी उसे अपनी चाहना की याद हो आई जब उसने कहा था, “मैं ऐसा ही बना रहू, और जितने भी परिवर्तन हो, वे सब इस चित्र में ही हुआ करें।' इस विचार ने उसके हृदय को घक्का पहुचाया; किस्तु उसने अपने मन को यह कहकर सात्वता दी, 'में निष्ठुर नही हू । यह लो सिविल दैन का अपराध है ( अगले भध्यात्न की बेला मे उसने सिविल को क्षमा-याचना करते हुए एक पत्र लिखा। किन्तु इतने मे ला्ड हेनरी बोटन ने उसे सूचना दी कि सिविल मे विष खाकर आत्महत्या कर लो है । “अच्छा ही हुआ ६” लाई हेनरी ने कहा, “वरना वह छुम्हे बिलकुल उबा देती ।/ डोरिमन को लगा कि उसड्े इस वख़प में दुछ तस्य अवश्य है उसने मह अनुभव किया कि वह लाई की दात से सहमत है। यह दु ख-भरा अ्रकरण विलकुल नाटकीय ढग से हुआ था । स्वयं डोरियन ग्रे उसका एक भाग था, इसको डोरियव को एक विचित्र अनुभूति रश्द संसार कै मद्ात उप्यान हुई, और मृस्क री हुए उसे विए पर एक पड झात दिया। अब यद़ उगही माया है लिए एक देपग कै शमात हो येगे। जो वरिवानि उगके विए बाह्य रुपमें अप्रकट ये उनको बड़ें इग लिप में देख सकता था । मगते दिल सरेदे विश्रह्ार बैंगत उसडे परम आया। उसने डोरियन को किर माँदल बलने के लिए कहा । जिल्नु डोरियन ने चिपरार को यह विप देशने की भी आजा सहीं दी । विजार से डोरियन की ध्रथया मैं बढ़ा हि डोरियम उसी कल्पना में एड आइशं पुरुष है। उसने उगके सौन्दर्य के रुप में बाती कल्यता को सावार कर लिया है। सेरिन डोटियन किसी भी तरह उगके लिए हिट मे माल यनफर बैठने को तैयार महीं हुआ। विव्रकार के भले जाने के बाद डोटियन ने विपर वो उद्य लिया । उपरके धर में ऊपर की संमिए में एक कमरा था जियका कोई प्रयोग महीं होता था । उसने उस सितर को उस कमरे में पहुंचा दिया और दरवाजा बद्द करके ताला सगा दिया साईं हेतरी बोटस ते डोरियन के पास शक उपन्यास भेजा । यह पेरिस के एक सुवक की कहानी थी । पेरिस के इस युवक ने जीवन के विचित्र अनुमद विए थे। अठीत की धताररी में पाप और पुष्य बी सारी मायनाओं को अपने अनुमव में उतारने के लिए उसने जीवन की समस्त वायनाओं को अपने ऊपर सेल जाने दिया था। यह एक विपराकत वारनात्मक पुस्तक थी । डोरियन पर उसका जादू कय सा प्रमाव हुआ ! वर्षों तक वह उरासे प्रभावित होता रद्वा । उस्ते ऐसा लगता जैंसे वह उसदाा अरता ही जीवतल्वरति था--और वह जब पैदा भी नही हुआ था, जब उसने उमर जीवन को जिया भी नहीं या, तभी मानों उसको लिस दिया गया था । डोरियत के अदुमुत्त सोन्द्य और उसके मुख की पवित्रता आज भी उसके साथ थी। ऐसा लगता था जैसे उसमें कभी कोई परिवर्तन नहीं आएगा। लेकित लक्दत में उसके थारे में तरह-तरह की अफवाहें उड़ रही थीं। हर बुरी घटना से लोग उसे सम्बद्ध करते थे । वह कई दिनों तक धर से गायव रहता, रहस्यमय तरीके से इघर-उघर विवरण करता; लेकिन जब वह घर लौट कर आता ती अपने हाथ में दर्पण लेकर बह उस एव कमरे में चित्र के सम्मुख खड़ा हो जावा । उसे यह देखकर विवित्र-सा आनन्द होता ह दर्षण में उसकी मुदाहृति वँसी ही निष्कलक और सुन्दर दोखती है। लेकित चित्र मुखाकृति पर बुढापा आता जा रहा था और कुटिलता अपनी कुरूपता को प्रइशित करने संगरी थी। चित्र के व्यक्ति का आवन वासता-अस्त या, मारी था, माये पर घृषित रेताएं उमर आई थीं, और दारीर भी बेडौल होता जा रहा या। लेकिन वह स्वपं बैसा ही खुददर और सुडौल था। हि अपनी वेष-भूषा बदलकर डोरियत डोवस के निकट एक 20028 2, 42 करता था। उसकी भावनाएं अधिक भयंकर होती जा रही थीं! ज्योंजज्यों उसकी को तृप्त करने की चेप्टाएं बढ़ती जातीं, त्यों-स्यों उसको क्षुपा मौर भयंकर होती जाती। वह लोगो को भोज १र बुलाता था, सगीत-पार्टियों का आयोवन करता था, ताकि उससे प्रभावित हों और यही समझें कि वह एक नई विचारधारा का ब्रतिपादत रे «« ” है जिसमें सौन्दय को मुक्ष्म अनुभुतियो द्वारा प्रेरित एक नई आध्यात्मिकता प्रात है अपनी छाया १५६ सकती है। वि इसी बीच डोरियन को रोमन कैयोलिक उपासना-यद्धति ने प्रभावित किया। उसने सुगन्धियों का अध्ययन किया । संगीत की ओर वह अनुरबत हुआ। उसने रत्नों और बेशकीमती बशीदों को इकट्ठा किया और उतपर गहरी खोज-जाच को | अपने चित्र के प्रति बह बहुत अधिक अनुरक्त थां। इसलिए वह लन्दन से दूर नहीं जाता था। किन्तु अब डुछ लोग उसके विरुद्ध हो चले थे, और जब बह पच्ीस दर्ष का हुआ तब उसके बारे में अफवाह उड़ने लगी कि उसकी सोहदत बहुत खराब है। लेकिन बहुत-में लोगों के लिए तो ये अफवाहें मी उसके प्रति आकर्षण बनाएं रखने के लिए काफी थी ।*** डोरियन को अड़तीखवा साल लगा। उस शाम को वैसील हारवई उससे मिलते आया। रात काफी बीत चुकी थी। चित्ररार गुप्त रूप से कार्य करने के लिए अगले दिन आअपदाप पेरिस जानेवाला था | उसने सोचा कि डोरियन से मिलता! चलू । चिश्रकार ते डारि- यन को बताया कि लोग उससे घृणा करते हैं--वह बहुत बदनाम हो गया है। डोरियन ऋुद्ध होकर उसे अपने एयात कमरे में ले गया । चित्रकार ने चित्र की ओर देखा और वह काप उठा। चित्र के ध्यक्ति कय रूप मयकर या, घृणित था। उसको देखकर जुगुप्मा हो आतो थी। बँसील ने विनय के स्व॒र मे बहा, “डोरियन, तुम अपने पापों के लिए प्रायश्वित करो। तुम परमात्मा से प्रार्थठा करो । तुम्हारे लिए मुक्ति का अन्य कोई मार्ग नहीं ।/ किन्तु यह सुनकर डोरियत पर एक आवेश-्सा छा गया ओर उसने चित्रकार की छ:ुरा भोडकर हत्या कर दी । चित्ररर गुप्त रूप से आया था, इसलिए कोई नही जानठा था कि डढोरियन बी उससे भुलाकात हुई है। शोरियन ने ऐलेन केम्पवेल नामक व्यवित को बुलाया । शोरियन ने ही रूम्पवेल के जीवन को विनप्ट किया था । कैम्पयेल रसायत* धास्त्र गा विदार्षी था। डोरियन ने उसको सजवूर रिया कि यह चित्ररार ने छरीर वो विनष्ट कर दे। इसके बाद डोरियत लेडी तारवरों के यहाँ भोज पर गया। वहां लाई हेतरी भी उपहिषित था। दोनों मे बहुत डिलचस्प बावचीत हुई। लेडिन डोरियन भीतर ही भीतर घबराया हुआ था। उसके अन्दर भय बी एक भावना उतर गई धो । उस राह डोरिमन अफीमदियों के एक अश्ड्े एर पटूचा ६ वहां एड मल्लाड था १एरु रपी ने दोरियन शो जादूगर राजपुमार' दहकर पुकारा) मल्लाह ने इस बात को सुत लिया | मत्ताह डा मसाम जिम बैन था। वद सिविल बेन (डोरियन बी मृत प्रेम्ितरा) का माई था। जोप के बएरण उसने डोरियन पर आकमण विया और धायद उसकी हरपा ही घर दी होरी, पिन्‍्दु डोरिमन अपने सुन्दर मु के मारण सोगो बी सहायता से जीदन प्राप्त एर सका और शहां से दघकर निवल भागा। एन सप्ताह के दाद जबकि शोषियित देशात पे एक महा में हरा हुआ था, उगणों लगा कि बेन उस पर नज र रखे हुए है। शोरियत बो लगा वि उतार अन्त समीप है। वैन अर इस रह हे मार-पीट मे बसों मे साय गया था। डोरियत के भाग्य से पे! एक दिन दैते एक शिशारी को गोरी बा शिरार हो रया। शेरियन ने सुपर गो राय ली । इसी तरह पुछ एप्ताह और शव गए। एक दिन लाई हेतरी शोटन से शोपिपन १६० शंगार के मठात उपयोग मे बड़ा, “अब मैं सपने अच्चे वाएों का प्रारम्भ कर रहा हूं।” "मुझे दगाओ, वह बपा वाम है?" /देशा की एफ सुरदद सड़री है। मैं उसतो फया रहीं रहा हूं ।” साई हथा और दैगसीत के गायब हो जाते के बारे में बात करता रहा। साई की पी भी गिसी ब्यक्ति के साथ भाग चुटीभ्री। साई कहते धगा डिवँसील भी बब अपना जतालोशनल संगभग सो चुशा है। इसे बाद वे दोनों अत हुए । डोरियन पर को ओर चर पढ़ा ।"** अंद उसमे अपने बबयत के विप्तल फ जीवय की स्मृति जाग उठी । उसका मत कर सगा कि डिसी प्रकार वह अपनी उप पर्रितता को फ़िर से प्राप्त कर सके जिसको उसे इतना कसकित कर दिया था। पर बया अब यह सम्भर था ? बहू विध्र ही उसकी असर सताधों का कारण भा। सेकिंत यद अपने भविष्य शों बदल सकता था, बरोंडि ऐसे कश्यवेल भी अब तक मर घुक्ता था और डोरियन अब प्रूंतः सुरक्षित था। अपने मतः अपने भविष्य को सुपारने का निश्चय रूरने फे उपरास्त, वह कमरे में उस चित्र को देखे शया | उसने सोचा कि झायद उसमें कोई परिदर्नत आ गया हो, क्योडि उसने अपने मत के पवित्र करने का निरचय कर लिया था। पर चित्र को देखकर उसके मुख से एक दु खन्मर चीत्कार निकल गया। बित्र पर एफ ढोंग और चालाकी का भाव और आ गया पा, वो हाथ पर रबत का निश्वान भी दिसाई देने सगा था। डोरियन ने एक चाकू उठा सिय ओर चित्र पर जोर से दे मारा । एक भयातक चीत्कार हुआ और किसी के नीचे गिरने की आवाज आई। नौकर दौड़ पड़े । उन्होंने बलपूर्व क कमरे का दरवाजा सोलां। उत्होंने देखा कि उसके स्वामी का चित्र दीवार पर लटक रहा था। जैसा उन्होंने अपने स्वामी बने कभी देखा था वैसा ही सौन्दर्य उस चित्र में अवित था--तिप्कलक् और निर्मल, अदुमुत सौन्दर्य, अनुपमेय यौवन; किन्तु फर्श पर एक मुर्दा पड़ा था। उस मुई्े के चेहरे पर भूरियां पड़ी हुई थीं। उसका रूप विकृत था; और वह अत्यन्त घृथित दिखाई देता था। वे उस व्यक्ति को नहीं पहचान सके, किन्तु वाद में जब उन्होंने उस घुर्दे की अ्रयुलियों पर अगूियां देखी, दव उन्हें मालूम पड़ा कि वह मुर्दा और कोई नही, स्वयं उनका स्वामी डोरियन ग्रे चा। प्रस्तुत कया में ऑस्कर बाइल्‍ड ने बहुत हो कलात्मक रूप से मनुष्य के अततत्य और बाह्य का अनन्थोधित सम्बन्ध प्रदर्शित किया हूँ । ध्यक्षित अपने स्वार्थ और बासनामों के कारण अपने वास्तविक स्वरूप को नहीं देख पाता, किन्तु पते अपनो छाया अवश्य डालता है ! ऑस्कर बाइल्‍्ड के इस उपन्यास सें हमे इसका बड़ा भव्य चित्रण सिलता है। इस उपन्यास का डोरियन थे एक ऐसा पा है जो मतोविज्ञान और घर्म-भावना, दोनों का ही बड़ा सेशिलष्ट चित्र करता है । रोम्यां रोलों : जां क्रिस्तोफ' रोग्यां रोलां : फ्ेच साहित्यकार रोम्यां रोलां का जन्म २६ जनवरी, १८६६ को फ्रांस में क्लेनेसी नाभक स्थान में हुए। था । भाषने बचपन में दी संगीत दनने का निश्चथ कर लिया था | आपकी शिक्षा खोल नोरमेल सुपोरियर में हुई झौर सगीत-सम्बन्ध अध्ययन पर ही आपको 'डॉबटर आफ लेटस की डिग्री मिलो। भाप वहीँ “कला के इतिहास के प्रोफेसर बन गए । बाद में छोरबिन में 'संगोर के इतिशास! को पढ़ाने लगे । इस बीच में आपको अनेक सम्मान प्राप्त दुए। १६१४ में झापको नोरल पुर- रकार मिला, वर्योकि आपके नाटक भौर उपन्यास बडुत उच्च कोदि के माने गए | अथम महायुद में आप शातिदादो बन गए और ल्विटज॒रलैंड चले गए। १६४० में जर्मनो ने जद फ्रांड को पराजित किया तब आप दही रहते थे | ३० दिसपर, १६४४ को भाएक! मृत्यु हुईं। झपने जीवनकाल में भाप बदुत ही विख्यात रहे | छंकार के अष्यस्त प्रसिद् न्यक्तियों से भापका व्यक्तिगत परिचय भी रहा । “हां क्िलोफ! (१६१२) में भाषने स्यक्ति-चित्रण के माध्यम से मानस की उने गइराश्यों का पर्यवेद्ण किया दे जिनको देखकर भारचये होता दे । जां क्िस्तोफ क्रोप्ट मेलकायर का पुत्र या। मेलकायर एक नशेवाज सगीतज्ञ था | उसका लूईशा नामक रंसोईदारिन से सम्बन्ध हो गया या और इसके दुष्परिणाम-स्वरूप जा फ़िस्तोफ का जत्म हुआ। रहिन दामक एक छोटे कस्बे में जां मिचेत नामक व्यक्त ने पचास वर्ष पहले अपना निवास-स्थान बनाया था। यह जा मिचेल जां क्रिस्तोफ का बावा था। बहुत छूटपन मे ही क्रिस्तोफ की रुचि सगीत की ओर हो गई। मेलकायर तित्य ही अपने पुत्र को पियानो के पास जवरदस्ती विठा लेता और रोड उससे अम्यास करवाता । बच्चे को गह छीड्ध पसन्द नही थी एक दित जा मिचेल उसको आपेरा दिखाने ले गया, जहां जा करिस्तोफ पर इतना अधिक प्रभाव पडा कि उसने संगीतज्ञ बनते का निश्चय कर लिया। कुछ समय बाद एक दिन जां मिचेल ने अपने पोते किस्तोफ द्वारा अब तक लिखे सभी गीतो को सगृूहीत कर लिया। जिस्तोफ खेलते वक्‍त इन गीतों को वैसे ही बना लिया करता था। बादा ने इन गीतों के रुप्रह का लाम रखा 'झेशव के सुख' । पेलकापर १: जब्ण एमतं्रव्का8 (ए०ामंत (णाजात) १६० संसार के महान उपयान ने कहा, “अब मैं अपने अच्छे कार्यो का प्रारम्भ कर रहा हूं ।” “मुझे बताओ, वह क्या काम है ?” “देहात की एक सुन्दर लड़की है । मैं उसको फंसा नहीं रहा हूं ।” लाई हसा और वेसील के गायब हो जाने के बारे में वात करता रहा। लाई हो पतली भी किसी व्यक्ति के साथ भाग चुकी थी। लाड्ड कहने लगा कि वैमोौल भी सं अपना कला-कौशल लगभग खो चुका है। इसके बाद वे दोतों अलग हुए। डोगििन एर को और चल पड़ा ।"** अब उसमें अपने वचपन,के निष्कलंक जीवन की स्मृति जाग उठी । उसका मन: करे लगा कि किसी प्रकार वह अपनी उस पविश्वता को फिर से प्राप्त कर सके जिसको उसने इतना कलकित कर दिया था । पर क्या अब यह सम्भव था ? वह चित्र ही उसकी अगर लताओं का कारण था । लेकिन वह अपने मविष्य को बदल सकता या, वर्योकि ऐसेत कैम्पवेल भी अब तक मर चुका था और डोरियन अब पूर्णतः सुरक्षित था । मपने सतत मे अपने भविष्य को सुधारने का निश्वय करने के उपरान्त, वह कमरे में उस घिंत्र को देखे गया। उससे सोचा कि शायद उसमें कोई परिवर्तन आ गया हो, क्योंकि उसने अपने मत तो पवित्र करने का निश्चय कर लिया था। पर चित्र को देखकर उमप्के मुख से एक दु सभा चीत्कार निकल गया। चित्र पर एक ढोंग और चालांकी का भाव और आ गया था, और हाथ पर रत का निशान भी दिखाई देने लगा था। डोसियिन ने एक चाकू उठा तिशा और चित्र पर छोर से दे मारा । एक भयानक चीत्कार हुआ और किसी के नीचे गिले की आवाज़ आईं। नौकर दौड़ पड़े । उन्होने वलपूर्वक कमरे का दरवाश सोला। उद्दोे देखा कि उनके स्वामी का चित्र दीवार पर लटक रहा था। जैसा उन्होने अपने | को कभी देखा था वैसा ही सौन्दर्य उस चित्र में अकित था--निष्कलक और नि अदुभुत सोन्दये, अनुपमेय सोवन; किन्तु फर्श पर एक मुर्दा पड़ा थां। उर्त मुर डे पर भूरियां पड़ी हुई थीं। उसका रूप विकृत था; और वह अत्यन्त भृणित॒ श्काई ४० था। वे उस ध्यकित को नहीं पहचान सके, किन्तु बाद में जब उन्होंने उस मुद्दे ही प्रगुतिर धर अयूियां देखीं, तद उन्हें मालूम पड़ा कि बह मुर्दा और कोई नहीं, स्वयं उन सती डोरियन ग्रे था। अस्तुत कथा में ऑस्कर वाइटड ने थहुत हो कछात्मक रुप ते मनुष्य हे ४४४४ और बाह्य का अनस्योधित सम्बन्ध प्रदर्शित किया हैं । व्यक्ति अपने क्ष वाधताओं के कारण अपने वास्तविक्न स्वरूप को नहीँ देख पारा दिखी अपनी छाया मदश्य डाठता है । ऑस्कर बाइट्ड के इत उपस्यातत में छाप | खड्ा भच्य चित्रण भिछता है। इस्त उपन्यास का डोटियत पे 26 उवतिा जो सनोडिशान और धर्म-्मावता, दोनों शाही बड़ा संर्टिष्ट विज करता हैँ । रोम्पां रोलां : जां क्रिस्तोफ' रोम्यां रोलां : फ्रेंच साहित्यकार रोस्यां रोलां का जन्म २६ बनवरी, १5६६ को फ्रांस में क्लेमेसी नामक स्थान में हुघा या | आपने बचपन में ही संगीनज्ञ बनने का निश्चय कर लिया था) आपढो शिद्धा इखोल नोरमेल छप्टीरिर में हुई और संगोत-सम्बन्ध अध्ययन पर ही भाषकों 'डॉवेटर आफ लेटसे? की ढिदी मिलो । झाष वही 'कला के इतिहास के प्रोफेसर बन गए। बांद में सोटदिन में 'संगीत ऊे इतिदास' को पदाने लगे | इस बोच में आपको घनेक सम्मान प्राप्त दुए) १६१४ में भरापको नोबल पुर* सरकार. मिला, बयोंकि भाषके नाटक और उपन्यास बदुत उच्च कोटि के माने गए । प्रथम मदायुद् में आप शातिवादी बन गए और ल्िट्र॒रलेंड चले गए | १६४० में जरमनो ने जब फ्रांस को पराजित किया तव भाप वही रहते वे | ३० दिसखर, २६४४ को झाषकों रृत्यु हुई । भपने जोवनकाल में आप बदुत ध्वी विख्यात रदे। हछंसार के अत्यम्त प्रसिद व्यक्तियों से भाषका स्पक्तिगत परिचय भी रहा। “जां क्रिलोफ? (१६११) में भापने स्यक्ति-चित्रण के भाध्यम से मानस की उन गएराश्यों का पर्ववेक्ण किया है जिनको रेजबर झारचये होता दे | जां क्रिस्तोफ क्ोप्ट मेलकायर का पुत्र थां। मेलकायर एक नशेवाज़ सगौतज्ञ था। उसका लूईशा नामक रसोईदारिन से सम्दन्ध हो गया था और इसके दुष्परिणाम-स्वरूप जो किस्तोफ का जन्म हुआ। रहित नामक एक छोटे करे में जां मिचेल नामक व्यवित ने पचास वर्ष पहले अपना निवास-स्थान बनाया था। यह जां मिचेत जा क्रिस्तोफ का दावा था। बहुत छुटपन मे ही क्िस्तोफ को रुचि सगीत की ओर हो गई। मेलकामर तित्य ही अपने पु को पियानो के पा जद रदस्ती विठा लेता और रोज उससे अम्पाप्त करवाता । बच्चे को यह चीज पसन्द नहीं थी। एक दिन णां भिचेल उसको गपेरा दिखाने ले गया, जहां जाँ क्रिस्तोफ पर इतता अधिक प्रभाव पड़ा कि उसने संग्रीतज्ञ बनने का निश्चय कर लिया। कुछ समय वाद एक दिन जां मिचेल ने अपने पोते क्रिस्तोफ द्वारा अब तक्र लिखे सभी गीतों को सगृहीत कर लिया। छिस्तोक खेलते वक्त दत गीठों को बसे हो बना लिया करता था। बादा ने इन गीतों के सम्रह का नाम रखा 'सैशव के खुख' । मेलकायर ३. इध्बच एतंहरण्ाव (स०््राव। ऐण]३००) १६२ संगार के मद्ान इपस्दाम में अपने पुत्र की प्रतिमा को पद़चाता और धीझ ही शाह संगीत-सना का आयोजन किया। उसमें ध्रदिहयूक ऑफ सीयोकोहड को निमत्रित डिया गया और जा जिस्तोफ सामक गाड़े साय यर्प के संगीत ले अपने बनाए गौयों को उसे सभा में गाया-बजाया । वे सब थी प्रेडडयूड को समतित कर दिए गाए थे। विस्तोफ को दरार की कृपा प्राप्त हुई। उसकी सरकार वी ओर से यजीका बाय दिया गया और मदहत में बाजा बजाने का फकाग भी मित्र गया । इन्ही दिनों उगके बाबा की मृत्यु हो गई और आमदनी का एक उरिया सत्म हो गया। उसके पिता की नश्षेबाज्ी भी अब और वह गईं। परिणाम यह हुआ हि होंब बिये- टर के ऑसेस्ट्रा में ऐे उसे निकाल दिया गया। दाराब ने उगहे पिता की नौकरी छुड्ा दी घी, अत. चौदह वर्ष की अवस्था में हो यायतिन की केवल पहली धुन बजा पानेवाले विस्तोक को सारा परिवार समालने का बोझ उठाना पड़ा। विस्तोफ के मामा का नाम गोटकौड था। वह गीघा-गादा ईमानदार आदमी या। उसकी आमदनी के आधार पर विस्तोक ने एड जीवन-दर्शत बनाया और उसको अपनाने की चेप्टा की। अब क्रिस्तोफ इघर-उघर संगीत सिसाने मी जाया करता था ! एक पनी परिवार में एक सड़की को बह संगीत सिसाने लगा। वह उस लड़ड़ी से प्रेम करने लगा, डिल्‍्तु लड़की ने उगका मजाक उड़ा दिया। इस बात से जां व्िस्तोफ को बहुत दुःख हुआ हु ही दिन बाद उसके पिता की भी मृत्यु हो गईं। इसका परिणाम यह हुआ कि किस्तोक का मने राग-रग से उच्ाट छा गया और वह नौरस विश्युद्धतादादी-सा बन गया। किल्‍्ु फिर भी उसका मत इतनी नीरसता से अपने-आपको बाघ नहीं सका और कुछ दिनों में ही जां प्रिस्तोफ सेवीन नामक एक विघवा युवती के प्रेम में फंस गया। किन्तु इसमे पूर्व कि वह प्रेम परिषक्व होता, बढ़ता, सेवीव मर गई ॥ इस घटना ने छिस्तोफ को बहुत ही विरक्‍्त कर दिया और बह देहात की ओर घूमने का शौकीन हो गया। दूरद्धर तक घूमता । ऐसे ही घूमते-धूमते एक वार उसकी एडा नामक एक लड़की से मुलाकात हुई। उन्होने होठल में रात साथ-साथ ग्रुद्धारा और क्रिस्तोफ उसके प्रेम में पड़ गया । लेवित जब उसे यह पता चला कि उसके छोटे भाई के साय एडा का प्रेम-सम्दन्ध चल यहा है तो उसे बड़ा भारी धक्का लगा । अब वह पूरी झक्ति से अपने काम में लग गया। जैसेन्जमे उसको परिपववता बढ़ती जा रही थी, उसकी परख, ईमानदारी, सचाई और चेतना में पुष्टि आ रही थी। उसके सगीत-रचना के नियम जर्मन नियमों से टकराने लगे मौर एक स्थानीय पत्र मे उसने जन पद्धति को बर्बर कहना प्रारम्भ किया। इसका परिणाम किले हुआ कि सम्पादकों से उसका ऋगड़ा हो यया और वह एक साम्यवादी प्रत्र में मिलने लगा। इस बात से ग्रांडड्यूक भी कुद्ध हो गया और क्िस्तोफ को कप ओर से मिल बाली सहायता भी बन्द हो गई। किन्तु जां क्रिस्तोफ की विपत्ति का यहीं अन्च नहीं हुआ। कस्बे के लोग उसके विरुद्ध हो गए और घीरे-घीरे सारे मित्र भी उसे छोड़ते लगे। 80 बूढ़ा पीदर शेट्ज, जो संगीत के इतिहास का रिटायर्ड प्रोफेसर था, उसकी बात को सम" भवा था। स्तोफ़ एक वार एक सराय में एक किसान लड़की के साथ नृत्य करते समय क्रिः जा किस्तोझ श्ष्र३े का कुछ झत्मवी सैनिकों के साथ ऋगड़ा हो गयया। उस समय वह्‌ बीस वर्ष का था। सैनिकों से ऋगड़ा करने के अपराध में जेल हो जावे का खतरा था, इसलिए क्िस्तोफ को भजवूर होकर पेरिस भाग जाना पड़ा ! पैरिस में अपने जीवनन्यापन के लिए वह सगीत को ट्यूशन करने लगा। वहां उसे बचपत का एक दोस्त मिल गया--स़िलवे कोहन, जो पेरिस में अपनी स्थिति बना चुका था। उसने क्रिस्तोफ को पेरिस के समाज में घुसा दिया, किस्तु किस्तोफ को वह सब पसन्द नहीं आया । उस समाज मे एक छोजलापन था, काहिली थी, नेतिक निर्वोर्षठा थी, उद्देदयहीनता, व्यर्थंता अपने-अआपको नप्ट कर देनेवाली अनावश्यक आलोचना थी ; जैसे उस समाज में एक सा जनिक तनाव था जिसने लोगो को सहूजता को विनष्ट कर दिया था। ऐसे समाज मे प्रमिद्धि प्राप्त करने के लिए क्रिस्तोफ को इन सब बातों से समभौता करने को आवश्यकता थी, जो करना उसने स्वीकार नहीं किया। और इसलिए वह दुयूधन से अपना काम नही चला पाया। क्योकि वह धीरे-धीरे सबसे दर होता चला गया था। अब वह एक प्रकाशक के लिए सगीत-लिपि लिखने लगा। इसी दीच बह बहुद बीमार पड़ दया । उगके पड़ोस में बछ झोग रहते ये, जिनमें सौशेनी से उसकी बहुत सेवा-सुश्रुपा वी ॥ यहां उसरी इकोल मोरमेल के एक धरुण सेबचरर ओलिवियर ज्यानिन से मुलाकात हो गईं। उसको पता चला कि औलिवियर एंतोनित का भाई था, जिससे कि उसकी जमेनी से मुलाकात हुई थी। यधप्ि जा जिस्तोफ का कोई दोहत नहीं था, फिर मी उसरा परिचित होने के कारण एंतोनित का समाज में सम्मान नष्ट हो गया थां। उसे पता चला कि एतोनित को तपेदिक हो गई थो और अपने भाई की पढ़ाने के प्रयत्व मे घोर परिश्रम करते ओर उस अवस्था भे अपनी देख-रेख मे कर पा सकने के कारण उसदी स्रयु हो गई थी) शक दिन ओलिवियर ने जिस्तोफ से बहा कि अब तक वह असली फ्रॉस के राम्पक में नहीं भाया है--असली फॉंस वी जनता के सम्पर मे । दोनों ही एक-दूसरे को नई-नई जातकारी जुटाते। दोतो ए+ूसरे की प्रद्ृतिं से अवगत हो गए थे। ओलिवियर स्वभाव का गम्भीर था, विन्‍्तु ध्यारीरिक हए सेबह स्वस्थ नहीं था। जिस्तोफ मे अपार दंवित थी और उसको मार्मा भी सूफानी थी। दोनो को जोड़ी ऐसी थी जंगे एक लगड़ा था और एक अंधा | बुछ शित बाद बोरेध नामक सड़बी के पीऐ दोनों मित्रों मे एड हनाद अर दया ॥ जिस्तोफ होलेय ढो पहले प्यार करता था, और अब ओलिदियर उयका नया प्रेमी था । शोतेय ने लूरियन सेवीग्रोर नामझ एक स्पक्ति को बीच से लिया। यह विस्तोफ का पुराता शत्रु था और उसने एक प्रवार बी उसमत पैदा बर दी थी । तासमभी में वरिस्तोक बहुत चुद्ध हो गण उसने एफ पार्टी मे लेदीग्रोर का अप्रमान बर दिया और परि- चाप पह हुआ कि छेदीकोए ने इन्द्र दे लिए उसे शतवारा। दोनों युद्ध के लिए तैयार हुए, बिस्तु दोनों बी रोलिय धाली इसी गईं इसर परिधयाम थह हुआ हि जिस्दोफ और थोलिवियर बा तनाद दूर हो गया और दोतों एपडूसरे बे मित्र हो गए। दंग दौघ में पर॑ण ऋौर अर्मती के दोद पुद्ध बी भयानक छबरें आते छपी $ चारो 7४ हक के हशात उस्दान खो “# चीए॑क हैफ झा त अहदुच शाह हुई, किलपीफ औयवामह का मे इतर हक के छाब तई हय7॥ अब वपही शीत शरदी शपाएए दरधतिक हक नारी झ हज और हेड असिकेश्टे वें इक बडे) उधहीं सहयही का वाई प्रयाग हों चत बात तेकिल हैसे शबय दुमहिए मे यो च्मरी में आपपी मरार की शापाएणा के विश्ट झत बड़ा । बेहतर धीदियाफ 6 शूवदृशा सड़क थी, विगरी आगों दिएद चुद और जो महह हीं बराए थी । ओ जि र उधके दे में पड़ गये भौर उी एस गिशा कर पिया । उधरों उरेय के कश्डे में ८क सौहरी दिए गईं और मद बढ़े मयती परली के भाद मरी ४क कावे में बंध गा । कु घे दिते बाई दे शोप पेरिय मेरे गए! । सेहित शैेयीत औवि+िदिएश मे कई ८ई। एफ इच्चा मी पैश हु 47, हिलु कोतों वतिचञानी उसे कारा भी एक सही हो गेके । वेक्योत से किशोक मे रेये करते की चेटट की, हिलु उसहा सते गहीं भरा, भर वह एह बश्चात वेशक के शाप भाशं गई। दो घातां हो परिमत गा! हवा हि विस्योह और मोलिविए्र, जिसे कमी बैमतरए हो या था, जेहरीत के अपरच दिए मे बिच हो दो! । में दोतों देहिय के गमाज को समझता चाटों थे। ओतिं- विपश आापमेवादी था भौर दिस्तोक में माततशदी चेवता थी। इत गा्ों ने उ्ेँ मरशपर माहशेपल वी ओह झाइयिं छिया। सई दि के प्रदर्शन को देशते ओतिं- विपर भी रदा। दिश्तो|ड़ बड़े जो में घा। ओमिवियर बढ़ी एश देगे सें मारा गया। विस्सोक बा इगपर पुसिंग से भगहा हो दया, हिल्तु उसे मित्रों ने उमें बचा वि उन्होंने उसे देश की गीमा के पार पहुंचा दिया । झष बढ एक बार छिर अधितारीयय के गासते अगोड़ा हो गया-अँगा हि दस बर्ष पूरे इपर से उपर भाग रहा था। झाडर ब्ोन ने उसे आश्रय दिया । ये जल थे । उतती परली का ताम/अस्ता था। कुछ शशि बाद किस्तोफ भौर जन्‍्ना में प्रेम-स्पर्ट्वार प्रारम्म हो दया ! यद्धपि उन्होंने बदूुत चेप्टा बीडि उस सम्दन्ध को तोह दें, किन्तु दे सफर नहीं हुए। द्रोल को धोसा दिया गया है. यह सोव- सोचकर अन्ना को इस बाद का इतना झानमिक दुःख हुआ कि उसने अन्त में आमदया सक फरने की चेष्टा की । परिणामस्वरूप, जिस्तौफ वहा से तिशत भागा। यह स्विटजरसड़ के पवृतोय इलाके में पहुच गया। इस तरह वर्षों बीत गए क्रिस्तोफ के विदेशों में घमते-किरते । इटली में रहते हुए त्िस्तोऊ को ग्रेजिया मि्री। एड वार जवानी में उससे पेरिस में किस्तोफ की मुचाकात हुई यो! ग्रेजिया ने आश्टिया क्कै एक काउण्ट से विवाह किया था। अपने पति के प्रभाव से उसने किस्तोफ को उस समय सहायता दी थी, जवक्ति झनता जिस्तोफ के सयौत को पसन्द नहीं करती थी। उसके प्रति की द्न्द-युद्ध में मृत्यु हो गई थी और अब वह एक मां थी। किस्तोंक और ग्रेजिया एक दूसरे के प्रेम मे पड़ गए, किन्तु बाद में जल्द ही दोनों अलग-अलग हो गए। पेरिस लौट आया। उधर ग्रेजिया का स्वास्थ्य नध्ट हो गया और वह मर गई। »* ने जीवन के ढलते वर्ष क्िस्तोफ अपने पुराने मित्रों के साथ बिताने लथा। * » के लिए भय का नया कारण उत्पल्त हो गया, और वह [वह था कि ; में मुद्ध के बादल घिर रहे थे। परन्तु उसको निश्चय था कि यदि बुद्ध जां जिस्तोफ १६५ हुआ, तो भी वह दोनों देच्नों के बीच भाईचारे के सम्बन्ध को नप्द नही कर पाएगा । अल्ठिम समय तक विस्तोफ रुगरत-रचना करता रहा। यहां तक कि जब मृत्यु निकट आ गई, तो भी उसने अपनी कलम उठाई और अपना बनाया हुआ गीत लिखा : “लू फिर से जन्म लैया, विश्राम कर । अब सब कुछ एक हो गया है। रात और दिन की मुसकानें मिल गई हैं। प्रेम और घृणा परस्पर समरसठा में परिणत हो चुके हैं । मैं दो विद्याल पख्लोवाले देवता का आराघत करूगा ) जीवन की जप, मृरपु बी जब (7? * प्रस्तुत उपन्यास एक बहुत बड कंत्ंस (पृष्ठभूमि) पर लिखा गया हैँ। इसमें पनुष्य वी सत्य को खोज प्रमुख है, क्योंकि इसमें धटना-क्रम इतना महत्त्व नहीं रखता, शितना चरित्र का विकास । कला, जनता, राजनीति तथा साहित्य ओर दर्शन आदि अनेक दिपयों को प्रबुद्ध दिचारक रोम्यों रोलों ने गहन सतो- विश्लेषण के साथ प्रस्तुत किया है। इस उपन्यास के बारे में फेनिन ने कहा था कि 'पह हमारे णुण का एक सहान बाध्य है, बपोंकि इसमे कलाकार ने निष्पक्ष रूप से जीवन के सांग्रोपांय रुपों को प्रस्तुत किया हूँ।' यधपि देखने में ऐसा! खाता हूँ कि क्िस्तोफ अपने एक के वाद एस होनेवाछे प्रेम-सम्दन्धों के कारण विलासी हूं, ढिन्तु सम हमें यह भी प्यान रणना पईं गा कि यह बातावरण फंस की सांस तिक विरागत पर आधारित है भो हमारो नेतिश्ता ते बुछ अलग हूँ हमारी अहुत-सो मान्यताएँ ऐसी है जो अपता क्षधिक् विकास कर थुशो हैँ; यह भतभेद ब॥ भी विषय हो सकता हैं. किन्तु रोलां के उपस्यात की गहराई हमें अवश्य एयोक्षार ररनी पुरी है सॉमरसेट मॉम : वरसात [द रेन*] मम, विलियम सामरसेट : भ्रंगेशों कथाकार विलियम सामरसेट साम का बत्म २५ जनवरी, १८5७४ ई० में हुआ | भाप पेरिस में जनमे, क्योंकि आपके पिता वहां मिटिशा राजदूतावास में कामकरते ये । माता-पिता से भाष बचपन में ही वचित हो गए। आपने प्रारम्भिक जीवन कष्ट से विताया | डाक्टरी पढ़ी, परन्तु छग पड़े साहित्य-सशन में | भूखे मरे, पर साहित्य नहीं धो डा । झापने विवाह किया था, पर १६२७ में पति-यली में तलाक हो गया | फ़िर झापने विवाइ नहीं किया। भझापने उदीयमान लेखकों के लिए ही झपते समस्त धन की वसीयत कर दी । आपने भनेक उपन्‍्यास लिखे हैँ । “द रेन? (दरत्षात) झापका एक सुप्रसिद उपन्‍्यास्त है। डा० मेकफेल दो साल तक युद्ध में रहने के पद्चात्‌ जहाज द्वारा अपनी पत्नी के सा' सफर कर रहे थे । उन्हें इस वात का सतोप था कि वे कम से कम एक साल तक एपिय में शान्तिपूर्वक रह सकेंगे । जहाज पर ही उनकी मुलाकात डेविडसन-परिवार से हो गे! थी। डा० सैकफेल की उम्र चालीस के लगभग थी--लम्बा-्पतला दारीर, और पूलका सिकुड़े हुए चेहरे पर एक भरे हुए घाव का निधान। वे बहुत घीरे-घीरे, वहर-छहृकः बोलते थे, जिससे उनके स्काच होने का अन्दाज्ा सहज में ही लगाया जा सकता था। मि० डेविडसन पादरी थे ! कद सम्बा, बैठे हुए गाल, उरी हुई हष्डियां और मुठाई पकड़ता हुआ चेहरा | आंखें अन्दर घंसी हुई और काली थीं। हाथों की अंगुलियां उनकी दावित का परिचय देती थीं। उतका कार्य-क्षेत्र समोआ दा के उत्तर के कुछ छोटे छोटे टापुओं में था जो एक-दूसरे से काफी दूर थे। अतः उन्हें अधिकतर नाव से सफर क एवा बड़ता था । उनकी अनुपस्थिति में श्रीमती डेविडसन ही मिशन का काम संमालती पी श्रीमती डेविडसन का कद छोटा था। अपने[मूरे वालों को दे बडी तरतीव से संवारे रखती थीं दथा अपनी नीली आंखों पर हमेशा सुनहरे फ्रेम का चश्मा लगाए रहती थीं। जहाज पर भौमती डेविडसन ने डा० मैकफेल को बताया कि जब उत लोगों नेवद्ां मिशन का कार्य आरम्म किया था तो उन्हें बड़ी मुश्किलों का सामना करता पड़ा घा। वहां के निवासियों में बहुत अनैतिकता और बुराइयां फैली हुई थीं, जिरदें वे लोग बुराश्यो और पाप नहीं समभते थे । उनके विवाह का ढंग निद्वायत मद्दा और अश्लील था, जिंयरे १. ४८ ए७७ (फगाप्क 50ताधाउच फडपड50) बरसात १६७ बारे में धौमती डेविड्सन ने श्रीमती मेकफेल को अलग से बताया, बयोंकि स्त्रीन्युलभ सज्जा के कारण वे डाबटर को यह सब बता नहीं सकती थीं। उनके काये-क्षेत्र के किसी औ गांव में एक भी सच्चरित्र लड़की का मिलना भायः: असम्भव था। मिस्टर डेविडसन ले इसके कारणों की खोज की तो वे इस परिणएम पर पहुंचे कि इसका एकमात्र कारण यहां के निवासियों का वह भद्दा, अश्लील नुर्प है, जो वे अकसर करते रहते हैं। उन्होंने बह बन्द करवा दिया। श्रीमती डेविडसन ने डा० मैकफैल को यह भी बताया कि अपने मिशन के काये में मिस्टर डेविडसन इतने व्यस्त रहते हैं कि उनको अपने शरीर की तनिक भी परवाह नहीं रहती । दूसरे दित जहाज पैंगो वन्दरगाह के किनारे रका। जब उनको सामान उतारा जा रहा या, डाइटर गौर से वहा के निवासियों को देत रहे थे उनमे कई फीलपांव के रोगी थे । पुरुष और स्त्रियां सभी 'लावा दाव (दक्षिणी टापुओं के निवाततियों के घास के बने लहंगे) वस्ण-विशेष पहने हुए थे १ कुछ देर बाद पूमलाधार वर्षा शुरू हो गई। बारिश से बचने के लिए और लोगों के साथ डा० मैकफेल, उतकी पत्नी और श्रीमती डेविड्सत भी भागते हुए एक बचाव के स्थल पर पहुंचे, जहा कि णह्दाज्ञों ने संगर डाल रखे थे। कुछ देर वाद मिस्टर डेविडसन भी वहाँ ऑ गए। मिस्टर डेविड्सन ने उन्हें दताया कि टापू के निवासियों में खसरे का रोग फैला हुआ है। जहाड़ का एक खलासी भी बीमार पड़ गया था, जिसे अस्पताल मे भर्ती करा दिया गया पा। इतने मे एपिया से तार आया कि उस जहाज को एपिया में अभी महीं आने दिया जाएगा। इस खबर से डा० मेकफेल भी बहुत चिन्तित हुए, वयोकि उन्हे एपिया जल्दी ही पहुंचना था। मिस्टर डेविडन भी मिशन के कार्य के लिए बिन्तित थे, बयोकि उन्हें हक साल से वहां से दूर रहना पड़ रहा था और मिशन का काम एर देशी पादरी के हाथ था) मिस्टर डेविडसन को टापू के गवर्नर से मालूम हुआ था कि वहां एक व्यापारी किराये पर मकान देता है। अतः वे बरसाती पहनकर उसके यहा पहुचे। मकान का मालिक हानें वर्णशंकर था। उसकी पत्नी वहीं की मूलतिवासिनी थी, जो अपने भूरे-भूरे बच्चों से' घिरी रहती थी। हार्त ने उतको मकान दिला दिया। उन लोगों ने अपना सामान खोलना धुरू किया। जब डा० मैकफ़ल अपना सामात संभालने मीचे अपने केविन में आए, तो उन्हें मालूम हुआ कि मिस थाम्पसत सामक एक युवती ने भी, जो उन्हींके जहाज में सफर कर सही थी, एक कमरा किराये पर लिया है जिसे उसने मकान-भालिक हाने से खूब तकक- वितर्क करके एक डालर रोज पर तथ किया है। उसका कमरा नीचे की मडिल में या। मित्त थाम्पसन की अवस्था सगभय दुत्ताईस वर्ष की थी, शरीर मोटा था परन्तु उसे अमुन्दर नदी बहा जा सकता था । उसने सफेद कपड़े पहन रखे थे और घिर पर एक चोड़ी सफेद टोपी लगा रखो थों। मिस थाम्पसन के साथ स्वान नामक एऊ व्यक्त और था जिसने मकान-मालिक दवा्नें से उसकी सिफारिश की थी। १६८ संद्वार के महान उपन्यात किराये के मकान में मिस थाम्पसन ने डाक्टर को भी झराव के लिए निमलित किया, परन्तु डाक्टर धन्यवाद देकर अपना काम करने लगे। अगले दिन जब दूसरे लोग टहलकर लौटे तो मि० डेविडसन ने बताया कि उन्होंने गवर्नर से काफी बहस की है पर शायद उन्हें पंद्रह रोज़ तक और ठहरना पड़ें। मि० डेविड सन मिश्न के कार्यों मे इस तरह हो रही देरी से काफी परेशान हो रहे थे। शाम को जब सब लोग मिलकर बैठे, तो पादरी डेविडसन ने अपने जीवन की विस्तृत ब्याह््या की उन्होंने बदलाया कि किस प्रकार श्रीमती डेविडसन से उनकी प्रयम बार मुलाकात हु और फिर किस प्रकार शादी। उन्होंने अपने अब तक के उस सारे जीवन का भी वर्ण किया, जब से कि वे पति-पत्नी, एकसाथ रहकर मिशन का कार्य कर रहे ये। बातचीत दौरान में उन्हें ऊची आवाज मे एक बाज़ार प्रेम के गाने के बोल सुनाई दिए। नौचे के कमरे में मिस थाम्पसन ग्रामोफोन बजा रही थी, और कुछ नाविक मदिर पीकर नृत्य कर रहे थे और साथ ही अश्लील गाने मौ गा रहे थे। मिस पाम्पसन में उनका साथ दे रही थीं। इस समय बरसात फ़िर शुरू हो गई थी । उस समय उन बोगे ने सोचा, शायद मिस थाम्पसन अपने मित्रों को दावत दे रही हैं। उसके दूसरे रोड भी शाम को जब डा० मंकफेल और डेविडसन-परिवार खाद! खा रहे थे, नीचे से फिर मिस थाम्पसन ने ग्रामोफोन बजाया आरम्म कर दिया; और कुछ देर बाद मदमस्त नाविकों के ज्ञोरदार कहकहे और मद्दी-मद्दी बातें उन्हें सुनाई दीं। मिस थाम्पसन अपने मित्रों (नाविको) के साथ एक बाज्ञारू गाना गा रही थी और साप में मदिरा-पान भी ) मिस्टर डेविडसत को मिस याम्पसन के प्रति दांका होते लगी कि शायद वह वेश्या है, और इबोली से भागकर आई है, और यहां अपना पेश्ा करना चाहती है। मिस्टर डेविडसन ने इबोली मोहल्ले के बारे में बताया कि वहाँ औरतों के एरीए का व्यापार बहुत भद्दे ढंग से होता या, लेकिन उनके मिश्वन ने अब इस मोहल्ले को पूर्ण सप से वदल दिया था। प्रेमी मिस्टर डेविडसन नीचे मिस थाम्पसन के कमर में गए, लेकिन वहाँ उसके प्र बोर माविकों ने मि० डेविडसन को बुरी तरह पीट-घसीटकर कमरे से बाहर निड दिया। उन लोगों ने मि० डेविड्सन पर एक गिलास शरात्र भी उंडेंस दी। हर दूसरे रोज मिस थाम्पसन ने श्रीमती ढेविडसन की भी दो बार सद्ाक बनाई। धाम को मि० शेविर- सन फिर मिस याम्पसन के कमरे में गए और एक घंटे तक उसकी समभाते रहे। एम समय भी बरसात हो रही थी। यहां की वरसात की विशेषता है हि जब एक ;2385 घुर हो जाए तो रुकने का नाम नहीं, कई दिनों तक बरसती रहती है। मच्चरों के काएप लोगों का सोना भी हराम हो जाता है। साल में तीन सौ इंच तक वर्षा होती है। गे हर मि० डेविडरन ने डावटर मैंकफेल को बताया कि उन्होंने मिद् घाग्पगत व रत प्रकार से समझाया, पर वह मदीं समझी । अब उसडी आत्मा के उद्धार के लिए वे अगा: दा प्रयोग करेंगे। सि० डेविड्सन ने मि० हानें को भी उसको कमरा देने के 82% बुरा बहा । मि० हाने ने पादरी (मि० डेविडसन) से वायदा झिया हि मदर भिगे सन के वास कोर्ट व्यवित नहीं बाएगा। कह बरसात श्ष्द उम्के दूसरे रोज़ की शाम को मिस्टर डेविडसन अपने छात्र-जीदन की बातें ड[० मैकफेंल आदि को दता रहे थे और नीचे मिस याम्पसन ग्रामोफोत बजा रही थी, परन्तु आज उसके पास और कोई ब्यक्तित न था। मिस थाम्पसन रात को देर तक ग्रामोफ़ोन | बजाती रही और मिस्टर डेविडसन अपने कमरे मे एक रस धार्यना करते रहे दौ-तीन रोज़ तक कोई विशेष दात नही हुई और इन दिलों में मिस थाम्पसन ने अपने लिए. कद्दी और जगह देखने की कोशिश की, पर सफलता न भिली। बह रात को बहुत देर तक अकेली ग्रामोफोन बजाती रही । रविवार के दिन मिस्टर डेविहसन ने हार्ने को कहा कि आज प्रभु के विथाम और प्रार्यना का दिन है अतः मिस्र थाम्पसन को कह दे कि प्रामोफोन न बजाएं। हूर्त के दँसा कहने पर उस दिन मिस्र थराम्पसन ने प्रामोफोन बन्द कर दिया । इसी बीच मि० डेविडसन रोज़ यवर्नेर से मिलते और मिस थाम्पसन के बारे में बताते तथा उन्हें इस बात पर मजबूर करते कि वे मिस्त थाम्पसन को वहां से चली जाते की भाज्ञा दे दें। पहले ठो गदर राडी नद्ी-हुआ, परन्तु दाद मे मि० डेविडसन ने उनपर कष्च की तरफ का जोर देकर उनको मजबूर कर दिया। जब मिस थाम्पसन को इसका पता लगा तो उसने मिस्टर डेविडसन को वहुत गालियां दी और उनका अपमान किया । प्रि० डेविड्सत ने उसमे शान्विपूर्दक बाजें कीं पर बह भल्लाकर तीचे चली गई गवर्लर ने उमर मंगलवार को सेदफासिस्को ऊावेवलि जहाज से चले जाने की आज्ञा दे दी थी। उसके दूसरे दिन हार्ने डा० मेकफेल को मिस थाम्पस्तन के कमरे मे ले गया और बताया कि उसकी तबीयत खराब है। मिस घाम्पसत ने डाबदर की सहायता चाही और कहा कि चढह सेनफांसिश्तो नहीं जाना चाहती। डढा० मेकफेल ने कोशिश करने का वायदा किया। डा० मैकफेल ने मि० डेविड्सत से इस बात पर वाद-विवाइ भी किया और उसझो पद्हू रोड और ठहर जाने की इजाजत दिलानी चादी, परन्तु मि० डेविडसन राजी न हुए। डा० मंकफंल गवर्नर से भी मिले, परन्तु उन्हे वहा भी सफलता न मिली । दूसरे दिन स्वयं सिस थाम्पसत मिस्टर डेविड्सन से मिली और रोती हुई उससे प्राधना करने लगी। उसने मि० डेविडसन को बताया कि वह सेनफासिस्क्ो नही जाता चाहती क्योकि वहां उसके घरवाते रहते हैं । चूकि मिस याम्पसन वेश्या-युधार जेल से भागडर आई है, अतः उसे तीन साल भा हैंड का भी डर था। उसने मिस्टर हेविड्सन से वायदा हिया कि अब वह अपना चरित्र सुधार लेगी । परन्तु मिस्टर देविडसन ने उसे बताया कि उसे यहां जाता चाहिए और जो दण्ड उसे मिले उसे सहर्प स्वीकार करता चाहिए, इमोसे उमरी आत्मा बा उद्धार हो शवेगा। मिस थाप्पसन ते हर सम्भव प्रापता बी, गिड- बिश्वई, पर मिस्टर डेविडसन पर उसका कोई अयर नहीं पड़ा। आखिर डाक्टर की सद्वापता से वह अपने कमरे मे आई और देर तक रोगी रही। और मिस्टर डेंविंड्सन दाइविल निकालकर शदके साथ मिस थाम्पसन की आत्मः के उद्धार के लिए प्रार्थनाए इरने खये। बापी देर तक दे लोग रधंदा करते रहे । इस बीच डा० मैकप्रेल नोचे जाकर मिस बाम्पसान को देखने चले गए बह अब भी आदामनुर्सी पर डैडो रिसक यहो पी । मिस थाम्पसन ने मिस्टर देविड्सत से मिलने बी इच्छा प्रवट की । मिस्टर १३७० संगार के महान उय्याग डेविदसन के आये पर मिस घामस्पसत ने वटा हि वह बहु युरी है और अय पस्याताय बरना चाड़ती है। मिस्टर डेविडसत बहुए प्रगन्त हुए । ड्ा* मैंकफ्ेत और हाने को यह गगावार अपनी पस्ली की शुनाने को गहूह र वे दरयाज़ा बरद कर मिस घास्यमत के साव राय गो दो बजे तक प्रार्यना करने रहू। बाई में भी ये अपने कमरे में राव-मर प्रारयता बहने रहे । दूसरे दिन जब हा मैकफरेस मिग घाग्ययन को देखते गए सो मिय पाम्ययत यताया कि यह मि० इेविद्सस से मिचना चादती है। मिस्टर डेयिड्सले जब तक उस पाग रहवे हैं उगे बहुत शान्ति मिसती है। अगले दो दिनों तक मिस्टर डेविडसल 4 अधिय्गर समय मिस थाग्पसन के गाय प्रार्यता करने में ही ब्यतीत होता रहा। जब ते ये विलपुल सार घूर से हो जाते, ये प्रापंता करते रहते । इन दिलों उतको विदि? विभित्र रपष्ण भी आते रही । मिस्टर डेविडगन उसे बइतसीव औरत के हृदय में छि/ वाष की जहों को द्वांद-छांटडर फ्ोे जा रहे थे। वे उसके साथ वाइबिस पढ़े बी प्राता करते । हि दन धीरे-धीरे बीतते घले जा रहे थे। मिय पाम्यसत अस्त-व्यस्त रहती, कमरे मे टहलती, कपड़ों की उसे परवाह ने रहती॥ उसको एकमात्र डेविडसन का ही सहाय था। यह उनके साथ बाइविल पढ़ती मौर प्रायंना करती रहती। मि० डेंविडसन को बह एक क्षण भी अलग नहीं करना चाहती थी। ऐसे ठमाम समय में वर्षा अविदाम गति से होठी जा रही थी। ऐसा मालूम होता था मानो इन्द्र का खड्ानां खाली होते जा है। ५५ सभी मंगलवार का इन्तज़ार कर रहे थे, जब सेनफ्रांसिस्को जावेवाला जहार जाएगा। सोमवार की शाम को गवर्नर के आफिस का एक वलर्क आकर मिस घाम्पस न फो दूसरे दिन ग्यारह वजे तक तैयार होने को कहकर चला गया। भिं० ड्वेविडसत भी उस समय उसके साथ थे। श्रीमती डेविडसन को उसके चले जाने की खुशी यी। सब लोग थक चुके थे, अतः सोने चले गए। हु सवेरे डावटर के कंये पर डिसीने हाय रखा कि वे चौंककर उठ बैठे, हार्त उनको जगा रहा था। हानें ने डाक्टर को इशारे से अपने पीछे-पीछे आने को कहा। डावटर अपना बैग लेकर उसके पीछे-पीछे चल पड़े। उन्होंने स्ेंक्रा--श्ञायद मिस्र थाम्पसत की तबीयत अधिक खराब है। मि० हारने जो हमेशा जीत का सूट पहनता या आज लावा लावा! पहन रखा था। दोनों नीचे उतरे, बाहर पांच देशी लोग खड़े थे । वे सड़क पर या गए, सड़क पार करके वे वन्दरगाह पर पहुंचे। डावटर ने देखा; कुछ तोर तई ड किसी चौज्ञ को घेरकर खड़े हैं। उन्होंने डावटर को रास्ता दिया। डाक्टर ने देखा कक मिस्टर डेविडसन की लाश आधी पानी में और आधी बाहर पड़ी थी। उतके बायें हाय में एक उस्तरा था जिससे उन्होंने अपना गला काट डाला था। लाश एकदम ठ्ष्डी दा चुकी थी। डाक्टर ने पुलिस को इत्तला देने को कहा। हाते ने डाबटर से पा कि बपा दिव्य मि० डेविडसभ ने आत्महत्या की है और डाक्टर के 'हाँ कहने पर उसने दो आई पर को पुलिस बुलाने भेजा। पुलिस पहुंची और डाक्टर श्रीमती डेविडतन को वह बुरी खः बरसात १७१ सुनाने चले गए। लाश को धवगुह में रख दिया गया । श्रीमती डेविडसन लकेलो लाश के पास पहुचीं और थोड़ी देर मे ही खामोशी से बाहर आ गईं। उन्होंने सवको वापस चलने को कहा । उस समय उनका स्वर कठोर और संयत था। जब थे मकाद के पास पहुंची, उनको अचानक ग्रामोफोन का केश स्वर सुताई दिया जो एक अरे से झान्त यां) मिस थाम्पसन अपने दरवाजे पर खड़ी हंस- हँसकर एक नाविक से बातें कर रही मो । बह एकदम बदल गई थी। आजे भी उसकी पोशाक देसी ही थी जैसी पहनकर उसने शुरू में मकान लिया था । आज उसने अपने- आपको विशेष प्रकार से सजा रखा था। जब वे लोग दरवाज़े में घुसे तो उससे व्यग्यपूर्वक अट्टद्यास करते हुए श्रीमती डेविडसन के मुह पर थूक दिया । डाक्टर ने मिस थाम्पसन को कमरे में घकैल दिया और ग्रामोफोन बन्द करने को कहा । मिस याम्पंसन ने कठोर स्वर में डावटर से कहा कि वह उसकी इजाजत लिए विना कँसे उसके कमरे में चला आया। डाक्टर ते इसका मतलब पूछा तो मिस थाम्पसन ने संयत होकर स्वर में असीम घृणा और ठिरस्कार भरकर कहा, “तुम पुरुष लोग, तुम सभी कुत्ते हो ! जल्ोल धृणित्त कुत्ते !” डावटर चकित रह गए और कुछ भी त समझ पाए। प्रस्तुत उपन्यात्त भें लेखक ने नारी के अनेक अंतन्दों का चित्रण किया है। हम दूसरों से श्तनों अपेक्षा करते हें, किल्तु स्वयं अपनी भर्यादाओं के दोंग भें झजे रहते है। पह बात बहुत ही कम लोग समझ पाते है। उपन्यास में बड़ो तोशी चुभत है ओर समाज पर गहरा थ्यंग्य है। डो० एच० लॉरेन्स : पुत्र और प्रेमी [सन्ज एण्ड लवसं* ] लोगेन्म, दी० एच : अंगेज़ी साहित्यकार डी० एच० लरेन्‍्स के पिता एक निर्षन म्यफि के पुत्र ये जो बोयले को सदान में काम करने लगे ये | आपका जम्म ११ सितम्बर, शरू८५ को ईस्टबुट नाविषिम सायर) इंग्लैंड हुमा | आपकी [रिक्षः मार्टिपम में हा हुईं। झापको पदते समय रकाचरशिप मिली । आपने बहुत भच्छे नम्बरों से परादा पास को औौर सारे इंग्लैंड में भन्यापन-शिद्य में भाषड्ों रूबते भभिक नखतर मिले । आपके सीने में कुछ शारीरिक नि्ंलता थी भौर झाष कोई काम निरन्तर नहीं कर पाते ये । झापने फिर उपन्यास लिखना रारू किया | १३११ में आपको एक सराक्त और मौलिक प्रतिभा के रूप में रवीकार कर लिया गया । झापको कृतियों में मनो* विश्नेषण का भास अधिक मिलता है। आपने हटेली, न्यू-मेकिसको और भा लिया मी यात्राएं कीं। २ मार्च, १६३० को राजिरिया में नाश्त के निडट बेन्स में भाप' सृ्यु हो गई । 4बुब्र और ग्रेमी' (सम्श एएड लव॒स) १६१५४० में प्रका रित हुआ यई भापका एक अभिर उपन्यास है मो भाषदों 'मेडी चेटलीव लवर! के साथ गिता जाता ई | अपने समय में आपपर भश्नोलता के दोष लगाए गए, ढिन्तु भाप निर्भीक होकर लिप रहे | आप कवि भी थे, झतरव झापमें मावुकता भी प्रबुर मात्र में मिचती है । शर्ररूड छोपरड एक दरिदर इल्जीवियर की पुत्री थी, निगने वाल्टर मोदेत मामझ कोयों की खदान में काम करनेवाले एक व्यक्त से विवाह रिया। उस रामय वह हे ३ गत की थी और वाह्टर २७ वर्ष का था। यह बहुत बतिध्ठ था, उस्मुक्त भाव हे हूंगता था और देखने में सुल्दर था । उिल्तु दुर्भाग्य से वद्‌ शिक्षित तहीं पा। और द्रगरी गर्देहड थी छोटी -गी, सुल्दर और गर्वीली । उसने बहुत डुघ पढ़ रा चाओऔर बोडिक बात वर में पत्ती हुई थी । वह बातचीव में दुध्ध हेसी बात घादती भी जिगान चादुप ही और जिसमें मानमिक विशास को कुछ न छुछ भोजत मिल्रवा रहे। तादियम के उतर (8॥ 0 की शदानों के यास वेस्टवुड में कोयते की लद्ामों में वाम व ऐेदाले सोगी बीडुदिए। थी, छोटे-छोटे घर ये और इन्हीं में से एक में यद दम्सती रहने लगा। छ संदीते अब सै ब्यतीत हो गए; हिल्‍्तु गररूड ने, जो अब श्रीमती मारेत थी, _मर्श यह अदा हिया हि उत दोलों में कोई गम्भीर वावलिप नहीं होता वा बपो्ि पर्ति गिरथिय ही >-.७--+++_+ ३- $003 रै:सतें [05८३ (0. 78. पू.>्चाव्ण्व्बो | पुत्र और प्रेमी १७३ था। उसके सपने घीरे-घीरे मद ही मन चकनाचूर होते लगे | उसे कुछ खालो-खाली-सा लगता और सबसे चद्ी मुमीवत थी गरीदी जिसके कारण अभाव सेव बने रहते थे | भारेल सटज स्वमाव से फिर धराव पीने लग गया था । उसडी पत्नी अपने नैतिक आचरण में जिन बातों को आवश्यक समझती थो, उसकी ओर उसका घ्यान वही था। उसकी वासना भ्रद्वतिमय थी और अपनी पत्नी द्वारा लगाये यएं नैतिक वनन्‍्धनों को बह तनिक भी स्वीकार नही करता था। इस मदोमालित्य का परिणाम यह हुआ कि कुछ ही दिन बाद वह चिड़चिड़ा हो गया, उसके जोवच में अतवरुत सघर्प चलते लगा और दास्प्रय जीवन विपमय हो गया | गर्टरूड की महत्त्वाकाक्षाएं नष्ट हो गईं और अब उसका एक- मात्र सहारा रह गया--उसके बच्चे । वह उनकी देखभाल में अपना समय व्यतीत करने लगी, मानों पति के प्रति मानस में जो अभाव हो गया था उसको पूर्ण करने के लिए उसने दूसरे सहारे को खोज की थी । उसके पहले पुत्र का नाम विलियम था। जब वाल्टर को अत्यधिक भोप »ा जाता, तद वह विलियम बी उसमे रक्षा किया करती । दास्टर उम्र स्वभाव का था जौर उसे भुद्ध होने मे देर नही लगती थी। वह वाल्टर को देनन्दिन जीवनरे के अभावों से पोडित विया करती । अब वह उससे प्यार नहीं करती थी । उसके लिए वह मानों एक बाहरी आदमी घा। विवाह के दो वर्ष बाद विलियम वा जन्म हुआ था और उसके दो वर्ष के उपरान्त ऐनी पैदा हुई थी। पाच साल बीत जाने पर पोल पेंदा हुआ थ(। पोल एक नाजुक बच्चा था । वह अल्हड नही था। उसरी प्रकृति सम्भीर थी। और गर्दहड ने जैसे उसपर अपना सारा प्यार उड्ेल दिया था । इन्ही दिनो घाल्टर बीमार पह गया। इस बीमारी में खिंचाव गुछ दूर हुए और भव वह ठीक हुआ तो पर में कुछ दिनों के लिए एक स्नेह की भावना उदित हुए और परिणामस्दरूप घर में चौथी सतान वा जन्म हुआ। इस पुत्र का नाम या आवेर। विलियम एड धार्टहैंड कद बन गया और सात्रि-्पाठशाला में पढ़ाने लगाव उसवी सामागिक महत्वाशंंधा बेड गई | गर्टरूड को अपने दस पुत्र पर गर्द था, कपोकि उसे ता्टियम में एश स्थान मिल गया थ।। लेकिन यह सह पसन्द नहों करती थी कि उसका पुत्र नृत्यों मे सम्मिलित होने के लिए जाएं। जब विलियम २० वर्ष का हुआ तो उसे लत्दत जाना पड़ा क्योकि वहा उसे १२० प्रौंड सालाना की आमदनी वध गईं थी । इसमे मां को बहुत दु श हुआ। वह मां थी और उसे ऐसा खगता जैसे विलियम उसके पास पै दूर हो जाने पर सचमुच उससे अलग हो जाएया और यह बात उसके हृदय में एक बेइना-टी भर देती | इस बीच एनी शिक्षिद्रा बनने के लिए अध्ययन कर रहो थी और पील वस्वे के पादरी की सहायता से दीजगणित तथा फ्रेंच और जमेन भाषाएं पह रहा या। ज्यो-ण्यों बह बड़ा होता गया, वह यतिष्ठ होता गया। हिल्‍्तु उसका वर्ण पुर ही बना रहा और प्रदृत्ि से वह अब भी गम्भीर था, चुप रहनेवाला। माता के अति बह सरेंग बहुत चैतन्य रहता। उसकी आज्ञाओ का पासन करता। उसी प्रशत्रि वदी भावुरु थी वह लोगो के बारे में क्या सोचठा है और लोग उसके बारे में कया सोचते हैं, इन दोनों दातो मे बढ़ जितान्त जापरई रहता । पिता बी दाराद पीने यो आदेश उसके लिए अछचिद्रश थी १७४ के मंसार के मदाव उन्‍न्‍्यान और पोल को यही बेइया होती जिसने गर्दहड़ के जीत को विषाक्त कर दिया था। विया ही प्रदूति का बर्दर रूप उसे पयरद महीं सा। परिवार में बाल्टर मौरेव वा जैन कोई श्थान नहीं सा। जद कमी त्योहारों पर को ई आतत्द इत्पादि मताया जाता ठद अवश्य उसे संगया कि उगरा भी अपना महत्व है, अन्यथा यह जँगे रहो हुए भी नहीं रहता था। विलियम सती स के दफार में काम करने सगा और जव छुट्टियों में धर आया ठव सह मजदूरवर्ग का सहीं दियाता था। यह सघ्यमतर्गीव सागरिक जैसा भद्पुदय दियाई देता था। यह सर था कि वह अपने परिवार को भूता नहीं, लेकित उसके साथ परेशानी मह थी कि सर्दन की डिस्गी बड़ी रर्मीली पी और घर भेजने के लिए उसके पास दमा नहीं बता था । उसका लिली वेस्टर्न तामक एक अभिमानिती युवती से सम्बन्ध स्थापित हुआ। भोदेल परियार पर इस युवती ने अपनी आजा चलाता प्रारम्भ किया। अधिक दित मी नहीं रही यह, मिलते आई थी वेस्टर बुद्द में, अपने होतेवाले पति के साय, उसक्रे परिवार से। वितियम इस तुनकमिजाज और गर्वीली लड़की को अपनी पत्नी के रूप में पाने की कल्पना से विचलित हो उठा, गयोंकि इस घर में यह ठीक नहीं बैठती, किन्तु उन्हीं दिनों उस्ते निमोनिया हो गया और मृत्यु ने उसकी समस्याओं का अन्त कर दिया। गर्देहूड के जीवन में मृत्यु ने एक रेखा सोच दी। महीनों तक वह इस दुःख से पीड़ित रही और तव उसने अपने जी बन का आधार पोल में दूढ़ना शुरू किया। मिस्टर जाईन नार्टिधम में डावटरी औडार और ओपधि इत्यादि बनाने का काम किया करते थे । चार वर्ष की अवस्था में पोल उनके यहां काम करने चला गया। रहेंगी यह अब भी घर ही था और रोज्ञ रेल से उसके यहां काम करने जाता और लोट आंता। उसे हफ्ते में आठ शिलिग मिलते थे। और पैसे उसके पास नहीं वच पाते,वे, लेकिन काएं। साना उसे अच्छा लगता था और उसे वहां काम करना पसन्द था। मोरेल परिवार के मित्रों में एक लिवियर परिवार भी था। लिवियर परिवार ने विली फार्म ले लिया थां। वह उजाड़-सा पड़ा था। उन लोगों ने उसको ले लिया और धरती को बोना प्रारम्भ किया । उनके परिवार में कई अन्य लड़के थे और पोल की उनतें मित्रता थी। वह उन लोगों से मिलने के लिए अकसर यहां जाया करता था। धीरे: अपने मित्रों की एक बहन मरियम पर उसका ध्यान केन्द्रित होने लया। मरियम उससे एक साल छोटी थी, लजीली, सुन्दर, धार्मिक और रोमाटिक थी, जैसे उसे उसके एहह- वाद ने प्रभावित कर लिया था। पोल के प्रति वह इतनी अनु रक्त हो गई कि मन ही 2 जैसे उसकी पूजा करने लग गई। उसके भाई बलिष्ठ और पौहय के प्रतीक ये। पोते कं कम नही था, लेफिन वह उनसे अधिक चतुर था और कोमल विनम्रता उसमें उन लोग से कही अधिक थी। उसकी माता अत्यन्त घामिक थी और पुत्री में भी उसका 8 मानो वह निरन्तर एक आवेश में रहती और पवित्र अनवन्ध जैसे उसे अनुष्राणित हे रहते। एक वार पोल बीमार पड़ा। दस महीने तक वह डुछछ नही कर सका और डे समय में मरियम से उसका सान्निष्य अधिक बना रहा। ते मरियम का रियर का काफी समय मिला । वे लोग सचमुच एक-दूसरे के प्रेम में पड़ गए ये। किन्‍्ठु म' पुत्र और प्रेमी रण कभी भी जैसे साधारण बनकर नही रहती थी । वह बपने को अस्ाघारण दनाएं रहने की चेप्टा करती और इसलिए कभी-कभी पोल को उससे घृणा होने लगठी। पोल उसको गणित सिखाने लगा । उसने उसे फेंच भाषा सिखाना प्रारम्भ किया और इस भाषा को सिखाने में वे अपने प्रेम को मुखरित करने में समय हुए। लेकिन कभी-कभी ऐसा लगता जैसे वह बैवल एक घाह्य अनुकृति-मात्र थी । इन्ही दिनों पोल दित्र बनाने लगा था और बह देखती थी, उसके चित्रों में उसकी आत्मा थी । इसको वे चित्र पोल से भी अधिक आकर्षक दिखाई देते और इस प्रकार मरियम ने अपने प्रेम को ऐसा आध्यात्मिक आवरण दे दिया कि बह इन दोनों के शारीरिक सम्पर्ों के दोच में एक व्यवघान बन गया मानो छलका प्रेस बेबल मानसिक था, उसका आश्रय कहीं देह मे नही था ( गर्टरूड को सह लड़की पसन्द सही थी जो कि उसके पुत्र पर पूरी तरह छा जाना चाहती थी। पोल अपनी बासनाओं का दमन करता था और इसमें उसपर बड़ी उदासी छा जाती थी, एक प्रकार की तिराशा-सी ब्याप्त हो जाती थी। गर्दरड इस बात को चुपचाप देखती थी और उसे उस लड़की से चिद्ठ होती थी। किन्तु अब यर्टरूड़ के स्वास्थ्य ने जवाब देना प्रारम्म कर दिया था। बह पोल को बरावर इस विषय में डांटती कि वह अपना इतना अधिक समय मरियम के साथ नप्ट न करे.। पोल बहता : मुझे सरियम से कोई प्रेम रहीं, में ठो। केैदल उसमे बात करने का शौकीन हूं, बादि। और इन विवादो में पोल ने अचानक ही मह अनुभव किया : मैं अपनी माता के जीवन का आधार हूं और मा मेरे लिए कितना बड़ा सहारा है। मरियम के साथ बह रहता तो वह अपने को अनिश्चय के जाल मे फसा हुआ पाता । लेकिन मां के पास जब बह रहता तो उसे लगता कि उसका जीवन अस्थिर नहीं है, उसे एक अदूट विश्राम मिल रहा है! यहां एक आधार है जिसमें समस्वय है, एक-दूसरे को समभने गी तावत है। यहां भात-मनोह्वत ओर गवे को अहम्मन्पता नहीं । यहा समन्वय है, समर्पण है और एक-दूसरे दे: लिए मिट जाने वी भावना है जो दिसी अपेश्ञा पर आधाएित नहीं । इसमे कोई स्पर्दा महीं। माँ ने कहा--और कोई स्त्री हो तो मुझे कोई विरोध नही लेकिन मरियम नही बयोकि बह तो सुभमे मेरे पुत्र को बिलवुल् छीन लेगो । उसके आ जाने पर मेरे लिए कोई स्थात नही रह जाएगा आदि ) और जब पोल ने कहा कि वह सरियम से प्रेम नही करता तो उसकी माता ने उसे हर्षातिरेक से चूम लिया, जैसे चिरकाल से रुष्टों में पा हुआ यह पत्र अब भी उसी भा था, वह उसके पास से दिता नहीं था। नारीवा यह दन्द कितना विचित्र था ! नई रुत्री सम्पूणंता से पोत को जीत सेना चाहती थी और दूसरी ओर माता अपने समस्त अधिदारों को खोल! नहीं छाहली थी । मरियम गो पोल पर पूर्ण विश्वास था। जब पोल ने उससे ब दवा कि वह उसे नहीं चाहता ठो उसने इसपर विश्वास हो नहीं शिया। उसने अपने-आपसे बहा पोल की आएमा को मरियम की जावश्यरता है। धीरे-धीरे पोल वा आना कम हो गया और उसने कहा कि वह अब उसके पास नहीं आएगा और अच्छा हो कि सरियम अपने लिए. कोई दूसरा स्यवित चुन ले। भरियम ने जद ऐगा गुदा तो उसकी इच्छा हुई हि बह जो- भरत रो ले। और इसके बाइ वह राचमुच बहुत कम आत़ा। सरिसम ने निश्चय विदा कं पं १७६ शंगार के मदान उपन्‍दास कि बड़ एक बार इसे विया में पोज की परीक्षा ले। उसे श्रीमती बवादा दोदिय तामक एक सुरदर सपी से उका परिवय कराया कवा रा हा बलि एड सोटार था। वह उससे धचय रहती थी और नारी आस्दीतन में स्पियों के अधियारों वे तिए लड़ने लगी यी। रत्री को मोंत देने वा अधिकार होता चाहिए--एत दिलों इसपर काफी मरग्नी थी काया सुररी भी । परगती घारीरिक गझल बहुत आतर्पक थी। और मरियिम उसके इस सौ्य मे प्रति अनुरतित को निचे स्वर की बात सममली थी। वह यह देसता चाटती थी हि पोल मे गिषये स्तर की अनुरकित थी या उच्च हार की। उन्च स्तर में वद भारीरिक आपपषंण को अधिड मदत्व नहीं देती थी। पोत बतारा से आजादी के साथ मजाक जिया गरता घा। उसके साय उसे सहज स्वामावितता का आनन्द मिचता था जो उसे मभरियम हैः साथ कमी भी प्राप्त नहीं हुआ, सेहिल मरियम कै आत्मगिशाम में जैसे वह गद्दी पुष्टि दे रहा घा कि बह अब भी उमीका था और बतारा उसयो नहीं जीव वाई थी। वोल केः जीवस में और भी परिवर्तन आए। घटनाएं उसके भावुक देनन्दित उतार-चढ़ाद को प्रभावित करती रहीं। ऐनी फा विवाद हो गया। कार्य र सेना में मस्ती हो गया और उसने भी विवाह फर लिया । पोल की चित्रकला बढ़ती रही और उसे अब पुरस्तार भी मिलते लगे एक दिन वाल्टर मोरेल के साथ पान में दुर्घटना द्वो गई। उसका पर कुचल गया और परि- णामस्वरूप अपनी ढलती आयु में वह कुछ संगड़ाने लगा। रत पोल तेईस वर्ष का हो गया था । आज तक उसका किस्ती स्त्री से शारीरिक सम्पक नहीं हुआ था। उसे प्रेम का यह स्यूल अनुभव ब्राप्त नहीं हो सका था। अब भी वह अपनी माता को सेवा में रहता । यद्यपि मां बीमार यी, गरीव थी, किन्तु उसे इसका 0449 उसका पुत्र उसके पास था और वह अपने सारे कप्टों को बड़े साहम के साथ थी + उसके लिए उसका पुत्र ही सव बुद्ध या । अब भी वह यही सोचती थी कि पोल के वह इस बात को याद करती जीवन वा सुख नप्ट करनेवाली स्त्री मरियम हीथी और जब तो पुत्र की बेदता उसके हृदय को ध्यादुल कर देती । पोल बहुत दिन तक मर्िम कैपाय नही गया । मद्दीमों बीत गएं। लेकिन जब वसन्‍्त आया तो बब की वार वह स्वयं उद्की परीक्षा लेने गया । आज तक वह उस्ते कभी चूम नहीं सका था। वह कभी अपने प्रेम की अभिव्यवित नहीं कर सका था। उसने उस व्यवधीत को तोड़ दिया। एक दिन वत में सार घिरने लगी और उस ढलते अन्यकार में मरियम ने पोल के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। किन्तु यह मानो मरियम की ओर से किया गया एक बलिदान था जिसमें उसे एव विचित्र-सा भय हुआ ; भारी आवाज का यह वलिष्ठ युवक उसके लिए जैसे एक था। पोल को लगा कि वह उसके आलियन में वद्ध एक विचित्र विरोध का अवुभर हक रहा था। और क्षण-मर उस्ते ऐसा लगा कि यह एक उन्मुक्त तम्मयता थी जिततमें वीर उसे बहुत, बहुत अधिक प्यार भी व्यववान महीं था। एक क्षण उसे ऐसा लगा जैसे वह किर करता था। किन्तु यह एक छाया थी | जाई और चली गई और चले जाने के बाई फ़िर कभी लोटकर नहीं आई । अब बजारा उसके जीवन में प्रमुख हो गई। उसका स्नेह उत्तकों अपनी ओर घुत्र और प्रेमी श्छछ खीचने लगा। जाइंन फैक्टरी में पोल ने ही उसको काम्र दिलाया था। और इस बीच में उसने उसके सम्पर्क मे आने पर उसके स्वभाव के अनेक रूप देखे । मश्यिम से आठ वर्ष के सम्पर्क एक दिन बातों ही वातों में टूट गए। उन बातों में स्नेह नहीं था, एक कदुता थी ओर अब वह क्‍्लारा के साथ घूमने लया और एक दिन वह उसे ट्रेष्ट के तीर पर ले गया। अपनी वरसाती छो उससे वृक्षों के बीच की भीगी हुई घरती पर विछा दिया। उसने अपने मुख को उसकी ग्रीवा पर रख दिया। सव कुछ प्रश्ञान्त निस्तब्ध था। दोपहर ढलने लगी थी और वहां कोई नहीं था । तव क्लारा ने उसे अपने पति वेवस्टर डोवेस के बारे भे बताया कि वह उसके साथ तीन वर्ष रहकर भी उसे कभी समम नहीं पाई थी। और कलारा का गर्टरूड ने स्वागत किया, ऐसा जैसा उसने मरियम का कभी नही किया था। यह बात धीरे-धीरे वेसस्टर तक पहुच गई। सराय मे वेवस्टर ने इसपर एक दिन व्यंग्य भी किया। पोल ऋ्रुद्ध हो उठा और उसने सबके दीच में अपने हाथ की शराब वेक्सटर के मुंह पर उछाल दी । वेकस्टर लोहार था और उसने इसका प्रतिशोध लेते की प्रतिज्ञा की ।बलारा ने पोल से कहा : वात बढ़ चुकी है | कौन जानता है वह किस समय वया कर देया, इसलिए तुम्हें अपनी रक्षा करते को अपने पास आयुध अवश्य रखना चाहिए। जब पोल ने अस्वीकार कर दिया तो वह कुद्ध हो गई । पोल ओर क्लारा के बीच का मुख्य सम्बन्ध शारीरिक था। और पोल ने उसके मुख से यह भी निकलवा लिया कि अब भी वह डोबेस को अपना समझती थी । कतारा ने यह भी कहा कि वेवस्टर ने अपना सव कुछ वलारा को दे दिया था और वह जानती थी हि पोल वैसा सम्पूर्ण समपरेण उसके सामते कभी भी नही कर सकेगा। एक रात डोदेस ने पोल को अकेले मे घेर लिया । पोल ने उससे यथपि लड़ाई लड़ी लेकिन फिर भी उसने उसकी कसकर पिटाई कर दी और इसके बाद पोल ब्लारा में दूर-दूर रहने लगा । यर्टरूड ऐनी से मिलने के लिए शेफील्ड चली गई और वहां इतनी बीमार पड़ गई कि उसके बचने की उम्मीद नही रही। उसे भयावक कप्ट हो रहा था और उस पीडा मे ही उसे धर ले आया गया और उसकी मौत का इन्तज़ार किया जाने लगा। इस बीच पोल ने डोजेस से मित्रता कर ली और क्लारा को उससे मिला दिया। परोल अपनी माता वा इस प्रकार धीरे-धीरे मरना न देख सका । यर्टरूड जीवद के यथार्थ को अब भी नहीं भूत्ती थी और वह जान-दूभक्र इसलिए बहुत कम खांती थी ताकि जल्दी से जल्दी मर सक्े। किन्तु इस प्रकार उसे मरते हुए देखना एक बहुत ही कठिन काम था। अन्त में पोल और ऐज़ी ने उसे दवाई बेः रूप मे अधिक सात्रा मे अकोम दे दी। पोल उसकी दण्या के समीप घुटने टेककर वैठ गया। उसने माता के क्षीण शरीर से आलिगन किया और बुद- चुदाया : मां, ओ मेरी मा, ओ मेरे जोवन के प्यार को आधार !” पोल को ऐसा लगा जंसे मो को दह कभी जाते नही देया । मई के प्रति छो उसका प्यार था चह उसके लिए सर्वश्रेष्ठ था, सर्वोपरि घा। आज यह उसका सम्दल था। महीनों और बीत गए । जैसे उसे एक धुधियाली-सी चौंध घेरे रही । अब पोल को पता नहीं था कि बया करे। और त्तमी उसे नाद्थिम मे फिर * र्फ्र संसार के महास उपत्याग मरियम मिली । लेकिन अब भी वह केवल उसके सामने अपना बलिदान दे सकती थी। बह उसके साथ उम्रका भार उठाने में असमर्थ थी । मरियम का ध्यात छोड़कर पोल फिर अपनी मां के बारे में सोचने लगा। वही टो एक चोज़ थी जिसने उसे जीवन में अभी तक वनाए रखा था। पर नहीं, अब वह सब-जुध त्याग करना नहीं चाहता था। उसने उसके प्रास जाकर अपने-आपको खो देने की कत्पता को भी त्याग दिया और नगर की चकाचौंथ की ओर चल पड़ा । इस उपन्यास में लररेन्स मे एक विधित्र मानसिक विश्लेयण की प्रक्रिया दियाई हँ--जीवन के शाइवत अनृवन्धों में पुरुष मां और प्रिया के बोच अपने क्षणों को ब्यतीत करता हे । दोनों ही मूल प्रवृत्तियां हें--एक में उदारता का उत्तर* दायित्व मिलता है और दूसरी ओर रहती है वासता। इन दोनों संर्य में व्यक्ति एक समन्वय करता हुआ सा डोलता है । यह सत्य हैँ कि मनुष्य के जोदन में एक शारीरिक भूख है किन्तु उसते भो बड़ी प्यास उत्तकों ब्ात्मा को है ओर यह भी एक बड़ा सत्य है कि यदि दोनों का समन्वय-रे्ा पर मिलात नहीं होता तो जीवन में एक सूनापन-सा आ जाता हूँ: सारेम्स मे इन्हों उतार-चद़ावों का वर्णन किया है और पोल के चरित्र के माध्यम से उसने इन समस्याओं को सुत- झाने को बजाए उजागर करने को चेष्टा को हूँ । पर्नेस्ट हेमिग्वे सागर और मनुष्य [द भोल्ड मेन एण्ड द सी] हेमिग्वे, भर्नेरट : भंग जो साहित्यकार अनेस्ट हेमिंग्वे का जन्म २१ जुलाई, १८९८ को भोक पार्क, इलिनोइस में हुआ। झगप कैन्तास के पत्र-संदाददाता हो गए और लिखना शुरू किया | प्रथम मदायद में झाष के चसेना में एम्जुलेन्स द्वाइवर बन गए भौर बाई में आपने हटैलियन सेना में काये किया | युद्ध के बाद झाप टॉरैटो के पत्र “स्टार के लिए पूर्दी संवाददाता बनकर यद्ध का वर्णन लिखने लगे। फिर अमेरिकन एक्स- पैट्रियेणय णु० के सदस्य बनकर पेरिस में इस गए | १६२७ में आपका प्रसिद्र उपब्यात्त 'ए फेयरवैल द्ध भाग्से! निकला | १६३७-३८ में स्पेन के गृदयुद्ध में सवाददाता बन- कर गए | आपने एक प्रकार तथा लेखिका मर्षो दौलहॉ्न से १६४१ में विवाइ किया | १६६९ में बंदूक साफ करदे समय गरोड़ो चल जाने से भापकी सृत्यु दो गई। भापको नोबल पुरस्कार मिला था। “सागर भौर मनुष्य” (६ भोल्ड मैन एएड द सी) भापका एक मदन उपस्यास है, यद्यपि यद््‌ बहुत बद नहीं है! उप्पप्रदेशीय समुद्र में एक छोटी-सो नाव पर सैटियागों नामक बूढा मछुआ मछली पकडा करता था। दुवला-पतला शरीर, गईन की पिछली ओर पड़ी भूरियां, गालों पर भूरे घब्वे और हाथो के ऊपरमछली पकड़नेवाले रस्सों के चिह्ववाला सै टियागो साहंसी और आश्ावादी यथा, पराजय स्वीकार करना तो वह जानता ही ने था। मैनोलिन मामक एक लडका उसके साय मछलो पकड़ा करता था। मैनोलित को उसने पांच वर्ष की आयु से हो मछली पकडना सिखाया था, इसलिए बह उससे बहुत स्नेह करता था। एक बार चालीस दिन तक उनके हाथ एक भी मछली नहीं लगी तो मैनोलित के मा-बाप ने उसे दूसरी नाव पर मछली पकड़ने भेज दिया । अब भी मैनोलिन रस्से, अकुश, भाले और पाल को घर तक लाने मे बूढ़े की सहायता करता था और उसे दीयर, काफी, भोजन की अन्य वस्तुए तथा चारे के लिए मदछलियां दे जाता था। इसी तरह बूडा सैटियागो भी लड़के से प्रेम करता था। वह उसे अपने योवन की साहसपूर्ण कहानिया सुनाया करता । दूसरी माव पर जाने के पश्चात्‌ मैनोलिन को तो मछलियां हाथ लगने लगी थीं, परन्तु सैटियागों चोरासी दिन १. एफ 0!4 १ #ापे पक 523 (77०5६ प्ल्कााएचगड़) --इस उपन्‍्वास को दिल्‍्दो भनुवाद दो चुका दै : (सागर और मनुष्य५ अनुवाइक--भानन्दप्रकारा जैन 3 प्रकाशक-- राब्पाल पढ्ड छन्स, दिल्‍ली $ १६० गंगार के मड़ात उायात सके शातों हाथ ही सौटज रहा। बढ़ दृस्द्दृर सच समुर में विरठ जाता शिल्दु माय उगता साय नहीं दे रहा था । दूसरे मन ते यूद्े तीटियागो की हँसी उड़ाना आरस्म कर दिया था, किर भी बढ़े विचतित सहीं हुआ। सैनोविन को बूड़े की शक्ति और मद्री पड़ते की बु शतता पर पूर्ण विश्शेश था। दूसरों के झरा ही उड़ाए जाते पर भी वह निराग गरीं हुआ था । ८४यें दिन जब बूढ़ा सैटियागो नाक लेार चलते सगा सो सैनोजित ने उसे एक बहुला और दो चारा मश॒लियां दीं। सैंटियागों सा सेता हुआ खुद्टर समुद्र में बढ़ता ही भला गया। उसे आगयपास कोर्ट भी दूसदी साव नहीं थी। दस प्रसार अकै ते में उसे उड़न- मछतलियां और छोटी मिड़ियाए बहुत अच्छी सगती थीं। समुद्र की कहना बह स्त्री हप में फिया करता था । बन्दरगाढ़ गे यह मुह अपेरे ही चल दिया था और जब सूर्य वी किरणें सागर के यक्ष पर चमऊफने सर्गों सो उसने कांटों में घारा मछती लगाई और उन्हें पानी में छोड़ दिया। शुद्ध देर बाद अबानक ही उसकी दृष्टि पानी में से उदधनती हुई उड़नम्ठत्तिपों पर पड्टी और उसे उग ध्यान पर धनिष्ठा मछली के होने का विश्वास हो गया। एक छोटे गांटे में बहुला मछली फसाकर रीटियागो ने उसी स्थान पर छोड़ दी। फुछ देर बाद ही यूढ़े के कांटे में लगभग दस पौंड की एक मारिका मछली फरस गई; जिसे उसने नाव पर रींच लिया । दोपहर के समय सौ घनुमान नीचे लटकते बांटे में एक बड़ा मच्छ फसा और उत्तर पश्चिम की ओर चल पड़ा । बूद्ा पहले तो रस्से को हाय से ही पकड़े रहा फिर कमर पर थामे रखा। मच्छ इतना शक्तिशाली या कि नाव को खींच ले चला। [ूई ने मुड़कर देखा परन्तु कहीं थल दिखाई नहीं देता था। प्यास लगने पर उसने घुटनों के बल भऋुककर बोतल में से पानी प्रिया और नाव में पड़े हुए मस्तूल और पाल पर बैंठ गया। उसकी पीठ और हाथ-परों पर पसीना वह रहा था तथा सिर पर फंसा हुआ विनके का डोप उसे काटने लगा था। इसी तरह कष्ट सहते सेटियागो को रात हो गई मर शरीर पर का पसीना ठंड पाकर जम गया । रस्सा अब उसकी कमर पर गड़ते लगा था इसलिए कांटे के बकस को ढकनेवाले बोरिए को उसने गरदन से इस तरह बांबा कि पीठ पर लदक* कर वह रस्से के नीचे गद्टे का काम देने लगा ! अब बूढ़ा सैंटियागो नाव के धनुष के सहारे कुछ इस तरह भुक-गया कि उसे पहले से कम कप्ट अनुमव होने लगा। इस सवा रह-रहकर उसे मैनोलिन की याद आ रही थी, अकेलापन उसे खलने लगा था। सवेरा होने से कुछ पहले एक कांटे को किसी मछली मे निगला, बूढे ने इस रस्से को ही काड दिया। वह इस बड़े मच्छ को छोड़ना नहीं चाहता था जोकि नाव को खोचे चल हि था। बूढ़े ने अंधेरे में ही शेप डोर को काटकर आपस में वांघ लिया । इसी बीच मर एक जोर का भटका दिया जिससे बूढ़ा मुह के बल गिर पड़ा और उसकी एक आंख नीचे घाव हो गया। सुवह होते ही सैटियागो ने रस्से का तवाद बड़ा लिया, जिससे मच्च उछले और उसकी रीढ़ की थैलियों में हवा भर जाए; क्योकि हवा भरने से किए बी गहरे पानी में नहीं जा सकता ! कुछ देर में ही बूड़े ने देश लिया कि रस्सा कि * , ज। सकता अस्यया टूट जाने का मय है। तभी एक छोटी-सी विड़िया नाव सागर भौर मनुष्य श्ष१़ बठी और बूढ़ा उससे बात करने लगा । उसी समय मच्छ ने अचानक ऐसा भटका दिया कि सैटियायो को घनुप तक सीच लिया। बूढा यदि रस्से को थोडी ढील न देता तो उचढ- कर पानी में गिर पड़ता) इस भटके से बूढ़े का हाथ भी कट गया था जिये उसने समुद्र के पानी में मिगोकर ठीक करने की चेप्टा की। जब हाथ को सुखा लिया तो रस्से को बाये कंधे पर रखे-रखे ही उसने चिपिटा मछली को चाकू से काटकर खाया। उसका बायां हाथ अब अकड़ने लगा था और रस्से पर कसी हुई उगलियां दोहरी होने लगी थी। बायें पैर को रस्से पर रखकर वह पीछे मुका और पीठ के सहारे लेट गया! अकडे हुए हाथ की उंगलियों को पतलून से रगड़कर उसने खोलना चाहा परम्तु उसे सफलता नहीं , मिल्री। प्रात:काल ही भच्छ पानी के ऊपर आया और फिर पानी के भीतर चला गया। बूढ़े ने देखा कि मच्छु का आकार नाव से भी दो फुट अधिक लम्बा था। हाथ के न खुलने से बूढ़ा बड़बड़ाने लगा था किन्तु दोपहर के समय वह भी खुल गया। अब मच्छ उत्तर- पूर्वों कोण की ओर घूमने लगा। बूढ़े की पीठ मे वहुत ज़ोर से दर्द होने लगा था, किन्तु बह निराश नहीं हुआ। साहस जुटाने के लिए वह माता मेरी की प्रार्थना करने लगा। अब उसके मस्तिथ्क मे पानी के भीतर तैरते मच्छ का चित्र बन रहा था और वह उसका शिकार करने की योजना बना रहा था । सच्छ समुद्र के गहरे पानी में आगे बढता रहा और साथ-ही-साथ सै टियागो की नाव भी चलती गई। इसी प्रकार सूर्य डब गया और रात्रि का अन्धकार समुद्र के वक्ष पर दूर-दूर तक फैल गया। सैटियागों आत्मविश्वास जगाने के लिए अपने योवन के साहसिक कार्यों को स्मरण करने लगा। वह जब युवक था तव कंसाब्लेंका के एक मदिरालय में उसने एक विशालकाय मीग्रो से पजा लड़ाने का खेल खेला था। पूरे एक दिन और एक रात तक सेल चलता रहा था, फिर भी अन्त मे उसने हब्शी पहलवान का पजा भुकाकर बाजी जीत ली थी । इस घटना के वाद से ही सव लोग उसे 'चैम्पियन' बेः नाम से पुकारने लगे थे। इस घटना का स्मरण करके बूढा सै टियागो अपने-आपमे शक्ति अनुभव करने लगा। अंबेरा होने से पूवे बूढ़े ने छोटे काटे मे फताकर एक घनिष्ठा मछलो पकड लो थी। नाव पर खोंचने के बाद जब मछली फड़फड़ाने लगी तो उसने मूगरी के प्रह्यर से उसे 5डा कर दिया । काटा मछली से निकालकर उसने दूसरी बहुला का चारा लगाया और फिर संमुद में फेंक दिया । अब बूढ़े ने रस्सा अपने दूसरे कल्वे पर बदल लिया था। सैटियागो की शक्ति अब जवाब देने लगी थी, उसको कमर मे दर्दे घा और अब अवसन्नता में ददलने लगा था। कुछ आराम करने के विचार से यह नाव के घनुप की सकडी से सीता लगाकर पड़ गया । उसे हर समय यह आशका सठा रही थी कि यदि मच्छ सारी रस्सी खीच ले गया तो क्या होगा। पहले तो उसने रस्से को भौका से बाधने की दात सोची फिर मच्छ द्वारा तोड़ देने के डर से उसने वैसा नही किया । बायें हाथ से रस्से को समाले वह घुटने के बस चलते हुए नाव के पिछले भाग में गया ओर दायें हाथ से चाकू खोलकर घनिष्ठा को 'चौर डाला। जब उसने मछली कली अन्तड़िया निवालकर समुद्र मे फेक दीं तो उसे मछली का मेदा कुछ भारी लगा। मेदे को चीरने पर सैटियागो को उसमे दो उड़नमछलियां पिली जोकि अभी तक दाडी थीं। पनिष्य को थांखें उतारकर यूड़े ने बस्थिपजर सागर श्ष्र संसार के महान उपन्यास में फेंक दिया और उड़नमछलियों को घनिष्ठा की कटी हुई पद्टियों में लपेटकर रख दिया। इतना कुछ करने के बाद उसे रस्से की चुन अनुभव होने लगी भर उसने रस्सा दूसरे कन्धे पर बदल लिया । झक्ति बनाए रखने को बूढ़ा धनिष्ठा की कटी हुई फांकों को खाने लगा। रह-रहकर उसे नमक तथा नींबू का अभाव खटक रहा था । फ़िर भी वह उसे कच्ची चवा गया। इसके पश्चात्‌ सैटियागो ने सोने की आवश्यकता अनुभव की। रस्से को दायें हाथ से पकड़कर वह धनुष की लकड़ी के सहारे पड़ गया, वायां हाथ उसने रस्से के ऊपर रख लिया जिससे सोते-सोते यदि दायां हाथ ढीला पड़े तो बायां उसे जगा दे | सारे शरीर का बोक रस्से पर डाले हुए हीं वह आँधे मुँह सो गया। नींद में, जँसाकि उसका स्वभाव था, उसने सपना देखा। सपने में उसे शेर दिखाई देते रहे; और नाव स्वाभाविक गति से मच्छ के साथ-साथ आगे बढ़ती गई। अचानक रस्सा नाव से बाहर खिचने लगा और वूरे के दायें हाथ की मुट्ठी कटके से मुह पर लगी जिससे उसकी आंख खुल गई। जैसे-तैसे बायें हाथ से उसने रस्सी पकड़ी और पीछे कौ ओर भुक यया। रस्से के सिचाव से उसकी पीठ और हाथ में जलन होने लगी थी। धीरे-धीरे मच्छ ऊपर आया और उछलकर फिर पानी में गिरा। इसी तरह मच्छ ने एक दर्जन से ऊपर उछाले लिए जिससे उसकी पतियों में हवा भर गईं। बूढ़ा सोच रहा या कि अब मच्छ चक्कर काटना प्रारम्म कर देगा और तभी उसका शिकार करना होगा । मच्छ अब थककर घारा के साथ ही पूरव की ओर चतने लगा या। बूढ़े का बायां हाथ रस्से की रगड़ से कट गया या, उसे उसने नाव के एक तरफ से समुद्र में डाले रखा । जब बूढ़े के मस्तिष्क में धुधलका छाने लगा तो उसने शक्ति अजित करने के लिए घनिष्ठा के पेट से निकली उड़नमछली सा ली। मच्छ ने भी घक्‍्कर काटना प्रारम्भ कर दिया या। भच्छ चक्कर काटता ही रहा और दूहां पीने से तर हो गया, उसकी आंखों के आगे तिरमिरे आते रहे। दो बार तो उसे मुर्च्चा-सी भाती प्रतीत हुई, जिससे वह चितित हो उठा। मूर्योदिय पहले ही हो चुका था और तिजारती हवा भी उठते लगी पी । धीरे-धीरे विशालकाय मच्छ, जिसके ऊपर कि जामनी धारियां पड़ी हुई थीं, पानी के ऊपर भा गया। प्रत्येक घककर के बाद बूढ़ा रससा करता जा रहा था और सोच रहा था कि ज॑से ही मस्य नाव के निकट आए वह भाले से उसे मार दे। यूढ्ें को एक बार फिर मूर्ख्या आने झगी, परन्तु पूरी शक्ति से उसने रस्मा खींचना जारी रता। रह-रहकर सैंटियागों के गिए में चक्कर आ रहे ये, वह कमजोरी महयूग कर रहा घा। कई बार के प्रयात के परचात्‌ उसने मच्छ को नाव के निकट खींच लिया और मच्छ एक तरफ से उलद गया। पूरी झड्िति सगाकर बूडे मैंटियागों ने माला मच्छ की पाल में थोप दिया। मच्य दे के साथ इुई़े की नाव पर छोटें मारता हुआ जल में गिर गया और बूढ़े को किए मूर्च्शा ते दद्ाना आारम्म किया उसे स्पष्ट रूप से दिखाई देता भी कटित हो गया । आमविशारग के साथ सैटियागों ने अपने-आपतों समाचा। मच्छ अब पलद गया था और उा बे आकाश की ओर या। घाद मे रक्त बह-वहकर पाती में छत गया वा। बूई ने रहो डी सींचकर मच्छ को अपनी ओर सीच लिया और उठे नाव डे खाव बाय दिया । मध्य शे कल है कसी $ श्र देखकर बूढ्दे ने मत हो मन हिसाव सगाया कि उसका वज्भन डेढ़ हार पौड़ के लगभग होगा। भस्तूल्त खड़ा करके उसने पाल उठा दिया और नाव के पिछले भाग में लेटा हुआ दक्षिण-पश्चिम की ओर चल पड़ा। चकरी से वह नाव चलाता जा रहा था। अब बूढ़े सैटियागो को पग्राह मगच्छों के आने का भय था। यदि वे दल बाँवकर आए तो मच्छ का सफाया कर जाएंगे, यही सोचकर बूढ्ा चितित हो उठा। समुद्र में दूर- दूर तक बूड़े को नाव से बंधे मच्छ का रक्त फैल गया था जिसकी भन्‍्ध पाकर एक माको ग्राह बूढ़े की नाव की ओर बढ़ा था रहा था । बूढ़े ने मच्छ की रक्षा के लिए भाला तैयार कर लिया। अब तक यूड़ा फिर से स्वस्थ हो चुका था । प्राह ने नाव के पीछे से आकर मच्छ के पिछले भाग में मुंह मारा। जैसे ही बुढ़े ने मच्छ की खाल फटने का शोर सुना वह क्रोषित हो उठा और ग्राह के मस्तक में उसने भाला घोंप दिया। ग्राह तडपकर मर गया और भाले को साथ लिए समुद्रतल में चला यया। बूढ़े को यह आशंका होने लगी थी कि इउना अच्छा मच्छ वह बन्दरगाह तक कठिताई से ही सुरक्षित ले जा सकेगा। ग्राह के दशरा मच्छ का मास कटने से भी बूढ़ा चितित हो उठा । सब कुछ होने पर भी बूढ़े से टियायो के दु्देमनीय आत्मविश्वास को देखकर मानव- प्रदृति का एक उज्ज्वल पक्ष सामने आता है। “मनुष्य का निर्माण पराजय स्वीकार करने कै लिए नहीं हुआ। मनुष्य नप्ट किया जा सकता है, परन्तु हराया नही जा सकता ।/-- बूढ़े सैटियायो के थे शब्द मानव की अपराजेय भावनाओं का प्रतीक है। जव से प्राह ने मच्छ का मांस काटा और वह बूढ़ें के भाले को लेकर प्रमुद्रतल में देठ गया, तभी से उसे मच्छ की रद की चिता हो उठी। अब उसके पास ग्राहो का सामना करे के लिए कोई शस्त्र न या। साहसी बूढ़े ने अन्त में एक उपाय खोज ही लिया। उसमे ऐ चणु के एक डडे में चाकू वांघकर भाला जैसा बना लिया । जिस स्थान से ग्राह मच्छ ॥ मांस नोच ले यया था वही से सैटियागो ने थोड़ा-सा मांस नोचा और चबाने लगा। मांस मधुर लगा और वह कई टुकड़े खा यया। दो घंटे तक बूढ़ा आराम से नाव में पता रहा, इसके पश्चात्‌ दो मयंकर ग्राहों ने मच्छ पर आक्रमण किया। एक ग्राह की आंख मदद ने चाकू घुसेड़ दिया और फिर मस्तक में घोंपा जिससे मच्छ को घोडकर वह चक्कर धाता हुआ समुद्र में खो गया। दूसरा ग्राह नाव के नीचे था, परन्तु बूढ़े ने नाव को एक शोर भुकाकर उसके सिर मे चाकू घोंप दिया। ग्राह पर इसका जब कोई प्रभाव नही हुआ गे बड़े ने उसकी रीढ़ व सिर के बीचवाले स्थान में ज़ोर से चाकू घुसेड़ा, जिससे प्राह के शोमल परन्तु कट गए और वह भच्छ को छोड़कर पानी में बैठ गया। कुछ ही देर बीती होयी कि फिर एक ग्राह ने मच्छ पर चोट की । बूढ़े सैटियागों गैग्राह के सिर मे चाकू घोषा तो उसने पीछे की ओर झटका मारा और चाकू का फलका # गया। भ्राह तो धीरे-धीरे पानी में डूब गया किन्तु बूढ़े सैंटियागो के पास आगे आने- ते प्राहों से लड़ने के लिए छोटी मूगरी, चकरी का डडा ठया दो चप्पुओं के अतिरिक्त £थ नही रह गया था। बकुश तो था परन्तु उससे लड़ने में कोई लाभ नही था। इतने गहों से लड़कर बूढ़ा अब थक भी गया था। उसने सूर्यास्त के समय फिर दो ग्राहो को 'शिय्ते देखा। जब भच्च के छरीर में गाहों ने दांत यड़ाए तो बूढ़े ने ग्राहों के जबड़ों पर 5434 + शांगार के मद्ात रपन्यान मूगरों बरगाना प्रारम्भ कर दिया। एफ प्राह तो पहली चोट में ही मर गया परन्तु दूबता मच्च का मांग नोचता रद्द । यूटे में उसके मस्तक कै नीचे की हर्‌ई मूगरी की चोट ते तोड़ दी जिगये वह भी चर सगाता हुआ जल में बंठ गया। जैसे-जैसे प्रंधेरा बढ़ता जा रहा था, बूड़ा चिस्तित होता जा रहा थां। मच्छ का कैवत आया माग हो अउ बच रहा था। लगभग दस बजे उसे मगर का प्रकाश दिखाई पड़ने लगा, उसी ओर उसने दाव छेना आरस्म कर दिया। उसके छाटीर में अब पीड़ा होने लगी थी, ध्वरीर कड़ान्या पड़ गया था ओर धावों में जलत मचने लगी थी । आधी रात के समय प्राह दल वांघकर मच्छ पर टूट पढ़ें । बूढ़े ने प्राणों का मोह छोड़कर ग्राहों पर मूगरी वरसाई जिससे बहुत-सों के जबड़े टूट गए, परन्तु किसी प्राह के पकड़ लेने से मूगरी उसके हाय से छूट गई। मल्लाकर बूरं ने नाव घलाने का डडा उखाड़ लिया और पग्राहों को मारते लगा। ग्राहों के द्वारा नोचा हुआ मच्छ का मांस समुद्र में छितरा रहा या । एक बार तो ग्राह लौटकर चले गए डिलु कुछ देर पश्चात्‌ ही एक ग्राह मच्छ केः मस्तक पर झपटा । ग्राह के दांत मच्छ के मत्तक में घुस गए तो बूढ़ें ने उप्र डडा मारना आरम्म कर दिया। मारते-मारते डंडा टूट गया तो बूढ़ा टूटे हुए डडे से ही उसे मारता रहा। टूटा हुआ डंडा बूढ़े ने ग्राह के शरोर में घुमेड़ दिया भिससे वह चक्कर लगाता हुआ उलट गया। इस लड़ाई में बूड़ें सैँटियागो ने अपनी पूर्ण शक्ति लगा दी थी । उमके मुह में रक्त आ गया था और सांस कठिनाई से चल रही थी। ग्राहों ने मच्छ का पूरा मांस नोच लिया था और बूढ़ा समझ गया यथा कि अब वह पराजित हो चुका है। उसने वोरा अपने कन्धो पर डाल दिया और नाव सेने लगा। अब वह अपने विस्तर के बारे में सोचने लगा और बन्दरगाह की ओर बढ़ चला। ग्राहों का दल फिर से मच्छ के ढांचे पर टूट रहा था परन्तु बूढ़ा अब निश्चित होकर बैठा था। वह जानता था कि बचाने को अब कुछ रह ही नहीं गया था । जब सैंटियागो की नाव बन्दरगाह में पहुची तो वहां सन्नाटा छाया हुआ था। गई मछुएं उस समय तक अपने-अपने घरो में सोए हुए थे। बूढे ने मस्तूल को उस्ाउकर पाते उससे लपेटा और कथे पर रखकर अपनी भोपड़ी को ओर चलने लगा। नाव उसने बी एक चट्टान से वांघ दी थी । जब मुड़कर उसने नाव के साथ बधे विद्याल मच्छु के अस्वि- पंजर को देखा तो उसकी झबित क्षीण होने लगी । अपनी झोपड़ी तक पहुंचने में उसे रत में पांच बार बैठना पड़ा । एक बार तो वह गिर ही पड़ा या। झोपड़ी में पहुचकर उसने मस्तूल दीवार के सहारे रखा और बोतल से पानी पीकर बिस्तर पर लेट गया। कम्बल' से उसने अपना शरीर ढक लिया । हु पड़ी ते सबेरा होते ही मैनोलित उसकी झोपड़ी में आया और बूढ़े के लिए कॉई बे आया । घाट पर बहुत-से मछए बूढ़े की माव के पास खड़े थे । एक मछुएं ने र्स्से हक । कर बताया कि मच्छ की लम्बाई अद्ठारह फुट थी / सभी इसपर आरइचर्य कर हैं हु इतना बड़ा मच्छ कभी किसीने नहीं पकड़ा था । वि जब मैनोलिन ने बूढ़े को कॉफी का गिलास पकड़ाया तो सैंटियायो ते वहा हि उसे मच्छों ने हरा दिया था। उसने अपने भाग्य को कोसा ! अन्त मे, मैनोवित के यद कहने ध 3 2 , बूढ़ा पर कि वह थव उसीके साथ मछली पकड़ेगा और उसने अब कुछ पैसा जोड़ तिया आर सागर और मनुष्य श्ष्श्‌ अपनी पराजय की बात भूल गया और नये चाकू, भाले और दूसरी अन्य वस्तुएं खरीद- कर मछली पकड़ने की योजना बनाने लगा । मेनोलिन बूढ़े के लिए भोजन और अखबार लेने चला गया । साथ ही उसके हाथों के लिए दवा लाने को भी कह गया। बूढ़ा फिर अपनी झोपड़ी में स्रो गया और शेरों के सपने देखने लगा। इस उपन्यास में समुद्र को भयंकरता को पृष्ठभूमि पर मनुष्य के अदम्य जोवन का जो चित्रण किया गया है, वहू वास्तव में बहुत हो प्रभावोत्पादक हूँ । लेखक ने जीवन के संधर्ष को बहुत ही निकटता से देखा हूँ । वाहतेरनाक: डॉ० ज़िवागो! दारोरनाक, शो रेस नियो निशेवित :झुसी नेराह जो टिस जियो निशेविच प्रो रता इ बा रूम मार्क में १८४ में दुभा | १4६० में भापधी कसर रोग से स॒स्यू हों दे | झाप सगत में ददूत रवि लेते से । झापते मारहों विशशीदालय में भ्यदन डिया। प्रन्‍न विश्व द्ध के समय झऋप प्र्त $एी हगा भविध्यगरी कं में थे | 4िवीय विशयुर में भापने प्रा के मझ काएसाने में काय दिया झआापड़ों कविताएं अत्यन्त प्रसिर है। झापके रोक्मगीयर के भनुताईों को हवंसास्मति से स्यातनि मिजी दै। “हां शिवागो' भाषश पड़ बहुनयित उपन्‍्यास है। इसपर भाषशें नोवल पुरस्कार मिखा। दस उः्स्पास में राजन वि के शिपय में भापक्े विवार बइुत किगदासर रहे । हसतीपत में झागका उपस्यास कष्ानक छू से घटिया गा और पीचदीया ने एस उपस्याप्त को मद्ाकृति कइ! | यार एक मनोरे हानिक उयन्‍्यास है। यूरा का पिता झिवागों प्रसिद्ध सदमीपति था। वह साइवेरिया में वेश्यागमत और मदिरापान में व्यस्त रहता था। यूरा की मां मारया निकोलायेवना को उसने दोड़ रखा या, परन्तु यह यात उसे मां की मृत्यु के पर्चात्‌ ही मालूम हुई जिस समय माखां निकोलायेवना की मृत्यु हुई, यूरा की आयु केवल दस वर्ष थी | उसकी मां वैसे तो 820५ से ही दुर्दल थी किन्तु बाद में तो उसे क्षयरोय हो गया था। प्रायः अपना इलाज करा बहू दक्षिणी फ्रास अथवा उत्तरी इटली में जाया करती थी। जद मी वह यात्रा पर जाती यूरा को किसी परिचित के पास छोड़ जाती । वह भी अपरिचित वातावरण में ख्ने की “आदी हो गया था। यूरा के पिता जिवागो ने रेल से कूइकर आत्महत्या कर ४ जिवागो के साय उसका वकील भी यात्रा कर रहा या, किन्तु वहेँ उच्चे आत्महत्या अं रोक नहीं सका। यूरा के मामा निकोलाय निकोलायविच उसे बहुत श्रेम कर करते के थे स्वतन्त्र विचारों के व्यक्ति थे । वाद में तो उन्हें अपनी पुस्तकों के लिए काफी न मिली थी। मारया निकोलायेवना की मृत्यु के दो वर्ष पश्चात्‌ सन्‌ १६०३ की गर्ि' बा थूरा अपने मामा के साथ कोलोग्रीवोव की जागीर डुष्ल्यांका में चला गया। ग गए] अचलित स्कूली पुस्तकों के लेखक इवान इवानोविच वोस्कोबोयनिकोवद से मिलः पर चहां पहुंचकर कोल्या मामा और इवान तो अपने काम में लग गए और गूर व चूमता रहता। निकी डुडरोव के साय खेला करता । उसके मामा भी उसे काम सः ३-५ 7. 2298० (छेताड 028/८८००६)--हिन्दो में इस उपन्यात का भवुदार इगाशिव चुका दे; 'डॉ० जिवागो' | डॉ० डिवागो हर श्ष७ खेलने भेज देते। एक दिन उसने मथुमक्त्लियों की ध्वनि तथा चिड़ियों की चहचहाहट सुन- कर अनुभव क्रिया कि मां पुकार रही है। मावुक यूरा इस भ्रम से भयभीत हों उठा निराध होकर उसने घुटनों के बल बैठकर प्रार्दता की ! वह अचेत होकर गिर पड़ा । यूरा मामा कोल्पा से बहुत प्रभावित था। उनके विचारों ने आगे चलकर उसे प्रेरणा भी दी । बाद में यूरा रसायन शास्त्र के प्रोफेसर एलेक्ड्रेंडर एलेकडेंडरोविच के पास रहने लगा था, बयोकि उसके मामा सो एक स्थान से दूसरे स्थाद पर चक्कर लगाते रहते थे। एब्रेक्जरेंडर एलेक्ड्रेंडोविच वी लड़की टोन्या और यूरा का कमरा मकान के ऊपरी भाग में था। दोनों साम-साथ बड़े हुए। आये चलकर टोन्या से यूरा का विवाह भी हो गया। बेल्जियम के एक इंजीनियर की रूसी नागरिकता-प्राप्त पत्नी, जो स्वयं फांसिसी भी, अपने दो बच्चों (रेडिओन और लारिसा) के साथ मास्को में आकर बस गई थी। उसका भाम अमालिया कार्लोवना गुइशर था। उसकी आयु ३५ वर्ष थी और वह सुस्दर भी थी । श्रीमती गुइशर के उस समय मुरुय सहायक वरौील कोमारोवस्की ही थे ! उसीके साथ पत्र-ब्यवहार करके थ्रोमती गुइशर मास्कों चलो आई थी। उसने माटोप्रेवों होटल में उसके रहने की व्यस्था कर दी थी । बाद में ट्राथम्फल आक के निकट स्थित कपडे सिलाई करने के कारताने को उसने खरीद लिया था और कारणाजने के समीप ही तीन कमर रोवाजे एकपर्लैंट में आकर रहने लगी थी । होटल मे वह केवल एक भहीने तक हो रही। करोमारोवस्की श्रीमती गुइशर से प्रायः मिलने आया करता थां। उसका स्वमाव अच्छान था वह श्री मती गुइशर के घर आते समप मनचलो औरतों के साय अइलील मजाक करता हुआ आता या। लाश को आयु उन दिनो सोलह वर्ष की यी, किम्तु अच्छे स्वास्थ्य के कारण वह नवयुवती लगती थी। कोमारोवस्त्री ने कुछ दिन में हो लारा को अपने प्रेम में फ़सा लिया था। उसने उतपर काफी घन भी एर्चे किया), लारा उसके साथ वियेदरों में जाती और वह उसके लिए कुछ भी करने को उत्सुक रहता था। कोमारोवस्वी की आयु सारा के पिता के समात थी। वह धीरे-धीरे उससे घृणा करने लगी थी। बह सोचा करती थी कि उसने कोमारोवस्की वी आत्ससमर्पेण कैसे कर दिया । कोमारोबस्बो जद बहता कि बह उससे विदाह कर लेगा तो वह रोने लगती । अस्त में लाश ने सोचा कि बोमारो> सस्ती वी भहायता पर उसकी सा का अवसम्बित होता ही उसदी दुबंलता वा कारण है । वह किसी भी प्रकार उससे छुटकारा पाने की वात सोचने लगी । जिन दिनों हड़ताल के डगरण वोमारोबसरी उसके घर नहीं झा सदा बट बहुत प्रसन्‍न रही) लारा का घर विद्रोह-क्षेत्र में तो था ही। रेइक्रास-पोस्ट के निकट का स्थान ऐसा था जहाँ कि विड्रोही एक्व होते थे। विड्ोद्दी खोगों मे छारा दो लड़की को जानती दी, एत्र लो लिवी शुइरोव शो और दूसरे पाशा आन्डिपोद बो | नितरी शुष्ऐेद लाश को सहेली नाथा का मित्र था और पाशा को उसने श्रीमती ठिमिरजिना के यहां देखा घा। सारा दा्या दी सरसता को बहुदे पसन्द करती थी। इस समय उन्हें विद्रोहिियों के साथ देसकर भी तार उन्हे भजे लड़के मानदी थी। हृदषाल-एंचासन के अपराध मे जद से पाशा का पिता गिरफ्तार हुआ, तभी से वह घीमठी दिमिरजिता के यहां रहने लगा था। पहले कुछ श्ष्फ « संसार के महान उपच्यान दिन तक वह अपनी बहरी चाची के पास अवश्य रहा था। पाशा अब हाई स्कूल में पढ़ता था। जब सुरक्षा के लिए बताई गई बाढ़ तोप से उडा दी गई और मकान संकट मे पड़ गया तो गुइशर-परिवार ने मांटोग्रेवो के होटल में जाकर रहने की सोची। मकान की चाबी फियेट को दे दी गई; और वे आवश्यक सामान लेकर होटल की ओर चल पड़े, रास्ते में चोराहे पर उनकी तलाशी ली गई, और वे होटल में जाक र रहने लगे। लारा यही सोचकर प्रसन्‍न हो रही थी कि जब तक शहर का सम्बन्ध जिले से टूटा हुआ है, कोमारोवस्की उन्हें परेशान नहीं कर सकता मां की पैदा की हुई परिस्थितियों के कारण वह उससे न तो सम्बन्ध ही तोड़ सकती थी और न ही उसका वहां आना रोड़ सकती थी। मामा निकोलाय पीटसंबर्ग जाते समय यूरा को अपने सम्बन्धी प्रोमेकोड-परिवार में छोड़ गए थे! ग्रोमेकोड-परिवार की अनुकूल परिस्थितियों का यूरा पर बहुत अन्दा प्रभाव पड़ा । जनवरी १६०६ की शाम को एक संगीत-गोप्ठी में एलेव्शेंडर, यूए और मिद्या गोडन भी सम्मिलित हुए। यह संगीत-गोप्ठी संगीत-प्रेमी एलेक्ज्रेंडर ने स्वय आयो' जित की थी । गोष्ठी चल रही थी तभी उन्हें नौकरानी द्वारा समाचार मिला हि संगीत की कोई सम्बन्धी महिला मरणासस्न अवस्था में पड़ी है। एलेक्ड्रेंडर मिशा और पूरा के साथ स्वय होटल में उक्त महिला को देखने गए। संगीतज्ञ तिस्रेविच महोदय की सस्वस्धी श्रीमती गुइशर ने आयोडिन ली थी और डातटर मे उन्हें वमनकारक औपध देकर टी करने की चेष्टा दी थी। वहीं आरामकुर्सी पर लाय सो रही थी। जब कोमारोद्सी ने सैम्प टेवल पर रखा तब उसकी नीद उचट गई और वह आंखों ही आंखों में गाते करे लगी। यूरा सारा का सौन्दर्य देखकर बहुत ही प्रभावित हुआ) तभी मिश्ञा में यूरा हो बताया कि वरोमारोवस्की ही उसके (यूरा कै) पिता के साथ रेलन्यात्रा कर रहा बाऔए उन्हें शराव पौने के लिए एक प्रकार से उसीने बाघ्य किया था। मिशा में कहा हि गे में ही ग्रूया के पिता ने रेल से कूदकर आत्महत्या कर ली जिसका दायित्व १५५3४ पर या। कुछ देर वहां रकने के बाद ही एलेक्डेंड्रोविच यूरा और भिश्ञा कै साथ भौः जआाए। यूरा डाकटरी पढ़ रहा या, टोन्‍्या कानून, और मिद्या दर्रतशास्त्र। एव १६१ तक यूरा का व्यकिवित्त असापारण रूप से प्रभावशासी हो गया घा। जीदत के बारे कं उसका दृष्टिकोण बहुत सुलमा हुआ था। वह वास्तविक कला के लिए 28% आवश्यक मानता था। इने दिनों तक उसके मामा निकोलाय की कई पुस्तक भीप्रादि हो चुकी थीं जितका उसकी दविचारघारा पर गहरा प्रभाव पड़ा। लिकोलाय ते गा, इतिहास को नवीन दृष्टि से देखा था। मृत्यु की चुनौती के सप में गमए और रथ ह3 आधार पर उन्होति मानवद्धारा बनाई हुई नूवत सूष्टिकी कल्तता की थी। ग्रूरा ने हे बढ़ते सम खपना समय आपरेशन के कमरे में तथा मुर्झप्रर में मी शिताया घा। वह हि को तिशट से देखा था। जीवन और मत्यु के बतत्त रहस्य के सम्दत्य में बढ पाप 42280 करता । इन्टीं दिनों अन्ना के अस्वस्थ होते पर उससे उसे समझा हुए बड़ी या डर डॉ० डिवागो श्ष्ध इस चेतना का क्या होगा ? दूसरे की चेतना की वात नहीं कह रहा हूँ, कह रहा हूं, तुम्हारी अपनी चेतना को बात । तुम गया हो ? यही तो समस्या का कठिन पक्ष है। सर्व- अथम इसीका पता लगाना होया । अपने सम्बन्ध मे जानने की उत्सुकता बया है ? झरीर के अवयव ? गुर्दे, हृदय, रक्‍्तवाहिनी शिराएं ? नहीं । ये सव बाहरी वस्तु हैं। दूसरों के लिए, परिवार के लिए तुम्हारे जो काम हैं, वे ही तुम्हारे अस्तित्व के क्रियाशील प्रमाण हैं। इस प्रकार तुम्हारे प्राण दूपरों में प्रतिष्ठित हैं। इसी प्रकार दूसरों मे तुम्हारी आत्मा सदेव अवस्थित रहती है। दूसरों में प्रतिष्ठित तुम्हारे ये प्राण ही चिरन्तन हैं। लारा ने कोमासवस्की से पीछा छुड्ाने के लिए कोलोग्रिवोद के यहां उसकी लड़की लोया की संरक्षिका के रूप में नौकरी कर ली थी। उसने तीन वर्ष तक वहां शाति से कार्ये किया। तीन बर्ष पश्चात्‌ उसका भाई रोड्या उससे मिलने आया । रोड्या ने लारा से कहा कि उसने केडिट्स दल का सात सौ रूबल जुए मे गंवा दिया है और यदि उसने समय पर घत जमा नहीं किया तो उसका सम्मान मिट्टी मे मिल जाएगा | लारा के लिए इतने रूवल॑ कए प्रवन्ध करना कठिन था; रोइयः ने कहा कि यदि बहू कोमारोवस्की से कहे तो वह प्रवन्ध कर सकता है। लारा कोमारोवस्की का नाम सुनकर देचन हो उठी। किसी भी दछ्या से बह उससे मिलना नहीं चाहती थी । कोलो- प्रिवोव से रूबल लेकर उसने रोड्या को दे दिए। वह कोलोग्रिवोव के परिवार मे एक सदस्य की भांति रहती थी । लारा अपने पैसों में से कुछ राशि अपने पिता के पास साइबेरिया भेजा करती, किन्तु चुपके-चुपके मा की सहायता भी करती और इसके अलावा पाशा अन्तिपोव के खर्च का कुछ भाग भी दिया करती । पाशा देसे लारा से आयु में कुछ छोटा ही था फिर भी लारासे बहुत प्रेंम करता था। लारा चाहतो थी कि दोनों ग्रेजुएट होकर विवाह कर लेंगे विवाह के पश्चात्‌ वह गूराल्स के किसी नगर में अध्यापन का कार्य करने और रहने की आकांक्षा रखती थी। १६११ के क्रिसमस दिवस को लाटा ने निश्दय कर लिया कि वह कोलोग्रियोव को छोड़ देगी और कोमारोवस्की से वदला ले लेगी। अपने पैरों पर खड़े होते का उसका विचार इसलिए और पक्का हो यया था कि लोया, जिसकी वह सरक्षिका थी, अब बड़ी हो यई थी। अब लारा के सरक्षण की “उसे आवश्यकता भौ नहीं थी । दस्तानों में रोड्या का रिवाल्वर छिपाकर वह एक दिन कोमारोवस्की से मिलने चल दी ) उसने सोच लिया था कि यदि कोमारोवस्की ने उसे डलील किया तो वह उसे गोली मार देगी। लारा को बह अपने घर नही मिला, क्योकि वह क्रिसमस पार्टी मे गया हुआ था। लारा वहां का पता लेकर चल पड़ी । मा में पाशा का घर पड़ता था। बह पा के पास जा पहुची । पाशा से उसने कहा--धाशा, मैं सकट में हूं । तुम्हें मेरी सहायता करनी होगी। डरो मठ और मुभस प्रश्न भी मत पूछो । मैं सचमुच भयकर सकट में हूं। यदि तुम मुझे प्रेम करते हो और चाहते हो कि मेरा सर्वनाश न हो तो विवाह की बात को टालो मत । पाशा किसी भी समय विवाह करने को तैयार था। उसने स्वोकृति दे दी । तत्पश्चात्‌ स्विटटस्की की क्रिसमस-पार्दी में लारा ने कोमारोवस्की पर गोली चलाई, किन्तु उसके लगी नहीं। हषद «... सयार के मड़ात झ्यत दिन शत बढ़े अपनी बढ़री चासी के थास अवाय रहा था। वाशा अब हाई हरूत में पा चा। जब युरक्षा के लिए बनाई गई बाग तोप से उद् दी गई और मात सादे में पड़े गया सो गुशशर-परियार ने मीटोपेवों के होटल में जाकर रहते की सोवी। मशातरी भाडी पिगेट को दे दी गई, और ये आवश्यक सामान लेकर होटत की ओर बचत पो, राएने में भौरादे पर उसरी शलाशी सी गईं, और वे होटल में जाकर रहने सगे। सारा गड़ी सोचार प्रगस्त हो रही थी हि जब तह शहर का सस्वस्ध डिे मैं टूटा हुआ है, कोमारोवरती उन्हें परेशान नहीं कर सकता । माँ वी पैदा की हुई परिरियतियों के गारण बह उसने ने तो सम्बन्ध ही तोड़ गहती थी और न ही उसका वहाँ माता रोड सकती थी। मामा निक्ोलाय पोटरं वर्ग जोो समय यूरा को अपने सम्बन्धी ग्रोमेशोज-नसिर में छोद् गए थे। प्रोमेकोड-यरियार की अनुशूत परिस्यितियों का यूरा पर बहुत बा प्रभाव पड़ा । जनवरी १६०६ वी शाम को एक रागीत-गोछी में एलेक्व्डर, यूय ३ मिश्चा गोईन भी सम्मिलित हुएं। यह संगीव-योष्ठी सगीत-प्रेमी एसेक्डरेंडर ने पर बा जित की थी। गोप्टी चल रही यो तभी उन्हें नौहरानी द्वारा समाचार मिला कि मंगीः फी कोई सम्बन्धी महिला मरणग्सन्न अवस्था में पड़ी है। एलेवडें डर मिद्मा और प्रूप साथ स्वय होटल में उक्त महिला को देसने गए। गंगीवश तिश्केविच महोदय की सम्बर श्रीमती गुइशर ने आयोडिन सी थी और डावटर ने उन्हें वमतकारक औपध देकर ग्ै करने की चेष्टा की थी। वही आरदामदुर्सी पर सारा सो रही पी । जद कोमारोवस्की लैम्प टेवल पर रखा तव उसकी नीद उचट गई और वह आंखों ही आंखों में बातें कर लगी। यूरा सारा का सोन्दर्य देखकर बहुत ही प्रभावित हुआ। तमी मिद्या ने यूरो 7 बताया कि कोमारोवस्की ही उसके (यूरा के) पिता के साथ रेलन्यात्रा कर रहा था! उन्हें शराव पीने के लिए एक प्रकार से उसीने बाध्य किया या ! मिशा ने कहा किनगे हर ही यूरा के पिता ने रेल से कूदकर आत्महत्या कर ली जिसका दायित्व कम पर था। कुछ देर वहां रुकने के वाद ही एलेक्जेंड्रोविव ग्रृद और मिशा के साथ तोर आए। गूरा डाकटरी पढ़ रहा था, टोन्या कानून, और मिश्या दर्शनशास्त्र। सन्‌ १ न तक गूरा का व्यक्तित्व असाधारण रूप से प्रभावशाली हो गया या। जीवत के बाः डर उसका दृष्टिकोण बहुत सुलझा हुआ या। वह वास्तविक कला क्के लिए मौनिकता निकत प्रधाधित आवश्यक मानता था। इन दिनों तक उसके माम्ता निकोलाय की कई पुस्तक 80 विध- हो चुकी थी जिनका उसकी विचारधारा पर गहरा प्रभाव पढ़ा! निकोलाय 283 न इतिहास को नवीन दृष्टि से देखा था। मृत्यु को चुनौती के रूप में समय पे [ आधार पर उन्होंने मानव-द्वारा बनाई हुई नूतन सृष्टि की कल्पता की थी। यूरा न सा पढ़ते समय अपना समय आपरेशन के कमरे मे तथा मुर्दाघर मे भी विवाया था। जब को निकट से देखा या। जीवन और मृत्यु के अनन्त रहस्य के सम्बन्ध में वह ">हु्हारी करता। इन्हीं दिनों अन्ना के अस्वस्थ होने पर उसने उसे समझते हुए कहा धा-उ ९ डॉ० जिवागो श्ष्६ इस चेतना का वया होगा ? दूसरे की चेतना की वात नहीं कह रहा हूं, कह रहा हूं, सुम्हारी अपनी चेदना की वात । तुप्त क्या हो ? यही तो समस्या का कठिन पक्ष है। सर्वे प्रथम इसीका पता लगाना होगा । अपने सम्बन्ध में जानने वी उत्सुकता बया है ? शरीर के अवयव ? गुर्दे, हृदय, रक्‍्तवाहिनी शिराएं ? नहीं। ये सव वाहरी वस्तु हैं। दूरारों के लिए, परिवार के लिए तुम्हारे जो काम हैं, वे हो तुम्हारे अस्तित्व के क्रियाशील प्रमाण हैं। इस प्रकार तुम्हारे प्राण दूसरों मे प्रतिष्ठित हैं। इसी प्रकार दूसरों में तुप्हारी आत्मा सदैव अवस्थित रहती है। दूसरों में प्रतिष्ठित तुम्हारे ये प्राण ही चिरन्तन हैं। लारा ने कोमारोवस्को से पीछा छुड़ाने के लिए कोलोग्रिदोब के यहां उसकी लड़की लीया की संरक्षिका के रूप में नौकरी कर ली थी । उसने दीन वर्ष तक वहां शाति से कार्य किया। तीत वर्ष पश्चात्‌ उसका भाई रोड्या उससे मिलने आया । रोड्या ने लारा से कहा कि उसने केडिट्स दल का सात सौ रूबल जुए में गवा दिया है और यदि उसने समय पर घन जमा नही किया तो उसका सम्मान मिट्टी मे मिल जाएगा । लारा के लिए इतने रूवल कए प्रबन्ध करना कठित था $ रोइया ले कहा कि यदि बह कोमारोबस्की से कहे तो वह्‌ प्रवग्ध कर सकता है। लारा कोमारोवस्की का माम सुनकर बेचेन हो उठी। किसी भी दशा में वह उससे भिलना नहीं चाहती थी । कोलो- प्रिवोव से खवल लेकर उसने रोड्या को दे दिए। वह कोलोग्रिवोव के परिवार में एक सदस्य की भांति रहती भी । लारा अपने पंसों में से कुछ राशि अपने ऐिता के पास रू(इवेरिया भेजा करदी, किन्तु चुपके-चुपके भां की सहायता भी करती और इसके अलावा पाश्ञा अस्तिपोव के खर्च का कुछ भाग भी दिया करती। पाशा देसे लारा से आयु मे कुछ छोटा ही था फिर भी लारासे बहुत प्रेम करदा था। लारा चाहती थी कि दोनों ग्रेजुएट होकर विवाह कर लेगे ! विवाह के पश्चात्‌ वह्‌ यूराल्स के किसी नगर में अध्यापत का कार्य करने और रहने की आकांक्षा रखती थी। १६११ के क्रिसमस दिवस को लारा ने निश्चय कर लिया कि बह कोलोग्रियोव को छोड़ देगी और कोमारोवस्वी से बदला ले लेगी। अपने पैरों पर खड़े होदे का उसका विचार इसलिए और पक्का हो यथा था कि लीया, जिसकी वह सरक्षिका थी, अब बड़ी हो गई थी। अब लारा के सरक्षण की 'उसे आवश्यकता भी नही थी। दस्तानो मे रोड्या का रिवाल्व॒र छिपाकर वह एक दिन कोमारोवस्की से मिलने चल दी। उसने सोच लिया था कि यदि कोमारोवस्की भे उसे जलील किया तो वह उसे गोली मार देगी। लारा को बह अपने घट नदी मिला, वयोंकि बह क्रिसमस पार्टी में गया हुआ घा। लारा वहाँ का पता लेकर चल पड़ी । मारे में दाशा कर घर पड़दा था । बह पाशा के पास जा पढुची । पाशञा से उसने कहा--शशा, मैं सकट मे हू । तुम्हें मेरी सहायता करनी दोगी। डरो मत और मुझ प्रइन भी मत पूछो । मैं सचमुच भयकर सकट में हूं । यदि तुम मुझे प्रेम करते हो और चाहते हो कि मेरा सर्वगाश न हो तो विवाह की बात को टालो मत । पाञ्ना किसी भी समय विवाह करने को तैयार या। उसने स्वीकृति दे दी | तत्पश्चातू स्विटटस्की की क्रिसमस-पार्टी में लारा ने कोमारोवस्क्ती पर गोली चलाई, किन्तु उसके लगी नहीं। १६० ससार के महान उपन्यान कोर्ताक्ोव नामक व्यक्तित के हाथ में उससे थोड़ी-सी खरोंच था गईं। यूरा भी वहाँ उप- स्थित था। इस अवसर पर लारा को उसने दूसरी वार देखा था। लारा कुछ देर बाद हो मूच्छित हो गईं थी और लोगों ने उसे आरामकुर्सी पर लिटा दिया था। इस घटना को लेकर पुलिस भी चक्कर लगाने लगी थी । कोमारोवस्की ने सार्जेण्ट से मिलकर मामले को समाप्त करने का प्रयास किया । लारा ज्वर के कारण बेहोश थी। इस घटता ऐे कोमा> रोवस्की और लारा को लेकर कई अफवाहें फैल रही थीं। कोमारोवस्की उन्हें बढ़ने देना नहीं चाहता था। कोलोप्रिवोव अत्वस्य लाया से मिलने आए थे और उसके रहने के लिए उन्होंने स्थात की व्यवस्था भी कर दी यी । लारा को वह हज़ार रूबल का चेक भी दे गए थे। पाशा बहुत दुःखी या । लारा से वह अत्यधिक प्रेम करता या, फिर भी उसे ऐसा सगता कि लारा ने पाप किया है। ग्रेजुएट होने के पश्चात्‌ लारा और पाश्ञा का विवाह हो गया। दोनों ही अपनी- अपनी परीक्षाओं में सफल रहे थे। ग़ूराल्स के एक नगर में उन्हें नौफ़री भी मिल गईं और वे दोनों वहां चले गए युर्यातिन में प्राथा और लारा चार साल तक व्यवस्थित रुप से रहे । इस बीच उनकी कन्या कात्या तीन साल की हो गई थी। लाटा वात्या का ध्यात रखने के अतिरिक्त कन्या-विद्यालय में पढ़ाती भी थी। सारा युर्यातिन में ही उपल हुई थी, इसलिए उसे वहां के सीधे-सादे लोग अच्छे लगते थे। पाशा उन्हें आचारहीन और पिछड़ा हुआ मानता था। वह उनके सम्पर्क से ऊद उठा था। इन दिनों उसने बहुत पं था। लैटिन और प्राचीन इतिहास पढ़ाने पर भी यह धरीरशास्त्र और गगित का अध्य- यन कर चुका था। अब यह विज्ञान में डिप्री लेकर उसी विभाग में रथातास्तरण कर: वाना चाहता था। वह सो चाहता था कि यही से परिवार के साथ पीटसंवर्ग चला जाए परन्तु सारा उन्हीं लोगों में खुश थी। अन्त में पाशा सारा के प्रेम से ऊब्या गया बह उसके प्यार में मातृत्व अधिक पाता था। पाशा हाई रुकूल की नौकरी छोड़कर ओमरक के मिलिट्री ट्रेतिंग स्कूल का नियुक्ति-पत्र प्राप्त करते ही राटवेरियां घसा गया। वहां झ्ारा को प्रेम-मरे पत्र लिखा करता, उन्तु जब वह गया था तो सारा के रोहने पर बह रुबा नहीं था, बयोकि यह उपता चुका था। पाता अब विसी तरह घर जानेबी छूटी तेता चाहता था, उसे लारा और कात्या की याद आती थी । संकटकाल में उसे सेवा 29 अड्डा लेकर चलते का काम मिला था। कुछ दिन तक तो वहां से भी लाए डे पर हि पत्र आते रहे परन्तु फिर बन्द हो गए। लारा पत्र ने मिलने से विल्लित हो उठी बी ड्रेनिय सी और कात्या को मास्कों में सीया के पास छोड़कर रेश्तास ढी एए रत युद्धशषेत्र के निकट के एक याव में जा पटुद्दी । यूरा, जिसे अब डाक्टर जिवागो के ताम से जातते फ हे उपयार करता था १ उसे इसोविए माहकों से बुलाया गया पा) सिर्गा होटल 52 मिलने गया बोर श्र सप्ताड तइ वही रहा । जब मियया को विद करे डिश रो रह था तभी उपके देर में बम का टुकड़ा लगा और वह बेदोश ही गया । वारतार मैं बातों कवर युदकंत्र के अत्यविष्त तिकद था। खिवागों को एक छोटेन्े बशतात ग्रे के शपा और अपिडारियों के वाई में रखा रया। यर्टा से दैट वाटर पास हीं वा ने थे, उसी होत में पायी हा ड9 जिवागो 32 इसी अस्पताल में नपते का काम करने लगी थी । वह मरीडों से बहुत अच्छा व्यवहार करती थी। वहीं गल्युलिन ने उसे बताया : पाशा की मृत्यु बम फट जाने से हो गई है और उसका सामान मेरे पास तुम्हें देने के लिए सुरक्षित रखा है।*'“पाशा की मृत्यु का समाचार सुनकर खारा बेहोश होने को हुई किन्तु उसने अपने-आपको संभाल लिया । इन्ही दिनों जिवागों को मास्को से सूचना मिली कि डुडरोव और गोड न मे उसकी पुस्तक प्रकाशित कर दी है और एक महान साहित्यिक कृति के रूप में उसका सम्मान हुआ है। उसे यह समाचार भी मिला कि मास्कों की जनता में असस्तोष बढ़ता जा रहा है। कुछ दिलों में भेल्यूजेबो में अस्पताल आ गया और ज़िवागो तया लारा वहां साथ-साथ काम करने लगे । जिवागो सेता की टुकड़ियों को देखने भी जापा करता था $ उसने अपनी पत्नी टोन्‍्या को लिखा कि यह कुछ ही दिन मे आनेवाला है । जेदुकिरनों में गेणतन्त्र समाप्त हो गया तव मी मेल्यूजेदों की क्रान्तिकारी समिति का जिले-भर में प्रभाव था। डा० जिवागो मास्को लोटने के लिए आज्ञा-पत्र लेते का प्रयास कर रहा था। आखिर मेडमेजिल ने डा० ड़िवागो को मास्को जानेवाली रेल में व्यवस्था करा दी और वह वहां से विदा हुआ। हे गाड़ी सशस्त्र पहरे में जा रही थी। डिवागो सोच रहा था कि रूस में अशान्ति बढ़ती जा रही है, उत्तेजना के स्वर ऊचे उठ रहे हैं, क्रान्ति का सन्देश चारों ओर व्याप्त हो रहा है । जब डिवागो रेल में यात्रा कर रहा था तभी उसके सहयात्री पागोरेवाकिल मे उसे एक बत्तत्र भेंट की। उन दिनों मास्को में बतख मिलना कठिन था। डिवागो निरन्तर रूस की स्थिति के सम्बन्ध मे सोच रहा था। उसे प्रतीत होता था कि असाधारण परिवर्तन होनेवाला है । जब उसकी टैक्सी स्मालेस्काय के चौराहे से गुज़री तो उसने लोगों को कागड़ी फूल, कॉफी छानने की चलनी, सीटियां, रोटियों के नुकौले टुकड़े और मोटा तम्बाकू बेचते देखा। चारों ओर लगे हुए पोस्टरों को देखकर उसे बहुत आश्चर्य हुआ मकान आने पर जिवागों ने टैबसी रुकवाई और बन्द दरवाज़े की घटी बजाई। टोन्या ने आकर दरवाज़ा खोला । वह उसे देखकर स्तब्घ रह गई। जिवागो बिना सूचना दिए ही भआ गया था। कुछ देर में ही दोनों एक-दूसरे से प्रश्न पूछने लगे । ज्िवागो ने अपने लडक